उत्तराखंड देश

उत्तराखंड की गंभीर समस्याओं के समाधान करने के लिए समान नागरिक संहिता से आज  कहीं अधिक जरूरी है भू-मूल निवास-कानून व गैरसैंण राजधानी बनाना

भारत में गोवा में सन 1867 से ही में लागू है समान नागरिक संहिता परन्तु ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि मानों देश में पहली बार यह कार्य कर रहे है उतराखण्ड के मुख्यमंत्री

राजधानी गैरसैंण, भू व मूल निवास कानून बनाने की जनता की पुरजोर मांग को नजरांदाज करने से  उतराखण्ड व देश की सुरक्षा खतरे में

देवसिंह रावत

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी ने समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए इसी 5 फरवरी 2024को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया है। यह देखकर लोगों के मन में सीधा यह सवाल उठ रहा है कि समान नागरिक संहिता कानून बनाने से उत्तराखंड की वर्तमान ज्वलंत समस्याओं का समाधान हो जाएगा? क्योंकि भारतीय संविधान के विशेषज्ञों व उत्तराखंड प्रबुद्ध जन जानते हैं कि  समान नागरिक संहिता श्री उत्तराखंड की वर्तमान जालंधर समस्याओं के निदान का कहीं दूर-दूर तक संबंध नहीं है।
यह जानकर प्रबुद्ध लोग  हैरान हैं कि उतराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड की ज्वलंत समस्याओं का समाधान करने के बजाय नागरिक संहिता लागू करने के लिए  क्यों कमर कसे हुए हैं? उतराखण्डी जनमानस समान नागरिक संहिता का विरोध नहीं  अपितु  स्वागत कर रही हैं ।परंतु जनता है यह चाहती है कि सरकार, प्रदेश की ज्वलंत समस्याओं का भी इसी तत्परता से तत्काल निदान करें। क्योंकि राजधानी गैरसैंण, भू व मूल निवास कानून बनाने की जनता की पुरजोर मांग को नजरांदाज करने से  उतराखण्ड के साथ  देश की भी सुरक्षा खतरे में पड गयी है। जहां तक सवाल समान नागरिक संहिता का है भारत में गोवा प्रांत में लागू है समान नागरिक संहिता। सरकारी प्रभाव से  ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि मानों देश में पहली बार यह ऐतिहासिक कार्य कर मुख्यमंत्री उतराखण्ड ं की समस्याओं का निदान कर देंगे। जहां तक सवाल समान नागरिक संहिता का है तो वह देश में होनी चाहिये। इसकी आवश्यता भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत यह कहते हुये कही गयी कि सभी धर्मो व समुदाय के लिये एक समान नागरिक संहिता होनी चाहिये। परन्तु भारत जैसे 140 करोड के देश में जहां अनैक संप्रदाय, सैकडों जातियां व जनजातियां हें उनके विवाह, संपति बंटवारे, आदि के अपने अपने रिवाज, परंपरायें हैं। उन पर एक सा कानून थोपना ऐसा समझा जाता है संविधान के अनुच्छेद 25 जिसके तहत हर नागरिक को अपने धर्म, परंपराओं को मानने व प्रचार करने की स्वतंत्रता भी मिली हुई है। यहां इस बात का उल्लेख भी जरूरी है कि देश में समान अपराध संहिता तो लागू है। जिसमें कुछ महिने पहले ही मोदी सरकार ने कई सुधार भी किये। इसके साथ यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि समान नागरिक संहिता भारत में अभी तक गोवा प्रांत में लागू हैं। यहां पुर्तगाल की दासता के समय ही 1867 से लागू है। यह पहला राज्य है जहां मुस्लिम भी चार शादियां नहीं कर सकते है। पर यहां पर हिंदु दो शादियां कर सकता है। इसके साथ यहां पर कैथोलिक आदि ईसाई धर्मावलम्बियों के लिये अलग नियम भी हैं। े। हालांकि 1970 से इस कानून बनाने के लिये राज्य स्वतंत्र भी हैं। परन्तु इसकी जटिलता को देख कर गोवा छोड कर किसी अन्य राज्य ने इसको साकार करने का काम नहीं किया। प्रदेश की जनता चाहती है कि राज्य सरकार राज्य की ज्वलंत समस्याओं का समाधान करने पर अपनी पूरी ताकत लगानी चाहिये। समान नागरिक संहिता तो जब केंद्र सरकार  बनायेगी  उतराखण्ड उसे अपने राज्य की परिस्थितियों के अनुकुल संशोधन कर लागू करे। परन्तु प्रदेश के मुख्यमंत्री धामी शायद अपनी छवि को राष्ट्रीय स्तर पर चमकाने या भाजपा के आला कमान द्वारा देश भर में समान नागरिक संहिता कानून को लागू करने से पहले उतराखण्ड को इसकी प्रयोगशाला बना