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तीन तलाक की तरह ही ‘अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी’के कलंक से भारत को मुक्त करे मोदी सरकार

भारत की लोकशाही, आजादी, मानवाधिकार, संस्कृति, विकास व सम्मान को रौंदने वाले गुलामी के कलंक (‘अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी’)से मुक्ति दिलाने के लिए मोदी सरकार संसद में बनाये नया कानून

भारतीय भाषा आंदोलन के 76 माह से चल रहे ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी ’से मुक्ति के सतत सत्याग्रह पर सरकार का शर्मनाक मौन क्यों?

नई दिल्ली( 31 जुलाई 2019)। तीन तलाक की तरह ही ‘अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी’के कलंक से भारत को मुक्त करे मोदी सरकार। 1947 में अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद से भारत को बलात अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए मोदी सरकार से संसद में नया विधान बनाने की दो टूक मांग की। यह दो टूक मांग भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में 31 जुलाई को राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करने के बाद प्रधानमंत्री को दिये गये एक ज्ञापन में की गयी।

उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन 21 अप्रैल 2013 यानी 76 माह से ‘देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति करने के लिए संसद की चैखट पर सतत ऐतिहासिक संघर्ष कर रहा है। इसी के तहत विगत कई महिनों से प्रधानमंत्री को उनके संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करने के लिए हर कार्य दिवस पर संसद की चैखट,राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से पदयात्रा करके प्रधानमंत्री को प्रमं कार्यालय में इस आशय का एक ज्ञापन भी सौंपता है।
भारतीय भाषा आंदोलन ने 31जुलाई को, ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने केे लिये प्रधानमंत्री को दिये गये ज्ञापन में लिखा कि आज 31 जुलाई 2019 को जहां पूरा देश आपकी सरकार द्वारा 30 जुलाई 2019 को संसद में देश की करोड़ों महिलाओं के जीवन को नारकीय बनाने वाले तीन तलाक कुप्रथा से मुक्ति दिलाने का ऐतिहासिक कार्य करने के लिए आपकी सरकार को बधाई दे रहा है। वहीं दूसरी तरफ अंग्रेजों के जाने के बाद 72 साल से देश के हुक्मरानों द्वारा भारत में बलात थोपी गयी अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए 21 अप्रैल 2013 (76 माह से) सत्याग्रह कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन के जांबाज 31 जुलाई को भी संसद की चैखट जंतर मंतर से
प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करके प्रधानमंत्री से तीन तलाक की तरह ही अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए दो टूक ज्ञापन दे रहा है ।
मान्यवर इसी मांग को लेकर भारतीय भाषा आंदोलन ने 21 जून 2019 को आपको जो ज्ञापन दिया था, उसको आपके कार्यालय न गृहमंत्रालय के राजभाषा विभाग को भेजा था। गृहमंत्रालय राजभाषा विभाग के दो पत्र (26 व 30 जुलाई )भारतीय भाषा आंदोलन को अब तक मिले। 26 जुलाई को मिले पहले पत्र के बारे में प्रधानमंत्री को 29 जुलाई को दिये गये भारतीय भाषा आंदोलन के ज्ञापन में उल्लेख कर चूका है। प्रधानमंत्री को 21 जून 2019 को दिये गये ज्ञापन के प्रत्युतर में गृहमंत्रालय राजभाषा विभाग का कल ही यानी 30 जुलाई को दूसरा पत्र मिला। जिसको गृहमंत्रालय के राजभाषा विभाग ने सं.11034/01/2019-रा.भा.(नीति) ने 29 जुलाई 2019 को अवर सचिव(नीति) डाल चंद द्वारा हस्ताक्षरित उतर, भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत को ‘विषय-सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की कार्यवाहियों में हिंदी/भारतीय भाषाओं के प्रयोग के संबंध में’ प्र्रेषित किया।
राजाभाषा विभाग ने भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत को लिखे पत्र में जानकारी दी कि 21 जून 2019 को प्रधानमंत्री को भेजे भारतीय भाषा आंदोलन के ज्ञापन में एक प्रमुख मांग जो सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायलयों की कार्यवाहियों में हिंदी/भारतीय भाषाओं के प्रयोग करने के लिए
