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कोरोनाकाल में भी संसद की चौखट पर समर्पित उत्तराखंडियों ने मनाया काला दिवस

#मुजफ्फरनगर_काण्ड-94 के गुनाहगारों को 26 साल बाद भी दण्डित न किये जाने के विरोध में

नई दिल्ली (प्याउ)।
2 अक्टूबर महात्मा गांधी जयंती के दिन कोरोनाकाल में भी समर्पित उत्तराखण्डियों ने मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की । इस काण्ड के गुनाहगारों को 26 साल बाद भी सजा न दिये जाने के विरोध में संसद की चौखट जंतर मंतर पर काला दिवस के रूप पर मना कर देश के #हुक्मरानों को #धिक्कारा।

आंदोलनकारियों में इस बात से बेहद गुस्सा था कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय व देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई द्वारा दोषी ठहराने के बाबजूद इस काण्ड के 26 साल बाद भी देश की व्यवस्था द्वारा इन गुनाहगारों को दण्डित करने के बजाय पद्दोन्नित करके पुरस्कृत किया गया। इसी के विरोध में आक्रोशित उत्तराखण्डी विगत 26 सालों से संसद की चैखट जंतर मंतर पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए काला दिवस मना कर देश के हुक्मरानों का धिक्कारते हैं।
इस आशय का एक ज्ञापन #राष्ट्रपति महोदय को भी प्रेषित किया गया।
ज्ञापन में राष्ट्रपति से देश की व्यवस्था के रक्षकों द्वारा देश के संविधान व मानवता को रौंदने वाले इस जघन्य काण्ड के दोषियों को तत्काल सजा दे कर भारतीय संविधान, संस्कृति व न्याय की रक्षा करने का गुहार की लगाई गयी।
आयोजन समिति के संयोजक देवसिंह रावत ने बताया कि 2 अक्टूबर को कोरोना महामारी के बाबजूद उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन के प्रमुख संगठनों व तमाम सामाजिक संगठनो ने उत्त्राखण्ड आंदोलनकारी संगठनों की समन्वय समिति के बैनर तले संसद की चैखट जंतर मंतर पर आयोजित इस काला दिवस में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा, उत्तराखण्ड लोकमंच, उत्तराखण्ड जनमोर्चा, उत्तराखण्ड महासभा, उत्तराखण्ड क्रांतिदल सहित राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की तमाम प्रमुख सामाजिक संगठनों ने भाग लेते हुए मुजफ्फरनगर काण्ड-94 सहित राज्य गठन जनांदोलन के सभी शहीदों को अपनी भावभीनी श्रद्वांजलि अर्पित करते हुए ‘उत्तराखण्ड के शहीद अमर रहे, मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा दो, नरेन्द्र मोदी, त्रिवेंद्र रावत शर्म करो’ व मुलायम सिंह को फांसी दो आदि गगनभेदी नारे लगाये।

