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कपिल मिश्रा की हुंकार से केजरीवाल ही नहीं अन्ना हजारे की भी नैतिकता पर लगा सवालिया निशान!

क्या सत्ता के मोह में केजरी व अपनत्व के मोह में अण्णा की दम तोड़ गयी नैतिकता?

कपिल द्वारा आरोप लगाने पर योद्धा की तरह इस षडयंत्र को बेनकाब करने के बजाय केजरीवाल द्वारा कायराना मौन साधने से जनता ही नहीं समर्थक भी हुए हैरान

देवसिंह रावत

प्रधानमंत्री से लेकर संतरी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल बनाने व आरोपी व्यक्ति से तुरंत इस्तीफा मांगने के आंदोलन करके राजनीति में आने वाले केजरीवाल, अब दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में, उनके ही मंत्री कपिल मिश्रा द्वारा लगाये गये आरोपों पर शर्मनाक मौन रख कर खुद को किया बेनकाब!
वहीं दूसरी तरफ आरोपों मंें घिरे अपने शिष्य केजरीवाल से इस्तीफा मांगने के लिए अब क्यों दिल्ली में अनशन कर रहे है अण्णा हजारे। आरोप सिद्ध होने के बाद आंदोलन करने की अण्णा हजारे की बात केजरी को अभयदान देना है। जबकि पूरे देश ने भ्रष्टाचार रूपि आंदोलन में अण्णा हजारे पर विश्वास करके ही केजरीवाल का साथ दिया था।
भले ही जनता केजरीवाल को उनके खुद के मंत्री कपिल मिश्रा द्वारा लगाये गये 2 करोड़ रूपया लेने के आरोप पर विश्वास कर रही है। परन्तु जिस प्रकार से केजरीवाल, जो खुद दूसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर तत्काल इस्तीफा मांगते रहे। ऐसे में केजरीवाल द्वारा खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप पर रहस्यमय ढ़ग से मूक बने रहना जनता के विश्वास को हिला दिया है।
जनता ही नहीं केजरीवाल समर्थक भी हैरान है कि केजरीवाल ने खुद पर लगे आरोपों पर कांग्रेसी, भाजपाई या अन्य सत्तासीनों की तरह खुद पर लगे आरोपों पर मौन क्यों है। यही नहीं उनके समर्थक जिस प्रकार से आरोप लगाने वाले के खिलाफ बयानबाजी कर प्रहार कर रहें हैं उनको रोकने में भी केजरीवाल मौन है।
जो लोग जनलोकपाल आंदोलन में पद पर आसीन होने पर कोई सुविधा, बंगला, मोटे वेतन इत्यादि न लेने व भाई भतीजावाद-रिश्तेदारों से दूर रहने की कसमें खाते थे। परन्तु सत्तासीन होते ही सब उल्टा पुलटा हो गया। खुद केजरीवाल पर अब रिश्तेदारों को लाभांन्वित करने को आरोप लग रहा है। उनके मंत्री जैन पर तो पहले ही बेटी को बढ़ाने का आरोप लग चूका है।
ऐसे में अण्णा हजारे का पहला नैतिक दायित्व यह होता कि वह अपनत्व के मोह, गर्मी, कम समर्थकों  या किसी सीडी के भय को त्याग कर केजरीवाल से जांच होने तक तत्काल अपने पद से इस्तीफा देने की मांग को लेकर दिल्ली में अनशन करना चाहिए।
देश की जनता को आशा थी कि केजरीवाल खुद पर लगे आरोपों पर खुद स्पष्टीकरण दे कर जांच की मांग करते। जब तक जांच में निर्दोष साबित न हो जाय तब तक पद से इस्तीफा दे देते। या तो केजरीवाल भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये आंदोलन में अपने वचनों को भूल गये हैं या उनमें इन आरोपों का सामना करने की हिम्मत नहीं रही है या उन्हें पद से इस्तीफा देने के बाद पुन्न इस पद पर आसीन होने की आश नहीं है? या उन्हें अपने भरत यानी कार्यवाहक मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया पर भरोसा नहीं रह गया।
लोगों के मन में यह आशंका सच में प्रतीत होती नजर आ रही है कि भ्रष्टाचार के आरोपिये से तत्काल इस्तीफा मांगने वाले केजरीवाल अब क्यों नहीं कर पा रहे है अपने ही वचनों की रक्षा? कुर्सी के मौह के आगे केजरीवाल की नैतिकता दम तोड़ चूकी है।
केजरीवाल व अण्णा को शायद ही इस बात का अहसास होगा कि उनकी छवि तार तार होते देेख कर उनके समर्थकों व आंदोलन में सम्मलित लोगों को कितना कष्ट हो रहा होगा।

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