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7.1फुट ऊँचा धनिया उगाकर विश्व कीर्तिमान बनाने वाले गोपाल उप्रेती ने लहराया संसार में भारत का परचम

उत्तराखंड  के उद्यमी गोपाल उप्रेती का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में  दर्ज

देवसिंह रावत
आज 3 जून की साँँय सवा सात बजे ही मेरे मित्र गोपाल उप्रेती का दूरभाष आया। उन्होने बताया कि धनिया के पोधे को विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया है इसके लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में उनका नाम 7.1फूट ऊंचा पौधा उत्पादन करने के लिए उनका नाम दर्ज किया गया। गोपाल उप्रेती ने अपने दावों के साथ  गिनीज बुक आफ रिकार्ड में दर्ज हो गया ।पूरे विश्व में इस कीर्तिमान से भारत का परचम लहरा दिया । मित्रो जैसा कि आपको पता है कि मैंने गिनीज़वर्ल्ड रिकॉर्ड में विश्व के सबसे सर्वाधिक लंबाई के धनिए के पौधे को जिसकी ऊंचाई 5 फुट 11 इंच की थी,को चुनौती दी थी। मुझे आपको बताते हुए प्रसन्नता हो रही है कि गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड ने मेरा नाम 7 फुट 1 इंच लंबाई के धनिया के पौधे के साथ दर्ज कर लिया है।Title:Tallest coriander plant of world. धनिया की फसल पूर्ण रूप से जैविक तथा बिना पॉलीहाउस के उगाई गई। उत्साहवर्धन के लिए मैं केंद्रीय कृषि मंत्री #श्री नरेंद्र तोमर जी ,नैनीताल से सांसद #श्री अजय भट्ट जी ,मुख्यमंत्री #श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी ,सांसद #श्री अजय टम्टा जी तथा# श्री हरीश रावत जी का धन्यवाद करना चाहूंगा। मैं अपनी पत्नी वीना उप्रेती का भी धन्यवाद करना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे जैविक कृषि के लिए प्रेरित किया । उनके सहयोग के बगैर यह संभव नहीं था। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स से लेकर गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स तक की यात्रा में सहयोग के लिए श्री नितिन जोशी और बड़े भाई श्री टी सी उप्रेती जी का भी आभार प्रकट करता हूं। मैं अल्मोड़ा के मुख्य उद्यान अधिकारी श्री टी एन पांडे जी ,उत्तराखंड ऑर्गेनिक बोर्ड के सेंट्रल इंचार्ज रानीखेत के डॉक्टर देवेंद्र सिंह नेगी एडीओ ताड़ीखेत श्री इन्द्र लाल जी तथा प्रभारी बिल्लेख श्री राम सिंह जी का भी आभार प्रकट करता हूं ,जिन्होंने जैविक फसल को कोरोना जैसे संक्रमण काल में भी प्रमाणित करने का काम किया।मैं अपनी इस उपलब्धि को उत्तराखंड तथा भारतवर्ष के सभी जैविक किसानों को समर्पित करता हूं ।उत्तराखंड में जैविक बागवानी और कृषि की अपार संभावनाएं हैं ।धनिया की फसल ने इस बात को सिद्ध कर दिया है। मेरा नाम गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज होने से जैविक बागवानी कृषि को बढ़ावा मिलेगा तथा देश के किसानों में प्रतिस्पर्धा की भावना उत्पन्न होगी जो देश की कृषि को आगे बढ़ाने के लिए शुभ संकेत होंगे।

 

