uncategory देश

अंग्रेजों से मुक्ति के 73 बाद भी स्वतंत्र-गणतंत्र को तरसता भारत

 

जब रूस, चीन व जापान जैसे विकसित देश अपनी भाषाओं में चंहुमुखी विकास कर सकते है तो भारत क्यों बना है 73 सालों से अंग्रेजी का गुलाम

एक साल से राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय पर हर कार्यदिवस पर पदयात्रा कर ज्ञापन दे रहा है भारतीय भाषा आंदोलन

भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए 82 माह से सत्याग्रह चला रहा है भारतीय भाषा आंदोलन

26 जनवरी को देश अपना 71वां गणतंत्र दिवस बहुुत ही धूमधाम से मना रहा है। 73 साल पहले, सन्1947 को अंग्रेजों की गुलामी से भारत मुक्त हो कर जहां आजाद देश होने का परचम 15 अगस्त 1947 को लहराया। वहीं 26 जनवरी 1950 को अंग्रेजों के शासन तंत्र Government of India ACt 1935के स्थान पर भारतीय संविधान को आत्मसात किया। 1947 के बाद हर 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस व 1950 के बाद हर 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। 26 जनवरी 2020 को भारत अपना 70 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। पर भारतीय भाषा आंदोलन ने देश की आजादी व गणतंत्र होने पर सवालिया निशान लगा दिया। यह सवाल भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री से सीधा सवाल किया कि जब रूस चीन, जापान, फ्रांस, जर्मन, इजराइल, टर्की, कोरिया, इटली व इंडोनेशिया आदि संसार के विकसित देश अपने अपने नाम व अपनी अपनी भाषाओं में विकास की कुचालें भर कर पूरे विश्व में अपना परचम लहरा सकते है तो भारत क्यों अंग्रेजों से मुक्त होने के 73 साल बाद भी अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व अंग्रेजों द्वारा थोपे गये इंडिया नाम का बलात गुलाम बना हुआ है? क्यों ंआक्रांता अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी भारत को न अपना नाम मिला व नहीं अपनी भारतीय भाषाओं मानक शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन नहीं मिलता है। आज भी देश में अंाक्रांता अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी का राज चल रहा है और आज भी विश्व में भारत को न अपना नाम पूरे विश्व में अपना नाम से जाना जाता है । उन्हीं अंग्रेजों द्वारा थोपा गया इंडिया नाम से विश्व हमें पहचानता है।
अंग्रेज गये उनकी अंग्रेजी व इंडिया भी जाये, भारत में भारतीय भाषायें ही राज चलाये’ की मांग को लेकर 82 माह से संसद की चैखट जंतर मंतर पर संघर्ष करने वाला भारतीय भाषा आंदोलन, देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी मुक्त करने व देश का नाम भारत कर ने की मांग को ेलेकर विगत डेढ साल से ( 28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 व 1 जून 2019 से आज तक)े हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करते हुए ज्ञापन देता है।
भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत की अध्यक्षता में चल रहे इस भारतीय भाषा आंदोलन में निर्णायक मौड तब आया जब 28 दिसम्बर 2018 से सतत् आंदोलन के तहत राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करते हुए इस आशय का एक ज्ञापन दिया जाने लगा। भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में चलाये गये इस आंदोलन केें
इन ज्ञापनों में भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री मोदी से देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कर देश का नाम भारत करने व देश की पूरी व्यवस्था भारतीय भाषाओं में संचालित करने की पुरजोर मांग करते हुए एक तीखा सवाल किया कि जब रूस, चीन जापान, जर्मन व इजराइल आदि देश अपने अपने देश की भाषाओं में शिक्षा,रोजगार, न्याय व शासन सहित पूरी व्यवस्था संचालित कर विश्व में अपना परचम लहरा सकते हैं, तो क्यों भारत अंग्रेजों से मुक्त होने के 73 साल बाद भी, आज 17 जनवरी 2020 को भी बना हुआ है अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपे नाम इंडिया का गुलाम मोदी जी? कब होगा भारत में लोकशाही व आजादी का सूर्योदय मोदी जी ?
ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने हैरानी प्रकट की कि अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी भारत क्यों बना हुआ है अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम। भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री का ध्यान आकृष्ठ करते हुए कहा कि जिस अंग्रेजी शिक्षा कानून(Enghlish Education Act 1835) को ब्रिटेन ने भारत को सदा के लिए गुलाम बनाने के लिए भारत में तत्कालीन गवर्नर जनरल लाॅर्ड बिलियम बैंटिंक व थोमस बैंबिंटोन मैकाले के द्वारा थोपा था, उसको अंग्रेजों के जाते ही तुरंत हटाकर अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ही भारतीय शिक्षा कानून को देश में लागू करना था। परन्तु अंग्रेजीयत के गुलाम बने भारतीय हुक्मरान भले ही देश की सत्ता में आसीन हो गये परन्तु देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन सहित पूरा तंत्र उन्हीं ंअंग्रेजों की उसी भाषा व तंत्र अंग्रेजीं में ही संचालित किया गया। जिस अंग्रेजी व तंत्र के द्वारा अंग्रेजों ने भारत को दो शताब्दी तक गुलाम बनाया, लाखों भारतीयों का कत्लेआम किया और अरबों खरबों की अकूत संपति लूटी। अंग्रेजो ने भारतीय भाषाओं को इसी आशय से शिक्षा,रोजगार, शासन व न्याय से बलात हटा कर केवल अंग्रेजी में इसीलिए संचालित किया कि ये अपनी भारतीय संस्कृति से कट कर अंग्रेजों व अंग्रेजों की संस्कृति के गुलाम बन जायेंगे। हुआ भी यही अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाबजूद भारतीय अंग्रेजीयत की मानसिक गुलामी से अपनी भारतीय भाषाओं व संस्कृति से धृणा करके केवल अंग्रेजी व अंग्रेजी संस्कृति को श्रेष्ठ व आत्मसात कर लार्ड मैकाले की आशाओं में खरे उतर कर भारत व भारतीयता को जमीदोज करने में जुटे हैं। इसीलिए देश के शिक्षा संस्थानों सहित पूरे देश में भारत विरोधी तत्व व भ्रष्टाचार में मर्माहित है।
मान्यवर पूरा विश्व यह देख कर स्तब्ध है कि खुद को संसार का सबसे बडी लोकशाही बताने वाला भारत, संसार की सबसे प्राचीन जीवंत संस्कृति, ज्ञान विज्ञान में जंगतगुुरू व संसार की सबसे प्राचीन,समृद्ध भाषाओं के होते हुए भी भारत अंग्रेजों से सन् 1947 में मुक्त होने के बाद भी 73 सालों से उन्हीं अंग्रेजों की भाषा ‘अंग्रेजी व अंग्रेजों द्वारा ही थोपे गये इंडिया का नाम का गुलाम क्यों बना हुआ है? देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन बेशर्मी से अंग्रेजी में दे कर देश को बर्बादी के गर्त में धकेलने वाले हुक्मरानों, नौकरशाहों, न्यायविदों व शिक्षाविदों के पास इस सवाल को कोई जवाब नहीं है कि जब रूस,चीन,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी विकसित व सम्मानित देश अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं तो भारत क्यों अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी अंग्रेेजों की ही भाषा अंग्रेजी व उनके थोपे गये इंडिया नाम का गुलाम बना हुआ है ?आखिर भारत की क्या मजबूरी है कि अपनी दर्जनों प्राचीन व समृद्ध भारतीय भाषायें एवम अपना गौरवशाली नाम भारत होते हुए भी आक्रांता अंग्रेजों की ही भाषा अंग्रेजी व उनके द्वारा थोपे गये बदनुमा नाम इंडिया की गुलामी को ढो कर खुद को मिटा रहा है?