कर देश की जनता की प्रतिक्रिया देखना चाहती है। परन्तु प्रदेश के मुख्यमंत्री धामी व उनकी सरकार का पूरा ध्यान इसी समान नागरिक संहिता को बनाने में लगा हुआ है। जबकि उतराखण्ड सरकारों द्वारा दशकों से जनांकांक्षाओं की उपेक्षा के कारण यहां पर बिकराल समस्याओं से उतराखण्ड एक प्रकार से बेहाल सा हो गया है। विशेषज्ञों के अनुसार भी सरकार द्वारा बहु प्रचारित समान नागरिक संहिता से उतराखण्ड की इन ज्वलंत समस्याओं का निदान कहीं दूर दूर तक नहीं हो सकता। इसके लिये सरकार को भू-मूल निवास कानून व राजधानी गैरसैंण को बनाने के साथ प्रदेश के चहुमुखी विकास करने के लिये हिमाचल के परमार से लेकर वीरभद्र तक की शासकीय दृढ इच्छाशक्ति के साथ ईमानदारी से समर्पण चाहिये।   दुर्भाग्य से ऐसा उतराखण्डी नेताओं में चाहे वह किसी भी दल का हो उनमें दूर दूर तक नहीं है। जनता इस बात से भी हैरान है कि प्रदेश में  व्याप्त विकराल समस्याओं के निदान करने के प्रति सरकारों की उदासीनता से हताश व निराश होकर सड़कों में आंदोलन करने के लिए मजबूर है। परन्तु सरकार जनता की मांगों का तत्काल समाधान करने के बजाय उसको नजरांदाज कर जनता का उपहास उडा रही है। लोग दशकों से मांग  कर रहे हैं कि प्रदेश में अन्य हिमालय राज्यों की तर्ज पर ही भू मूल निवास कानून व गैरसैंण राजधानी अविलम्ब बनायें सरकार। इनके न होने से ही उत्तराखंड राज्य गठन की तमाम जनांकांक्षायें साकार नहीं हो रही हैं, प्रदेश के युवा रोजगार से भी वंचित किया जा रहा हैं।  प्रदेश में अपराधियों व भारतीय संस्कृति विरोधियों की भारी घुसपैठ होने से प्रदेश व देश की सुरक्षा खतरे में पड़ गयी है। प्रदेश हुक्मरानों द्वारा प्रदेश के हक हकूकों के प्रति लगातार उदासीनता की प्रवृत्ति को देखकर नौकरशाही बेलगाम हो गई है।
परंतु धामी सरकार व सत्तारूढ़ दल भी पूर्ववर्ती सरकारों की तरह ही  इन समस्याओं का समाधान करने के बजाय,इन समस्याओं को उठाने वाले लोकशाही के ध्वजवाहकों को ही वामपंथी,माओवादी, बेरोजगार आदि कह कर बदनाम व उत्पीड़न कर रही है।
वहीं  दूसरी तरफ उतराखण्ड सरकार शीघ्र ही समान नागरिक संहिता के कानून को हर हाल में विधानसभा में पारित कराना चाहती है। इसी लिए विधानसभा का सत्र भी 5 फरवरी को आहुत किया गया है। प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अगुवाई में गठित की गई पांच सदस्यीय समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट विशेषज्ञ समिति का कार्यकाल भी 26 जनवरी को समाप्त हो रहा था इसे 15 दिन के लिये बढा दिया गया। यह समिति भी 2 फरवरी को अपनी रिर्पोट सरकार को सोंप देगी। इसकी सूचना मुख्यमंत्री धामी ने अपने ट्वीट में इस प्रकार से दी कि आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के ‘एक भारत,श्रेष्ठ भारत’ के विजन और चुनाव से पूर्व उत्तराखण्ड की देवतुल्य जनता के समक्ष रखे गए संकल्प एवं उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप हमारी सरकार प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने हेतु सदैव प्रतिबद्ध रही है। समान नागरिक संहिता का स्वागत है पर 23सालों से प्रदेश सरकारों की उदासीनता से उत्तराखंड सहित देश के लिए गंभीर खतरा बनी समस्याओं का समाधान क्यों नहीं किया जा रहा है?
प्रदेश के हुक्मरानों की कथनी व करनी में कितना विरोधाभास पत्रकारों को लोकशाही का आईना दिखाने वाले, भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुये देश में सबसे पहले समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार वाले उतराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आखिरकार क्यों उतराखण्ड की जनता की दशकों से जारी पुरजोर मांग राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून को क्यों पूर्ववर्ती सरकारों की तरह नजरांदाज कर रहे है?  राज्य  सरकारों द्वारा राजधानी गैरसैंण, भू व मूल निवास कानून बनाने की जनता की 23 सालों से चली आ रही पुरजोर मांग को नजरांदाज करने से  उतराखण्ड व देश की सुरक्षा खतरे में डाल दी है।
