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आजादी के 71 साल बाद भी भगतसिंह, चंद्रशेखर जैसे देश की आजादी के क्रांतिकारी बलिदानियों को शहीद का दर्जा क्यों नहीं दे रही है सरकार ?

बलिदानियों को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए शहीदी पार्क दिल्ली में 23 मार्च से चल रहे अनशन पर सरकार व समाचार जगत का शर्मनाक मौन

नई दिल्ली (प्याउ)। देश को आजाद कराने वाले भारत माता के महान सपुत्रों को राष्ट्रीय शहीद का दर्जा दिलाने के लिए 23 मार्च 2018 से शहीद भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव   की स्मृति स्थल’ शहीदी पार्क’ दिल्ली में चण्डीगढ से आये वरिष्ठ नागरिक  व पत्रकार तरसेम लाल शर्मा व उनके साथियों द्वारा अनिश्चित कालीन अनशन छटवें दिन भी जारी रहा। उनके साथ अनशन करने वाले चण्डीगढ के परस राम कल्पाण पंजाब के लुघियाना स्थित देव सराभा के सराभा गांव से आये बलदेव सिंह प्रमुख है।

27 मार्च कीे तपती दोहपरी में जब भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत अनशनकारियों को समर्थन करने शहीदी पार्क पंहुचे तो इस ऐतिहासिक अनशन के प्रति केन्द्र, दिल्ली व पंजाब  सरकार, राजनैतिक दलों, समाचार जगत व सामाजिक संगठनों के घोर उपेक्षापूर्ण रवैये से अनशनकारी क्षुब्ध दिखे। भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने प्रधानमंत्री मोदी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, खबरिया चैनलों/समाचार जगत व सामाजिक संगठनों के देश के शहीदों के सम्मान के प्रति शर्मनाक उपेक्षा की कडी भत्र्सना करते हुए उनको देश के प्रति उनके दायित्व का स्मरण दिलाया।
गौरतलब है कि भारतीय भाषा आंदोलन ने 23 मार्च को ही शहीदी स्थल अमर शहीद भगतसिंह, राजगुरू व सुखदेव की स्मृति को नमन् करने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में जा कर प्रधानमंत्री को ज्ञापन देकर देश की आजादी के लिए अपना बलिदान देने वाले माॅ भारती के महान सपूतों को शहीद का दर्जा देने की पुरजोर मांग की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री को दिये ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने देश की आजादी को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने की भी मांग की। श्री रावत के अनुसार देश के अमर सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपनी शहादत दी। परन्तु अंग्रेजों के भारत से जाने के 71 साल बाद भी देश के हुक्मरानों ने विकास व ज्ञान विज्ञान के नाम पर अंग्रेजी थोपकर देश को अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम बनाया हुआ है। जबकि हकीकत यह है दुनिया में रूस, जर्मन, चीन, फ्रास, इटली, टर्की, इजराइल, कोरिया व जापान सहित सभी विकसित व स्वाभिमानी देश अपने अपने देश की भाषा में विकास का परचम पूरे विश्व में लहरा रहे है। परन्तु देश के हुक्मरानों ने शर्मनाक ढंग से देश को अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी का गुलाम बनाया हुआ है। भारतीय भाषाओं को शिक्षा, रोजगार, न्याय, सम्मान व शासन प्रशासन से दूर रखने का षडयंत्र किया गया है।
भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत ने कहा कि संसार के किसी भी स्वाभिमानी व विकसित देश अपने शहीदों का सम्मान करते है और अपनी ही भाषा में शिक्षा, रोजगार, न्याय, सम्मान व शासन प्रदान करते है। परन्तु भारत में शहीदों को आतंकी कहना और विदेशी भाषा का गुलाम बनाये रखने का शर्मनाक देशद्रोह सरकारें ही कर रही है।
23 मार्च से अनशनकारियों के समर्थन में क्रमिक अनशन करने वाले चण्डीगढ उच्च न्यायालय के अधिवक्ता ब्रजेश शर्मा, लुधियाना के निवासी कृष्ण कुमार, चण्डीगढ के अवतार सिंह कैडे, लुधियाना के एएफसीओ मनजीत सिंह व कानपुर के  रवि कुमार गुप्ता भी शहीदी पार्क में डटे हुए है।
वहीं 23 मार्च को शहीदी पार्क में देश के विख्यात आंदोलनकारी अण्णा हजारे, देश में शीर्ष नाट्य मंच के प्रमुख अरविंद गौड सहित अनैक आंदोलनकारियों ने शहीदों के सम्मान में अनशन करने वाले आंदोलनकारियों को अपना समर्थन दिया।
इस अवसर पर अनशनकारियों ने देशवासियों से इस आंदोलन को जनांदोलन बनाने में सहयोग देने का आवाहन किया। मोहाली के नया गांव के निवासी अनशनकारी तरसेम लाल शर्मा ने कहा कि देश को आजाद करवाने वाले भारत माता के महान सपूतों भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव,ऊधम सिंह, करतार सिंह सराभा, चंद्रशेखर आजाद सहित सभी बलिदानी क्रांतिकारियों को आज 71 साल बाद भी देश की सरकार इनको शहीद मानने के लिए तैयार नहीं है। सबसे शर्मनाक बात यह है कि इन क्रांतिकारियों को अंग्रेजों ने शासन के रिकार्ड में आतंकबादी लिखा है। वहीं आज भी सरकार ढो रही है। जबकि अंग्रेजों के जाने के बाद सरकारों ने बलिदानियों को शहीद लिखने की जरूरत तक नहीं की।

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