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केन्द्रीय जांच व्यूरों के फंदे व भाजपा के चक्रव्यूह से अधिक नीतीश की अवसरवादी राजनीति से आशंकित है लालू

 लालू यादव परिवार के दिल्ली, पटना सहित 12 ठिकानों पर केन्द्रीय जांच व्यूरों ने डाले ताडबतोड़ छापे

देवसिंह रावत

7 जुलाई के तडके लालू परिवार पर केन्द्रीय जांच व्यूरों ने ,  दिल्ली, पटना, रांची, पुरी और गुरुग्राम सहित 12 स्थानों पर ताडबतोड़ छापे मारने से न केवल बिहार की अपितु देश की राजनीति में सियासी हलचल मच गयी। प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा के खिलाफ पूरे विपक्ष को एकजूट करने की हुंकार भरने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव व उनके परिजनों के 12 ठिकानों पर सन् 2006 में रेल मंत्री रहते हुए की गयी भारी अनिमियताओं के मामले में केन्द्रीय जांच व्यूरों ने छापा मारे।
इन छापेमारी की खबरों के बीच लोगों के जेहन में एक ही सवाल उमड़ रहा है कि क्या भ्रष्टाचार के मामलों में आकंठ घिरे लालू केन्द्रीय जांच व्यूरों के फंदे व भाजपा के सियासी चक्रव्यूह से बच पायेंगे? वहीं बिहार की राजनीति के जानकारों के अनुसार लालू भाजपा व सीबीआई के फंदे से अधिक अगर किसी से आशंकित है तो वह नीतीश कुमार की अवसरवादी राजनीति से।
लालू को मालूम है उनकी जो छवि है उससे अब बिहार व देश की राजनीति में अधिक नुकसान नहीं होगा। लोग मान चूके है कि राजनेता प्रायः भ्रष्टाचार में या तो लिप्त रहता है या भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे कर उनके संसाधनों के बल पर ही राजनीिित करता है।
इसलिए लालू की राजनीति को बिहार में कोई खतरा है तो अवसरवादी राजनीति के लिए कुख्यात नीतीश कुमार। जिस प्रकार ने राष्ट्रपति के चुनाव में जिस लालू ने बिहार में उन्हे मुख्यमंत्री बनाया उन लालू से विचार विमर्श किये बिना उस भाजपा के प्रत्याशी का साथ दिया, जिस भाजपा के खिलाफ उन्होने लोकसभा व विधानसभा चुनाव में सीधा विरोध कर जनादेश अर्जित किया था। लालू पर संकट मंडराते ही नीतीश कुमार कब साथ छोड़ दे इसका विश्वास लालू यादव को भी नहीं है।
जिस प्रकार से लालू यादव का पूरा परिवार ही इस बार भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे है। उसको देख कर लगता है कि यह भाजपा की एक सोची समझी रणनीति के तहत ही इन मामलों पर कार्यवाही की जा रही है। क्योंकि भाजपा भी आशंकित है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में इस बार नीतीश, केजरी व राहुल गांधी आदि विपक्षी नेताओं से उसे कोई खतरा नहीं है जितना खतरा अकेले लालू से है। लालू ही उप्र में दलित व पिछड़ा राजनीति गठबंधन बना कर जिस प्रकार से माया व अखिलेश यादव को एक करने में लगे है वह 2019 के चुनावों के लिए मोदी व भाजपा के लिए बड़ा खतरा बन सकते है। हालांकि भाजपा ने माया व अखिलेश की धार को पहले ही मुलायम के द्वारा कुंद कर दी हैं। परन्तु राजनीति तो संभावनाओं का खेल है। कब कौन मुद्दा तूफान बन जाय। यह कहा नहीं जा सकता। खासकर किसानों आदि मामलों में देश में भाजपा के खिलाफ हवा बन रही है। इसके साथ पूरा व्यापारी वर्ग जिस प्रकार वस्तु व सेवा कर से आशंकित हो कर भाजपा का विरोध कर रहा है उसे देख कर लालू यादव भाजपा के लिए कोई बड़ी बाधा खडी कर सकता है। इसी आशंका को शायद निर्मूल करने के लिए भाजपा जितनी जल्द हो लालू को उसके भ्रष्टाचारों की सजा दिला कर उनको देश के राजनीति में अलग थलग करना चाहती है।
खबरों के अनुसार केन्द्रीय जांच व्यूरों ने लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी, बेटे समेत कई अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया है। इस मामले में आईआरसीटीसी के पूर्व प्रबंध निदेशक के खिलाफ भी केस दर्ज किया गया है। इस मामले में आरोप है कि रेलवे के होटल टेंडर निजी कंपनी को दिए थे और रेल मंत्री के तौर पर निजी कंपनी को फायदा पहुंचाया था।
भले ही देश में लालू प्रसाद यादव को भ्रष्टाचार का प्रतीक माना जाता है। पर इस समय वह पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदी व भाजपा के खिलाफ पूरे विपक्ष को 2019 के लिए लामबद करने वाले प्रमुख नेता है। बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए जेपी के नवरत्नों में एक लालू प्रसाद का व्यवस्था परिवर्तन का चेहरा चारा घोटाले के बाद देश में बदरंग हो गया। इस प्रकरण में जहां वे जेल भी गये। देश के चर्चित रेलमंत्री रहे लालू यादव पर ताजा मामला सन् 2006 में सप्रंग सरकार में रेलमंत्री रहते हुए उजागर हुई अनिमियताओं के मामले में ही है।  अब देखना है लालू इस झंझावतों से कैसे उबरते हैं।

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