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भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी ’से मुक्ति दिलाने के लिए आंदोलनरत ‘भारतीय भाषा आंदोलन’ने दी नव निर्वाचित प्रधानमंत्री मोदी को बधाई युक्त प्रथम ज्ञापन

देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने की मांग को लेकर भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में भारतीय भाषा आंदोलन ने 1 जून की तपती दोपहरी को जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पद यात्रा कर दिया ज्ञापन।

नई दिल्ली(प्याउ)। 1 जून की दोपहरी को प्रधानमंत्री को 17वीं लोकसभा के प्रधानमंत्री बनने पर बधाई देते हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने ज्ञापन में दो टूक शब्दों में लिखा कि मान्यवर नरेन्द्र मोदी जी, जय हिन्द! वंदे मातरम्। 17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भारी बहुमत से विजयी हो कर पुन्नः प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होने पर भारतीय भाषा आंदोलन आपको हार्दिक बधाई। 1 जून को लू के थप्पेडों की परवाह न करते हुए संसद की चैखट जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करते हुए भारतीय भाषा आंदोलन को आशा है कि आप अपने इस कार्यकाल में विगत 72 सालों से अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की जंजीरों में जकडे भारत को इस कलंक से मुक्ति दिलाने के अपने प्रथम संवैधानिक दायित्व का निर्वहन करेंगे।
मान्यवर आपको विदित ही होगा कि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो से मुक्ति के बाबजूद भी देश के गुलाम मानसिकता के हुक्मरानों ने बेशर्मी से विगत 72 सालों से देश की लोकशाही, सम्मान व मानवाधिकारों को जमीदोज करके देश को अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम बनाया हुआ है। भारतीय भाषा आंदोलन इसी गुलामी के कलंको से माॅ भारती को मुक्त कराने व भारतीय भाषाओं के साथ भारत से देश को महाशक्ति व विश्व गुरू बनाने के लिए 21 अप्रैल 2013 से सतत् सत्याग्रह कर रहे हैं। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि देश की सरकारों ने अपनी राष्ट्रघाती भूल पर तुरंत सुधार करने का काम करने के बजाय
देशभक्त आंदोलनकारियों का अलोकतांत्रिक दमन किया गया व आंदोलन को उजाडने का कृत्य किया गया। 30 अक्टूबर 2018 को हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनलª) की आड़ में जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक धरने सहित अन्य आंदोलनों पर रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया। इसके बाद आंदोलनकारियों व न्यायालय को गुमराह करके रामलीला मैदान भेजा गया। वहा ंपर भी कोई नियत स्थान धरने के लिए आवंटित नहीं किया गया। उसके बाद भारतीय भाषा आंदोलन शहीद पार्क में कुछ महीने आंदोलन जारी रखे रहा। इस अलोकतांत्रिक कृत्य को जब सर्वोच्च न्यायालय ने सिरे से नकारते हुए जंतर मंतर व वोट क्लब को आंदोलन के लिए स्वीकृत किया। परन्तु प्रशासन कई महिनों तक आदेश के बाबजूद जंतर मंतर पर आदंोलन शुरू नहीं कर पाया। बाद में जब भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री के टवीट्र पर इसकी इतला दी तो तब 28 नवम्बर से जंतर मंतर पर धरना शुरू किया गया। भारतीय भाषा आंदोलन ने भी 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार केवल प्रातः ं11 बजे से सांय4 बजे तक आंदोलन जारी रखा और इसकी सूचना पत्र दिल्ली पुलिस के एचएएक्स विभाग नई दिल्ली संसद मार्ग में शपथ पत्र के साथ दाखिल किया। परन्तु एक पखवाडे तक प्रतिदिन शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रखे हुए था। परन्तु दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी ने कई दिन लगातार धरना न देने का मौखिक आदेश दिया।
दिल्ली पुलिस प्रशासन के अलौकतांत्रिक रवैये के विरोध में भारतीय भाषा आंदोलन का प्रतिदिन जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक 28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन किया।
मान्यवर, देश में 17वीं लोकसभा के गठन के लिए 11 अप्रैल से 19 मई 2019 तक 7 चरणों में होने वाले मतदान होने के कारण चुनाव अधिसूचना जारी होने के दिन 18 मार्च को भारतीय भाषा आंदोलन 16वीं लोकसभा में आपके पूर्व कार्यकाल का अंतिम ज्ञापन बहुत दुख के साथ सौंपते हुए साफ लिखा था कि आपने भी अपने कार्यकाल में देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने के दायित्व निर्वहन करने के बजाय देश में अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी को और अधिक मजबूती प्रदान करके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों की तरह देश की आशाओं, सम्मान, लोकशाही, मानवाधिकारों पर बेशर्मी से बज्रपात ही किया।
