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कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने के साथ गरीब, मजदूर ,कामगारों की भी तत्काल सुध ले सरकार

कोरोना महामारी पर अंकुश लगाने की लिए पूर्ण भारत बंद के बावजूद महानगरों में हजारों मजदूरों का सड़कों पर उतरना षड्यंत्र है या समस्या

 

देव सिंह रावत

#मुंबई में पूर्ण बंद के बावजूद  14 अप्रैल को हजारों कामगारों का #बांद्रा रेलवे स्टेशन पर आने के #गुनाहगार है, #गुमराह करके बांद्रा रेलवे स्टेशन पर एकत्रित करने वाले व पूर्ण बंद के बावजूद हजारों लोगों को बांद्रा रेलवे स्टेशन पर पहुंचने से रोकने वाली #महाराष्ट्र_सरकार । बंद के कारण प्रवास में फंसे लाचार मजदूर वर्ग को अमीरों के तरह घर पहुंचाने या भूख मिटाने का समुचित प्रबंध न करने वाली #केंद्र व राज्य #सरकारें ।

ऐसा ही आक्रोश और परेशानी में देश के विभिन्न नगरों महानगरों में हजारों की संख्या में फंसे गरीब मजदूर-कामगार वर्ग है । बांद्रा प्रकरण की तरह है ऐसा ही जमवाड़ा गुजरात उत्तर प्रदेश और दिल्ली के आनंद विहार मेें भी कामगारों का घर जाने के लिए जानबुझ कर गुमराह करके एकत्रित किया गया था।
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, व बिहार आदि राज्यों के कामगार अपना घर जाना चाहते थे।
ऐसे ही सैकड़ों लोग आज 15 अप्रैल 2020 को गुजरात के औद्योगिक शहर सूरत में भी सड़कों पर आए और इसी तरह के सैकड़ों लोग जमुना के किनारे दिल्ली में नजर आए पुलिस प्रशासन ने दोनों जगह समझा-बुझाकर इन लोगों को भेज दिया दिल्ली में लोगों बसों द्वारा रेन बसेरा हो मैं भेजा गया जहां उनके खाने इत्यादि की व्यवस्था की गई दोनों जगहों पर मजदूर श्रमिक लोग खाने पैसे के अभाव के कारण परेशान नजर आ रहे थे।
उप्र सरकार ने हजारों लोगों को घर भेज भी गये विशेष प्रबंध करके । परंतु बीच में बिहार के मुख्यमंत्री सहित अनेक द्वारा आपत्ति की जाने पर, इन मजदूरों को जिस स्थान पर थे वहीं उनके लिए अस्थाई व्यवस्था की गई और उनका उपचार व खानपान की व्यवस्था भी की गई। कुछ लोग जो विशेष बसों से अपने प्रदेश में भेजे गये थे। उनमें से अधिकांशों को उपचार के लिए शिविरों में रखा गया यानी मजदूर काफी परेशान है ।

  1. अधिकांश मजदूर कामगार असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले हैं या छोटे-मोटे अपना काम करने वाले या रिक्शा चालक रेडी पटरी लगाने वाले, दैनिक मजदूरी करने वाले लोग हैं। जो लंबे बंद के कारण रोजगार से वंचित हो गए हैं ।खाने से परेशान हैं तथा महानगरों और नगरों की छोटी बंद कोठियों में जीने के लिए अभिशप्त है।
    अपने परिजनों के लिए दो वक्त का खाना अपनी मेहनत के लिए शहरों में काम के लिए आते हैं । अब उससे वंचित हो गए हैं। उनमें से अधिकांशों को सरकार द्वारा मिल रही राहत नहीं पहुंच रही है। इस कारण यह अपने अपने गांव में जाना चाहते हैं और बेचैन हैं ।सरकार को चाहिए था कि जिस प्रकार से देश विदेश में फंसे अमीर लोगों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए सरकार ने विशेष जहाज और परिवहन आदि की व्यवस्था की थी, उसी प्रकार इन गरीब मजदूर वर्ग के लोगों को अपने घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था आपात में होनी चाहिए थी । इनको राहत के नाम पर शासन प्रशासन और दलाल वर्ग राहत के माध्यम से करोड़ों रुपए लूटाया जा रहा है ।उससे कम और सुविधाजनक ढंग से यह लोग अपने घरों पर सुरक्षित पहुंच सकते थे ।इनको समुचित चिकित्सा जांच के बाद भेजा जा सकता था।
    इस प्रकार की समस्या का मूल कारण यह है कि हमारे नीति निर्माता और उसे लागू करने वाले नौकरशाही अधिकांश वंचित उपेक्षित शोषित एवं मजदूर वर्ग की परेशानी व जरूरतों को जानते हैं ना उसका उपचार को जानते हैं। योजनाएं भले ही इनके कल्याण के नाम पर बने लेकिन यह तमाम योजनाएं प्रायः सत्तासीनों,नौकरशाहों व तंत्र में घुसे दलाल वर्ग के हाथों बंदरबांट का खिलौना बन के रह जाती है।
    भारत में सरकारी लाभकारी योजनाओं का वितरण तंत्र आम गरीबों तक नहीं पहुंच पाता है। इसी प्रकार के दलाल लोगों की तिजोरी भरने का ही काम कर रहा है।
    भारतीय तंत्र के पतन का मुख्य कारण यह है कि 1947 में अंग्रेजों के जाने के बाद इस देश में भारतीय तंत्र की जगह बेशर्मी से देश के हुक्मरानों ने आजादी के 73 साल बाद भी उसी अंग्रेजों के लुटेरे अंग्रेजी तंत्र को ज्यों का त्यों जारी रखा है। अपितु अंग्रेजों के शासन से भी बदतर स्थिति में पहुंच गया है ।देश के हुक्मरानों की प्राथमिकता दलीय हितों और चुनाव जीतने के साथ-साथ अपनी तिजोरी भरने तक ही सीमित रह गया है। इसलिए आम जनमानस के कल्याण की बातें चुनाव घोषणा पत्र और भाषणों तक ही सीमित रह गया है। इनकी जनकल्याण की योजनाओं की प्राथमिकता मेें आम जनमानस दूर-दूर तक नहीं होता है।
    परंतु कोरोना महामारी जैसे आपात स्थिति में ऐसी अव्यवस्थित व्यवस्था में भी सरकार इतना प्रबंधन
    करने की आश करना भी नाइंसाफी या परिस्थितियों को नजरअंदाज करना होगा ।
    इसलिए देश पर मंडरा रहे संकट काल में देश की तमाम लोगों से यही अपेक्षा की जाती है कि वह ऐसी आपात स्थिति में कुछ ना कुछ तकलीफें सह कर भी इस महामारी को दूर करने के सरकारी उपायों में सहभागिता निभाएं। उनको जो भी खाना इत्यादि की समस्या है उसके समाधान के लिये सरकार द्वारा प्रचारित केंद्रों पर अपनी गुहार लगाएं या सोशल मीडिया द्वारा बहुत प्रमुखता से सरकार का ध्यान आकृष्ट करें ।
    देश के तमाम राजनीतिक दलों व दलीय विचारों के बंधुआ मजदूर बुद्धिजीवियों से भी आशा है कि संकट की इस घड़ी में
    अंध विरोध की राष्ट्रघाती मानसिकता को त्याग कर सरकार को सही सुझाव दें और दुराग्रह से तिल का ताड़ ना बनाकर अपने राष्ट्रीय दायित्व का निर्वहन करें।

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