उत्तराखंड

गैरसैंण राजधानी पर जनभावनाओं को रौंदने बाद निकाय चुनाव पर बेनकाब हुई त्रिवेन्द्र सरकार

सरकार की नियत समय पर निकाय चुनाव न कराने की मंशा भांप कर चुनाव आयोग ने खटखटाया न्यायालय का द्वार

सरकार की मंशा समय पर निकाय चुनाव कराने की नहीं – सुबर्धन
सरकार की मंशा चुनाव कराने की है-त्रिवेन्द्र रावत
देहरादून (प्याउ)। राज्य गठन की जनांकांक्षाओं, शहीदों की शहादत, प्रदेश के चहुंमुखी विकास व देश की सुरक्षा के प्रतीक राजधानी गैरसैंण बनाने के लिए  प्रदेश की आंदोलनरत जनता की पुरजोर मांग को रौंदने वाली प्रदेश की भाजपा सरकार को उस समय देश भर में शर्मसार होना पड़ा जब प्रदेश चुनाव आयोग ने सरकार की समय पर निकाय चुनाव न कराने की मंशा को भांपते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में निकाय चुनाव को लेकर सरकार की उदासीनता को गंभीरता से लिया है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने सरकारी पक्ष को फटकार लगाते हुए इस मामले में प्रतिशपथ पत्र पेश करने को कहा है। इसके लिए 11 अप्रैल तक का समय निर्धारित किया है। राज्य निर्वाचन आयोग की याचिका पर सुनवाई के बाद अदालत ने 4 अप्रैल को यह निर्देश दिए।
याचिका में कहा गया है कि सरकार ने अब तक चुनाव को लेकर
उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग और सरकार के बीच ठन गई है। आयोग ने सरकार पर सहयोग न करने का आरोप लगाते हुए कहा कि सरकार की मंशा समय पर चुनाव कराने की नहीं है, जिसके चलते आयोग को हाईकोर्ट में दस्तक देनी पड़ी है। आयोग के बार-बार यह कहने पर कि वर्तमान में निकायों के सीमा विस्तार न कराया जाए, इससे चुनाव प्रभावित होंगे, लेकिन सरकार ने एक न सुनी। नतीजतन आज दिन तक परिसीमन और आरक्षण काम समय से पूरा नहीं हो पाया और इस वजह से आयोग अब तक अधिसूचना जारी नहीं कर पाया। ऐसी स्थिति में तीन मई से पूर्व चुनाव प्रक्रिया संपन्न करा पाना मुश्किल है। अब उच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत ही चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ाई जाएगी। इन हालातों में अब निकाय चुनाव आगे खिसकने के आसार बढ़ गए हैं।
वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री व प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष अजय भट्ट ने चुनाव आयोग द्वारा सरकार की मंशा पर न्यायालय में लगाये गये प्रश्न चिन्ह पर दो टूक शब्दों में कहा कि उनकी सरकार संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करती है और प्रदेश में समय पर निकाय चुनाव कराना चाहती है। परन्तु कई निकायों के मामले न्यायालय में चल रहे हैं, इसलिए इनके फेसला आने के बाद राज्य सरकार चुनाव कराने को तैयार है। परन्तु राज्य निर्वाचन आयुक्त का कहना है चुनाव आयोग जिन निकायों में चुनाव कराने में ंकिसी प्रकार का व्यवधान है उनको छोड़ कर अन्य स्थानों पर चुनाव कराने जा रहा है, परन्तु सरकार प्रदेश चुनाव आयोग की बात ही सुनने के लिए तैयार नहीं है। इसी कारण मजबूरी में राज्य चुनाव आयोग को न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पडा। राज्य निर्वाचन आयुक्त सुबर्धन ने इस मामले में आयोग की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार नियत समय पर निकाय चुनाव कराने को न तो तैयार है व नहीं उनको इस मामले में मिलने तक का समय दे रही है। चुनाव आयोग ने संविधान के अनुसार नियत समय पर चुनाव कराने के अपने दायित्व का निर्वहन करने के लिए मजबूर हो कर उच्च न्यायालय में फरियाद की।  आयोग का आरोप है कि सरकार ने परिसीमन और आरक्षण पर समय से पूरा नहीं किया काम। इस कारण तीन मई तक अब निकाय चुनाव संभव नहीं है।
