देश

सत्तामद में चूर होकर कमजोर टिकट वितरण करने वाले केजरीवाल को सावधानी से टिकट वितरण करके पटकनी दे भाजपा

  1. दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेता जगदीश मंमगाई ने दी भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व को केजरीवाल को पटकनी देने  की  सोशल मीडिया पर  खुली सलाह

प्रस्तुत है साभार जगदीश मंगाई की शानदार समीक्षा

  1. दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने सभी 70 विधानसभा के लिए उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। जारी सूची में वर्ष 2015 में लड़े 23 उम्मीदवार बदल दिए हैं, यह खासी संख्या है। कांग्रेस से आए कट्टरपंथी विवादित शोएब इकबाल को उम्मीदवार बनाने से मटिया महल व बल्ली मारान में तथा बदरपुर में राम सिंह नेताजी के उम्मीदवार बनाने से लाभ मिल सकता है, वर्ष 2015 में दोनों अपने दम पर काफी वोट ले गए थे। राम सिंह नेताजी ने तो दल-बदल के लिए कुख्यात बीजेपी उम्मीदवार रामवीर सिंह विधुड़ी को जमानत जब्ती की स्थिति में पहुंचा दिया था। राजौरी गार्डन उपचुनाव में जमानत जब्त कराने कि स्थिति में पहुंची आम आदमी पार्टी को धनवन्ती चंदेला की उम्मीदवारी से लड़ाई में आने का मौका मिलेगा। बदलाव की दृष्टि से राजेन्द्र नगर से राघव चड्डा व कालकाजी से आतिशी काबिल एवं गवर्नेंस समझने वाले अच्छे उम्मीदवार हैं।
    टिकट कटने वालों में हरी नगर से जगदीप सिंह, दिल्ली कैंट से कमांडो सुरेंद्र, सीलमपुर से हाजी इशराक व गोकुलपुरी से फतेह सिंह की स्थिति ऐसी खराब नहीं थी कि उनका टिकट काटा जाए जबकि रिठाला से महेंद्र गोयल, जनकपुरी से राजेश ऋषि, कस्तूरबा नगर से मदन लाल, लक्ष्मी नगर से नितिन त्यागी की जीतने की स्थिति नहीं दिखने के बावजूद उनका टिकट नहीं काटा गया। सीलमपुर से अब्दुल रहमान की काबलियात शायद यही है कि नागरिकता संशोधन विधेयक के विरूद्ध आंदोलन में वह आरोपी है। द्वारका से उम्मीदवार बनाए गए कांग्रेसी विनय मिश्रा कमजोर उम्मीदवार है, वह केवल कांग्रेस के पूर्व सांसद महाबल मिश्रा का बेटा होने के चलते उम्मीदवार है।
    आम आदमी पार्टी द्वारा घोषित उम्मीदवारों की सूची ने उनकी संभावित बड़ी जीत के वातावरण को कमजोर किया है। संभवतः वे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नाम पर ‘कैसा भी-कोई भी’ जीत जाएगा की मानसिकता से ग्रसित हैं, उम्मीदवारों के चयन में ऐसी ही मनमानी कर ‘आप’ ने पंजाब में अपनी संभावनाओं को धराशायी कर लिया था। वर्ष 2015 में भाजपा भी ऐसी ही गलतफहमी की शिकार थी कि मोदीजी के नाम पर ‘कैसा भी-कोई भी’ जीत जाएगा, लेकिन इतना बुरा हश्र हुआ कि 63 साल के अपने राजनैतिक काल में सबसे न्यूनतम सीट प्राप्त कर पाई।
    अब देखना है कि उम्मीदवारों के चयन में बीजेपी कितनी परिपक्वता दिखाती है, क्या ‘आप’ की कमजोर उम्मीदवारों की सूची से सबक लेती है या नहीं ? जमीन पर प्रभावी व काबिल लोगों को मौका देती है या पिछली बार की तरह दल-बदलू, चाटुकार व मालदार का ही पैमाना अपनाती है।

About the author

pyarauttarakhand5