उत्तराखंड देश

शकुनियों के बेताज करने के षड्यंत्र को राजधानी गैरसैण और जनहितास्त्र के प्रहार से विफल करें त्रिवेंद्र रावत

 

जल, जंगल,प्राण वायु, सीमा की रक्षा करने के साथ विश्व के पर्यावरण की रक्षा करने वाले उत्तराखंडियो को लाभांश के रूप में बिजली पानी ईंधन स्वास्थ्य प्रदान करने के साथ तत्काल राजधानी गैरसैण बनाए उत्तराखंड सरकार

उत्तराखंड की लोक शाही व हितों को रौंदने के लिए कुख्यात जातिवादी क्षेत्रवादी सत्ता शकुनी गिरोह फिर उठा रहा है सर

जन आकांक्षाओं की प्रति उदासीन रही भाजपा की सरकार के पास महाराज के अलावा कोई नहीं है मजबूत सेनानायक

जल, जंगल,प्राण वायु, सीमा की रक्षा करने के साथ विश्व के पर्यावरण की रक्षा करने वाले उत्तराखंडियो को लाभांश के रूप में बिजली पानी ईंधन स्वास्थ्य प्रदान करने के साथ तत्काल राजधानी गैरसैण बनाए उत्तराखंड सरकार

नई दिल्ली (प्याउ)।
16 फरवरी को जहां एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र काशी में हजारों करोड़ की विकास की योजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं ।वही दिल्ली में पानी, बिजली ,स्वास्थ्य, परिवहन और शिक्षा में व्यापक सुधार के नाम पर विधानसभा की चुनावी जंग जीतने वाले आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ हजारों लोगों की उपस्थिति में विशाल राम लीला मैदान में लिया।
वहीं दूसरी तरफ देश के सीमांत उत्तराखंड में उत्तराखंड विरोधियों को मुख्यमंत्री थोपने का खेल जोरों पर है।20 साल हो गए उत्तराखंड राज्य गठन को। दो-तीन नहीं अपितु 8-9 मुख्यमंत्री उत्तराखंड को झेलने पड़े। पर किसी ने भी देश में जल, जंगल,प्राण वायु, सीमा की रक्षा करने के साथ विश्व पर्यावरण की रक्षा करने वाले उत्तराखंडियो को बिजली, पानी, ईंधन, स्वास्थ्य प्रदान करने के साथ तत्काल राजधानी गैरसैण
घोषित करने का काम तक नहीं किया । पर यहां पर सत्तासीन हुई हुक्मरानों ने उतराखंड की जनाकांक्षाओं को निर्ममता से रौंदने का निकृष्ट कृत्य जारी रखा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप के हाथों पराजय का स्वाद चखने की बाद उत्तराखंड मेें सत्ता परिवर्तन की सुबगुवाहट जोरों पर है।
इंटरनेटी संवाद माध्यम फेसबुक व्हाट्सएप आदि में ऐसी अटकलें लगाई जा रही है कि भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व, दिल्ली,झारखंड, महाराष्ट्र राजस्थान, छत्तीसगढ़,मध्य प्रदेश व हरियाणा आदि प्रदेशों में आशातीत सफलता न मिलने के कारण काफी चिंतित है। एक के बाद एक प्रदेशों की सत्ता हाथ से निकलने के बाद भारतीय जनता पार्टी इस पर अंकुश लगाने के लिए कमर कस रही है ।इसीलिए 2022 में उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सत्ता को बनाए रखने के लिए, अभी से कमर कसने का निर्णय लिया है । इसी के तहत उत्तराखंड मेें आसीन त्रिवेंद्र सरकार के प्रति प्रदेश की जनता में उमड़ रहे आक्रोश को देखते हुए उन्हें बनाए रखना एक प्रकार से आत्मघाती निर्णय भाजपा नेतृत्व को महसूस हो रहा है ।ऐसा माना जा रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व, उत्तराखंड मेें कमजोर साबित हो रही त्रिवेंद्र रावत को बदलकर ऐसा मजबूत नेतृत्व उत्तराखंड में देना चाह रहा है। जिसके भरोसे 2022 की चुनावी गंगोत्री को पार किया जा सके। इसी को देखते हुए दो तीन नाम भाजपा में नए मुख्यमंत्री के रूप में चर्चा में आ रहे हैं ।इनमें पहला नाम है सतपाल महाराज व दूसरा नाम रमेश पोखरियाल निशंक।
दिल्ली चुनाव में भारी करारी हार के बाद उत्तराखंड की सत्ता पर नजर गड़ाए रखने वाले शकुनियों ने आला नेतृत्व पर उत्तराखंड मेें सत्ता परिवर्तन के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया ।इसके लिए जातिवाद क्षेत्रवाद का हवाला दिया जा रहा है ।
परंतु आलाकमान जानता है जो लोग जनता की नजरों में पहले से नकारा साबित हो चुके हैं उनके सर पर उत्तराखंड का ताज आसीन करना एक प्रकार से उत्तराखंड और चुनावी मोड़ पर खड़ी भाजपा के लिए आत्मघाती साबित होगा। आलाकमान इस बात से भी बेहद चिंतित है कि जिन त्रिवेंद्र रावत पर उन्होंने विश्वास किया वह भी झारखंड के मुख्यमंत्री की तरह ना जनता की आशाओं पर खरे उतर पाए व ना ही प्रदेश संगठन का ही दिल जीत पाए ।

