देश

दिल्ली की भयावह हिंसा का सच

दिल्ली में सब कुछ पहले से तयशुदा षडयंत्र के तहत हुई हिंसा और आगजनी के तांडव 

 
वरिष्ठ पत्रकार  अवधेश कुमार

राजधानी दिल्ली में हिंसा रुकने के बाद तबाही की जो तस्वीरें सामने आ रहीं हैं उनसे पता चलता है कि बिल्कुल सुनियोजित तरीके से हिंसा और आगजनी को अंजाम दिया गया। बिना पूर्व तैयारी के इतना भयावह विनाश संभव ही नहीं था। पूरी की पूरी सड़कें ईटों को तोड़कर बनाए गए पत्थरों तथा अन्य हिंसक व ज्वलनशील सामग्रियों के अवशेषों से पटा है। चहलपहल और भीड़ से भरे हुए बाजार जले, टूटे, बिखरे मलवों के मरघट में बदल चुके हैं। जिस तरह आम आदमी के एक पार्षद की पांच मंजिला इमारतों के छतों से लेकर नीचे तक ईटों के रोड़े, पेट्रोल बम, तेजाब, गुलेल आदि भारी मात्रा में मिल रहे हैं उनसे बड़ा प्रमाण इस बात का हो ही नहीं सकता कि इसकी तैयारी काफी दिनों से की जा रही थी। स्थानीय लोग बता रहे हैं कि वाहनों से ईटेें आदि लाए जा रहे थे। एक छत से इतनी सामग्रियो मिलीं हैं। यह यहीं तक सीमित नहीं है। पता नहीं कितनी छतों से कहां-कहां ऐसी ही हिंसा और विनाश की खतरनाक सामग्रियां मिलें। ऐसे अनेक छत सामने आ रहे हैं। दिल्ली पुलिस की दो विशेष जांच दल यानी एसआईटी गठित हो गई है। इसने काम भी आरंभ कर दिया है। भारी संख्यां में प्राथमिकियां दर्ज हो रहीं हैं। उसकी जांच के साथ साजिशों का भयावह सच सामने आ जाएगा। अनेक स्थानों पर सीसीटीवी कैमरों से लेकर ड्रोंनों तक में छतों पर रखी गई सामग्रियों तथा हिंसा करने वालो की तस्वीरें कैद हैं। इससे काफी लोग पकड़ में आएंगे। एक-एक छत पर और घर में कई-कई सौ इकट्ठे होकर हमला करें इसका मतलब ही है कि सब कुछ पहले से तयशुदा षडयंत्र के तहत हुआ। त्वरित हिंसा या तो प्रतिक्रिया में थीं या कम थीं।

जिस ढंग की हिंसा, उपद्रव और आगजनी हुई उसे निस्संदेह, भुला पाना आसान नहीं होगा। दिल्ली के एक उत्तर पूर्वी इलाके में उपद्रव और हिंसा का इतने भयावह अवस्था में पहुंचना तथा इस पर काबू पाने में इतना समय लगना चिंताजनक है। तीन दर्जन से ज्यादा लोग मौत के घाट उतार दिए गए, तीन सौ से ज्यादा घायल हुए तथा करोड़ों की संपत्ति स्वाहा हो गई। बाजार के बाजर बुरी तरह जलें पड़े हैं। सैंकड़ांे वाहन, घरें, पता नहीं और क्या-क्या हिंसा और आगजनी के तांडव में भस्मीभूत हो गए। ऐसी भयावह स्थिति पैदा होनी ही नहीं चाहिए थी। हिंसा का विस्तार भजनपुरा से लेकर जाफराबाद, मौजपुर, बाबरपुर, चांदबाग, गोविन्दपुरी आदि क्षेत्रों तक रहा।  यह इतना बड़ा इलाका नहीं था जहां साजिशकर्ताओं की साजिशों को ध्वस्त कर हालात को बिगड़ने से न रोका जा सके। 22 फरबरी को हालात बिगड़ने के संकेत मिलने लगे थे। शाहीनबाग धरना की तरह दिल्ली के कई स्थानों पर सड़क घेरकर धरना देेने की खबर आने लगी थी। जाफराबाद मेट्रो स्टेशन की सड़क को घेरकर धरना देने की तैयारी जिस समय शुरु हुई उसी समय उसे रोका जाना चाहिए था। उसके साथ चांदबाग, बाबरपुर आदि जगहों से भी सड़क पर धरना आरंभ हो गया। जाहिर है, इन धरनों को आयोजित कराने वालों का कुछ उद्देश्य था। वे दिल्ली में अस्त-व्यस्तता पैदा करना चाहते थे। आरंभ मंे इनको सफलता मिली भी दिखी। यह तो संभव नहीं है कि ऐसी योजना के विरुद्ध दूसरी ओर गुस्सा पैदा न हो। जाफराबाद और अन्य जगहों के धरने की खबर जैसे-जैसे फैली, लोग इसके समानांतर इकट्ठे होने लगे। मौजपुर में कुछ समय के लिए धरना दिया भी गया और वहां की प्रतिक्रिया भी लोगों ने चैनलों के माध्यम से लाइव सुनी। यह वह अंतिम समय था जब दिल्ली पुलिस को बिल्कुल अपने तेवर में आ जाना चाहिए था। यह दिल्ली पुलिस के शीर्ष अधिकारियों का दायित्व था कि वे केन्द्र सरकार को सही सूचना देकर आवश्यकतानुसार केन्द्रीय सशस्त्र बल की मांग करते। ऐसा न करने का अर्थ ही है कि उन्हें इसके सामनांतर हिंसा की व्यापक तैयारी की बिल्कुल सूचना नहीं थी या वे आसन्न खतरा देखते हुए भी इतनी बड़ी अनहोनी को भांप नहीं सके। इतनी तैयारी होती रही और दिल्ली पुलिस की खुफिया को इसकी भनक तक नहीं लगी!

