उत्तराखंड देश

समान नागरिक संहिता बनाने की हुंकार भरने वाले मुख्यमंत्री धामी जनता की राजधानी गैरसैंण, भू-मूल निवास कानून की पुरजोर मांग को क्यों कर रहे है नजरांदाज ?

राजधानी गैरसैंण, भू व मूल निवास कानून बनाने की जनता की पुरजोर मांग को नजरांदाज करने से  उतराखण्ड व देश की सुरक्षा खतरे में

पत्रकारों को लोकशाही का आईना दिखाने वाले मुख्यमंत्री धामी उतराखण्ड की जनांकांक्षाओं, सुरक्षा व हितों को क्यों कर रहे हैं नजरांदाज

देवसिंह रावत-

उतराखण्ड की जनता के साथ देश के जागरूक लोग हैरान हैं कि  पत्रकारों को लोकशाही का आईना दिखाने वाले, भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हुये देश में सबसे पहले समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार वाले उतराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आखिरकार क्यों उतराखण्ड की जनता की दशकों से जारी पुरजोर मांग राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून को क्यों पूर्ववर्ती सरकारों की तरह नजरांदाज कर रहे है?  राज्य  सरकारों द्वारा राजधानी गैरसैंण, भू व मूल निवास कानून बनाने की जनता की 23 सालों से चली आ रही पुरजोर मांग को नजरांदाज करने से  उतराखण्ड व देश की सुरक्षा खतरे में डाल दी है।उल्लेखनीय है कि उतराखण्ड सरकार शीघ्र ही समान नागरिक संहिता के कानून को विधानसभा में पारित कराना चाहती है। विधानसभा का सत्र भी 5 फरवरी को आहुत किया गया है। प्रदेश सरकार द्वारा पूर्व न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई की अगुवाई में गठित की गई पांच सदस्यीय समान नागरिक संहिता का ड्राफ्ट विशेषज्ञ समिति का कार्यकाल भी 26 जनवरी को समाप्त हो रहा था इसे 15 दिन के लिये बढा दिया गया। यह समिति भी 2 फरवरी को अपनी रिर्पोट सरकार को सोंप देगी। इसकी सूचना मुख्यमंत्री धामी ने अपने ट्वीट में इस प्रकार से दी कि आदरणीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के ’एक भारत,श्रेष्ठ भारत’ के विजन और चुनाव से पूर्व उत्तराखण्ड की देवतुल्य जनता के समक्ष रखे गए संकल्प एवं उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप हमारी सरकार प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने हेतु सदैव प्रतिबद्ध रही है।
जबकि भारत के इस सीमांत प्रांत व हिमालयी राज्य उतराखण्ड के चहुमुखी विकास, राज्य गठन की जनांकांक्षाओं को साकार करने के साथ देश की सुरक्षा के लिये  राजधानी गैरसैंण, अन्य हिमालयी राज्यों की तरह ही भू-मूल निवास कानून की नितांत जरूरत है। प्रदेश की जनता इन मांगों के लिये निरंतर सडकों पर संघर्ष कर रही है। देहरादून, दिल्ली, बागेश्वर, भिक्यिसैंण व हल्द्वानी में विशाल जन सैलाब उमडने के साथ आम जनमानस दलगत राजनीति से उपर उठ कर इन मांगों का समर्थन कर रहा है। परन्तु देहरादून में 30 जनवरी 2024 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पत्रकारों को तो लोकशाही का आईना दिखाते रहे। देहरादून के  जी.एम.एस. रोड स्थित होटल में आयोजित राज्य स्तरीय भाजपा मीडिया कार्यशाला को संबोधित करते हुये कहा कि मीडिया विभाग की भूमिका हमेशा से ही सरकार और जनता के मध्य एक सेतु की रही है। लोगों को क्या सूचना चाहिए और हमने क्या सूचना देनी है….यह काम मीडिया से जुडे प्रतिनिधि बेहतर ढंग से समझते हैं। इस प्रकार आप सब संवाद के भी माध्यम है।मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र से लेकर राज्य सरकार की प्रत्येक योजना के बारे में लोगों को बताने में आपकी सशक्त भूमिका है। यही नही सरकार की बात जनता तक और जनता की बात को सरकार तक पहुंचाने में भी मीडिया की अहम भूमिका है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आपकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आज लोगों तक जानकारी पहुंचना तो सरल हो गया है पर सही जानकारी पहुंचना कठिन हो गया है।  इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से अपेक्षा की कि  आप हम सबके “नारद“ की भूमिका में हैं, इस भूमिका में आप लोग अवश्य सफल होंगे।  परन्तु लोकशाही में प्रांत के प्रथम सेवक यानि मुख्यमंत्री का क्या दायित्व होता है शायद इसको वे भूल गये।  वे जनता की पुरजोर मांगों को नजरांदाज करके जिस प्रकार से प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू करने की हुंकार मुख्यमंत्री की ताजपोशी से आज तक समय समय पर भरते रहे उससे यही साफ होता है कि प्रांत का प्रथम सेवक अपने प्रथम दायित्व को भूल गये है। लोकशाही में जनता सर्वोपरि होती है। जनता मांग कर रही है राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज भू-मूल निवास कानून बनाने की। परन्तु मुख्यमंत्री पूरे दमखम से ऐलान कर रहे हैं कि हमारी सरकार प्रांत में समान नागरिक संहिता का कानून बना कर रहेंगे। अब तक तो देश की आम जनता में यह धारणा है कि दिल्ली देर से सुनती है परन्तु अब उनको यह देख कर हैरानी हो रही है कि उनका प्रथम सेवक तो सुनता ही नहीं जनता की पुकार। यह कैसी लोकशाही है। ऐसी हटधर्मिता करने वाले कैसे भगवान राम व भारतीय संस्कृति की दुहाई देते हैं? यही नहीं इनके सत्ताधारी दल के प्रांत अध्यक्ष तो जनहित व प्रांतहित की मांग करने वालों को वामपंथी यानि भारतीय संस्कृति को न मानने वाले ही बता कर जनता का उपहास उडाने की धृष्ठता कर रहे हैं? यह सब लोकशाही के नाम पर किया जा रहा है। यह सत्तामद में चूर हो कर किया जा रहा है या लोकशाही को रौंदते हुये।  परन्तु इतना साफ है कि यह प्रवृति न लोकशाही के लिये हितकर है व नहीं उतराखण्ड व देश के लिये। भगवान राम तो मर्यादाओं व जनभावानाओं का सम्मान करने की सीख देते थे। परन्तु ऐसी प्रवृति किसी भी सूरत में भारतीय संस्कृति की ध्वजवाहक हो ही नहीं सकती। लोगों को आज भी आशा है कि देर सबेर प्रधानमंत्री मोदी जी, प्रांत की सत्ता में आसीन अपने भरत को भारतीय संस्कृति की उदगम स्थली उतराखण्ड में भी भगवान राम की तरह मर्यादाओं का पालन करते हुये महिलाओं का अपमान करने वाले रावणों को दण्डित कराने के साथ जनभावनाओं का सम्मान करत हुये समान नागरिक संहिता के साथ राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तरह भू-मूल निवास कानून बनाने का कार्य करें।

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