उत्तराखंड देश

“मैदानी बनाम पहाड़ी विवाद” नहीं अपितु प्रदेश सरकारों की उत्तराखण्डी जनांकांक्षाओं, विकास व देश की सुरक्षा से किये जा रहे खिलवाड़ से उपजी कराह है “मूल व भू कानून जनांदोलन”

 

आंदोलनकारी संगठन, शासन व जनता, समाज विरोधी तत्वों पर लगाये अंकुश

 

देवसिंह रावत

उत्तराखंड में इस माह में हुये व्यापक मूल निवास व सशक्त भू कानून जनांदोलन से जहां पूरे उत्तराखंड की राजनीतिक दलों समाज में उथल-पुथल मची हुई है। वहीं प्रदेश में सत्तासीन व स्थापित राजनीतिक दलों के अवसरवादी नजरिये के कारण तथा राष्ट्रीय समाचार जगत व बुद्धिजीवियों के अल्प ज्ञान के कारण देश में यह गलत संदेश जा रहा है कि यह उत्तराखंड में पहाड़ी एवं मैदानी लोगों का विवाद है।
ऐसा नहीं की उत्तराखंड में ऐसी व्यापक जन आंदोलन नहीं हुए हों। कुछ ही समय पहले यहां देहरादून में बेरोजगारों का ऐसा ही व्यापक जनांदोलन हुआ था, उसकी गूंज उत्तराखंड व दिल्ली सहित देश के कोने-कोने में सुनाई दिया। यहां पर कभी राजधानी गैरसैंण, अंकिता भण्डारी हत्या प्रकरण, जोशीमठ उत्तरकाशी त्रासदी आदि मुद्दों पर समय-समय पर व्यापक जनांदोलन होते हैं। आंदोलन तो देश सहित पूरे विश्व में आये दिन होते रहते हैं। राजनैतिक दल व सामाजिक आंदोलन तो प्रायः प्रायोजित होते हैं। परन्तु जनांदोलन किसी एक घटना या आवाहन पर स्वयं स्फूर्त होता है।
यहां उल्लेख करना जरूरी है कि उत्तराखंड राज्य का गठन ही ऐसे ही जनांदोलन की कोख से हुआ। जनता को ऐसा विश्वास था कि राज्य गठन के बाद यहां की सरकार जनता को उद्वेलित करने वाली समस्याओं का त्वरित समाधान करेगी तथा राज्य गठन की जनांकांक्षाओं पलायन पर अंकुश, हक हकूकओं की रक्षा, सांस्कृतिक विरासत-सम्मान की रक्षा व सुशासन आदि जिनको साकार करने के लिए उत्तराखंडियों ने राव-मुलायमी सरकारों के अमानवीय दमन सहे। उन जनांकांक्षाओं को साकार करने की राह भी राजधानी गैरसैंण, हिमालयी राज्यों की तर्ज पर भू व मूल निवास कानून बनाने से उत्तराखंड राज्य गठन से पहले ही तय कर ली थी।
उत्तराखंड वह देश का दुर्भाग्य यह रहा सन 2000 से गठित इस पृथक उत्तराखंड राज्य में जो भी सरकार सत्तासीन रही उन्होंने जनाकांक्षाओं को साकार करने के बजाय सत्ता मत में चूर होकर उनको ही रौंदने का कार्य किया। सरकारों की जन विरोधी प्रवृत्ति के कारण उत्तराखंड में जनता की आशाओं व अपेक्षाओं पर भारी वज्रपात हुआ। राजधानी गैरसैण न बनायें जाने के कारण देहरादून में पंचतारा सुविधाओं में लिप्त कुंडली मारे बैठे हुए नेताओं नौकरशाहों की मनोवृत्ति भी लखनवी मानसिकता से ग्रसित हो कर उत्तराखंड की पर्वतीय जनपदों की साथ उत्तर प्रदेश के शासनकाल की तर्ज पर ही उपेक्षा पूर्ण सौतेला व्यवहार करने लगे। राज्य गठन के बाद लोगों को आशा थी कि अब पलायन पर अंकुश लगेगा परंतु शासन की लखनवी मनोवृत्ति को के कारण उत्तराखंड की सीमांत वह पर्वतीय जनपदों से भारी संख्या में पलायन हो गया, लाखों घरों में ताले लग गये व हजारों गांवों में वीरानी का दंश झेलने के लिए अभिशापित हो गए। इससे चीन से लगे इस सीमांत प्रांत की इस समस्या से देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया।
