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सन1978 की विनाशकारी बाढ का रिकार्ड तोेड कर दिल्ली को डूबोने को उतारू है प्रलंयकारी बाढ के बाबजूद इस कवच के होनेे सेे बेखौफ है दिल्लीवाले

राराक्षे दिल्ली से देवसिंह रावत
इन दिनों अतिवर्षा, भूस्खलन व बादल फटने से बाढ़ ने तबाही मचाई हुई हैे। देश के पर्वतीय प्रदेशों में तबाही मचा कर यहां से बहने वाली बिकराल बनी नदियों का पानी अब देश की राजधानी दिल्ली को डूूबाने के लिये उतारू है। इसके बिकरालता का अंदाजा इसी बात से लगाया  जा सकता है कि इस बाढ़ ने दिल्ली में 45 साल पहले इसी माह आई यमुना का जलस्तर 1978 के 207.49 मीटर का रिकार्ड भी ध्वस्थ कर  आज 13 जुलाई 2023 को सुबह दस बजे तक 208.51 मीटर तक  बह कर यमुना के आसपास के क्षेत्रों में तबाही मचा  रही है। दिल्ली में जमुना का खतरे का निशान 205.33 मीटर है। जिसे बाढ़ का पानी दो दिन पहले ही तोड़ चूका है।  दिल्ली में यमुना तट के समीप  बने यमुना बेंक मेट्रों के पास भी बाढ़ का पानी पंहुच गया। इस कारण वहां पर प्रवेश और उतरने पर रोक लगा दी गई। वहीं तिब्बतियों के बाजार मोनेस्टी में भी 3-4 फुट पानी भर गया। मजनू के टीले से आईटीओ जाने वाली सडक पर भी पानी पंहुच गया। वजीराबाद जलविद्युत संस्थान तक भी पानी पंहुच गया है। इससे वजीराबाद ,ओखला व चंद्रावल जल संशोधन संस्थान बंद कर दिए गए हैं। आईटीओ जाने वाले मार्ग  व कश्मीरी गेट बस अड्डा जाने वाले राजघाट वाला मार्ग भी अवरुद्ध हो गया है लाल किले के पिछले हिस्से व मयूर विहार फेज 1 तक जलभराव हो गया है।
इसके बाबजूद दिल्ली के जागरूक लोग बेखौप है। दिल्ली के जागरूक लोेगों को इस बात का भान है कि इस बार दिल्ली की यह बाढ़ भले ही 1978 के जलस्तर से कहीं उपर बह रही है , पर इस बार दिल्ली के लोेगों को 1978 की बाढ़ से हुई तबाही का दंश लोगों को उतना नहीं झेलना पडेगा। क्योंकि यमुना के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में 1978 के बाद जिस प्रकार से जमुना के बाढ़ के प्रकोप से बस्तियों को बचाने के लिये विशाल पुस्तों का निर्माण का सराहनीय कार्य कर रखा है। इन पुस्तों के कारण ही इस विनाशकारी बाढ़ के बाबजूद लोगों में 1978 की तरह दहशत नहीं है। ये पुस्ते दिल्ली के लिये एक प्रकार से कवच की तरह है। 1978 की बाढ़ की स्मृतियां मेरे मानस पटल पर है। उसी साल में गांव से 8वीं पास कर 9वीं कक्षा की पढ़ाई के लिये रेलवे में सेवारत अपने पिताजी के पास एशिया की सबसे बड़ी रेलवे कालोनी के नाम पर विख्यात रेलवे कालोनी किशनगंज में आया था। मुझे याद है 1978 को मै दिल्ली के पदमनगर उ मा बाल विधालय में कक्षा 9 का छात्र था। गांव के शांतवादियों से विश्व की महानगरी दिल्ली में इस बिकराल बाढ़ की छाप आज भी मेरे मन में अमिट है। उन दिनों इंटरनेट, टीबी का प्रचलन नहीं था। अखबारों से  ही लोग खबरें पता करते थे। हमारे विद्यालय में भी बाढ़ शिविर लग गये थे। माडल टाउन, बस अड्डा, सहित कई क्षेत्र जलमग्न हो गये थे। 