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महाराष्ट्र में भाजपा की नहीं अब शिवसेना, राकांपा व कांग्रेस गठबंधन की बनेगी सरकार

राज्यपाल श्री कोश्यारी ने दिया शिवसेना को कल शाम 7:30 बजे तक सरकार बनाने का न्योता

महाराष्ट्र में भाजपा  व शिवसेना के साथ राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी की भी अग्नि परीक्षा

प्यारा उत्तराखंड डॉट कॉम

महाराष्ट्र में तेजी से बदलती हुई राजनीतिक घटनाक्रम में भारतीय जनता पार्टी द्वारा प्रदेश में सरकार गठित न किए जाने की सूचना महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को दिए जाने के बाद, राज्यपाल ने दूसरी सबसे बड़ी पार्टी शिवसेना को कल शाम 7:30 बजे तक प्रदेश में सरकार गठन करने के लिए आमंत्रित किया है।
अब देखना यह है कि शिवसेना राज्यपाल के पास अपना पर्याप्त बहुमत होने का दावा पेश करती है या नहीं। जिस प्रकार से महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम के बाद तेजी से बदलती हुई राजनीतिक परिदृश्य साफ हो गया था कि भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ शिवसेना जो हुंकार भर रही है उसके पीछे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की शह जरूर है।
दोनों पार्टियों के दम पर शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत बार-बार दावा कर रहे थे कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही बनेगा और शिवसेना चाहे तो 170 विधायकों का बहुमत आसानी से जुटा सकती है। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 105 शिवसेना को 56 व कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस को एक सौ सीट मिली है। शेष स्वतंत्र व छोटे दलों को मिली है।
उल्लेखनीय है कि जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के गठबंधन ने महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस पार्टी को सत्ता के सत्ता से हाशिए में ढकेल दिया और निरंतर देश-प्रदेश में मजबूत हो रही भारतीय जनता पार्टी व शिवसेना के गठजोड़ को देखते हुए, खासकर मोदी के नेतृत्व में जो देश के कई महत्वपूर्ण असंभव से प्रतीत हो रहे कार्य किए जा रहे हैं, उसके बाद तेजी से देश में भारतीय जनता पार्टी का ग्राफ बढ़ रहा है। उसको देखते हुए अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस ने शिवसेना की महत्वकांक्षा को हवा देने का काम किया।
क्योंकि दोनों पार्टियां बखूबी से जानती है ज्यादा देर तक सत्ता से बाहर रहने के कारण कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट जाता है और जनता की नजरों में पार्टी का ग्राफ गिरने के कारण पार्टी दिन प्रतिदिन कमजोर होती है। वहीं दूसरी तरफ ढंग से भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के आलाकमान शरद पवार ,अजित पवार और प्रफुल्ल पटेल जैसे दिग्गज नेताओं पर जिस प्रकार से उनके शासनकाल के कार्यों पर शिकंजा कसा, उससे भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व बहुत ही आशंकित है। इसलिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस पार्टी को यह बात समझ में आ गई कि जब तक महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन को कमजोर नहीं किया जाएगा, बिखराव नहीं किया जाएगा व तोड़ा नहीं जाएगा तब तक महाराष्ट्र की राजनीति में वे सफल नहीं हो सकते हैं ।इसीलिए यह निर्णायक क्षण जब शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने अपने बेटे आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने की बात जग जाहिर की, उसके बाद जो चुनाव परिणाम आए उसको देखकर राष्ट्रवादी कांग्रेस व कांग्रेस को लगा कि यही उचित मौका है। जब भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के गढ़ को कमजोर किया जा सकता है जिस प्रकार से राम जन्मभूमि मामले में ऐतिहासिक फैसला सर्वोच्च न्यायालय से आया ,उसे देखते हुए शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस व कांग्रेस के बीच दूरियां बढ़ने लाजमी नजर आ रही थी। परंतु महाराष्ट्र की राजनीति को भांपते हुए शिवसेना ने जहां इस ऐतिहासिक फैसले का स्वागत किया।वहीं कांग्रेस सहित राष्ट्रवादी कांग्रेस सहित देश के तमाम दलों ने भी इसका स्वागत किया। एक प्रकार से इस कदम उठाने से जहां यह मामला राष्ट्र के प्रति समर्पित हो गया वहीं अकेले भारतीय जनता पार्टी इसका श्रेय वर्तमान में नहीं ले सकी। महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस भले ही शिवसेना और एनसीपी की बने तथा इस सरकार को बाहर से समर्थन कांग्रेस दे ।परंतु कांग्रेस को भी यह मालूम है कि अगर उसको इस अवसर में समर्थन देने में चूक गई तो आने वाले समय में महाराष्ट्र में उसको पूछने वाला कोई नहीं रहेगा। क्योंकि जिस प्रकार से निरंतर कांग्रेस कमजोर हो रही है ।उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी मजबूत हो रही है और भारतीय जनता पार्टी पूरे महाराष्ट्र में अकेले ही सत्ता पर काबिज होने की स्थिति में आ चुकी है। इसे देखकर कांग्रेस जो 36 का आंकड़ा शिव सेना से रखती हो। इसके बाद भी वह शिवसेना की सरकार को समर्थन देने के लिए मजबूर है।