हम इस बात से भी हैरान थे कि कि आपकी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी, की मातृ संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ जिसके आप स्वयं एक समर्पित स्वयं सेवक है, देश में खुद को राष्ट्रवाद की ध्वजवाहक बताती है। इसके बाबजूद वाजपेयी की तरह आपके कार्यकाल में भी देश के माथे पर लगा यह बदनुमा कलंक दूर करने के बजाय पहले से अधिक और मजबूत हुआ।
भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 74 माह से पुलिस प्रशासन के दमन व असहयोग के बाबजूद संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मंदिर/शहीद पार्क/संसद मार्ग) पर सतत् शांतिपूर्ण आंदोलन कर रही है। सरकार द्वारा अविलम्ब देशहित की मांग को स्वीकार करक देश के माथे से गुलामी का बदनुमा कलंक हटानेे की जगह उसको शर्मनाक संरक्षण दे रही है।
शर्मनाक बात यह है कि जिस आजादी को पाने के लिए देश के लाखों सपूतों ने अपना बलिदान दिया, शताब्दियों तक संघर्ष दिया। वह आजादी 1947 को अंग्रेजो से मुक्त होने के बाद से 72 साल तक देश को नसीब नहीं हो पायी।देश के हुक्मरानों ने पूरे देश की आंखों में धूल झोंक कर व विश्वासघात करके देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय, शासन व सम्मान आदि कों अंग्रेजी में ही संचालित करके भारतीय भाषाओं के साथ-साथ देश की आजादी, लोकशाही,विकास, समानता, सम्मान, मानवाधिकार व संस्कृति को जमींदोज करने का जघंन्य कृत्य किया है। इसी पीड़ा से त्रस्त जनों ने संघ लोकसेवा आयोग के समक्ष भाषाई संघर्ष में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी व विश्वनाथ प्रताप सिंह जैसे चार दर्जन देश के शीर्ष नेताओं के साथ संघर्ष में साथ रहे । परन्तु प्रधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन होते ही, भारत माता की जय व ‘हिंदी, हिन्दु, हिन्दुस्तान’ कहने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ स्वयं सेवक अटल बिहारी वाजपेयी ने भी आपकी तरह इंडिया व अंग्रेजी की गुलामी मोह में रत रह कर देश को निराश ही किया। देश के हुक्मरानों के इस राष्ट्रघाती विश्वासघात व पुलिसिया दमन के बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन ने देश की आजादी व लोकशाही का आंदोलन जारी रखा है। भारत में विगत 72 सालों से बलात विदेशी भाषा अंग्रेजी व इंडिया नाम को थोप कर देश के हुक्मरानोें ने देश के स्वाभिमान, संस्कृति, लोकशाही, आजादी, नाम व मानवाधिकार को जमीदोज करने का कृत्य किया हुआ है। पूरे विश्व में हर देश अपनी भाषाओं व नाम से विकास की कूचालें भर रहे है।यह भी जगजाहिर वैज्ञानिक सत्य है कि मातृभाषा में बाल प्रतिभाओं का चहुमुखी विकास होता है। परन्तु भारत के हुक्मरान, न्यायपालिका व बुद्धिजीवी बेशर्मी से पूरे देश में अंग्रेजी को ही विश्व की एकमात्र ज्ञान, विज्ञान व विकास की भाषा बता कर देश के वर्तमान व भविष्य को जमीदोज करने में लगे हुए है।
भारतीय भाषा आंदोलन अंग्रेेजों के जाने के बाद देश के हुक्मरानों द्वारा 72 सालों से अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम बनाये जाने से आहत हो कर इस कलंक से मुक्ति के लिए 21 अप्रैल 2013 से सत्याग्रह कर रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन ने इस आशय के कई दर्जन ज्ञापन 21 अप्रैल 2013 के बाद देश के हुक्मरानों को निरंतर ज्ञापन दिया। इन ज्ञापनों में मांग की गयी कि
(1) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय(2) शिक्षा भारतीय भाषाओं में ही प्रदान की जाय (3)संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाएं अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ली जाय। (4) शासन प्रशासन भी भारतीय भाषाओं में संचालित किया जाय। (5) देश के नाम पर लगे इंडिया के कलंक से मुक्ति दिला कर देश का नाम केवल भारत (इंडिया नहीं) ही रखा जाय।(5) राष्ट्रीय धरनास्थल जंतर मंतर पर सतत्(प्रातः11 बजे से सांय 4 बजे तक ) धरना प्रदर्शन की इजाजत दी जाय।
निवेदक – भारतीय भाषा आंदोलन (मो.9910145367)
देव सिंह रावत ( अध्यक्ष), रामजी शुक्ला, अरविंद भारत अशोक ओझा, जोगिंदर रोहिल्ला

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