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श्रीलंका के मुस्लिमों से प्रेरणा लें आतंकियों के लिए घडियाली आंसू बहाने वाले व जनाजों में सम्मलित होने वाले भारतीय

श्रीलंका के मुस्लिम समाज ने आत्मघाती हमलावरों के शव लेने से किया मना और मस्जिद में  दफनाने की नहीं दी इजाजत

प्यारा उतराखण्ड डाट काम
आतंकियों का हमदर्द बन कर उनके मानवाधिकारों के लिए घडियाली आंसू बहाने के लिए कुख्यात भारत के राजनैतिक दलों, उनके नेताओं, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, छात्र नेताओं व आतंकियों के जनाजे में सम्मलित होने वालों को श्रीलंका के देशभक्त मु िस्लम समाज से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिन्होने दो टूक शब्दों में जहां एक तरफ आतंकियों को अपना मानने से न केवल इंकार किया अपितु उन आतंकियों के शवों को लेने से इंकार करने के साथ उनके शवों को मस्जिद में दफनाने तक की इजाजत न देकर अपने मुस्लिम समाज को शोकाकुल राष्ट्र के साथ खडे होने का काम करके अपने समाज व राष्ट्र की रक्षा का अपने दायित्व का सराहनीय, अनुकरणीय व बुद्धिमतापूर्ण ढंग से निवर्हन किया।
भारत में इसके ठीक उल्टा दिखाई देती। यहां मुस्लिम समाज के कई स्वयंभू रहनुमा पदलोलुपु राजनैतिक दलों के प्यादे बन कर इन आतंकियों के मानवाधिकार के सवाल उठाने लगते। यही नहीं संसद से लेकर अनेक आतंकी हमला के गुनाहगारों को निर्दोष बता कर सरकार पर दमन का आरोप लगाते। यही नहीं इन आतंकियों के जनाजे में हजारों लोग बेशर्मी से सम्मलित हो कर आतंकी हमलों से छलनी हुए भारतीयों ंके जख्मों पर नमक छिडकने का जघन्य आत्मघाती कृत्य करते है। इसी तरह देश की शिक्षा संस्थानों में इन आतंकियों को आजादी का योद्धा बता कर भारत विरोधी नारे लगाने का कृत्य करने वालों को लोकशाही के योद्धा की तरह स्वागत करते, बेशर्मी से उनको भारतीय लोकशाही का योद्धा बताते। देश की एकता व अखण्डता को तबाह करने के साथ निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकियों के मानवाधिकार की बात करने वालों को हर देशभक्त आस्तीन का सांप मानता है। इनसे आतंक से छलनी हुए देश के जख्म को कुरेदने का ही कृत्य देश मानता है।

देश में सरकारों के जन विरोधी कृत्यों के विरोध को सहजता से स्वीकारता है। देश के कुशासकों के खिलाफ आवाज उठाने वालों को सर आंखों पर रख कर सत्तासीन भी करता है परन्तु देश की एकता, अखण्डता को तबाह करने में लगे दुश्मनों व उनके प्यादें आतंकियों के लिए घडियाली आंसू बहाने वालों को देश हमेशा जयचंद व मीर जाफर समझ कर धिक्कारता ही है।  ऐसे देश के दुश्मनों व आतंकियों के पैरोकारों के साथ खडे होने वाले देश व समाज के लिए किसी बडे खतरे से कम नहीं होते। इनकी जगह संसद या विधानसभा न होकर जेल में होनी चाहिए।  

इसी सप्ताह 21 अप्रैल को श्रीलंका की तीन चर्चो व पंचतारा होटलों में ईस्टर पर्व हर्षोल्लाश के साथ मना रहे सेकडों ईसाई धर्मावलम्बियों पर जिन इस्लामी आतकियों ने निर्ममता से आत्मघाती हमला करके 321 लोगों को मौत के घाट उतारा और 500 से अधिक लोगों को अपनी हैवानियत से बुरी तरह से घायल किया, उन हैवानों को श्रीलंका के मुस्लिम समाज ने पूरी तरह से ठुकरा दिया। इसकी जानकारी देते हुए बीबीसी के संवाददाता आजम अमीन ने ट्वीट किया कि इस निर्मम हत्याकाण्ड की जिम्मेदारी संसार के सबसे खुंखार इस्लामिक संगठन आईएसआईएस द्वारा ली जाने के बाद आल सिलोन  जामियाथुल उलमा ने एक संवाददाता सम्मेलन करके न केवल इस प्रकरण की खुले शब्दों में निंदा की अपितु उन्होने इन हैवान आतंकियों से पूरी तरह श्रीलंका मुस्लिम समाज का कोई संबंध नहीं है की घोषणा भी की। यही नहीं श्रीलंका के मुस्लिम समाज की रहनुमाई कर रही इस संस्था ने साफ शब्दों मे इन आतंकियों का शव लेने से भी इंकार कर दिया । इससे बढ़ कर श्रीलंका के जागरूक देशभक्त मुस्लिमों ने बुद्धिमतापूर्ण कदम उठाते हुए कहा कि इन हैवानों को श्रीलंका की किसी भी मस्जिद में दफाने की इजाजत तक नहीं दी।

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