कुछ बातों को तो अनुमान होना ही चाहिए था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनालड ट्रंप की दो दिवसीय यात्रा को ध्यान में रखते हुए ये शक्तियां अस्तव्यस्तता पैदा करने की कोशिश करेंगी इसका आभास होना ही चाहिए था। व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन के साथ हिंसा भी की जा सकती है इसका अंदेशा पहले से था। जो दिल्ली पुलिस दिसंबर में जामिया की हिंसा देख चुकी हो उसे आभास नहीं हो कि दोबारा वैसा या उससे बड़ा करने की साजिश हो सकती है तो फिर कुछ कहने की आवश्यकता नहीं। 25 फरबरी को दिल्ली पुलिस ने उत्तर पूर्वी जिले के चार थाना क्षेत्रों मौजपुर, जाफराबाद, करावल नगर और बाबरपुर में कर्फ्यू लगा दिया। देखते ही गोली मारने का आदेश जारी हुआ। दिल्ली पुलिस ने कई स्थानों पर फ्लैग मार्च किया। केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल की 35 कपंनियां उतारीं गईं। अब तो इनकी संख्या 100 से उपर हो चुकी है। यही काम पहले होना चाहिए था। अगर 23 फरबरी को ये व्यवस्थायंें हो जातीं तो दिल्ली के इस पूरे इलाके को बचाया जा सकता था।हालांकि यह कहना भी सही नहीं होगा कि दिल्ली पुलिस ने कुछ किया ही नहीं या वह सक्रिय नहीं थी। संवेदनशील स्थानों पर पुलिस तैनात की गई। शायद दिल्ली पुलिस ने सोचा होगा कि पैदल मार्च, संभाएं, शांति समितियां गठित करने से काम चल जाएगा। ये सब प्रयास गलत नहीं थे। लेकिन उनके पास हिंसा की तैयारी की खुफिया सूचना का अभाव था। इस कारण अन्य उपायों के समानांतर पूरी कठोरता से उपद्रवियों का दमन तथा हिंसा के लिए संभावी संवेदनशील स्थानों पर कार्रवाई में कमी जरुर रह गई। इतनी आलोचना के बावजूद यह मानने में भी कोई समस्या नहीं है जो पुलिस वाले जहां तैनात थे उनमें से ज्यादातर ने अपनी क्षमता के अनुरुप दंगाइयांें से निपटने की पूरी कोशिश की। ऐसा न होता तो इतने पुलिसकर्मी घायल नहीं होते।

खैर, गृहमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल के सक्रिय होने के बाद कम से कम हिंसा तो रुक गई। अजीत डोवाल ने 25 की रात्रि ही कई दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा किया और उन्हें दूसरे दिन भी दंगाग्रस्त इलाकों में पैदल चलते, लोगों से बात करते, उनकी समस्याएं सुनते तथा उन्हें सुरक्षा का आश्वासन देते देखा जा सकता था। इस तरह की हिंसा में देश के बड़े अधिकारी का सीधे लोगों के बीच जाने से बड़ा आश्वासन सरकार की ओर से और कुछ हो ही नहीं सकता। उम्मीद है दिल्ली अब इस तरह हिंसा की आग में नहीं झुलसेगी। हिंसा रोकने के साथ आगे हिंसा न हो इसकी व्यवस्था तथा लोगों को सुरक्षा के प्रति आश्वस्त करना जरुरी होता है। इसके अलावा जिनके यहां जन-धन की क्षति हुई हो उनकी पीठ पर हाथ रखना परमावश्यक है। हिंसाग्रस्त क्षेत्रों मेें सुरक्षा बल जब तक जरुरत हो तैनात रहेंगे और स्थिति बिगड़ने नहीं देंगे कम से कम अभी यह मानकर चला जा सकता है। दूसरे, जो उपद्रवी-अपराधी पहचाने जा चुके हैं, वे कानून की गिरफ्त में होंगे यह भी सुनिश्चित किया जा रहा होगा। इससे भी लोगों को सुरक्षित होने का अहसास होगा। मोहल्ले-मोहल्ले में प्रभावी लोगों को सामने लाकर उन्हें मेल-मिलाप की भूमिका देनी होगी तथा उनकी पीठ पर पुलिस-प्रशासन का हाथ रहना चाहिए। उनसे वरिष्ठ अधिकारियों का सीधा संपर्क और संवाद रहना चाहिए ताकि वे लगातार वास्तविक स्थिति से उन्हेें अवगत कराते रहें एवं आवश्यकता के अनुसार उन्हें सहयोग एवं सहायता भी मिलती रहे। जिनकी धन-जन की क्षति हुई है उन तक पहुंचना तथा उनके मामले को समझकर समुचित सहायता उपलब्ध करना भी सरकारों का दायित्व है। इन सबमें केन्द्र एवं प्रदेश दोनों सरकारों की भूमिका होगी। मृतकों एवं घायलों के लिए जो सहायता राशि की घोषणा हुई है वह काफी कम है। इस् बढ़ाया जाना चाहिए।

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