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कोरोना विषाणु से विश्व को बर्बाद व भयाक्रांत करने वाले चीन पर प्रतिबंध लगाते हुए सभी के जैविक हथियारों को नष्ट करे विश्व

कोरोना विषाणु से कहीं अधिक घातक ‘अंग्रेजी भाषा व इंडिया नाम की गुलामी’रूपि गंभीर महामारी से पीडित भारत को युद्धस्तर मुक्त करे  सरकार

 

भारत को अंग्रेजी भाषा व इंडिया नाम की गुलामी से तत्काल मुक्त करने के लिए प्रधानमंत्री को दिया भारतीय भाषा आंदोलन ने ज्ञापन
   भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी ’से मुक्ति के लिए भारतीय भाषा आंदोलन के 83माह से सतत सत्याग्रह पर भारत सरकार का शर्मनाक मौन क्यों?

नई दिल्ली(प्याउ)। देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 83 माह(21 अप्रैल 2013) से सत्याग्रह कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री मोदी से जहां विश्व को इन दिनों भयाक्रांत व बर्बाद कर रही कोरोना विषाणु महामारी से कहीं अधिक घातक अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी रूपि महामारी से तत्काल मुक्ति दिलाने की मांग की । वहीं प्रधानमंत्री मोदी से  कोरोना विषाणु से फैली विश्वव्यापी महामारी से  विश्व को बर्बाद व भयाक्रांत करने वाले चीन पर लगाये तत्काल प्रतिबंध  लगाने व चीन सहित सभी के जैविक हथियारों को नष्ट करने की विश्वव्यापी पहल का नेतृत्व करने की मांग भी की। 12 मार्च 2020 को भी भारतीय भाषा आंदोलन का एक सदस्यीय शिष्टमण्डल भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में विगत एक साल से जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर ज्ञापन सौंपने के सत्याग्रह के तहत जो ज्ञापन सौंपा उसमें हस्ताक्षर करने वालों में अध्यक्ष देवसिंह रावत के अलावा रामजी शुक्ला, वेदानंद व अशोक औझा सम्मलित थे। प्रधानमंत्री मोदी के लिए लिखे ज्ञापन में कहा गया कि
जय हिन्द! वंदे मातरम्, 12-13मार्च 2020 को भी ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने की मांग करते हुए 83महीने से सत्याग्रह कर रहे भारतीय भाषा आंदोलनकारी, संसद की चैखट जंतर मंतर  से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करके विश्व को इन दिनों भयाक्रांत व बर्बाद कर रही कोरोना विषाणु महामारी से कहीं अधिक घातक अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी रूपि महामारी से तत्काल मुक्ति दिलाने के लिए ज्ञापन सौंप रहा हैं। कोरोना विषाणु से तो केवल कुछ ही हजार लोग मारे गये और सवा लाख लोग पीड़ित है। परन्तु अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से 138 करोड़ भारतीय   पीड़ित है।