भाजपा नेतृत्व के लिए काफी चुनौतीपूर्ण कार्य होगा । प्रदेश में केवल सतपाल महाराज को छोड़कर एक भी ऐसा कोई निर्विवाद व सक्षम नेतृत्व भाजपा के पास नहीं है,जो प्रदेश की जन आकांक्षाओं को साकार कर जनता का दिल जीतने का दमखम रखता हो। भाजपा नेतृत्व
दुविधा में है कि त्रिवेंद्र रावत को जन आकांक्षाओं को साकार करने का दो टूक निर्देश दिया जाए या नए मुख्यमंत्री को
प्रदेश का ताज सौंपा जाए।
सबसे हैरानी की बात यह है कि न केवल त्रिवेंद्र रावत अपितु आज तक के तमाम मुख्यमंत्री, इसमें चाहे प्रथम मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी हो या भगत सिंह कोश्यारी, तथाकथित विकास पुरुष तिवारी हो या तथाकथित ईमानदार मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी, निशंक हो या विजय बहुगुणा,जमीनी नेता हरीश रावत हो या आलाकमान के भरत त्रिवेंद्र रावत, सभी ने उत्तराखंड की जनता को निराश किया प्रदेश में सर्व सम्मत राजधानी गैरसैण तक घोषित नहीं कर पाए ।

प्रदेश गठन के समय से ही इस मांग पर प्रदेश की जनता क्या एकमत है ।उस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने भी अपने सर्वेक्षण से मोहर लगाई थी ।इसी के साथ प्रदेश में वर्तमान में एकमात्र विधानसभा भी गैरसैंण में बहुत रमणीक ढंग से बनी हुई है । प्रदेश के भाजपा के वरिष्ठ नेता हरिद्वार के विधायक मदन कोशिक जो हरीश रावत सरकार में भाजपा की तरफ से नेता प्रतिपक्ष थे, उन्होंने अपने सदन में गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने का प्रस्ताव रखा था।प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष अजय भट्ट ने कर्णप्रयाग विधानसभा उपचुनाव में जनता को आश्वासन दिया था कि अगर भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतती है तो गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाएंगे ।यही नहीं गैरसैण विधानसभा में बजट सत्र, शीतकालीन सत्र ,मानसून सत्र व ग्रीष्मकालीन सत्र सहित तमाम महत्वपूर्ण सत्रों का आयोजन भलीभांति किया जा चुका है।
प्रदेश विधानसभा की वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष व ऋषिकेश के विधायक अग्रवाल भी गैरसैण राजधानी के प्रमुख ध्वजवाहक में है। इसके बावजूद प्रदेश की त्रिवेंद्र रावत सहित तमाम अब तक की सरकारें राजधानी गैरसैंण के लिए हो रहे निरंतर आंदोलनों व शहादतों को नजरअंदाज करके जन भावनाओं को रौंद रही है।
उत्तराखंड के की सरकार द्वारा जबरन देहरादून में कुंडली मार के बैठने के कारण और गैरसैंण राजधानी न बनाने के कारण पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व शासन एक प्रकार से उजड़ सा गया है ।इसके कारण पर्वतीय जनपदों से बहुत तेजी से आत्मघाती पलायन हो रहा है ।इस सीमांत प्रदेश की इस विकराल स्थिति से देश की सुरक्षा पर गहरा खतरा मंडराने लगा है। यहां सत्ता लोलुप राजनीतिक दलों द्वारा अपने इस दायित्व के प्रति उपेक्षा के कारण घुसपैठियों ने बड़ी तेजी से यहां पर डेरा जमा दिया है। जो आने वाले समय में देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा खड़ा होगा।
इसलिए अगर प्रदेश का सही अर्थों में किसी सरकार को विकास करना है तो उसे उत्तराखंड में लोकशाही, राज्य गठन की जन आकांक्षाओं ,प्रदेश की चौमुखी विकास व देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैण को तत्काल घोषित करना होगा। पंचतारा सुविधाओं के मोह में लिप्त प्रदेश की नेता व नौकरशाह देहरादून में कुंडली मारकर बैठे हुए हैं।
ये प्रदेश की जन आकांक्षाओं के प्रतीक हिमाचल की तरह उत्तराखंड में भी भू कानून लागू कर पाए ।यही नहीं प्रदेश मेें झारखंड की तरह मूल निवास दिला पाए व नहीं झारखंड की तरह जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन के दंश से उत्तराखंड को बचा पाए।
नहीं प्रदेश को शराब का गटर बनाने को तुले शराब माफियाओं की दंश से ही बचा पाए। प्रदेश में रोजगार और विकासोनुमुख सुशासन देने के बजाय
प्रदेश को भ्रष्टाचारियों व अपराधियों की
ऐशगाह बनने से भी नहीं रोक पाये।
अगर सच्चे अर्थों में इन उत्तराखंड के हुक्मरानों को प्रदेश से जरा भी लेश मात्र भी लगाव होता तो वह तत्काल देश को शुद्ध प्राणवायु ,जल,जंगल व पर्यावरण प्रदान करने वाले उतराखण्ड को भी दिल्ली की तरह बिजली,पानी आदि के अलावा ईंधन व स्वास्थ्य सुविधाओं से युक्त करते। परंतु उतराखंड के हुक्मरानों को दो अपनी तिजोरी और अपने परिजनों के अलावा कुछ और दिखाई नहीं देता है।

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