उत्तराखंड देश

त्रिवेन्द्र सरकार को अस्थिर करने वाले क्षत्रपों पर नकेल कसेगा भाजपा आला कमान

काश कुर्सी के लिए नहीं जनता की तरह गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए चाय पार्टी करते उत्तराखण्डी नेता

 
विरोधियों के पकोड़ों के प्रहार घिरी मोदी सरकार तो भाजपाईयों की ही चाय पार्टी में घिरी त्रिवेन्द्र सरकार

 

प्यारा उत्तराखण्ड डाट काम
एक तरफ मोदी सरकार विरोधी दलों के पकोड़ों के प्रहार से परेशान है तो वहीं मोदी व शाह की पहली पसंद उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत, प्रदेश भाजपा के महत्वांकांक्षी क्षत्रपों की चाय पार्टी से असहज महसूस कर रहे है। मोदी सरकार जहां विरोधी दलों के पकोड़ों के प्रहार को निश्तेज करने रही है। परन्तु उत्तराखण्ड में सत्तासीन भाजपा की त्रिवेन्द्र सरकार के विपक्ष के नहीं भाजपा के क्षत्रपों के घात प्रतिघातों से परेशान है। 

उत्तराखण्ड भाजपा के दो विधायकों ने जहां 13 फरवरी को भाजपा आला कमान से प्रदेश सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा कर त्रिवेन्द्र रावत पर निशाना साधा। उत्तराखण्डी भाजपा नेताओं की अपने ही सरकार पर निशाना साधने की गतिविधियों पर भाजपा आला कमान बेहद नाखुश है। भाजपा आलाकामान ने जानकारी हासिल कर ली कि इसके पीछे और कोई नहीं प्रदेश भाजपा के कई पूर्व मुख्यमंत्री है।

गौरतलब है पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के आवास पर इसी सप्ताह पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी व विजय बहुगुणा के अलावा प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री शिव प्रकाश, कबीना मंत्री यशपाल आर्य सहित दो दर्जन से अधिक विधायक इस चाय पार्टी में सम्मलित थे। पर सवाल यह उठ रहा है कि इतने बडे स्तर पर पार्टी के आपस में 36 का आकंडा रखने वाले नेता आपस में मिले तो केवल इसे चाय पार्टी तो नहीं माना जा सकता। इसके पीछे क्या है। इसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित अन्य नेताओं को क्यों नहीं बुलाया गया? अगर यह राजनीति मंसूबों वाली चाय पार्टी नहीं रहती तो इसमें अन्य दलों व क्षेत्र के गणमान्य लोग भी सम्मलित रहते। भले ही चाय पार्टी करना कोई गुनाह नहीं परन्तु भाजपा आला कामान ही नहीं प्रदेश के आम लोग भी इस प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत का तख्ता पलटने की मंशा ही मान रहे है। कुछ लोग इसके पीछे प्रदेश से एक राज्यसभा सीट पर अपनी दावेदारी मजबूत करने व प्रदेश में मुख्यमंत्री व केन्द्र में मंत्री की कुर्सी पर नजर गढाने की सोची समझी चाल समझी जा रही है।
परन्तु आला कामान इस प्रकार के किसी भी गतिविधियों से नाखुश है। आलाकामान भाजपा में तख्ता पलटने वाली बीमारी से निजात पाना चाहता है। इससे भाजपा की छवि खराब हो रही है। इसकी झलक प्रदेश सरकार के प्रवक्ता मदन कोशिक के बयान से साफ झलकता है। मदन कोशिक ने दो टूक शब्दों में कहा कि बेबुनियाद चर्चाओं से सरकार की छवि विगाडने के प्रयास सफल नहीं होंगे। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने भी भाजपा आलाकमान से मिलने वाले दो विधायकों के कदम पर उनसे जवाब मांगा जायेगा।
वहीं जनता भले ही त्रिवेन्द्र सरकार से पूरी तरह खुश नहीं है पर वे प्रदेश में अपने अपने कार्यकाल में पूरी तरह से बेनकाब हो चूके भाजपा के इन क्षत्रपों की प्रदेश सरकार को अस्थिर इस प्रकार की गतिविधयों से भी नाखुश है।  जनता प्रश्न कर रही है कि अगर इन नेताओं को प्रदेश की जरा सी भी चिंता रहती तो ये भी जनता की तरह आज प्रदेश व केन्द्र सरकार को गैरसैंण राजधानी बनाने के लिए दवाब बनाने के लिए चाय पार्टी का आयोजन करते। परन्तु कोश्यारी हो या निशंक या खंडूडी इन तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों ने तिवारी की तरह ही अपने कार्यकाल में गैरसैंण को राजधानी बनाने की दिशा में एक कदम भी ईमानदारी से नहीं उठाया। हाॅ विजय बहुगुणा, हरीश रावत के बाद अब त्रिवेन्द्र रावत ने गैरसैंण का नाम लेना व वहां पर विधानसभा सत्र कराने की आधा अधूरी पहल तो की।
प्रदेश की जनता हैरान है कि अपनी कुर्सी के लिए ये नेता चाहे कांग्रेस के हो या भाजपा के ये सरकारों को उलट पुलट कर देते है। परन्तु प्रदेश के हित के लिए कभी एक भी कदम नहीं उठाते। यहां तक ये नेता केन्द्रीय नेतृत्व को भी प्रदेश की जनभावनओं से अवगत नहीं कराते।
त्रिवेन्द्र रावत सरकार से प्रदेश के भाजपाई नेता अगर गैरसैंण राजधानी न बनाने, मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को दण्डित न करने, प्रदेश में व्याप्त भ्रष्टाचार को न हटाने व प्रदेश में शराब, जल, शासन, व भू माफियाओं पर नकेल न कसने के कारण नाखुश हो कर गोलबंदी करते तो जनता इनका साथ देती। परन्तु ये नेता केवल अपनी कुर्सी व अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए गोलबंदी कर प्रदेश को अस्थिरता के गर्त में धकेलने की कुचेष्ठा कर रहे है। ऐसी ही प्रवृति के कारण 17 साल में ही उत्तराखण्ड में 8 मुख्यमंत्री झेलने पडे है। जबकि हिमाचल में छह दशक में केवल 6 मुख्यमंत्री ही सत्तासीन हुए। परन्तु भाजपाई क्षत्रप भूल गये कि अब भाजपा पहले वाली नहीं है। अब भाजपा मोदी व शाह के नेतृत्व वाली है। यहां उनकी पसंद की सरकारों को अपदस्थ करने वालों को शिकंजे में जकडना ये बेखुबी से जानते है। जनता इस बात से खुश तो है त्रिवेन्द्र रावत से कि इन्होने प्रदेश की अब तक की सभी सरकारों को अपदस्थ करने वाले नेताओं पर नकेल तो कसी। परन्तु साफ है कि अगर त्रिवेन्द्र रावत, प्रदेश की राजधानी गैरसैंण को घोषित करने के साथ प्रदेश में भ्रष्टाचार में डूबे नेता व नौकरशाहों पर अंकुश लगाये तो जनता उनको परमार की तरह याद करेगी। गौरतलब है कि त्रिवेन्द्र रावत के खनन के खिलाफ कडी कार्यवाही से भी खनन में लगे लोग तिलमिलाये हुए है।

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