उत्तराखंड देश

बदरी केदार धाम की सुध लेने के साथ राजधानी गैरसैंण बनाकर उतराखण्ड व देश की भी रक्षा करें प्रधानमंत्री मोदी

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र द्वारा जनभावनाओं को रौंद कर बलात देहरादून राजधानी बनाने के षडयंत्र से त्रस्त उतराखण्ड आंदोलनकारियों ने लगायी प्रधानमंत्री से गुहार

 

प्रधानमंत्री मोदी ने 10 जून को विडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा केदारनाथ पुनर्निर्माण परियोजना की समीक्षा की
नई दिल्लीे से प्याउ व पसूकाभास
प्रधानमंत्री मोदी ने 10 जून को वीडियो कॅान्फ्रेंसिंग के जरिये विश्व में भगवान शिव के सबसे पावन धाम केदारनाथ धाम में चल रही विकास और पुनर्निर्माण परियोजना की उत्तराखंड सरकार के साथ समीक्षा करने की खबर की भनक जैसे ही उतराखण्ड राज्य गठन के समर्पित आंदोलनकारियों को लगी तो उन्है आशा की नई किरण दिखाई दी। उतराखण्ड आंदोलनकारियों ने एक स्वर में प्रधानमंत्री मोदी से खुला आवाहन  किया कि बदरी केदारनाथ धाम की तरह ही उतराखण्ड के चहुंमुखी विकास व देश की सुरक्षा के लिए उतराखण्ड प्रदेश की राजधानी गैरसैंण तत्काल घोषित किया जाय।
उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन के शीर्ष आंदोलनकारी व राजधानी गैरसैंण के लिए संघर्षरत प्रमुख ध्वजवाहक देवसिंह रावत ने बताया कि प्रधानमंत्री से यह खुला आवाहन इंटरनेटी माध्यम से किया गया। प्रधानमंत्री मोदी को स्मरण कराया गया कि उतराखण्ड की जनता निरंतर प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग कर रही है। परन्तु प्रदेश के त्रिवेंद्र रावत सहित अन्य नेता प्रदेश के चहुमुखी विकास के साथ देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण को नजरांदाज करके बलात देहरादून में राजधानी बनाने का षडयंत्र कर रहे है। इसी के तहत उन्होने देहरादून को स्थाई राजधानी बनाये रखने के षडयंत्र के तहत ही जनता की आंखों में धूल झौंकते हुए गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दी। इस आशय का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कराने के बाद इसी 8जून को राज्यपाल ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने की अधिसूचना जारी कर दी। जबकि हकीकत यह है राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए जनता राज्य आंदोलन के समय से ही पूर्ण सहमत थे। राज्य गठन से पहले ही उप्र सरकार की एक समिति ने भी वैज्ञानिक, भूगर्भीय आदि सभी ने एक स्वर में राजधानी गैरसैंण बनाने में अपनी सहमति प्रदान की थी। प्रदेश गठन के बाद उतराखण्ड के नेता व नौकरशाह देहरादून की पंचतारा सुविधाओं के मोह के लिए उतराखण्ड की जनभावनाओं का निर्ममता से गला घोंटते रहे। सबसे हैरानी की बात है कि गैरसैंण में ही प्रदेश का एकमात्र व देश का सबसे मनोहारी भव्य विधानसभा भवन बना हुआ है। जिसमें न केवल प्रदेश विधानसभा का ग्रीष्मकालीन व शीतकालीन सत्र के साथ प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण बजट सत्र भी विधिवत आयोजित किया जा चूका है। यही नहीं भाजपा व कांग्रेस सहित सभी दल प्रदेश की जनता को राजधानी गैरसैंण में ही राजधानी बनाने का आश्वासन देते रहे। भाजपा नेता मदन कोशिक जो  ने कांग्रेस शासन में नेता प्रतिपक्ष के पद पर आसीन थे उन्होने विधानसभा पटल पर प्रदेश की राजधानी गैरसैंण घोषित करने के लिए प्रस्ताव रखा था। लोग हैेरान है कि प्रदेश की सरकारें राजधानी गैरसैंण घोषित न करके प्रदेश की जनता से क्यों विश्वासघात कर रही है।
प्रदेश गठन के 20 सालों की तमाम सरकारों ने प्रदेश की जनांकांक्षाओं को रौंदने का काम किया। इससे आहत हो कर ही उतराखण्ड राज्य आंदोलनकारी बाबा मोहन उतराखण्डी व देवसिंह नेगी राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर शहीद हो गये। गैरसैंण में राजधानी न बनाये जाने से प्रदेश का पूरा शासन तंत्र देहरादून में कुण्डली मार के बैठ गया। जिससे प्रदेश के पर्वतीय व सीमांत जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार व शासन सब पटरी से उतर गया। इससे  लोग मजबूरी से यंहा से पलायन कर रहे है। राज्य गठन के बाद सीमांत व पर्वतीय जनपदों के सैकडों गांव इस पलायन के दंश से उजड गये। यह चीन से लगे सीमान्त प्रांत में यह पलायन देश की सुरक्षा के लिए काफी घातक है। नेताओं व नौकरशाहों का पंचतारा व मैदानी भूभाग में ही बने रहने के अंध मोह से पटरी से उतर चूके उतराखण्ड को संवारने का एक ही रास्ता है वह है प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाना।राजधानी बनने से यहां शिक्षा, यातायात, चिकित्सा, रोजगार व शासन के साथ चोतरफा विकास होगा। जिससे यहां से हो रहे पलायन पर काफी हद तक अंकुश लगेगा और हिमाचल की तरह उतराखण्ड भी एक खुशहाल व पलायन रहित राज्य बन जायेगा। श्री रावत ने आशा प्रकट की कि प्रधानमंत्री मोदी प्रदेश के चहुुमुखी विकास व देश की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पंचतारा सुविधाओं के मोह में देहरादून में कुण्डली मारे बेठी त्रिवेंद्र सरकार को गैरसैंण में राजधानी घोषित कर जनभावनाओं का सम्मान करने की सीख देंगे।      उतराखण्ड की जनता को आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास भी है कि बदरी केदार नाथ धाम की सुध लेने वाले प्रधानमंत्री जी ,  राजधानी गैरसैण न बनाए जाने से उजड़ सा गये उतराखण्ड की भी सुध लेने के लिए अपने प्रभाव का सदप्रयोग करेंगे।

