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वार्ता करने से नहीं देशद्रोहियों व आतंकियों का सफाया करने से होगी कश्मीर समस्या का समाधान

कश्मीर कोई समस्या नहीं अपितु प्रदेश व देश की सरकारों की देशहितों की रक्षा न करने का कायराना कृत्यों का परिणाम है।

 
कश्मीर पर वार्ताकारों की नियुक्ति से और  मजबूत होते रहे आतंकी व अलगाववादी!

 

देवसिंह रावत
नई दिल्ली (प्याउ)। कश्मीर समस्या के समाधान करने के लिए  केन्द्र सरकार फिर वहीं दशकों पहले असफल हो चूका‘ बातचीत का झूनझूना न जाने क्यों बजाने लगी है? अमेरिका सहित विदेशी ताकतों के दबाव में या  खुद दिशाभ्रमित होने के कारण पूर्ववर्ती सरकारों की तरह मोदी सरकार ने भी कश्मीर समस्या के समाधान के एक वार्ताकार की नियुक्ति का ऐलान 23 अक्टूबर को कर दिया है। मोदी सरकार ने खुुफिया विभाग के पूर्व प्रमुख दिनेश्वर शर्मा को वार्ताकार नियुक्त किया गया है।  नये वार्ताकार को कैबिनेट सचिव का दर्जा दिया गया है।  दिनेश्वर शर्मा भारतीय पुलिस सेवा के 1979 बैच के अवकाश प्राप्त अधिकारी है। नये वार्ताकार  श्री शर्मा दिसंबर 2014 से 2016 के बीच गुप्तचर ब्यूरो के निदेशक भी रहे। उनकी नियुक्ति का ऐलान करते हुए केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि दिनेश्वर शर्मा को पूरी आजादी होगी। उन पर  कोई भी प्रतिबंध नहीं होगा और  कश्मीर में हर किसी से बात की जाएगी। इसके लिए समय सीमा का अभी कोई निर्धारण नहीं किया गया हैं।
देश की सरकारों को देश की सुरक्षा करने के अपने प्रथम दायित्व को भान कब होगा।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दो टूक शब्दों से कहा था कि न गाली से, न गोली से, कश्मीर समस्या सुलझेगी गले लगाने से। सरकार का वार्ताकार नियुक्ति करने का ऐलान भी शायद इसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम कहा जा सकता है।
हालांकि गृहमंत्री ने नये वार्ताकार की देश के खिलाफ अलगाववाद का झण्डा व पाक की जुबान बोलने वाले हुर्रियत कांफ्रेंस के साथ बातचीत करने के सवाल पर स्पष्ट कहा कि नये वार्ताकार ही यह निर्धारित करेंगे कि वह किससे बात करना चाहते हैं.। भारत के गृहमंत्री के इस जवाब से मोदी सरकार की मंशा को पूरी तरह उजागर करती है। सरकार कश्मीर समस्या के समाधान के लिए पूर्ववती कांग्रेस की मनमोहनी सरकार की तरह ही भारत विरोधी व पाक समर्थक हुर्रियत से भी वार्ता करने का मन बना चूकी है।
जिस प्रकार से कश्मीर में अलगाववादियों ने कश्मीर के आम अवाम को भारत के खिलाफ खडा करने का निरंतर षडयंत्र कर पाक परस्त बने है। उसको देख करके भी अलगाववादियों व आतंकियों से वार्ता करने का निर्णय देश को तबाही के गर्त में धकेलने वाली हिमालयी भूल साबित हो रही है।