। उल्लेखनीय है गोपाल  अल्मोडा के बिल्लेख गांव के निवासी गोपाल उप्रेती का अपने क्षेत्र में ही सेव का बडा बाग है। इस बाग में वे प्रायः समय समय पर टमाटर, सब्जी, लहसन, मिर्च व धनिया आदि की भी पैदावार करते रहते है।
कुछ ही माह पहले कोरोना महामारी के दौरान प्रथम तालाबंदी के समय जब वे अपने गांव पंहुचे तो उन्होने ऐसे ही अपने बाग में धनिया के एक विशाल पौधे के साथ अपनी तस्वीर अपनी फैस बुक आदि इंटरनेटी माध्यमों में मुझे सहित कई मित्रों के लिए हास्य विनोद में प्रेषित कर दी। इसके बाद ही उन्हें ज्ञात हुआ कि यह असाधारण पौधा है । जिसका उतराखण्ड सरकार के संबंधित विभाग से सत्यापन कराने के बाद ज्ञात हुआ कि गोपाल उप्रेती के बंाग में जैविक प्रजाति का विश्व का सबसे ऊॅंचा(6.1 फीट)धनिया पौधे की पैदावार होती है। इस कीर्तिमान से गोपाल उप्रेती बहुत ही उत्साहित है। वे बहुत उत्साहित है कि धनिया जैसे पौधे ने उनको जो सम्मान दिया उसकी उन्होने कभी कल्पना भी नहीं की थी। वे अब लहसन आदि के बीज को भी अपने नाम कराने में जुटे है। यह धनिया गत वर्ष भी हुआ था पर इस पर उन्होने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। धनिया के इस चमत्कारी कीर्तिमान से गोपाल उप्रेेती को समझ में आ गया कि छोटी छोटी फसले/ चीजें भी इस विश्व रिकार्ड बनाने पर हार्दिक बधाई। प्यारा उत्तराखंड परिवार शीघ्र इस कोरोना महामारी की सामान्य होने के बाद दिल्ली में उनका स्वागत समारोह करेगा। और आप सभी लोगों को हार्दिक बधाई
उल्लेखनीय है कि वे कोरोना महामारी पर देश व्यापी अंकुश लगाने के लिए देश व्यापी तालाबंदी के दौरान गोपाल उप्रेती दिल्ली से अपने गांव बिल्लेख पंहुचे। अभी भी गोपाल उप्रेती अपने गांव में ही अपने बाग व खेत खलिहानों में अपने सपनों को धरती में उतारने में लिए रात दिन समर्पित रहते है। बिल्लेख निवासी गोपाल उप्रेती कई दशकों से दिल्ली मं भवन निर्माण उद्यमी है। दिल्ली में रहते हुए भी उनका मन सदैव अपनी जन्मभूमि उतराखण्ड में कुछ करने के लिए कचैटता रहता। उनके मन में सदैव उठता रहता था कि उतराखण्ड में हिमाचल से बेहतर भौगोलिक संरचना होने के बाबजूद क्यों बदहाल है। हिमाचल अपने फलोद्यान से पूरे भारत का सिरमौर बना हुआ है। हिमाचल के लोग पलायन नहीं अपने खेत खलिहानों व बाग बगिचों में फल व साग सब्जियों का उत्पादन करके खुशहाल बने हुए है। वहीं उतराखण्ड के लोग 5 व दस हजार की नौकरी के लिए भी महानगरों में नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशापित है। प्रदेश गठन के 20 साल बाद भी प्रदेश की सरकारों ने हिमाचल की तरह प्रदेश के चहुमुखी विकास करने की दिशा में एक कदम भी ईमानदारी से नहीं बढाया। हिमाचल का सौभाग्य रहा कि वहां परमार जैसे स्वप्नदृष्टा भागीरथ व वीरभद्र जैसे विकास की गंगा को हिमाचल में उतारने वाला नेतृत्व मिला। परन्तु उतराखण्ड अपने गठन के 20 साल बाद भी परमार व वीरभद्र की तरह के नेतृत्व के लिए तरस रहा है।
प्रदेश की इसी दुर्दशा से व्यथित उतराखण्डी युवा उद्यमी गोपाल उप्रेती को आशा की किरण तब नजर आयी जब वे उतराखण्ड के चकरोता क्षेत्र के प्रसिद्ध फल उद्यमी व राजनेता स्व नैनसिंह रावत के विशाल सेब के बगीचे में गये। वहां ज्ञात हुआ कि इस बाग से लाखों रूपये की आय रावत परिवार को होती है। वहां देख कर गोपाल उप्रेती के दिमाग में आया कि चकरोता व रानीखेत की जलवायु अधिकांश एक सी है। क्यों न उनके गांव में भी ऐसे ही सेब के बाग हो सकते है। श्री उप्रेती चकरोता क्षेत्र के वरिष्ठ समाजसेवी स्व नैनसिंह रावत के बडे सुपुत्र वरिष्ठ आयकर आयुक्त रतन सिंह रावत के करीबी मित्र है, उन्हीं के साथ वे उनके पैतृक गांव गये। वहीं गोपाल उप्रेती ने संकल्प लिया कि वे अपने क्षेत्र में ही ऐसा ही समृद्ध बाग लगा कर प्रदेश को हिमाचल की तरह समृद्ध व आत्म निर्भर राज्य बनाने का संकल्प को साकार करेंगे। इस कार्य में रतन सिंह रावत ने उनको हर प्रकार से मार्गदर्शन व सहयोग दिया। अपने धून के पक्के गोपाल उप्रेती ने डेढ दशक में ही ऐसा कार्य किया आज उनकी गिनती उतराखण्ड के सबसे प्रगतिशील फलोद्यान उद्यमी के रूप में होती है। पंत कृर्षि विश्वविद्यालय सहित प्रदेश के साथ आज देश के कृर्षि उद्यान विशेषज्ञ उनसे प्रेरणा लेते है।