जबकि भारत के इस सीमांत प्रांत व हिमालयी राज्य उतराखण्ड के चहुमुखी विकास, राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के साथ देश की सुरक्षा के लिये  राजधानी गैरसैंण, अन्य हिमालयी राज्यों की तरह ही भू-मूल निवास कानून की नितांत जरूरत है। प्रदेश की जनता इन मांगों के लिये निरंतर सडकों पर संघर्ष कर रही है। देहरादून, दिल्ली, बागेश्वर, भिक्यासैंण व हल्द्वानी में विशाल जन सैलाब उमडने के साथ आम जनमानस दलगत राजनीति से उपर उठ कर इन मांगों का समर्थन कर रहा है। परन्तु देहरादून में 30 जनवरी 2024 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पत्रकारों को तो लोकशाही का आईना दिखाते रहे। देहरादून के  जी.एम.एस. रोड स्थित होटल में आयोजित राज्य स्तरीय भाजपा मीडिया कार्यशाला को संबोधित करते हुये कहा कि मीडिया विभाग की भूमिका हमेशा से ही सरकार और जनता के मध्य एक सेतु की रही है। लोगों को क्या सूचना चाहिए और हमने क्या सूचना देनी है३.यह काम मीडिया से जुडे प्रतिनिधि बेहतर ढंग से समझते हैं। इस प्रकार आप सब संवाद के भी माध्यम है।मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र से लेकर राज्य सरकार की प्रत्येक योजना के बारे में लोगों को बताने में आपकी सशक्त भूमिका है। यही नही सरकार की बात जनता तक और जनता की बात को सरकार तक पहुंचाने में भी मीडिया की अहम भूमिका है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आपकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आज लोगों तक जानकारी पहुंचना तो सरल हो गया है पर सही जानकारी पहुंचना कठिन हो गया है।  इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से अपेक्षा की कि  आप हम सबके “नारद“ की भूमिका में हैं, इस भूमिका में आप लोग अवश्य सफल होंगे।  परन्तु लोकशाही में प्रांत के प्रथम सेवक यानि मुख्यमंत्री का क्या दायित्व होता है शायद इसको वे भूल गये।  वे जनता की पुरजोर मांगों को नजरांदाज करके जिस प्रकार से प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार मुख्यमंत्री की ताजपोशी से आज तक समय समय पर भरते रहे उससे यही साफ होता है कि प्रांत का प्रथम सेवक अपने प्रथम दायित्व को भूल गये है। लोकशाही में जनता सर्वोपरि होती है। जनता मांग कर रही है राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून बनाने की। परन्तु मुख्यमंत्री पूरे दमखम से ऐलान कर रहे हैं कि हमारी सरकार प्रांत में समान नागरिक संहिता का कानून बना कर रहेंगे। अब तक तो देश की आम जनता में यह धारणा है कि दिल्ली देर से सुनती है परन्तु अब उनको यह देख कर हैरानी हो रही है कि उनका प्रथम सेवक तो सुनता ही नहीं जनता की पुकार। यह कैसी लोकशाही है। ऐसी हटधर्मिता करने वाले कैसे भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हैं? यही नहीं इनके सत्ताधारी दल के प्रांत अध्यक्ष तो जनहित व प्रांतहित की मांग करने वालों को वामपंथी यानि भारतीय संस्कृति को न मानने वाले ही बता कर जनता का उपहास उडाने की धृष्ठता कर रहे हैं? यह सब लोकशाही के नाम पर किया जा रहा है। यह सत्तामद में चूर हो कर किया जा रहा है या लोकशाही को रौंदते हुये।  परन्तु इतना साफ है कि यह प्रवृति न लोकशाही के लिये हितकर है व नहीं उतराखण्ड व देश के लिये। भगवान राम तो मर्यादाओं व जनभावानाओं का सम्मान करने की सीख देते थे। परन्तु ऐसी प्रवृति किसी भी सूरत में भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक हो ही नहीं सकती। लोगों को आज भी आशा है कि देर सबेर प्रधानमंत्री मोदी जी, प्रांत की सत्ता में आसीन अपने भरत को भारतीय संस्कृति की उदगम स्थली उतराखण्ड में भी भगवान राम की तरह मर्यादाओं का पालन करते हुये महिलाओं का अपमान करने वाले रावणों को दण्डित कराने के साथ जनभावनाओं का सम्मान करत हुये समान नागरिक संहिता के साथ राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तरह भू-मूल निवास कानून बनाने का कार्य करें।

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