किया है। इस मांग के सम्बंध में भारत सरकार के गृहमंत्रालय (राजभाषा विभाग) ने सूचित किया कि संविधान के अनुच्छेद 348 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है। उच्च न्यायालयों के संबंध में यह उल्लेखनीय है कि कोई भी राज्य उस राज्य में हिंदी भाषा को या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा को माननीय राष्ट्रपति जी के अनुमोदन से उच्च न्यायालय की भाषा के रूप में स्वीकार कर सकता है। तथापि, 1965 के एक कैबिनेट निर्णय के अनुसार राष्ट्रपति जी के अनुमोदन के पहले उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श लिया जाता है। आपको यह भी सूचित किया जाता है कि वर्तमान में देश के चार राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में हिंदी के वैकल्पिक प्रयोग का प्रावधान है।
भारत सरकार के इस उत्तर पर भारतीय भाषा आंदोलन का साफ नजरिया है कि देश की हर सरकार का यह प्रथम दायित्व होता है कि भारत की लोकशाही, आजादी, मानवाधिकार,एकता अखण्डता,सुरक्षा, संस्कृति, विकास व सम्मान को रौंदने वाले हर विकार/ कुप्रथाओं/गुलामी के कलंकों (‘अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी’ आदि)से मुक्ति दिलाने के लिए तत्काल संसद में नया विधान बनाने का दायित्व निभाना चाहिए।
विधान निर्मित व उसको लागू करने वाले संस्थानों को इस बात का भान होना चाहिए कि देश आजाद हो गया है। आखिर एक स्वतंत्र देश को क्यों आजादी के 72 साल बाद भी उन्हीं आक्रांता की भाषा में संचालित करके देश की आजादी, लोकशाही, मानवाधिकार, विकास व संस्कृति को निर्ममता से रौंद कर देश को बलात गुलाम बनाये रखने का राष्ट्रद्रोही कृत्य किया जा रहा है। अंग्रेजों के जाने के बाद 1947 से ही देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन हर हाल में केवल भारतीय भाषाओं संचालित किये जाने का विधान बनाया जाना चाहिए था व भारतीय भाषाओं द्वारा संचालित किया जाना चाहिए। अगर इस राह पर न चलने की राष्ट्रघाती भूल देश में बलात थोपी गयी या थोपी जा रही है तो यह राष्ट्रद्रोह है। इस गुलामी को थोपे जाने से भारत की आजादी, लोकशाही, मानवाधिकार व संस्कृति के साथ विकास पर भी ग्रहण लग गया है। देश के भाग्यविधाताओं को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि देश की पूरी व्यवस्था देश की जनता के लिए है और जनता द्वारा ही संचालित होेनी चाहिए। देश की भाषाओं में जब शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन न मिलने से लोकशाही दम तोड देती है। इसलिए हर हाल में लोकशाही व देश की जनता की खुशहाली के लिए देश की व्यवस्था देश की भाषाओं में संचालित होनी चाहिए। इसके मार्ग में अवरोध बने पुराने विधानों को लोकशाही व जनकल्याण के अनुकुल बनाना देश की सरकारों का दायित्व होता है। देश क ेसर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय सहित देश के भाग्य विधाताओं को एक बात समझ लेनी चाहिए यह देश मात्र उनके लिए नहीं है अपितु यह देश इस देश की जनता के लिए ही भी है। जब तक देश में शिक्षा, रोजगार, शासन की तरह न्याय भी जनता की भाषा में नहीं होगा वह न्याय नहीं कहा जा सकता। आखिर देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन विदेशी आक्रांता की भाषा में ही क्यों? भारतीय भाषाओं में क्यों नहीं?
भारतीय भाषा आंदोलन सहित पूरा देश इस बात से आहत होकर प्रधानमंत्री सहित संसद व न्यायपालिका सहित पूरी व्यवस्था के मठाधीशों से दो टूक शब्दों में एक यज्ञ प्रश्न पूछ रहा हैं कि जब रूस,चीन,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी देश अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं तो अंग्रेजों के जाने के 72 साल बाद भी भारत क्यों बना हुआ है अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम ?भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है किसी भी स्वतंत्र देश की भाषाओं को रौंदकर विदेशी भाषा में बलात शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है। आशा है आपकी सरकार भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करेंगे।
भारतीय भाषा आंदोलन को आशा है कि मोदी सरकार ने जिस प्रकार तीन तलाक की कुप्रथा से देश को मुक्ति दिलाने का ऐतिहासिक कार्य किया उसी प्रकार 72 साल से देश के हुक्मरानों द्वारा काबिज अंग्रेजी व इंडिया की की गुलामी से भारत को मुक्ति दिलाने का कार्य भी अविलम्ब करेंगी।
भाषा आंदोलन के ज्ञापन में हस्ताक्षर करने वालों में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, , रामजी शुक्ला,,जोगिंदर रोहिल्ला , मोहन जोशी ,भगवान सिंह, मनमोहन शाह आदि उपस्थित थे

निवेदक – भारतीय भाषा आंदोलन

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