उत्तराखंड देश

मोदी व हरीश रावत की तरह त्रिवेंन्द्र भी बने बडे नेता

कबीर दास जी की सीख न मानने वाले

देवसिंह रावत

उतराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत भी मोदी व हरीश रावत की तरह देश के बडे नेता बन ही गये। जो भारत के महान संत कबीर दास जी की सीख को नहीं मानते है। कबीर दास युगांतकारी संत व महान कवि थे। आज भी उनके करोड़ों भक्त है। उनकी सीखों को लोग अपने जीवन में उतार कर महान बनते है। परन्तु आज 20 मार्च की सुबह जैसे ही मेरी नजर उतराखण्ड सूचना केन्द्र दिल्ली के व्हाटएप ग्रुप UK state media पर गयी तो मेरे मन में उपरोक्त विचार क्रांध गया कि मोदी, हरीश रावत की तरह त्रिवेन्द्र भी देश के बडे नेता बन गये है  जो देश के सबसे महान संत कवि कबीर दास जी की सीख को नहीं मानते है। कबीर जी ने सीख दी थी कि निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय। (यानी जो हमारी निंदा करता है, उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन और पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ करता है)।
आप कह रहे होंगे कि आप क्यों देश के शिखर नेता प्रधानमंत्री मोदी व कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता हरीश रावत के साथ त्रिवेन्द्र को एक साथ तुलना क्यों कर रहे हो। आप यह भी कह सकते हैं कि कहां राजा भोज व कहां गंगू …..। परन्तु आपको में अधिक उलझन में न डालते हुए मै इस बात का रहस्य ही खोल देता हूॅ। प्रधानमंत्री मोदी, हरीश रावत व त्रिवेन्द्र तीनों के राजनैतिक कद में भले ही जमीन आसमान का अंतर हो परन्तु मेरे लिए एक दृष्टि से तीनों समान है। प्रधानमंत्री मोदी की अपनी फेसबुक Narendra Modi व कांग्रेसी नेता हरीश रावत Harish Rawat का अधिकारिक फेसबुक पेज के साथ उतराखण्ड मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सरकार के दिल्ली सूचना केंद्र की व्हाटएप ग्रुप UK state media तीनों में मुझ पर  प्रतिबंध लगा रखा है। मेरा कसूर ही इतना है कि में इनको जनसेवक समझ कर जनहित के कार्य करने की मांग करता हॅू। जबकि कई लोग जोे दुराग्रही होते है वे मुझे मोदी, हरीश रावत व त्रिवेन्द्र रावत का समर्थक समझते है। जबकि हकीकत यह है कि मै किसी का समर्थक नहीं अपितु केवल जनहित व न्याय का समर्थक हूॅ। जो सही कार्य करता है में उस कार्य के लिए उसका समर्थन करता हॅू और जो देश,प्रदेश व न्याय के खिलाफ काम करते है या उपेक्षा करते हैं मै उसका प्रखर विरोध करता हॅू। इसीलिए सभी दल व नेता मुझे अपना विरोधी व अपने विरोधी का समर्थक मान लेते है। वे व उनके बंधुआ मजदूर समर्थक भेल जाते है कि इंसान सबसे पहले अपना होता है। दुनिया में सभी लोग अंध समर्थक या अंध विरोधी नहीं अपितु देश, प्रदेश व न्याय के लिए समर्पित रहते हैं।
मुझें उतराखण्ड सूचना केन्द्र दिल्ली के व्हाटएप ग्रुप UK state media से मुख्यमंत्री के मीडिया कोडिनेटर ने बाहर कर दिया। इससे मुझे बडा आश्चर्य सुखद आश्चर्य हुआ कि आखिर इस नेक काम करने के लिए इन्होेने इतना अधिक समय क्यों लगाया। मुझे मालुम है कि बडे नेताओं के सोशल मीडिया का संचालन उनके कर्मचारी ही प्रायः करते है। जो भी सत्तासीन होता है वह एक पल के लिए भी स्वीकार नहीं करता है कि कोई भी उसके कार्यों में मीन मेख निकाले या उसको जनहित का दर्पण दिखाये। जो ऐसे कार्य करते है सत्तासीनों को ऐसे लोग देश व प्रदेश के विरोधी नजर आने लगते है।  सत्तासीन होने के बाद नेताओं ऐसा लगता है उनका हित व कार्य ही केवल देशहित व प्रदेशहित है। किसी दूसरे द्वारा उसके कार्यों पर मीन मेख निकालने पर ही इनका लोकशाही नकाब उतर कर असली अधिनायकवादी चेहरा सामने आता है। ये अपने आप को जननेता या जनसेवक समझने के बजाय राजा समझने लगते है। यही नहीं इनके कारिंदे जनसेवा व जनहित का मर्म समझने के बजाय खुद को राजा से बडा महाधिराज समझने लगते है। हमने कभी राजशाही तो देखी नहीं परन्तु उसके किस्से किताबों व बडे बुजुर्गों से पढे व सुने है। ऐसा भी सुना हैे राजशाही के क्रूर चेहरा बनाने में उनके कारिंदो के कृत्य अधिक जिम्मेदार होते थे। आज सत्तासीनों की लंका ढहाने के पीछे उनके कारिंदे ही अधिक जिम्मेदार माने जाते है। लोकशाही के अमर ध्वजवाहक श्रीदेव सुमन की शहादत भी यही उजागर होता है।  

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