उत्तराखंड

थाईलैंड नहीं, गैरसैंण है मुख्यमंत्री जी, उत्तराखण्ड के चहुंमुखी विकास का अलादीन का जादुई चिराग

देवभूमि उत्तराखण्ड को थाईलैंड से नहीं अपितु हिमाचल से प्रेरणा लेने की जरूरत है मुख्यमंत्री जी
 

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत ने थाईलैंड  के उद्यमियों को दिया उत्तराखण्ड में निवेश करने का आमंत्रण

 

देवसिंह रावत

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत  इस सप्ताह अपने थाईलैंड दौरे से गदगद है। वे इतने गदगद है मानों उनके हाथ कोई अलाद्दीन का जादुई चिराग हाथ लग गया हो। वे उत्तराखण्डी पर्यटन को भी थाईलैण्ड की तरह विश्वव्यापी पंख देना चाहते है। परन्तु मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सहित उत्तराखण्ड के तमाम नेताओं को समझ लेना चाहिए कि थाईलैण्ड नहीं, अपितु गैरसैंण राजधानी है उत्तराखण्ड के चहुंमुखी विकास का अलादीन का जादुई चिराग।
पूरा प्रदेश हैरान है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत को न जाने किसने सलाह दी थाईलैण्ड जाने की। वे भूल गये कि उत्तराखण्ड देवभूमि है। गोवा के मुख्यमंत्री जाते तो किसी के कान खडे नहीं होते। प्रदेश के नौछ्मी नेता या मंत्री जाते तो लोग मान जाते। परन्तु त्रिवेन्द्र रावत के थाईलैण्ड दौरे पर मुझे अजीब सा लगा। भले उत्तराखण्ड में कई स्वनाम धन्य नेता देखे जो उत्तराखण्ड को थाईलैण्ड ही बनाने के लिए उतारू है। परन्तु त्रिवेन्द्र सिंह रावत तो संघ निष्ट संस्कारित साफ छवि के नेता है। उनका थाईलैण्ड जाना मुझे ही नहीं प्रदेश के कई लोगों को चैंकाने वाली खबर थी।
परन्तु मुझे लगता है कि त्रिवेन्द्र जी को थाईलैण्ड का दौरा करने की सलाह जरूर यह करतूत किसी उनके करीबी कानखजूरे या मुंह लगे नौकरशाह की होगी।
परन्तु लगता है इसी अदृश्य रहस्यमय दवाब में ही भारतीय संस्कृति की सीख देने वाला संघ का स्वयं सेवक रहे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र की सरकार, गंगा यमुना के पावन प्रदेश उत्तराखण्ड में प्रदेश के चहुमुंखी विकास, राज्य गठन जनांकांक्षाओं व शहीदों के सपनों का साकार करने के साथ देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण को घोषित करने के बजाय प्रदेश के नौनिहालों को पथभ्रष्ट करने वाले शराब को गांव गांव पंहुचाने का काम कर रही है।  परन्तु मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र अपने थाईलैण्ड दौरे से गदगद है। उनकी सरकार भी इस दौरे के बारे में ऐसा प्रचार कर रही है कि मानो मुख्यमंत्री के हाथो पर आलादीन का जादूई चिराग हाथ लग गया है।

गौरतलब है कि थाईलैण्ड की यात्रा के दौरान उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने उद्यमियों से उत्तराखण्ड में निवेश करने के लिए आमंत्रित किया। थाईलेण्ड की  राजधानी बैंकाॅक में उत्तराखण्ड में खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में निवेश की सम्भावनाओं से सम्बंधित संगोष्ठी में थाइलैण्ड एवं उत्तराखण्ड के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के प्रतिनिधियों के मध्य खाद्य प्रसंस्करण की सम्भावनाओं पर गहन चर्चा हुई।

इस संगोष्ठी को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि भारत दुनिया की तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था में से एक है और विश्व के शीर्ष तीन निवेश स्थलों में शामिल है। भारत में ब्राण्डेड भोजन की बढ़ती मांग वाले 1.32 बिलियन उपभोक्ता हैं। यहाँ विश्व स्तरीय बन्दरगाहों की उपलब्धता के साथ ही खाद्यध्रसद की आपूर्ति श्रंृखला की बुनियादी सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।  भारत दूसरा सबसे बडा कृषि योग्य क्षेत्र है, जिसमें 127 विविध कृषि जलवायु वाले क्षेत्र उपलब्ध हैं, जो हमें कई फसलों केला, आम, अमरूद, पपीता और भिण्डी में वैश्विक नेतृत्व प्रदान करता हैं। भारत का चावल, गेहूं, मछली, फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में विश्व स्तर पर दूसरा स्थान है। जबकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है। हमारे बागवानी क्षेत्र ने पिछले 10 वर्षो में 5.50 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर्ज की है। भारत एक सबसे बड़े खाद्य उत्पादक देश होने के बावजूद भी यहां कुल उत्पादन का मात्र 10 प्रतिशत ही मूल्य संवर्धनध्प्रसंस्करण में उपयोग किया जाता है, जबकि अन्य दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों थाईलैण्ड, मलेशिया, वियतनाम  जैसे देशों में यह 70 से 80 प्रतिशत है। भारत सरकार ने इस प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन के उपयोग के प्रतिशत को वर्ष 2019 तक 20 प्रतिशत तक बढाने के लिये कई कदम उठाये हैं एवं इस हेतु योजनाएॅ तैयार की गयी हैं।