उल्लेखनीय है कि केदार नाथ धाम तीर्थस्थल के पुनर्निर्माण की अपनी परिकल्पना के बारे में प्रधानमंत्री ने 10 जून को आयोजित इस वीडियो कांफ्रेंस में कहा कि राज्य सरकार को केदारनाथ और बद्रीनाथ जैसे पवित्र स्थलों के लिए विकास परियोजनाओं की संकल्घ्पना के साथ उसका डिजाइन इस प्रकार तैयार करना चाहिए जो समय की कसौटी पर खरा उतरे, पर्यावरण के अनुकूल हो और प्रकृति और उसके आसपास के वातावरण के साथ तालमेल बैठा सके।

वर्तमान स्थिति और इन तीर्थस्थलों में पर्यटकों और श्रद्धालुओं की संख्घ्या में तुलनात्मक रूप से आई कमी को ध्घ्यान में रखते हुए, प्रधानमंत्री ने सुझाव दिया कि निर्माण के वर्तमान समय का उपयोग श्रमिकों के उचित वितरण द्वारा लंबित कार्यों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन साथ ही हमें उचित दूरी बनाए रखने (सोशल डिस्टेंसिंग) के नियम को भी ध्यान में रखना होगा। इससे आने वाले वर्षों में पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी जारी रखने  के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा और सुविधाएं तैयार करने में मदद मिलेगी।

कुछ विशेष सुझावों के तहत, प्रधानमंत्री ने रामबन से केदारनाथ तक के बीच अन्घ्य धरोहर और धार्मिक स्थलों के और विकास करने का निर्देश दिया। यह कार्य केदारनाथ के मुख्घय मंदिर के पुर्नर्विकास के अतिरिक्त होगा।

बैठक में श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए ब्रह्म कमल वाटिका और संग्रहालय के विकास की स्थिति से संबंधित विवरण पर भी विस्घतार से बातचीत हुई जो वासुकी ताल के रास्ते में है। साथ ही पुराने शहर के मकानों और वास्तुकला की दृष्टि से ऐतिहासिक महत्व की सम्पत्तियों के पुनर्विकास के अलावा अन्घ्य सुविधाओं जैसे मंदिर से उपयुक्त दूरी पर और नियमित अंतराल पर पर्यावरण अनुकूल पार्किंग स्थल के बारे में भी चर्चा हुई। बातचीत में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री  त्रिवेन्द्र सिंह रावत और अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हुए ।

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