राज्य निर्वाचन आयुक्त सुबर्धन ने बताया कि निकाय चुनाव के संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री से कई बार मिलने का समय मांगा, लेकिन उन्हें आज तक समय नहीं दिया गया। उन्होंने बताया कि जुलाई 2017 में जब पहली बार इस संबंध में मुख्यमंत्री से समय मांगा गया, तो बुलाने का आश्वासन दिया लेकिन बुलाया नहीं। तत्कालीन शहरी विकास सचिव राधिका झा ने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए पत्र लिखने को कहा, लेकिन पत्र लिखने के बावजूद मुख्यमंत्री  से मुलाकात नहीं हुई। इस मामले में शहरी विकास मंत्री व उनके अधीनस्थ अधिकारियो से मुलाकात हुई है, परन्तु समय के अनुसार कोई भी चुनाव कार्यक्रम मेरे पास नहीं आया।ईवीएम से नहीं बैलेट से होंगे चुनाव राज्य निर्वाचन आयुक्त सुबर्धन ने बताया कि सरकार से चुनाव आयोग ने ईवीएम के लिए 17 करोड़ रुपये मांगे थे, लेकिन सरकार की ओर से एक भी पैसा इसके लिए नहीं दिया गया। आयोग के पास इसके लिए पर्याप्त संसाधन मौजूद नहीं हैं, ऐसी स्थिति में सिर्फ बैलेट से ही चुनाव कराए जा सकते हैं।
दूसरी तरफ प्रदेश चुनाव आयोग द्वारा सरकार पर उठाये प्रश्न पर जवाब देते हुए शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने नियत समय पर चुनाव हो जाते पर अब उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद नियत समय पर चुनाव होने में शंका है। श्री कौशिक ने कहा कि सरकार उच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखेगी। यदि परिसीमन पर उच्च न्यायालय के आदेश न आये होते तो चुनाव समय पर हो जाते। श्री कौशिक ने स्पष्ट किया कि निकाय चुनाव के संबंध में कई बार राज्य निर्वाचन आयुक्त से उनकी तथा अधिकारियों की वार्ता हुई। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की भी चुनाव आयुक्त से वार्ता हुई है। प्रदेश सरकार की मंशा जल्द और पारदर्शी चुनाव कराने की है। मंत्री ने कहा कि न्यायालय के आदेशों के चलते 24 निकायों के सीमा विस्तार पर सुनवाई का कार्य चल रहा है। इसके पूरा होने के बाद आरक्षण पर कवायद की जाएगी। प्रदेश सरकार एक्ट के अनुसार काम कर रही है। सरकार परिसीमन पर जल्द से जल्द कार्रवाई करना चाहती है। यह कार्य अंतिम चरण में हैं। इस प्रकिया में करीब 25 दिन और लगेंगे, क्योंकि परिसीमन के बाद आरक्षण को लेकर भी कवायद की जानी है। आरक्षण के लिए सात दिन और इसकी आपत्तियों के निस्तारण के लिए तीन दिन का समय चाहिए।
निकाय चुनाव अब कब होंगे यह 10 अप्रैल को न्यायालय में हो रही सुनवायी के बाद ही साफ हो पायेगा। परन्तु इतना साफ है कि इस मामले में प्रदेश सरकार का अलौकतांत्रिक चेहरा पूरी तरह बेनकाब हो गया। प्रदेश की राजधानी गैरसैण्ंा को बजट सत्र में घोषित न करके पहले ही सरकार जनता की नजरों में कटघरे में है अब प्रदेश चुनाव आयोग ने उच्च न्यायालय में उठाये निकाय चुनाव के मामले में सवाल से प्रदेश सरकार का अलौकतांत्रिक चेहरा पूरी तरह बेनकाब हो गया।

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