देखना यह है कि कल जब राज्यपाल को शिवसेना अपना सरकार बनाने का दावा पेश करेगी तो यह समीकरण जो शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी व कांग्रेस के बीच में एकता का जो गठजोड़ बना है वह उसको कहां तक मजबूती से साकार करती है ।वहीं भारतीय जनता पार्टी को
महाराष्ट्र में सरकार न बना सकने का गहरा आघात लगेगा ।क्योंकि जनता की नजरों में भी इस प्रकार का प्रश्न उठ रहे हैं कि जब माया और महबूबा को भाजपा स्वीकार कर सकती है तो अपने सबसे पुराने गठबंधन के सहयोगी शिवसेना को ढाई साल के लिए क्यों स्वीकार नहीं कर रही है?लोग इसके लिए महाराष्ट्र के निवर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं ।क्योंकि उनका मानना था अगर देवेंद्र और भारतीय जनता पार्टी को अपने इस समीकरण को बचाने के लिए जरा भी ईमानदारी से काम करना होता तो वह शिवसेना के इस गठबंधन को स्वीकार करते और ढाई साल का उसे अवसर देते ।परंतु इससे यह भी लगता है कि भारतीय जनता पार्टी अब अपने अकेले दम पर महाराष्ट्र में सत्ता में काबिज होना चाहती है और भारतीय जनता पार्टी का अगला कदम यह भी हो सकता है या तो शिवसेना राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस के इस गठबंधन में दरार पैदा करें या इनके असंतुष्टों को अपने दल में शामिल करें ।इन्हीं समीकरण के साथ भारतीय जनता पार्टी अभी चलती है ।अगर शिवसेना की हुई सरकार सही ढंग से न चल पाए और वहां पर राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण हो तो उसके बाद जो भी चुनाव होंगे महाराष्ट्र में उस में भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर अकेले ही सरकार बनाने के लिए काम करेगी ।भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व भी शिवसेना के बार-बार के किंतु-परंतु से बेहद परेशान नजर आ रहा है और यह एक प्रकार से सीधी लड़ाई अमित शाह उद्धव ठाकरे के बीच की लड़ाई थी ।इस लड़ाई की पहली जंग में लोगों को विश्वास किया था कि अमित शाह हर हाल में प्रदेश में सरकार बना पाएंगे ।लेकिन जब भारतीय जनता पार्टी ने वहां पर सरकार बनाने में अपनी असमर्थता राज्यपाल से प्रकट की तो लोगों को लगा कि वहां पर शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस और कांग्रेस का अपने विधायकों पर शायद मजबूत शिकंजा है। उस पर भारतीय जनता पार्टी अभी वर्तमान में कोई दरार नहीं डाल पायी। उसे भेद नहीं पाई ।आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी इस त्रिकोणीय गठबंधन को किस प्रकार से ध्वस्त करती है । आने वाला समय एक प्रकार से महाराष्ट्र की राजनीति में अस्थिरता और घात प्रतिघात का ही रहेगा अब सबकी नजर कल 7:30 बजे तक शिवसेना के उत्तर पर लगी रहेगी ।क्या शिवसेना सरकार बनाने की जो न्योता राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने दिया, उस चुनौती को स्वीकार करेगी या वह भी भाजपा की तरह पीठ दिखाएगी।
शिवसेना के साथ भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र में तनातनी कोई चुनाव परिणाम की बाद की बात नहीं है अपितु यह एक दशक से निरंतर चल रही है शायद इसी को भांप कर मोदी सरकार ने अपने वरिष्ठतम व मंझे हुए राजनेता उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को महाराष्ट्र का यह महत्वपूर्ण दायित्व राज्यपाल के रूप में सौंपा है।
मृदुभाषी और राजनीति के चाणक्य समझे जानेवाले संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक भगत सिंह कोश्यारी इस चुनौती कार्य में मोदी और शाह की आशाओं पर कहां तक खरे उतरते हैं? यह तो आने वाला समय ही बताएगा परंतु यह भी सच है कि सहज स्वभाव के भगत सिंह कोश्यारी बहुत कम समय में ही महाराष्ट्र की तमाम राजनीतिक नेताओं का दिल जीतने में सफल हो गए हैं।

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव में भाजपा व शिवसेना के गठबंधन को पर्याप्त बहुमत मिल चुका था परंतु शिवसेना ने प्रारंभ से ही मुख्यमंत्री हमारा होने की कठोर शर्त लगाने के कारण भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना गठबंधन में भारी दरार पड़ गई भारतीय जनता पार्टी ने तर्क दिया कि प्रदेश विधानसभा के चुनाव में 105 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और गठबंधन में भी उसे अधिक सीटें मिली है वहीं शिवसेना को केवल 56 सीटें मिली है इसलिए भाजपा का ही मुख्यमंत्री रहेगा।
परंतु शिवसेना भाजपा के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है उसने 50-50 की तर्ज पर ढाई- ढाई साल मुख्यमंत्री बनने की जिद कर ली। शिवसेना का तर्क था जब भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में मायावती वह वह जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती सईद को मुख्यमंत्री स्वीकार कर सकती है तो भारतीय जनता पार्टी शिवसेना के आदित्य ठाकरे को क्यों स्वीकार नहीं कर रही है जबकि शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन लंबे सालों से है ।

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