मोदी जी दूसरी तरफ आज भारत ही नहीं पूरा विश्व चीन द्वारा निर्मित कोरोना विषाणु के प्रहार व प्रकोप से बर्बाद व भयाक्रांत है। इससे चीन, इटली, ईरान,जापान, कोरिया, भारत व अमेरिका सहित विश्व के 114 देशों में 4623 लोग मारे गये और 1.21 लाख लोग इससे पीडित है। विश्व अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्वव्यापी महामारी घोषित कर दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्यक्ष र्टेंड्राॅस अधनोम ने सबसे मिल कर इस पर अंकुश लगाने के लिए मिलजुल कर काम करने का आवाहन किया। वहीं भारत में भी 60 से अधिक लोग इससे पीड़ित है उनका सघन इलाज किया जा रहा है। यह कोरोना विषाणु का सबसे पहले चीन के जैविक हथियारों के लिए कुख्यात शहर बुहान में प्रकाश में आया। यही नहीं यहीं कम से कम 3000 के करीब लोग इस बीमारी से दम तोड़ चूके है और 100000से अधिक पीड़ित इसी शहर में है।कोरोना विषाणु को SARS-CoV-2 या बुहान विषाणु व कोविड-19के नाम से भी जाना जा रहा है। यह विश्व के लिए बहुत गंभीर खतरा है। इसलिए विश्व समुदाय व संगठन को चीन पर तत्काल प्रतिबंध लगाने के साथ चीन सहित पूरे विश्व से इस प्रकार के सभी प्रकार के विषाणु जैविक हथियारों पर तत्काल अंकुश लगाया जाय।जिससे विश्व को इस प्रकार की तबाही से बचाया जाय।
इसी के साथ मोदी जी जब रूस,चीन,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी देश अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं तो भारत क्यों अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी अंग्रेेजों की ही भाषा  अंग्रेजी व उनके थोपे गये  इंडिया नाम  का गुलाम बना हुआ है ?आखिर भारत की क्या मजबूरी है कि अपनी दर्जनों प्राचीन व समृद्ध भारतीय भाषायें एवम अपना गौरवशाली नाम भारत होते हुए भी आक्रांता अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपे गये बदनुमा नाम इंडिया की गुलामी को  ढो कर खुद को मिटा रहा है?
मान्यवर इस शर्मनाक पतन का मूल कारण यह है कि जिस अंग्रेजी शिक्षा कानून(Enghlish Education Act 1835) को ब्रिटेन ने भारत को सदा के लिए गुलाम बनाने के लिए भारत में तत्कालीन गवर्नर जनरल लाॅर्ड बिलियम बैंटिंक व थोमस बैंबिंटोन मैकाले के द्वारा थोपा था, उसको अंग्रेजों के जाते ही तुरंत हटाकर अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ही भारतीय शिक्षा कानून को देश में लागू करना था। परन्तु अंग्रेजीयत के गुलाम बने भारतीय हुक्मरान भले ही देश की सत्ता में आसीन हो गये परन्तु देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन सहित पूरा तंत्र उन्हीं ंअंग्रेजों की उसी भाषा व तंत्र अंग्रेजीं में ही संचालित किया गया। जिस अंग्रेजी व तंत्र के द्वारा अंग्रेजों ने भारत को दो शताब्दी तक गुलाम बनाया, लाखों भारतीयों का कत्लेआम किया और अरबों खरबों की अकूत संपति लूटी।देश के अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी देश के हुक्मरान, नौकरशाह,शिक्षाविद व न्यायविद मन से भारतीय नहीं अपितु आज भी अंग्रेजीयत के गुलाम बने हुए है। इसी कारण अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी देश को अपना नाम व अपनी भाषा के साथ अपनी संस्कृति को आत्मसात नहीं कर पाया। अंग्रेजियत मानसिकता के गुलाम हुए देश के राजनैतिक दलों की पहली प्राथमिकता देश नहीं अपितु सत्ता है। इसी कारण देश निरंतर पतन के गर्त में धकेला जाता रहा। इसका ताजा उदाहरण है भारत सरकार द्वारा शीतकालीन सत्र में देश में राष्ट्रांतरण करने के षडयंत्र के तहत भारत में घुसाये गये घुसपेठियों से भारत को मुक्त करने के इरादे से राष्ट्रहित में नागरिकता संशोधन कानून बनाया। परन्तु वे दलीय स्वार्थ व घोर पदलोलुपता के कारण भ्रमित होकर भारत सरकार का हिंसक विरोध कर रहे है। असल में इनका एक ही ऐजेन्डा है कि भारत विभाजन के खलनायक जिन्ना समर्थकों को भी भारत में नागरिकता दिला कर भारत का राष्ट्रांतरण कर पाकिस्तान बना दिया जाय। ऐसे तत्वों पर भारत सरकार तुरंत कठोरता से अंकुश लगाकर देश की रक्षा करें।
मान्यवर, शर्मनाक बात यह है कि  अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के 73साल बाद भी भारत को उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम (शिक्षा,रोजगार,न्याय व शासन) बनाकर  देश के हुक्मरान,देश से विश्वासघात कर रहे हैं। आपकी सरकार भी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तरह राष्ट्रघाती शर्मनाक मौन साधे हुए है। सैकडों ज्ञापन आपके नाम आपके कार्यालय तक पंहुचाये गये परन्तु न तो मांगों को स्वीकार किया गया व नहीं मुलाकात की मांग करने के बाबजूद मुलाकात के लिए ही समय दिया गया। यह किसी आपातकाल से कम नहीं है।
(1) भारतीय भाषा आंदोलन का संसद की चैखट से प्रधानमंत्री कार्यालय तक ऐतिहासिक आंदोलन  का विवरण-
(क) -21 अप्रैल 2013 से इसी मांग को लेकर जंतर मंतर पर अखण्ड धरना (30 अक्टूबर 2018 हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनल) की आड़ में सरकार ने जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक  धरने सहित अन्य आंदोलनों को रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया।
(ख) – पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय व आंदोलनकारियों को गलत गुमराह किया कि आंदोलन स्थल रामलीला मैदान बनाया गया। जबकि वहां कोई स्थान नियत नहीं किया गया। आंदोलनकारियों ने रामलीला मैदान में धरना देने की कोशिश की तो वहां पर कोई स्थान तय नहीं किया गया। उसके बाद आंदोलनकारी महिनों तक शहीदी पार्क पर आंदोलनरत रहे परन्तु पुलिस ने वहां पर भी परेशान किया।
(ग) 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन का धरना प्रारम्भ (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंतर मंतर व वोट क्लब पर आंदोलन करने की इजाजत जारी करने के बाद) पर एक पखवाडे बाद ही दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी द्वारा उत्पीड़न किये जाने के बाद धरना स्थगित ।
(घ)  28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक  पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन  किया।18 मार्च को चुनाव आचार संहिता लगने पर नयी सरकार के गठन तक आंदोलन  जारी पर पदयात्रा स्थगित।
(ड़) 30 मई 2019 को नयी सरकार के गठन के बाद 1 जून 2019 से पुन्न जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पद यात्रा कर ज्ञापन आंदोलन जारी  (च)अंग्रेजी व इंडिया की गुलामीष्से मुक्ति पाये बिना न तो भारत में न तो लोकशाही व गणतंत्र स्थापित हो सकता है व नहीं हो सकता है चहुंमुखी विकास
भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 21 अप्रेल 2013 से यानी 83 माह से संसद की चैखट  से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक सत्याग्रह कर रहे हैं। परन्तु देश की सरकार के कान में जूं तक नहीं रैंग रहा है। इसके बाबजूद हमें आशा है आपकी सरकार भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करेंगे।
भारतीय भाषा आंदोलन

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