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने थाईलैण्ड के उधमियों का आवाहन करते हुए कहा कि उत्तराखण्ड प्रमुख निवेश गन्तव्य के रूप में उभर रहा है, यहाँ जीवन्त उत्पादक औद्योगिक पारिस्थितिकी तन्त्र उपलब्ध है तथा निवेश अनुकूल नीतियाॅ, उत्कृष्ट जलवायु और सामाजिक बुनियादी सुविधाओं के कारण उत्तराखण्ड निवेश के लिये प्रमुख स्थलों में से एक है। उत्तराखण्ड राज्य की सुगम व्यापारिक स्थितियों के कारण इसकी एक अपनी पहचान है। उद्योगों की स्थापना हेतु ’’एकल खिड़की व्यवस्था’’ के माध्यम से समयबद्व और कठिनाई मुक्त सेवायें उपलब्ध हैं। उत्तराखण्ड में औद्योगिक विद्युत दरें भारत के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम हैं। विकसित स्थलों पर भूमि की पर्याप्त उपलब्धता, नीतियों के साथ-साथ  राज्य का ऐतिहासिक औद्योगिक सद्भाव एवं उत्कृष्ट कानून व्यवस्था ने इसे औद्योगिकी के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान की है।

उत्तराखण्ड में खाद्य प्रसंस्करण को विशेष क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है। उत्तराखण्ड हिमालयी क्षेत्र में स्थित है जिसे वरदान स्वरूप विविध कृषि जलवायु प्राप्त हैं, जहाॅ सामान्य रूप से जैविक खेती की जाती है। राज्य में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना को बेहतर वातावरण प्रदान किये जाने हेतु राज्य सरकार द्वारा विभिन्न नीतिया, योजनाओं एव सुविधायें उपलब्ध कराई जा रही है। प्रदेश में अपेक्षित एवं विकसित अवस्थापना सुविधाओं युक्त 02 मेगा फूडपार्क, 04 औद्योगिक संकुल, पर्याप्त श्रमशक्ति के साथ-साथ स्थिर राजनैतिक वातावरण विद्यमान है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड की भौगोलिक परिस्थियां एवं जलवायु, विभिन्न प्रजातियों के औषधियों एवं संगन्द पादपों के कृषिकरण के अनुकूल है, जिस के दृष्टिगत राज्य में संगठित तरीके से इसके कृषिकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है तथा वैल्यू चैन के माध्यम से सहयोग प्रदान किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य में बहुत सारी सम्भावनाएं विद्यमान है जिसे थाईलैण्ड की कम्पनियों एवं उत्तराखण्ड के उत्पादकों के पारस्परिक सहयोग से आपस में जुड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की परिस्थितिकी को यथावत रखते हुए राज्य में विकसित औद्योगिक क्षेत्रों में अन्य छोटे उद्योगों के अलावा ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, नेस्ले इण्डिया लिमिटेड, पेप्सिकों और के.एल.ए. इण्डिया पब्लिक लिमिटेड सहित प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में 385 मिलियन डाॅलर से भी अधिक का निवेश किया गया है।

मेरा साफ मानना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र, स्विट्जरलैंड जाते, डेनमार्क जाते या अमेरिका जाते इससे जरूर प्रदेश व देश इससे लाभान्वित होता। अमेरिका में सिलिकॉन घाटी, स्विट्जरलैण्ड में पर्यटन व डेनमार्क में दुग्ध उद्योग से प्रदेश लाभान्वित होता इजराइल से भी लाभ उठाया जाता। परन्तु थाईलैण्ड जाने से कहीं बेहतर होता उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ही नहीं पूरा मंत्रीमण्डल व सभी दलों के विधायकों को अपने पडोसी प्रांत हिमाचल का गहन दौरा कर यह सिखना चाहिए कि राज्य गठन से पहले कैसे विकास की दौड़ में उत्तराखण्ड से पिछडे हिमाचल ने चंद सालों में हिमाचल को न केवल उत्तराखण्ड से कहीं बेहतर बना दिया अपितु आज देश का अमन चैन रूपि विकास में देश का सर्वश्रेष्ठ ऐसा राज्य है। जहां की जनता पलायन से दूर हैं। जहां विकास की कूचालें भरने में प्रदेश शासन प्रदेश की जनता का न केवल मार्गदर्शन कर रहे है अपितु उनको सही दिशा देकर प्रदेश को मालामाल ही कर दिया। हिमाचल की तरह उत्तराखण्ड में भी विकास की बहार लानी चाहिए।

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