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जमीन घोटाले में सत्ताच्युत होकर जेल जाने वाले झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन दाव से बिहार के बाद झारखंड में भी सत्तासीन होने के भाजपा के मंसूबों पर फेरा पानी

देवसिंह रावत

2 फरवरी को आखिरकार राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने रांची स्थित राजभवन में झारखण्ड विधानसभा में सत्तारूढ झारखण्ड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस व राजद आदि इंडिया गठबंधन के विधायक मंडल दल के नये नेता चंपई सोरेन को प्रदेश के 12वें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला कर, दो दिन से चल रहे अनिश्चिता के बादल को छांटने का काम किया। चंपई सोरेन ने जहां मुख्यमंत्री की शपथ ली वहीं गठबंधन में कांग्रेसी विधायक दल के नेता आलमगीर आलम व राजद विधायक सत्यानंद भोक्ता ने कबीना मंत्री के पद की शपथ ली। यहां इंडिया गठबंधन झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफे के बाद उनको गिरफ्तार किये जाने के बाद मोदी नेतृत्व वाली भाजपा से इतनी आशंकित थी कि उनको लग रहा था कि भाजपा साम दाम दण्ड भेद से झारखण्ड की सत्ता पर काबिज होना चाहती है। झारखण्ड के सत्तारूढ इंडिया गठबंधन की आशंका हवाई ्रनहीं अपितु परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थी कि सत्तारूढ इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों व विधायकों की धडकने बढ रही थी। इसका कारण यह था कि चंपई सोरेन को गठबंधन का नेता चुनने व उनको सरकार गठन हेतु गठबंधन के 43 विधायकों के हस्ताक्षर युक्त  पत्र भी सौंपा गया। चंपई ने तुरंत शपथ ग्रहण कराने का आग्रह के बाबजूद दो दिन तक राज्यपाल का मौन रहने से गठबंधन आशंकित हो गया। इसके बाद गठबंधन के विधायकों को विशेष विमान से तेलांगना भेजने का भी निर्णय लिया गया। परन्तु यह विमान रांची में दो घण्टे तेयार रहने के बाबजूद उडने की आज्ञा न मिलने से उड नहीं पाया। बाद में बताया गया कि प्रतिकुल मौसम के कारण इजाजत नहीं मिली। इससे झारखण्ड के प्रबुद्ध लोग ही नहीं अपितु देश के जागरूक लोग भी यह हैरान थे कि जब महाराष्ट्र में तडके ही आनन फानन में भाजपा गठबंधन की सरकार को व कुछ दिन पहले ही बिहार में भाजपा के साथ नीतीश कुमार की सरकार को चंद घण्टे बाद ही शपथ ग्रहण कराने का काम किया जाता है तो फिर विपक्षी सरकार को पूर्ण बहुमत के बाबजूद दो दिन तक शपथ ग्रहण के लिये लटकाये रहने से लोग केंद्र सरकार की नियत पर प्रश्न करने लगे। इसके बाद ही राज्यपाल ने अगले दिन सरकार गठन करके दस दिन के अंदर बहुमत साबित करने का आमंत्रण दिया। इसी के तहत 5 फरवरी को चंपई सरकार ने अपना बहुमत साबित करने के लिये विधानसभा सत्र आहुत किया।
उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह बिहार के बाद झारखण्ड में भी अपनी सरकार के सत्तारूढ करने के मंसूबों को उस समय ग्रहण लग गया जब जमीन घोटाले में फंसे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफे व  जेल जाने के बाद  झारखण्ड मुक्ति मोर्चे के दिग्गज नेता चंपई सोरेन को मुख्यमंत्री के लिये चयनित किया गया। भाजपा को आशा थी कि झारखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री जमीन घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किये जाने से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अपनी पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनायेगे। जिससे भाजपा परिवार मोह का आरोप लगा कर झामुमो के अंदर इससे असंतुष्टो को हवा देकर विद्रोह करा कर झारखण्ड में भी बिहार की तरह अपनी सरकार सत्तासीन करने की रणनीति पर काम कर रही थी। जैसे ही प्रवर्तन निदेशालय ने हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के लिये शिकंजा कसने लगा वेसे राजनैतिक हलकों में कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनने के कायश लगाये जाने लगे । इससे लग रहा था कि किसी भी समय कल्पना सोरेन की ताजपोशी हो सकती है। परन्तु जब हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के लिये राजभवन में पंहुचे तो तब तक किसी को भनक नहीं थी कि हेमंत ने भाजपा के मंसूबों पर बज्रपात