इस अवसर पर आंदोलनकारियों ने उत्तराखण्ड प्रदेश की अब तक की सरकारों को प्रदेश के आत्मसम्मान व जनांकांक्षाओं को रौंदने पर कड़ी भत्र्सना करते हुए उनको राव-मुलायम से बदतर बताया।
भाग लेने वाले प्रमुख लोगों में उत्तराखण्ड जनता संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष देवसिंह रावत, खुशहाल बिष्ट, विनोद नेगी , जनमोर्चा के डा एस एन बसलियाल, रणजीत सिंह नेगी, ब्रजमोहन सेमवाल , उत्तराखण्ड महासभा के अनिल पंत, उत्तराखण्ड राज्य लोकमंच शिवप्रसाद बलूनी , उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के मनमोहन शाह, आंदोलनकारी उमेश रावत, किशोर रावत, मोहन जोशी, बलवीर सिंह धर्मवान, हुकम सिंह कंडारी, प्रेम सिंह रावत, पदम सिंह बिष्ट, महेश कांत पाठक, ज्योति सेतिया, भारत रावत, विक्रम सिंह, संजय नौडियाल, मोहन जोशी, दिनेश तिवारी, द्वारिका प्रसाद चमोली, पत्रकार सतेंद्र रावत, भाजपा के उदय मंमगाई राठी,,राकेश नेगी व लक्ष्मण कुमार आर्य, अनिल रतूड़ी, आप नेता पंकज पैन्यूली, साहित्यकार दर्शन सिंह रावत, शिव सिंह रावत, कांग्रेस के हरि प्रकाश आर्य, प्रताप थलवाल, देवेंद्र पंत, कुलानंद मैठानी इंजीनियर गणेश चंद्र ,रविंद्र चौहान, भाजपा नेता वेद शर्मा, श्रीमती मंजू रतूड़ी, हेमराज कोठारी
सहित तमाम वरिष्ठ आंदोलनकारियों व समाजसेवियों ने भाग लेकर श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर तमाम वक्ताओं ने एक स्वर में इस काण्ड की कडी भत्र्सना करते कहा कि देश की एकता, अखण्डता व विकास के लिए समर्पित रहे ‘उत्तराखण्ड राज्य गठन जनांदोलन’ में गांधी जयंती की पूर्व संध्या 1 अक्टूबर 1994 को, 2 अक्टूबर 1994 को आहुत लाल किला रेली में भाग लेने आ रहे शांतिप्रिय हजारों उत्तराखण्डियों को, मुजफ्फरनगर स्थित रामपुर तिराहे पर अलोकतांत्रिक ढ़ग से बलात रोक कर जो अमानवीय जुल्म, व्यभिचार व कत्लेआम उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह सरकार व केन्द्र में सत्ताासीन नरसिंह राव की कांग्रेसी सरकार ने किये, उससे न केवल भारतीय संस्कृति अपितु मानवता भी शर्मसार हुई। परन्तु सबसे खेद कि बात है कि जिस भारतीय गौरवशाली संस्कृति में नारी को जगत जननी का स्वरूप मानते हुए सदैव वंदनीय रही है वहां पर उससे व्यभिचार करने वाले सरकारी तंत्र में आसीन इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय शर्मनाक ढ़ग से संरक्षण देते हुए पद्दोन्नति दे कर पुरस्कृत किया गया। सबसे हैरानी की बात है कि जिस मुजफ्फरनगर काण्ड-94 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मानवता पर कलंक बताते हुए इसे शासन द्वारा नागरिकों पर किये गये बर्बर नाजी अत्याचारों के समकक्ष रखते हुए इस काण्ड के लिए तत्कालीन मुजफ्फनगर जनपद(उप्र) के जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह व पुलिस अधिकारियों डीआईजी बुआ सिंह व नसीम इत्यादि को सीधे दोषी ठहराते हुए इनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने का ऐतिहासिक फैसला दिया था। यही नहीं माननीय उच्च न्यायालय ने केन्द्र व राज्य सरकार को उत्तराखण्ड के विकास के प्रति उदासीन भैदभावपूर्ण दुरव्यवहार करने का दोषी मानते हुए दोनों सरकारों को यहां के विकास के लिए त्वरित कार्य करने का फैसला भी दिया था। जिस काण्ड पर देश की सर्वोच्च जांच ऐजेन्सी सीबीआई ने जिन अधिकारियों को दोषी ठहराया था, जिनको महिला आयोग से लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग दोषी मानता हो परन्तु दुर्भाग्य है कि इस देश में जहां सदैव ‘सत्यमेव जयते’ का उदघोष गुंजायमान रहता हो, वहां पर उच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद अपराधियों व उनके आकाओं के हाथ इतने मजबूत रहे कि देश की न्याय व्यवस्था उनको दण्डित करने में आज 26 साल बाद भी अक्षम रही है।
इस काण्ड से पीड़ित उत्तराखण्ड की सवा करोड़ जनता को आशा थी कि राज्य गठन के बाद उत्तराखण्ड की राज्य सरकार इस काण्ड के दोषियों को सजा दिलाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का काम करेगी। परन्तु हमारा दुर्भाग्य रहा कि वहां पर स्वामी, कोश्यारी, तिवारी, खंडूडी , निशंक व विजय बहुगुणा व रावत जैसे पदलोलुप नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन रहे। इनके शासन में इस काण्ड के अपराधियों को दण्डित करने के बजाय उनको संरक्षण देने की शर्मनाक कृत्य किया गया।
इस अवसर पर शहीदों की आत्माओं को शांति के लिए आचार्य जगमोहन रावत के नेतृत्व में यज्ञ का भी आयोजन किया गया।

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