देश की सत्ता में जो भी सरकारें रही है वे भूल गये कि कश्मीर अपने आप में कोई समस्या नहीं है। अपितु कश्मीर में जो भी आतंक, हिंसा व अलगाववाद दिख रहा है उसका मूल कारण रहा कि भारत की सरकारों ने आजादी के बाद अभी तक कश्मीर में देश  हित की मजबूती से रक्षा न करने के कायरना कृत्यों के कारण है। अगर कश्मीर में अंध तुष्टिकरण नहीं किया जाता और पाक परस्त तत्वों को सर उठाने से पहले ही चीन की तरह जमीदोज कर दिया जाता तो आज कश्मीर, दिल्ली या कोलकोता में भारत की तबाही करने या टूकडे करने के गीत गाते। किसी की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह भारतीय सुरक्षा बलों पर पथराव करे या भारत का झण्डा लहराने का दुसाहस जुटा पाता। आतंकियों में इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह कश्मीर से लाखों कश्मीरियों को कश्मीर घाटी से खदेड़ने का काम किया। भारत सरकार या जम्मू कश्मीर प्रांत के हुक्मरानों में जरा सी भी नैतिकता होती तो वे सबसे पहले आतंकियों द्वारा खदेड़े गये लाखों लोगों को कश्मीर में सुरक्षित बसाने का काम करती। वह कश्मीर में आतंकियों का सफाया करती और हुर्रियत जैसे आस्त्ीन के सांपों को शर्मनाक संरक्षण देने के बजाय उन पर अंकुश लगाती।
भारत सरकार को समझ लेना चाहिए कि कश्मीर में फल फूल रहा अलगाववाद व आतंकवाद हिंसा कोई जनसमस्या नहीं है। अपितु यह पाकिस्तान सहित भारत विरोधी विदेशी ताकतों का षडयंत्र मात्र है। कश्मीर की आम जनता को भारत सरकार जिस प्रकार से तुष्टिकरण करते हुए विशेष सुविधायें देती है। इसलिए आम जनता को कोई शिकायत नहीं है। यहां पर जो अलगाववाद, व हिंसा है वह पाकिस्तान सहित भारत विरोधी विदेशी ताकतों ने यहां पर धार्मिक उन्माद भड़का कर यहां पर कश्मीर को आतंक की भट्टी में धकेला है। इसलिए कश्मीर में भारत सरकार को अपनी दिशाहीनता को दूर कर इसमें सुधार कर ठोस नीति बेसे ही बनानी चाहिए जैसे चीन, अमेरिका, रूस, इस्राइल व म्याम्यार जैसे देश सदा करते रहते है।
अमेरिका ने अमेरिका में आतंक फैलाने वाले अलकायदा से किसी प्रकार की वार्ता नहीं की। चीन ने अलगाववादी तत्वों से किसी प्रकार की वाता्र नहीं की। नहीं रूस ने अपने देश में अलगावाद के रूप में सर उठाने वालों से वार्ता की। इस्राइल जैसे देश की तो बात ही क्या करें। इस्राइल का नाम लेते ही आतंकी अपने बिलों में छुपने के लिए मजबूर हो जाते है। सबसे नया उदाहरण है म्याम्यार है जहां देश की एकता अखण्डता को खतरा खडा करने वालों को निर्ममता से रौंदा गया।
केन्द्रीय सत्ता में आसीन मोदी सरकार को साफ समझ लेना चाहिए कि आजादी के बाद निरंतर भारत सरकार के भारत विरोधी तत्वों से वार्ता करने के सनक के कारण कश्मीर में अलगाववादियों व आतंकियों को मजबूती मिली। वहीं भारत के ध्वजवाहकों को कश्मीर से आतंकियों ने सरकारों की नाक को अपने पेेरों तले कुचल कर घाटी से खदेड़ दिया। वर्षो बीत जाने के बाद भी इन नपुंसक सरकारों में इतनी हिम्मत नहीं रही कि वे इन पीड़ितों को उनके घरों में सुरक्षित वापसी करा सके या कश्मीर में ही उनको बसा सके। कश्मीर में फल फूल रहा आतंक व हिंसा का समाधान वार्ता नहीं अपितु आतंकवादियों व अलगाववादियों का सफाया है। वह भी निर्ममता से।अलगाववादियों ने कश्मीर में कभी आतंकियों की ढाल बनने  तो कभी चैटी कटवा के नाम आम जनता को सुरक्षा बलों के खिलाफ पत्थराव व हमला करने के लिए उकसा रहे है। इनका कड़ाई से इलाज करने के बजाय वार्ता का झूनझूना बजाने से कश्मीर समस्या और विकराल होगी सुलझेगी नहीं ।

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