करने के लिये मन बना दिया है। हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री से इस्तीफे की खबर के साथ खबर आई कि विधायक मंडल ने अपना नया नेता चंपई सोरेन को चुन लिया । यानि कल्पना सोरेन नहीं मुख्यमंत्री बनेंगे चंपई सोरेन। हेमंत सोरेन ने इस्तीफा देने के साथ गये झामुमो व गठबंधन के प्रतिनिधीमण्डल ने चंपई सोरेन को गठबंधन दल के 43 विधायकों का नेता चुनने वाला पत्र देने के साथ सरकार बनाने का दावा पेश किया। चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री बनाने वाला दाव ही भाजपा के झारखण्ड में भी सत्तासीन होने के मंसूबों पर किसी बज्रपात से कम नहीं था। झारखण्ड के टाइगर नाम से विख्यात सादगी के प्रतीक चंपई सोरेन का नाम आते ही झारखण्ड की राजनीति को गहराई से न जानने वालों को यह भी नहीं पता था कि चंपई सोरेन कोन है? स्त्री है या पुरूष? कई चंपई सोरेन को सोरेन परिवार की ही महिला मान रहे थे। पर जब खुलाशा हुआ कि चंपई सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्य हैं, उन्होंने शिबू सोरेन के साथ मिलकर राजनीति में काम किया है। वह सरायकेला विधानसभा क्षेत्र से पांच बार विधायक चुने गए। 1995 में चंपई सोरेन पहली बार 11वीं बिहार विधानसभा में सरायकेला से विधायक बने। 2000 में झारखण्ड अलग राज्य बनने के बाद, वह 2005 में दूसरी झारखंड विधानसभा में सरायकेला से विधायक बने। 2009 में तीसरी झारखंड विधानसभा में सरायकेला से विधायक बने, उन्होंने 11 सितंबर 2010 से 18 जनवरी 2013 तक विज्ञान और प्रौद्योगिकी, श्रम और आवास कैबिनेट मंत्री तथा 13 जुलाई 2013 से 28 दिसंबर 2014 तक खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति, परिवहन कैबिनेट मंत्री का पदभार संभाला। 2014 में चौथी झारखंड विधानसभा में एक बार फिर सरायकेला से विधायक बने। 2019 में पांचवीं झारखंड विधानसभा में सरायकेला से विधायक और परिवहन, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण कैबिनेट मंत्री का पद संभाला। 31 जनवरी 2024 को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद, वह झारखण्ड के 7वें मुख्यमंत्री बने। 2 फरवरी 2024 को उन्होंने झारखण्ड के मुख्यमंत्री का पद ग्रहण किया।
चंपई सोरेन को झारखण्ड का ताजपोशी की जाने से विपक्ष ने जहां भाजपा की आशाओं पर बज्रपात हो गया। वहीं झारखण्ड में चंपई सोरेन जैसे अनुभवी, सादगी व जनहितों के लिये समर्पित नेता को प्रदेश की कमान मिलने से विपक्ष को जनसमर्थन मजबूत ही होगा। चंपई सोरेन जैसे झारखण्ड गठन के अग्रणी पुरोधा व जनसेवा में समर्पित रहने वाला सादगी से जीने वाला जननेता  का विरोध उनके विरोधी भी प्रायः करने से बचते रहते। ऐसे में भाजपा नेता भी दबे स्वर में यह कह रहे हैं कि चंपई के सत्तासीन होने से झारखण्ड में इंडिया गठबंधन हेमंत सोरेन के नेतृत्व के समय से अधिक मजबूत हो गया। क्योंकि अब भाजपा न तो नेतृत्व पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा पायेंगे और नहीं वे इस सरकार पर परिवारवाद का आरोप ही लगा पायेगे। कुल मिला कर भले ही हेमंत सोरेन खुद को सत्ताच्युत होकर सलाखों के पीछे बंद हो गये हो पर उन्होने चंपई सोरेन दाव से भाजपा के मंसूबों पर पानी फेर दिया।
एक जमीन घोटाले के प्रकरण में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जहां मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे कर सलाखों के अंदर बंद होना पडा।  झारखण्ड को भी अपने एक अन्य मुख्यमंत्री को सलाखों के भीतर बंद होते देखने के लिये अभिशापित होना पडा। झारखड राज्य गठन आंदोलन के मुख्य नायक शिबू सोरेन व मधु कोडा के बाद हेमंत सोरेन के भ्रष्टाचार आदि के मामले में सत्ताच्युत हो कर सलाखों के भीतर बंद होने के बाद एक प्रश्न उठ रहा है कि आखिर जनांदोलनों के कोख से जन्में प्रांतों के नेता भी अन्य प्रांतों के नेताओं की तरह भ्रष्टाचार के रोग से कैसे ग्रसित हो जाते है। जबकि उनका रास्ता तो जनहितों व जनांकांक्षाओं को साकार करने के लिये रहा। यह प्रश्न अपनी जगह है पर यहां यह भी विचारणीय है कि चंपई सोरेन जैसे नेता भी राजनीति में हैं। यही आशा की किरण प्रदेश व देश के लिये बन सकता है।

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