1978 की तरह की विनाशकारी वर्षा मेने आज तक दिल्ली में नहीं देखी। कल रात मेने सोनिया बिहार निवासी हयात सिंह रावत से बाढ़ के पानी के बारे में बात की तो उन्होने कहा कि पुस्तों के बनने से शकरपुर लक्ष्मीनगर सहित उनका क्षेत्र सोनिया बिहार भी सुरक्षित है। बाढ़ का पानी 2010 में आयी बाढ़ के पानी की पंहुच तक भी नहीं पंहुचा। परन्तु प्रशासन ने सुरक्षा की दृष्टि से जिन क्षेत्रो में बाढ़ का पानी पंहुच चूका है, उन क्षेत्रों से लोेगों को सुरक्षित क्षेत्रों की तरफ जाने का फरमान जारी कर दिया है।उल्लेखनीय है कि दिल्ली में यमुना का खतरे का जल स्तर निशान 205.33 मीटर है। दिल्ली में बाढ की बिकरालता देखते हुये केंद्र की मोदी सरकार ने दिल्ली के 140 करोड़ लोगों के जीवन की रक्षा, दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के भरोसे छोड़ कर खतरे में न डालते हुये तुरंत इस भीषण बाढ़ से जान माल की रक्षा के लिये बाढ़ के बचाव व राहत कार्य अपने हाथों में ले कर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन बचाव बल के 12 दलों को बाढ़ पीडित 6 जिलों में उतार दिया है। वहीं दिल्ली के उप राज्यपाल ने दिल्ली में दो तीन दिन की वर्षा में ही दिल्ली की सडकों व घरों के जलमग्न होने के लिये दिल्ली सरकार व दिल्ली नगर निगम की सत्ता में आसीन अरविंद केजरीवाल की सरकार को भी जिम्मेदार ठहराया। उप राज्यपाल सहित दिल्ली के जागरूक लोगों ने दिल्ली में समय रहते हुये वरसात से पहले नाली व गटरों को साफ न कराने से दिल्ली जलमग्न होना बताया। दिल्ली सरकार को दिल्ली में बाढ़ आने पर हायतोबा मचाने व राहत की गुहार लगाने के बजाय समय रहते हुये दिल्ली में जल निकासी, गटर व नालियों की सफाई इत्यादि का पूर्व की सरकारों की तरह विशाल पुस्ते निर्माण करने की तर्ज पर ठोस काम करती तो दिल्ली वालों को ये दिन नहीं देखना पड़ता। दिल्ली सरकार की उदासीनता व अदूरदर्शिता  के कारण हर साल नाली गटर व सफाई अभियान का करोड़ों का बजट भ्रष्टाचार की भैंट चढ़ जाता  है। पर सरकार काम करने के बजाय केवल दोषारोपण पर लग कर दिल्ली के जान माल से खिलवाड कर रही है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सभी विधायकों पार्षदों व अधिकारियों को बाढ़ के बचाव और राहत कार्यों में जीतने का फरमान जारी किया। दिल्ली के बाढ़ की ताजा हालातों के बारे में जारी एक ट्वीट में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा किय यमुना में बढ़ते जल स्तर की वजह से वज़ीराबाद, चन्द्रावल और ओखला वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद करने पड़ रहे हैं। इस वजह से दिल्ली के कुछ इलाक़ों में पानी की परेशानी होगी। जैसे ही यमुना का पानी कम होगा, इन्हें जल्द से जल्द चालू करने की कोशिश करेंगे।
इसके साथ मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ट्वीट करके जानकारी दी कि
यमुना नदी में जलस्तर बढ़ने से आज कई वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद करने पड़े हैं। यमुना किनारे बने वज़ीराबाद वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट का आज मैंने खुद दौरा किया। जैसे ही स्थिति यहाँ सामान्य होगी हम इसे जल्द शुरू करेंगे।
आज ही दूसरे ट्वीट में केजरीवाल ने जानकारी दी कि
