उत्तराखंड देश

भाजपा, बसपा से कांग्रेसी नेता  हरकसिंह रावत के यहां प्रवर्तन निदेशालय की छापेमारी, भ्रष्टाचार के खिलाफ है या भाजपा से बगावत करने का दण्ड?

वन घोटाला प्रकरण में  हरक सिंह के दिल्ली, चंडीगढ व उतराखण्ड के कई ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय का छापा

देवसिंह रावत
खबर है कि आज तडके प्रवर्तन निदेशालय ने उत्तराखंड के पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत से जुड़े कथित वन घोटाला मामले में दिल्ली, चंडीगढ़ और उत्तराखंड के कई स्थानों पर छापेमारी कर रहा है।
इस खबर से उतराखण्ड की जनता को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उत्तराखंड में की जनता चाहती है कि भ्रष्टाचार पर कड़ी कार्रवाई की जाए परंतु यह कार्रवाई केवल अपने विरोधियों पर नहीं अपितु जितने भी भ्रष्टाचारी हैं उन पर की जाए।
उत्तराखंड में अंकिता भंडारी प्रकरण से लेकर कई भ्रष्टाचार के मामलों में दूसरों पर अब तक कार्रवाई नहीं की जा सकी और यह घोटाले जांच रिपोर्ट की फाइलों  में ही दम तोड़ रही है।
वेसे भी चुनावी मौसम में प्रवर्तन निदेशालय जो ईडी के नाम से जाना जाता है, विपक्ष के कई नेताओं के यहां लगातार छापा मार रही है। इसमें लालू हो या उनका परिवार, केजरीवाल हो या उनकी पार्टी, हेमंत सोरेन हो या  उनके करीबी इत्यादि। ईडी की छापेमारे की बहुत लम्बी श्रृंखला है।
इस श्रृंखला में नया नाम जुडा उतराखण्ड के वर्तमान कांग्रेसी नेता हरक सिंह का। जिनका विवादो से दशको से नाता रहा। लोग इस बात से हैरान नहीं है कि किसी विवाद में हरक सिंह का नाम जुडा। लोग इस बात से हैरान हैं कि प्रदेश  में हरक सिंह पर ही क्यों छापा इतनी देर में पड रहा है? हरक सिंह रावत विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के नेता थे। यह विवाद भी आज का नहीं है? यह विवाद तो तब भी था जब उन्होने भाजपा का दामन थामा  था। तब भाजपा सरकार व नेताओं को डा हरक सिंह रावत का विवाद याद नहीं आया। हरक सिंह रावत ने जब उतराखण्ड की हरीश रावत सरकार से विद्रोह कर पूरा कुनबा लेकर भाजपा में सम्मलित हुये तो भाजपा ने उन्हें सर आंखों में बिठाया। उतराखण्ड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले तक वे भाजपा के दिग्गज नेता थे। उनके नीतीश कुमार की तरह पलटुराम होने की पुरानी आदत है। वे कल्याण सिंह की उप्र सरकार में राज्यमंत्री रहे, उसके बाद राज्य गठन आंदोलन में सबसे लम्बा ऐतिहासिक धरना देने वाले जनता संघर्ष मोर्चा के संयोजक भी चंद महिनों के लिये रहे।  इसके बाद बसपा में मायावती के करीबी रहे। इसके बाद कांग्रेस  में मंत्री रहे। उसके बाद भाजपा का दामन थामा। इसके बाद कांग्रेस में आ गये।इसकी भनक लगते ही अमित शाह ने उनको रोकने की कोशिश की थी। परन्तु वे अमित शाह की रणनीति को भांपने में असफल रहे। उनका आंकलन था कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी। परन्तु अमित शाह ने पहले ही ऐलान कर दिया था हरीश रावत को पैदल करने का व कांग्रेस का प्रदेश से सफाया का। परन्तु इसका विश्वास हरक सिंह रावत व खुद भाजपा के प्रत्याशियों को चुनाव मतगणना  से पहले तक नहीं था। हुआ वही जो अमित शाह ने ताल ठोकी थी। हरक सिंह रावत इस चुनाव परिणाम के बाद ऐसा लग रहा था कि फिर भाजपा का दामन थामेंगे। वे अब हरिद्धार लोकसभा से ताल ठोक रहे हैं। उनको कांग्रेस के वर्तमान टिकट देने वाले समीकरणों पर विश्वास था। ऐसा लगता है  कि भाजपा को इस बात की भनक लग गयी होगी कि हरक सिंह को हरिद्वार या अन्यत्र कांग्रेस टिकट देगी, जो मोदी के 400 पार के आंकडे पर एक सीट कम करने वाला हो सकता है। ऐसी आशंका को रोकने के लिये हरक सिंह पर छापामारी हो रही हो। यह हरक सिंह की भूल रही कि वह अमित शाह की मित्रता के पेगाम को ठुकराकर भाजपा को छोड कर कांग्रेस में सम्मलित हुये। हरक सिंह ही नहीं यशपाल आर्य भी भाजपा का दामन छोड कर अब कांग्रेस से सांसद की दावेदारी नैनीताल या अल्मोडा से कर रहे है। देखना यह है कि हरक सिंह रावत की तरह क्या यशपाल आर्य का रास्ता रोकने के लिये सरकार अब क्या करेगी। यह सच है उतर भारत से एक एक सीट भाजपा के लिये जरूरी है।

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