देश

जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक भारतीय भाषा आंदोलन ने की पदयात्रा व सोंपा ज्ञापन

 

देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति करने के लिए 69 माह से संसद की चौखट पर सत्याग्रह कर रहा है भारतीय भाषा आंदोलन

(क) हमारी मांग है कि
(1) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय(2) शिक्षा भारतीय भाषाओं में ही प्रदान की जाय (3)संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाएं अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ली जाय। शासन प्रशासन भी भारतीय भाषाओं में संचालित किया जाय। (5) देश का नाम केवल भारत (इंडिया नहीं) रखा जाय।
(ख)सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाबजूद, पुलिस प्रशासन नहीं ंदे रही है जंतर मंतर दिल्ली पर सतत् ( प्रातः11 बजे से सांय-4 बजे तक )धरना /प्रदर्शन की इजाजत । इसके विरोध में भारतीय भाषा आंदोलन का अपनी मांगों व लोकशाही की रक्षा हेतु प्रधानमंत्री को प्रतिदिन ज्ञापन
देश को अपनी भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय, शासन व सम्मान देने के बजाय विदेशी भाषा अंग्रेजी की गुलामी बनाये रखना देशद्रोह है

जय हिन्द! वंदे मातरम्।
मान्यवर, 29 दिसम्बर 2018 को भारतीय भाषा आंदोलन जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर आपको यह ज्ञापन सौंप रहा है। आपको विदित ही होगा कि भारतीय भाषा आंदोलन 21 अप्रैल 2013 से देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषायें आत्मसात कराने की मांग को लेकर संसद की चैखट पर 69 माह से सतत् शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शन कर रहा है। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि राष्ट्रहित की इस मांग को तुरंत स्वीकार करने की जगह सरकार सर्वोच्च न्यायालय के जंतर मंतर पर ऐतिहासिक फैसला देने के बावजूद जंतर मंतर पर इस मांग को लेकर सतत्(प्रातः 10 बजे से सांय 4 बजे तक) धरना नहीं देने दे रहे है। सबसे हैरानी की बात है कि जंतर मंतर पर धरनों का प्रबंधन देख रही दिल्ली पुलिस प्रशासन धरने की सूचना देने के बाबजूद न तो लिखित यहां पर धरना न देने की लिखित सूचना दे रही है। परन्तु निरंतर धरना न देने के लिए दवाब दे रही है। यह देश की लोकशाही का गला घोंटने वाला कृत्य उस भाजपा की मोदी सरकार में किया जा रहा हैे, जिन्होने खुद आपातकाल का प्रखर विरोध किया था और खुद को लोकशाही व राष्ट्रवाद का सबसे बडे पैरोकार बताते है। ऐसे में मोदी सरकार के नाक के नीचे लोकशाही का इस प्रकार से गला घोंटना शर्मनाक है। इसके विरोध में भारतीय भाषा आंदोलन अपनी मांग व लोकशाही की रक्षा के लिए यह विरोध पदयात्रा व ज्ञापन दे रहा है। यह क्रम तब तक चलेगा जब तक प्रशासन जंतर मंतर पर प्रतिदिन सतत् धरना(10 से 4 बजे)देने की इजाजत देने के साथ भारतीय भाषा आंदोलन की मुख्य मांग देश से अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी हटा दे। जंतर मंतर पर पुलिस प्रशासन ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के काफी दिन बाद 28 नवम्बर 2018 से धरने की इजाजत दी। परन्तु वह केवल एक दिन की। जो राष्ट्रहित के गंभीर मांगे है उनके लिए संघर्ष करने के लिए सतत् (प्रतिदिन 10 बजे से सांय 4 बजे ) धरने कीइजाजत नहीं दे रहा है। यह लोकशाही के अपमान के साथ सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का खुला उल्लंधन भी है।
