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जगद्गुरू रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य जी महाराज का सड़क दुर्घटना में महा-प्रयाण

संत समाज व विश्व हिन्दू परिषद् सहित सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए एक अपूर्णीय क्षति है स्वामी हंसदेवाचार्य जी महाराज का महा-प्रयाण
– आलोक कुमार (विहिप के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष)

        नई दिल्ली  . विहिप के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष आलोक कुमार ने 22फरवरी 2019 को स्वामी हंसादेवाचार्य के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए अपने शोक संदेश में कहा कि जगद्गुरू रामानंदाचार्य पूज्य स्वामी हंसदेवाचार्य जी महाराज का एक सड़क दुर्घटना में महा-प्रयाण न सिर्फ संत समाज वल्कि विश्व हिन्दू परिषद् सहित सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए एक अपूर्णीय क्षति है  । हिन्दू समाज व सम्पूर्ण देश को उनका  बहु आयामी अध्यात्मिक व सामाजिक जुझारू व्यक्तित्व सदैव याद रह कर प्रेरणा देता रहेगा  ।

      विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल व दिल्ली प्रदेश प्रवक्ता महेन्द्र रावत द्वारा विहिप के अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्षजारी – आलोक कुमारके शोक संदेश रूपि प्रेस विज्ञप्ति मे कहा कि  पूज्य स्वामी जी भारत के उन गिनती के संतों में से थे जो आध्यात्मिक व सामाजिक दोनों प्रकार के सरोकारों पर न सिर्फ अधिकार रखते थे अपितु परिवर्तन लाने के लिए परिणाम आने तक संघर्ष करते थे। वे अनेक वर्षों तक अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री व अध्यक्ष पद पर सुशोभित रहे और वर्तमान में उसके संरक्षक के तौर पर देश भर की संत शक्ति को दिशा देने का प्रयास कर रहे थे. वे पंचनद स्मारक ट्रष्ट के भी मुख्य संरक्षक थे।

       जब न्यायालय के अनिर्णय के कारण देश में असमंजस की स्थिति बनी, तब पूज्य हंसदेवाचार्य जी ने ही देश भर में धर्म-सभाएं करके श्रीराम जन्म भूमि के लिए व्यापक जन-जागरण किया।उन सभाओं के बाद आगे का मार्ग दिखाने हेतु प्रयागराज की धर्म संसद में उनका मार्ग दर्शन बहुत ही सम-सामयिक व महत्वपूर्ण था। धर्म संसद से ठीक पूर्व कुम्भ की पावन भूमि पर आयोजित सर्व समावेशी सांस्कृतिक कुम्भ की अध्यक्षता भी उन्हीं ने की थी और पूरे माघ मास में उनके सेवा कार्य अद्भुत् थे।

       भारत में जन्मी सभी आध्यात्मिक परम्पराओं को एक सूत्र में पिरोने हेतु उनका मार्ग दर्शन बड़ा ही प्रेरक था। इन सभी परम्पराओं को एक साथ लेकर चलने हेतु पूज्य श्री सदैव प्रयासरत रहे। दिल्ली के तालकटोरा में आयोजित धर्मादेश सभा इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम थ।जब जैन समाज को अल्प-संख्यक घोषित कराने के लिए एक वर्ग प्रयासरत था तब, कई जैनाचार्यों से मिलकर उन्होंने दिल्ली में एक सम्मलेन बुलाकर यह प्रस्ताव पारित कराया कि भारत में कोई अल्प-संख्यक नहीं है।

       जगद्गुरू रामानंदाचार्य जैसे अति महत्वपूर्ण पद पर विराजमान होने पर भी वे हर कार्यकर्ता व संत के लिए सहज रूप से उपलब्ध रहते थे।उनकी यह सहजता व सरलता कभी भुलाई नहीं जा सकती। ऐसे महात्मा का असमय महा-प्रयाण संत समाज ही नहीं वल्कि विश्व हिन्दू परिषद् सहित सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए अपूर्णीय क्षति है. हम सभी उनके मार्ग पर चलते हुए उनके अधूरे सपनों को साकार करेंगे।

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