सरकारों की घोर सत्तालोलुप्ता व जनता के प्रति अपने दायित्वों से विमुख होने के कारण प्रदेश में जहां घुसपैठियों की बाढ़ सी आ गई वहीं भारत विरोधी अपराधियों के लिए अभ्यारण बन गया। इससे प्रदेश के युवाओं को रोजगार से वंचित रहना पड़ रहा है और प्रदेश के अमन चैन पर भी ग्रहण लग रहा है। इसी पर रोकथाम करने के लिए प्रदेश में समय-समाई पर विभिन्न मांगों को लेकर व्यापक जनता सड़कों पर दिखाई देता है। सामाजिक तत्व राजनीतिक दल व अवसरवादी लोग इस मुद्दे को मैदानी बनाम पहाड़ी की विवाद का लबादा उड़ा देते हैं। हकीकत में यह मामला प्रदेश की जनता की जनाकांक्षाओं को सरकार द्वारा साकार न किये जाने के कारण होता है। अगर अन्य हिमालय राज्यों की तर्ज पर यहां की युवाओं को रोजगार देने का दायित्व सरकार निभाती और राजधानी गैरसैण,भू कानून मूल निवास बनाती तो यह जन आंदोलन दूर-दूर तक नहीं देखने को मिलता।
हकीकत यह है कि यह आंदोलन पहाड़ी क्षेत्र के साथ की गये सरकार के सौतेले व्यवहार, अपराधियों व घुसपैठ को समय पर अंकुश न लगाए जाने की कारण हो रही है।
यहां आंदोलन उत्तराखंड की सीमा के अंदर रहने वाले कृषि जनपद या किसी आम नागरिक के खिलाफ नहीं है। न ही यह आंदोलन भारत पाक विभाजन या बांग्लादेश की समय बसाये गये लोगों की खिलाफ है। यह तराई मैदानी या पहाड़ी लोगों का भेद नहीं है। आंदोलन पूरी तरह सी सरकार व नौकरशाही की जनता की प्रति की जा रही सौतेले व्यवहार व राज्य गठन की जनाकांक्षाओं को रौंदने के खिलाफ का आंदोलन है और देश की सुरक्षा की प्रति समर्पित आंदोलन है।
उत्तराखंड में भू कानून मुद्दा भी उत्तराखंड सरकार की घोर लापरवाही के कारण सामने आया। सरकार द्वारा उतराखण्ड उच्च न्यायालय के राज्य गठन के की साल बाद दिये गये फैसले पर न्यायोचित समाधान न करने के कारण उत्पन्न हुआ। सरकारों की इस सौतेले व्यवहार के कारण उत्तराखंडी खुद को ठगे महसूस कर रहे हैं।इस बार भी आम जनमानस सहित आंदोलनकारी अपने लोकतांत्रिक ढंग से अपने आक्रोश को प्रकट करने के लिए शांतिपूर्ण ढंग से सड़कों पर उतरे। आंदोलनकारी और सरकार को समझना चाहिए कि इसका असली मामला जनाकांक्षाओं को सरकार नकली जाने के कारण उत्पन्न हो रहा है । सरकार को कमेटी गठन करने के अपने जनता की आंखों में धूल झोंकने वाले हथकंडों के बजाय दुराग्रह व दलीय स्वार्थ को दर किनारे रखकर अविलम्ब हिमालयी राज्यों की तर्ज भू व मूल निवास कानून बनान, राजधानी गैरसैंण बनाने, विशेष राज्य का दर्जा दिलाने, वन व भूमि क़ानून सुधार करने, जंगली जानवरों पर अंकुश लगाने,मुजफ्फरनगर कांड-94 के गुनाहगारों को सजा दिलाने व जनसंख्या पर आधारित विधानसभा क्षेत्र परिसीमन पर अंकुश लगाने, प्रदेश के हक हकूकओं अर्जित करने, युवाओं को रोजगार देने व अवैध घुसपैठ पर अंकुश लगाने आदि कार्य कर प्रदेश की जनाकांक्षाओं को साकार करना चाहिए। उसके साथ शासन व आंदोलनकारी संगठनों को विषय की गंभीरता को समझते हुए सभी मांगों को एकजुट रखकर इनका समाधान करते हुए प्रदेश में अशांति फैलाने वाले असामाजिक तत्वों पर अपने अपने स्तर से अंकुश लगाना चाहिए। इन समस्त मांगों का प्रदेश के चहुंमुखी विकास व जनाकांक्षाओं से गहरा संबंध है। किसी एक मांग को भी नजरंदाज किये जाने से प्रदेश की स्थिति में सुधार नहीं होगा।

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