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नरेन्द्र नेगी को मिल रहे करोड़ों उत्तराखण्डियों के अपार सम्मान के आगे सत्ता प्रतिष्ठानों का हर पुरस्कार बौना है

नरेन्द्र नेगी जैसे क्रांतिकारी व भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने वाले शीर्ष लोक गायक का सम्मान करने की कुब्बत व साहस सत्ता प्रतिष्ठानों में नहीं होता

देवसिंह रावत

आज उत्तराखण्ड के लोग हैरान है कि उत्तराखण्ड के देश विदेश में रहने वाले करोड़ों लोगों के दिलों में दो दशक से अधिक समय से राज करने वाले उत्तराखण्ड के शीर्ष गायक  नरेन्द्र सिंह नेगी को सरकार पदम् पुरस्कार सम्मान से सम्मानित क्यों नहीं्र कर पायी। लोगों को मालूम नहीं है कि इन पुरस्कार प्रदान कराने वाले लोग देश व समाज के लिए नहीं अपितु अपने व दलीय स्वार्थो के प्यादे मात्र रहते है।
नरेन्द्र नेगी जी न केवल उत्तराखण्ड के लोक गीतों के स्वर सम्राट होने के साथ उत्तराखण्ड आंदोलन सहित उत्तराखण्ड के हक हकूक, संस्कृति, सम्मान की रक्षा के लिए लाखों लाख लोगों को आंदोलित करते है। भले ही कुछ अज्ञानी उन्हें गढरत्न कहते है। वे गढ़ रत्न से कहीं अधिक उत्तराखण्ड रत्न है।

वे अपने गीतों से जहां सामाजिक कुरितियों पर प्रहार करते हैं वहीं जनहितों को रौंद रहे भ्रष्ट नेताओं को भी बेनकाब करते है। नेगी जी के गीतों से प्रदेश की सत्ता में आसीन भाजपा व कांग्रेस दोनों रही। इसलिए देश की सत्ता में आसीन रही दोनों दलों की सरकारों में नेगी जी को ऐसा सम्मान देने का इनमें न नैतिक साहस ही है व नहीं कुब्बत।  जहां तक पदम सम्मान की बात है देश की सत्ता में आसीन संकीर्ण व निहित स्वार्थी लोग कभी देश के लिए निस्वार्थ समर्पित प्रतिभाओं का सम्मान नहीं करते हैं वे केवल यशेगान करने वालों को ही सम्मानित करते है। कभी भी ऐसी सरकारें अपने भ्रष्टाचारों को बेनकाब करने वालों को सम्मानित करने का साहस नहीं है। इनके लिए तो जाति, क्षेत्र व दलीय हित पोषक समीकरण ही श्रेष्ठ लगते । इनको देश व जनहितों के लिए समर्पित लोग फूटी आंख नहीं सुहाते। उत्तराखण्ड के लोग गायक नेगी जी का जो सम्मान देश विदेश में रहने वाले करोड़ों उत्तराखण्डियों के दिलों व स्वरों में ंहै उसके सामने सत्ता प्रतिष्ठानों का सर्वोच्च सम्मान भी तुच्छ है।

लोकशाही में जनता के द्वारा मिला सम्मान किसी भी सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा नवाजे गये सम्मान से कहीं श्रेष्ठ है। गांधी हो या नेताजी, भगत सिंह हो या चद्रशेखर आजाद, भले ही किसी राजकीय पदों पर नहीं रहे परन्तु आज भी देश के करोड़ों लोगों के दिलों में जो सम्मान इनके प्रति है उसके आगे सत्ता प्रतिष्ठानों या अन्य संस्थानों द्वारा मिले पुरस्कार तुच्छ है। जिस प्रकार गांधी जी को नाॅबल पुरस्कार न प्रदान कर नोबल समिति खुद बेनकाब हो गयी। उसी प्रकार नेगी जी को सम्मान न कर भारत में पदम पुरस्कार देने वाला सत्ता प्रतिष्ठान खुद बेनकाब हो गया। कुछ लोग सम्मान पा कर सम्मानित होते है। वहीं कई महान व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनको सम्मान दे कर खुद सम्मान ही सम्मानित होता है। ऐसे ही  नरेन्द्र सिंह नेगी है जिनको सम्मान न देने से भारत का सत्ता प्रतिष्ठान खुद सवालों के घेरे में आ गये।

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