गोपाल उप्रेती का कहना है कि अगर सरकार सही दिशा में काम करे तो उतराखण्ड का पर्वतीय जनपद के हर लोग इसी फलोद्यान से समृद्ध हो सकते है। उन्हें नोकरी करने के लिए महानगरों का नारकीय जीवन जीने क लिए अभिशापित नहीं होना पडेगा अपितु वे कई युवाओं को अपने खेत खलिहानों में रोजगार दे सकते है।ं जैसे ही गोपाल उप्रेती ने दिल्ली में अपने परिजनों से अपने गांव में फलोद्यान लगाने की बात की तो उनके परिजनों ने सवाल किया कि वहां कहां होगा? बंदर सुअर चेार सब उजाड देगे। दिल्ली में ही अपना कारोबार बढाओ। परन्तु गोपाल अपने धून के पक्के थे। उन्होने अपने स्वप्न को जैसे ही साकार किया तो उनकी चर्चा ताडीखेत विकासखण्ड में ही नहीं अपितु जनपद से प्रदेश में होने लगी। उन्होने सेव का विशाल बाग लगाया। वहां पर अत्याधुनिक तकनीकी से कम समय में अधिक पैदावर देने वाले सेव वृक्षों ने पूरे प्रदेश का ध्यान अपनी आकृष्ठ किया। अनैक युवा इस दिशा में काम करने के लिए गोपाल उप्रेती से प्रेरणा लेने लेने लगे। इसके साथ गोपाल उप्रेती ने अपने गांव में ही अच्छा आरामदायक आवास बनाया। अब गोपाल उप्रेती के गांव में ही फलोद्यान लगाने के निर्णय की सराहना कर रहे है। आज दिल्ली जैसे महानगरों में कोरोना त्रासदी में जहां लोग घरों में दुबके हुए हैं वहीं गोपाल उप्रेती अपने परिवार के साथ अपने फलोद्यान में सुध आब हवा में बाग बगिचे को संवार रहे हैं।

आज उतराखण्ड में विकास की गंगा बहा रहे गोपाल उप्रेती को देख कर मेरे मन मस्तिष्क में किशन गंज रेलवे कालोनी दिल्ली में रहते हुए विद्यार्थी गोपाल उप्रेती की तस्वीर बरबस मन मस्तिष्क में छा जाती थी। गोपाल उप्रेती में बचपन से ही कुछ सीखने की प्रवृति थी, बचपन में गोपाल मुझसे बहुत प्रभावित था और बढ़े भाई की तरह सदैव सम्मान देता था। उनके पूरे परिवार से मेरा आत्मीय संबंध है।

एक उतराखण्डी की तरह गोपाल उप्रेती में भी बचपन से आध्यात्म की तरफ गहरा झुकाव रहा। वे ग्वेल देवता के भी अनन्य भक्त है। उन्होने अपने गांव विल्लेख में भी ग्वेल देवता का रमणीक मंदिर बनाया है,उसी मंदिर में मूर्ति स्थापना के लिए में भी दो तीन दशक पहले उनके गांव गया था। आज अपने मिशन में समर्पित गोपाल उप्रेती को देख कर मुझे गहरा सकून मिलता है कि काश उतराखण्ड के युवा व राजनेता गोपाल उप्रेती की तरह प्रदेश के विकास के लिए ईमानदारी से समर्पित रहते तो प्रदेश चंद सालों में भारत का सिरमौर बन जाता।

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