
श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अत्यधिक गर्मी के जोखिम प्रबंधन के लिए सक्रिय और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया है: डॉ. पीके मिश्रा
गर्म हवाएं सीमा पार और नियमित जोखिम हैं, विशेष रूप से घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों के लिए: डॉ. पीके मिश्रा
भारत का दृष्टिकोण पूरे सरकार और पूरे समाज का है जिसमें गर्मी से निपटने की कार्ययोजनाओं को बेहतर बनाने के लिए कई हितधारकों को शामिल किया गया है: डॉ. पीके मिश्रा
डॉ. पीके मिश्रा ने अत्यधिक गर्मी के जोखिमों से निपटने के लिए सीमा पार सहयोग का आह्वान किया
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव के आह्वान को दोहराते हुए अत्यधिक गर्मी को वैश्विक संकट मानते हुए इसके समाधान की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने कल (06 जून 2025) जिनेवा में अत्यधिक गर्मी जोखिम प्रबंधन पर विशेष सत्र के दौरान मुख्य भाषण देते हुए इस बात पर जोर दिया कि बढ़ते तापमान से सार्वजनिक स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नियमित जोखिम उत्पन्न हो रहा है और भारत साझा शिक्षा, मार्गदर्शन और सहयोग के लिए एक मंच के रूप में अत्यधिक गर्मी के जोखिम प्रबंधन के लिए सामान्य रूपरेखा को आगे बढ़ाने के लिए यूएनडीआरआर की पहल का स्वागत करता है।
डॉ. मिश्रा ने इस बात पर जोर दिया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने अत्यधिक गर्मी के जोखिम प्रबंधन के लिए एक सक्रिय और दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया है। उन्होंने बताया कि भारत आपदा प्रतिक्रिया से आगे बढ़कर एकीकृत तैयारी और उन आपदाओं को दूर करने रणनीतियों की ओर बढ़ा है। 2016 से, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने गर्म हवाओं के प्रबंधन पर व्यापक राष्ट्रीय दिशा-निर्देश तैयार किए हैं। इनमें 2019 में संशोधन किया गया। इसने विकेंद्रीकृत गर्मी की कार्य योजना (एचएपी) की नींव रखी। उन्होंने अग्रणी अहमदाबाद की गर्मी की कार्य योजना को स्वीकार किया। इसने दिखाया कि कैसे प्रारंभिक चेतावनी, अंतर-एजेंसी समन्वय और सामुदायिक आउटरीच से जान बचाई जा सकती है।
प्रधान सचिव ने जोर देकर कहा कि, “23 गर्मी संभावित राज्यों के 250 से अधिक शहरों और जिलों में गर्मी की कार्य योजनाएं क्रियाशील हैं। इनको एनडीएमए की सलाह, तकनीकी और संस्थागत तंत्रों का सहयोग प्राप्त है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मजबूत निगरानी, अस्पतालों की तैयारी और जागरूकता अभियानों के कारण गर्मी-संबंधी मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी आई है।
डॉ. मिश्रा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत का दृष्टिकोण पूरी सरकार और पूरे समाज का है। इसमें स्वास्थ्य, कृषि, शहरी विकास, श्रम, विद्युत, जल, शिक्षा और बुनियादी ढांचे से जुड़े मंत्रालय शामिल हैं। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान, शोध समूह, नागरिक समाज संगठन और विश्वविद्यालय स्थानीय सरकारों को गर्मी से निपटने की कार्ययोजनाओं में सुधार करने में सहायता करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
डॉ. मिश्रा ने जोर देकर कहा, “अत्यधिक गर्मी समुदायों को अत्यधिक प्रभावित करती है और भारत ने अपनी तैयारी में पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय अनुभवों को सक्रिय रूप से शामिल किया है।” उन्होंने कहा कि विद्यालय व्यवहार परिवर्तन के सहायक बन रहे हैं, बच्चों को जलवायु की अनुकूलता के बारे में शिक्षित कर रहे हैं। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि शीघ्र और प्रभावी आपातकालीन तैयारी सुनिश्चित करने के लिए अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को मजबूत किया जाना चाहिए।
श्री मिश्रा ने पुष्टि की कि भारत में केवल तैयारी के दृष्टिकोण से लेकर दीर्घकालिक गर्मी के शमन तक के परिवर्तन को रेखांकित किया। इसमें शीतल छत वाली प्रौद्योगिकियां, निष्क्रिय शीतलन केंद्र, शहरी क्षेत्रों में हरियाली और पारंपरिक जल निकायों का पुनरुद्धार शामिल है। भारत शहरी नियोजन में शहरों में तुलनात्मक अधिक गर्मी के प्रभाव के आकलन को एक कर रहा है।
डॉ. मिश्रा ने एक प्रमुख नीतिगत बदलाव की घोषणा करते हुए कहा कि राष्ट्रीय और राज्य आपदा न्यूनीकरण निधि (एसडीएमएफ) का उपयोग अब गर्मी के न्यूनीकरण के लिए किया जा सकता है। इससे स्थानीय सरकारों, निजी क्षेत्र की संस्थाओं, गैर सरकारी संगठनों और व्यक्तियों को गर्मी की रोकथाम और न्यूनीकरण परियोजनाओं को सह-वित्तपोषित करने की अनुमति मिलेगी। इससे साझा जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलेगा।
डॉ. मिश्रा ने प्रमुख चुनौतियों को स्वीकार किया। ये अभी भी बनी हुई हैं, तथा उन्होंने वास्तविक समय के आंकड़ों के आधार पर स्थानीयकृत ताप-आर्द्रता सूचकांक विकसित करने पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया ताकि प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को बेहतर बनाया जा सके, भवन प्रौद्योगिकियों और निष्क्रिय शीतलन नवाचारों को आगे बढ़ाया जा सके जो किफायती और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त हों, तथा समानता संबंधी चिंताओं का समाधान किया जा सके, क्योंकि अत्यधिक गर्मी महिलाओं, बाहर काम करने वाले श्रमिकों, बुजुर्गों और बच्चों को असमान रूप से प्रभावित करती है।
डॉ. मिश्रा ने जोर देकर कहा कि “गर्म हवाएं सीमा पार और नियमित जोखिम हैं, विशेषकर घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों के लिए”, उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तकनीकी सहयोग, डेटा साझा करने और गर्मी के प्रति सहनशीलता पर संयुक्त अनुसंधान को बढ़ाने का आग्रह किया। उन्होंने संस्थागत और वित्तीय सहायता तंत्र के साथ-साथ सुलभ ज्ञान, अनुसंधान और व्यावहारिक समाधान प्रदान करने के लिए साझी रूपरेखा का आह्वान किया।
डॉ. मिश्रा ने वैश्विक साझेदारों के साथ अपनी विशेषज्ञता, तकनीकी क्षमताओं और संस्थागत क्षमताओं को साझा करने के लिए भारत की पूर्ण प्रतिबद्धता की पुष्टि की ताकि अत्यधिक गर्मी के प्रति एक लचीला, समन्वित और सक्रिय वैश्विक समाधान सुनिश्चित हो सके।
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