उत्तराखंड

उतराखण्ड के मुख्यमंत्रियों को ईमानदार के बजाय क्यों पसंद होते हैं विवादस्थ अधिकारी व सिपाहेसलार?

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र के विशेष अधिकारी खुल्वे पर 70 लाख घोटाले का मामला दर्ज होने पर शर्मसार हुई सरकार

पुलिस प्रशासन द्वारा नजरांदाज किये जाने के बाद न्यायालय द्वारा दर्ज हुआ मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र के ओएसडी समेत चार अधिकारियों पर घोटाले का मामला

देहरादून(प्याउ)। जैसे ही मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समझ मामला आया कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी जेसी खुल्वे सहित 4 अधिकारियों द्वारा किये गये 70 लाख रूपये  के घोटाले के मामले में पुलिस प्रशासन कई महिनों से मामला ही दर्ज नहीं ं कर रही है तो न्यायालय ने तुरंत इस अति प्रभावशाली मामले को संज्ञान लेते हुए  मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के विशेषाधिकारी जे सी खुल्वे सहित 4 अधिकारियों पर मामला दर्ज करके सरकार से जांच करने का आदेश दिया। इसके साथ न्यायालय ने इस मामले की अगली सुनवाई 5 फरवरी को करने का ऐलान किया। इस प्रकरण से प्रदेश की जनता स्तब्ध है उसे समझ में नहीं आ रहा है कि प्रदेश के हर मुख्यमंत्री के आस पास सिपाहेसलार से लेकर विशेषाधिकारी प्रायः विवादस्थ ही रहते। क्यों मुख्यमंत्री ईमानदार व जनहित के लिए समर्पित अधिकारियों व सिपाहेसलारों को पंसद नहीं करते?

रमेश चंद चैहान ने इस मामले की पूरी जानकारी सूचना के अधिकार के तहत इसकी जानकारी हासिल की। प्रदेश सरकार को शर्मसार करने वाला यह प्रकरण उठाने का सराहनीय कार्य किया पूर्व सहायक कृषि अधिकारी रमेशचंद्र चैहान ने । श्री चैहान ने इस मामले पर कार्यवाही के लिए पुलिस प्रशासन के दर पर महिनों से फरियाद किया परन्तु बेहद प्रभावशाली मामला होने के कारण यह मामला दर्ज ही नहीं किया गया। इसके बाद श्री चैहान ने न्यायालय के दर पर गुहार लगाई।
श्री चैहान ने न्यायालय से फरियाद लगाई वह हैरान करने वाली है। सन् 2015 में तत्कालीन भूमि संरक्षण अधिकारी, चकराता जेसी खुल्बे ने तत्कालीन निदेशक कृषि गौरीशंकर, मुख्य कर अधिकारी विजय देवराड़ी और सहायक कृषि अधिकारी ओमवीर सिंह के साथ मिल कर आईडब्ल्यूएमपी (समेकित जलागम प्रबंधन) और राष्ट्रीय जलागम विकास योजना के तहत विभिन्न योजनाओं में  षडयंत्र के तहत तमाम फर्जी बिल और मजदूरी प्रमाणपत्र आदि बनाये। इस योजना में व्यय का लेखा-जोखा और धन निर्गत करने की जिम्मेदारी मुख्य कर अधिकारी विजय देवराड़ी और गौरीशंकर की थी। इस प्रकरण की जांच के बाद यह घोटाला सामने आया। शासन ने इस प्रकरण के जांच करके इस 70 लाख रूपये घोटाले को उजागर हुआ।  जांच से यह भी हैरानी हुई कि  जिस धनराशि को बिना अधिकारियों की अनुमति के जारी नहीं किया जा सकता था, उसे गांवों के प्रधानों और वार्ड मेंबरों ने भी जारी कर दिया था। मामले में रमेश चंद चैहान ने सूचना अधिकार अधिनियम के तहत जानकारी हासिल कर पटेलनगर पुलिस को शिकायत दी, मगर कार्रवाई नहीं हुई। इस पर उन्होंने एसएसपी देहरादून को शिकायत दी थी। पर इस स्तर पर भी कार्रवाई न होने पर उन्होंने सीजेएम कोर्ट में प्रार्थनापत्र दाखिल किया। श्री चैहान ने आरोप है कि जे सी खुल्बे ने पद पर रहते हुए उन्होंने वर्ष 2017 में विभिन्न योजनाओं में करीब 70 लाख रपए का घोटाला किया है। इस मामले में न्यायालय ने सरकार को जांच के निर्देश दिए हैं।
न्यायालय द्वारा मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी के भ्रष्टाचार की जांच कराने के निर्देश सुनते ही प्रदेश में भ्रष्टाचार के मामले में जीरों टालरेंस की हुंकार भरने वाली सत्तासीन भाजपा सरकार शर्मसार हुई। इसके बाबजूद मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत में इतना साहस नहीं जुटा पाये कि मामले की जांच तक ऐसे आरोपी अधिकारी को पदमुक्त करे। लोग हैरान है कि प्रदेश के अब तक जितने मुख्यमंत्री हुए ऐसे लोगों को ही अपने विशेष सिपाहे सलार क्यों बनाते है। तिवारी हो या खंडूडी, निशंक हो या हरीश रावत या वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सभी के आस पास ऐसे ही विवादस्थ अधिकारियों व सिपाहेसलारों की क्यों जमघट रहती है। क्या मुख्यमंत्रियों को ईमानदार, जनहित से समर्पित लोग पसंद नहीं होते? या मुख्यमंत्री, मंत्री व नेता ऐसे विवादस्थ लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने से अवैध कमाई करने वालों को दण्डित करने की जगह सम्मानित करना जैसा नहीं। क्या ऐसे लोगों को साथ लेकर क्या प्रदेश में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर सुशासन स्थापित करने का दावा झूठा नहीं है।

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