यमुना में बढ़ते जल स्तर की वजह से वज़ीराबाद, चन्द्रावल और ओखला वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट बंद करने पड़ रहे हैं। इस वजह से दिल्ली के कुछ इलाक़ों में पानी की परेशानी होगी। जैसे ही यमुना का पानी कम होगा, इन्हें जल्द से जल्द चालू करने की कोशिश करेंगे।
वर्तमान में यमुना, खतरे के निशान को दो दिन पहले ही पार कर चूकी है। बाहरी रिंग रोड़, यमुना का लोहे  का पुल, मजनू का टिला, सिविल लाइन व यमुना बाजार आदि क्षेत्र में बाढ़ की चपेट में आ गये। अभी अभी खबर मिली की चंदगी राम के अखाडे के समीप, यमुना बैंक मेट्रो क्षेत्र  आदि की तरफ बाढ़ पांव पसार रही है। प्रशासन ने निगमबोध धाट क्षेत्र, गीता कालोनी श्मसान घाट में पानी भरने से लोगों को यहां अंतिम संस्कार करने के बजाय अन्यत्र चिन्हित घाटों पर संस्कार करने की सलाह दी। इसके साथ प्रशासन ने यमुना बाजार सहित सभी डूब क्षेत्र के लोगों को सुरक्षित स्थानों में चले जाने का अनुरोध किया। इसके साथ सरकार ने इन डूब क्षेत्र के लोगों के लिये लक्ष्मीनगर से आइटी वाले यमुना पुल की पटरी पर भी बाढ़ पीडितों के लिये अस्थाई कैंप बनाये हुये है।खासकर देश की राजधानी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उप्र सहित उतर भारत में अतिवर्षा के साथ हिमाचल, पूर्वोतर, उतराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में हो रही प्रलंयकारी वर्षा, भूस्खलन व बादल फटने से इन राज्यों में जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। हजारों करोड़ के नुकसान के साथ सैेकडों लोग व पालतु जानवर कालरूपि बाढ़ में काल कल्वित हो गये है। हिमाचल व उतराखण्ड में प्रलयंकारी अतिवर्षा का रौद्र रूप देख कर देश सहित पूरी दुनिया सहमी हुई है।  पर्वतीय क्षेत्रों में हो रही  बादल फटने व भूस्खलन की विनाशकारी घटनाओं के बढ़ोतरी के पीछे सरकारों द्वारा संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बडे बांधों, सुरंगों व सड़कों को अंधाधुंध चौडीकरण इत्यादि विकास के नाम पर स्थापित की जा रही परियोजनाओं को जिम्मेदार माना जा रहा है।
उत्तराखंड सहित  हिमालय क्षेत्र में होने वाली अतिवृष्टि के कारण इन क्षेत्रों  से निकलने वाली यमुना व गंगा सहित दर्जनों सहायक नदियां पानी से लबालब है। इसके कारण दिल्ली सहित मैदानी राज्यों में बाढ़ का गहरा संकट बढ़ गया है। देश की राजधानी दिल्ली में बाढ़ का प्रमुख कारण उत्तराखंड से आने वाली यमुना नदी पर हरियाणा में बनाए हथिनी कुंड बांध का पानी छोड़े जाने के कारण दिल्ली, बिना बारिश के भी बाढ़ डूब गई है। कश्मीरी गेट बस अड्डा रिंग रोड व आईटीओ तक बाढ़ का पानी पंहुचने के कारण यातायात अवरुद्ध हो गया है। समस्या यह है कि गर्मी में हरियाणा सरकार हथिनी कुंड से पानी दिल्ली को पर्याप्त मात्रा में नहीं छोड़ती है वही बरसात में अनावश्यक पानी छोड़कर दिल्ली को संकट में डाल देती है। अगर उत्तराखंड सरकार यमुना के पानी का सही सदुपयोग करें तो दिल्ली को भी संकट से उबार आ जा सकता है।

 

 

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