भारत सरकार को चाहिए कि देश में हर हालत में हर विद्यालय को शिक्षा,न्याय,रोजगार व शासन सहित पूरी व्यवस्था भारतीय भाषाओं में संचालित करने के लिए मजबूर किया जाय। इसका उल्लंधन करने वालों को राष्ट्रद्रोह के अपराध में बंद किया जाय। इस कृत्य को करने को उतारू नेता व उसके दल पर भी प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यही नहीं देश में शिक्षा के साथ हर रोजगार, न्याय व शासन केवल भारतीय भाषाओं में ही प्रदान की जाय। क्योंकि भारत के हर नागरिक में भारतीय मूल्यों को संचारित करने के साथ देश की सुरक्षित रखने के लिए केवल भारतीय भाषाओं में विद्यालय सहित पूरी व्यवस्था संचालित करनी चाहिए। अंग्रेजी से व्यवस्था संचालित करने से देश में लूटशाही व भारतद्रोही असामाजिक तत्व ही मजबूत हो कर भारतीयता पर ग्रहण लगा रहे है।
भारतीय भाषा आंदोलन का संसद की चैखट से प्रधानमंत्री कार्यालय तक ऐतिहासिक आंदोलन का विवरण-
(क) -21 अप्रैल 2013 से इसी मांग को लेकर जंतर मंतर पर अखण्ड धरना (30 अक्टूबर 2018 हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनलª) की आड़ में सरकार ने जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक धरने सहित अन्य आंदोलनों को रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया।
(ख.1) – पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय व आंदोलनकारियों को गलत गुमराह किया कि आंदोलन स्थल रामलीला मैदान बनाया गया। जबकि वहां कोई स्थान नियत नहीं किया गया। आंदोलनकारियों ने रामलीला मैदान में धरना देने की कोशिश की तो वहां पर कोई स्थान तय नहीं किया गया। उसके बाद आंदोलनकारी महिनों तक शहीदी पार्क पर आंदोलनरत रहे परन्तु पुलिस ने वहां पर भी परेशान किया।
(ग) 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन का धरना प्रारम्भ (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंतर मंतर व वोट क्लब पर आंदोलन करने की इजाजत जारी करने के बाद) पर एक पखवाडे बाद ही दिल्ली पुलिस द्वारा उत्पीड़न किये जाने के बाद धरना स्थगित ।
(घ) 28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन किया।18 मार्च को चुनाव आचार संहिता लगने पर नयी सरकार के गठन तक आंदोलन जारी पर पदयात्रा स्थगित।
(ड़) 30 मई 2019 को नयी सरकार के गठन के बाद 1 जून 2019 से पुन्न जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पद यात्रा कर ज्ञापन आंदोलन जारी (च)ष्अंग्रेजी व इंडिया की गुलामीष्से मुक्ति पाये बिना न तो भारत में न तो लोकशाही व गणतंत्र स्थापित हो सकता है व नहीं हो सकता है चहुंमुखी विकास
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 21 अप्रेल 2013 से यानी 81 माह से संसद की चैखट पर सत्याग्रह कर रहा हैं। परन्तु देश की सरकार के कान में जूं तक नहीं रैंग रही है। देश की इस प्रथम मांग को तत्काल स्वीकार करने के बजाय देश की सरकार, पुलिस प्रशासन से सत्याग्रहियों का दमन कर आंदोलन को कूचलने का अलोकतांत्रिक कृत्य कर रही है। इसके बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन के सत्याग्रही संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मंदिर/शहीद पार्क/संसद मार्ग पर धरना और जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा) पर सतत् शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहा है। आशा है आपकी सरकार भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करने का संकल्प लेगी । ज्ञापन में हस्ताक्षर करने वालों में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत,संरक्षक वरिष्ठ साहित्यकार वीरेन्द्र नाथ वाजपेयी व स्वामी नारायण दास, रामजी शुक्ला, सुनील कुमार सिंह, वेदानंद, अभिराज शर्मा, मन्नू कुमार, अनिल पन्त,मनमोहन शाह मोहन जोशी, हरिराम तिवारी, अशोक औझा,रांची से आये वरिष्ठ समाजवादी नेता राजेश यादव, श्याम प्रसाद खंतवाल,पदम बिष्ट, आशा शुक्ला, सुनीता चैधरी व नंदलाल प्रसाद आदि प्रमुख हैं।

चित्र में ये शामिल हो सकता है: 6 लोग, मुस्कुराते लोग

About the author

pyarauttarakhand5