मान्यवर देशवासी हैरान है कि अंग्रेजों के जाने के 72साल बाद भी देश के हुक्मरानों ने देश में लोकशाही व आजादी का सूर्योदय से रोशन करने के संवैधानिक दायित्व निभाते हुए भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी आदि कलंकों से मुक्त करने की जगह इन कलंकों का शिकंजा और मजबूत करने का अलोकतांत्रिक, अमानवीय व भारतद्रोही शर्मनाक कृत्य कर रही है।
शर्मनाक बात यह है कि जिस आजादी को पाने के लिए देश के लाखों सपूतों ने अपना बलिदान दिया, शताब्दियों तक संघर्ष दिया। वह आजादी 1947 को अंग्रेजो से मुक्त होने के बाद से 72 साल तक देश को नसीब नहीं हो पायी।देश के हुक्मरानों ने पूरे देश की आंखों में धूल झोंक कर व विश्वासघात करके देश में शिक्षा, रोजगार, न्याय, शासन व सम्मान आदि कों अंग्रेजी में ही संचालित करके भारतीय भाषाओं के साथ-साथ देश की आजादी, लोकशाही,विकास, समानता, सम्मान, मानवाधिकार व संस्कृति को जमींदोज करने का जघंन्य कृत्य किया है। कोई भी सरकार, संस्थान दल, संगठन, व व्यक्ति, भारत की भाषाओं को जमीदोज करके विदेशी भाषा अंग्रेजी की गुलामी को बनाये रखने वाली भारतघाती कुव्यवस्था को बनाये रखने का कृकृत्य करता है या समर्थन करता है वह भी विदेशी आक्रांताओं व जयचंदो की तरह भारतद्रोही ही है। अंग्रेजी सहित किसी भाषा से नफरत नहीं परन्तु बलात विदेशी भाषा अंग्रेजी का देश को 72 साल से गुलाम बनाये रखना कोई भी स्वाभिमानी देश व व्यक्ति कभी स्वीकार नहीं करता।भारतीय भाषा आंदोलन 68 माह से संसद की चैखट पर इसी कलंक को मिटाने के लिए सतत् संघर्षरत है परन्तु सरकारों के कानों में जूं तक नहीं रैंग रहा है।
भारतीय भाषा आंदोलन, देश को अंग्रेजी की गुलामी को मुक्ति दिलाने व देश की पूरी व्यवस्था को भारतीय भाषाओं से संचालित करने की मांग को लेकर संसद की चैखट(जंतर मंतर/रामलीला मैदान/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर 21 अप्रैल 2013 से यानी विगत 69 वें माह से शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहा है। परन्तु देश की आजादी, स्वाभिमान, संस्कृति, नाम व मानवाधिकार को बलात विदेशी भाषा अंग्रेजी को थोप कर जमीदोज करने वाले देश के हुक्मरान भारतीय भाषा आंदोलन की मांग को तत्काल स्वीकार करने के अपने प्रथम राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करने के भारतीय भाषा आंदोलन को कुचलने के लिए अलौकतांत्रिक व अमानवीय पुलिसिया दमन कर रही है।
सरकार ने 30 अक्टूबर 2017 को बिना नया राष्ट्रीय धरना स्थल उपलब्ध कराये, जंतर मंतर से राष्ट्रीय धरना स्थल को पुलिसिया बल के दम पर हटाकर भारतीय भाषा आंदोलन सहित देशभर के आंदोलनकारियों को जंतर मंतर से रामलीला मैदान के नाम से खदेड़ दिया। परन्तु रामलीला मैदान व शहीद पार्क को कहीं धरना स्थल घोषित नहीं किया। वहीं संसद मार्ग पर यदाकदा धरना/प्रदर्शन के लिए कभी कभार आयोजित करा रहे है। परन्तु भारतीय भाषा आंदोलन को प्रतिदिन चंद घंटों के लिए भी पुलिस ने पहले की तरह सतत् धरना करने की इजाजत नहीं दे रही है।इसी कारण भारतीय भाषा आंदोलन भारत सरकार के इस लोकशाही का गला घोटने वाले दमनकारी अलोकतांत्रिक कृत्य के खिलाफ बिना बैनर के संसद की चैखट (जंतर मंतर/रामलीला मैदान/शहीदी पार्क/संसद मार्ग) पर बिना बैनर के ही अपना आंदोलन जारी रखे हुए सरकार के इस कृत्य का पुरजोर विरोध निरंतर कर रहा है। 29दिसम्बर को भारतीय भाषा आंदोलन केे अध्यक्ष  देवसिंह रावत -सुनील कुमारसिंह (कोषाध्यक्ष) रामजी शुक्ला(धरना प्रभारी) , मन्नु कुमार, हरि राम तिवारी, प्रेम सिंह रावत,भागवत प्रसाद यादव, विनोद वालिया,जोगिन्दर रौहिल्ला,लक्ष्मण कडाकोटी, मोहन जोशी,मनमोहन शाह,दीप चंद्रा शर्मा,सरदार बलराज सिंह, मोहन रावत, जगमोहन रावत, कमल किशोर नौटियाल  आदि सम्मिलित हुए ।

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