देश

लोकशाही को लूटशाही बनाने वालों को जमींदोज करना भी है राष्ट्रसेवा


महाराष्ट्र में राकांपा में हुये विद्रोह के संदर्भ में   
प्यारा उत्तराखण्ड डांट काम
इसी सप्ताह महाराष्ट्र  प्रदेश सरकार में राकांपा के नेता व सदन में नेता प्रतिपक्ष अजित पंवार सहित 9 राकांपा के विधायकों को भाजपा शिवसेना गठबंधन की सरकार में अचानक  सरकार में उप मुख्यमंत्री व मंत्री पद की शपथ दिलाई गयी। तो  राकांपा नेतृत्व सहित पूरा देश भौंचंक्का रह गया। महाराष्ट्र में इस अचानक हुये शपथ ग्रहण के बाद ही देश ने जाना कि भाजपा ने देश के राजनीति के दिग्गज नेता व राकांपा के आलाकमान की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी  में भी भाजपा ने शिव सेना की तर्ज पर ही विद्रोह कराकर अपनी महाराष्ट्र सरकार को मजबूती प्रदान कर दी। पंवार सहित विपक्ष ने इसके लिये भाजपा की कडी भत्र्सना करते हुये इसे लोकशाही पर कुठाराघात बताया। वहीं शरद पंवार ने इस विश्वासघात बता कर विद्रोह करने वालों के खिलाफ कमर कस कर 82 साल की उम्र में एक बार फिर से राकांपा को मजबूत बनाने की हुंकार भर दी। वहीं भाजपा के नेता जो सत्तासीन होने से पहले कांग्रेस को दल बदल कराकर विपक्षी सरकारों को ढहाने को लोकशाही का गलाघोंटने का आरोप लगाते थे, वे इस प्रकरण को महाराष्ट्र में विकास के लिये विपक्षी नेताओं का जुडना बता रहे थे। इसके साथ भाजपा के नेता व सरकार में विद्रोह करके जुडने वाले नेता एक स्वर में कह रहे थे कि मोदी के नेतृत्व में देश में विकास की आंधी चल रही है। देश सहित पूरे विश्व में मोदी के मजबूत नेतृत्व की सराहना हो रही है। ऐसे में 2024के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर देश की जनता मोदी के नेतृत्व वाले राजग गठबंधन की ताजपोशी करने का मन बना चूकी है। जनभावनाओं को देखते हुये महाराष्ट्र के त्वरित विकास करने के लिये उन्होने भाजपा सरकार में सम्मलित होने को निर्णय लिया।
इस पर तीब्र प्रतिक्रिया प्रकट करते हुये लोकशाही के प्रखर ध्वजवाहक व विश्व चिंतक देवसिंह रावत ने कहा कि लोकशाही में बलात दल बदल कराना खुली डकैती है परन्तु जब अपने निहित स्वार्थ में डूबे जनप्रतिनिधी व राजनैतिक दल देश व जनहितों को रौंद कर लोकतंत्र को लूटशाही में तब्दील कर देते हैं ऐसे तत्वों से देश व जनता की रक्षा करने के लिये ऐसे दलों को एक पल भी सत्ता या विपक्ष  में बनाये रखना एक प्रकार से राष्ट्रघाती है। ऐसे दलों को कमजोर करना एक प्रकार से देश व जनता के हितों की रक्षा करना ही है। वेशर्ते ऐसे करने वाला दल राष्ट्रीय व जनहितों के प्रति समर्पित रहे। परन्तु देखा यह जा रहा है कि देश व जनसेवा के नाम पर सत्तालोलुपता के लिये दलबदल किया जाता है। ये फिर अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिये देशहितों पर कुठाराघात करके जाति, संप्रदाय, निहित स्वार्थ की पूर्ति के लिये अंध तुष्टीकरण, परिवारवाद, भ्रष्टाचार व राष्ट्र विरोधी ताकतों का शर्मनाक संरक्षण करने में लग जाते है। देश की सत्ता में दिशाहीन सत्तालोलुपुओं के शिकंजे के कारण ही देश की आम जनता शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, रोजगार व सुशासन से वंचित हो गयी है। यही नहीं ऐसे सत्तालोलुपु तत्वों के कारण देश में भारत विरोधी तत्व घुसपैठ, धर्मांतरण कराकर जहां भारत को निरंतर कमजोर कर रहे हैं। वहीं भ्रष्टाचारी जनप्रतिनिधी व नौकरशाह मिल कर देश को पतन के गर्त में धकेल रहे है। ऐसे में ऐसी ताकतें जनप्रतिनिधियों व दलों को धनबल, जाति व संप्रदाय के बल कर अपने इशारे में नचा कर देश पर अपना शिंकजा निरंतर कस रहे है। ऐसे में देश की आम जनता लूटशाही व लोकशाही के अंतर को समझ नहीं पाती है।गौरतलब है कि अजित पंवार के साथ राकांपा में गत मास जिस प्रफुल्ल पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया तथा छग्गन भुजबल सहित वरिष्ठ नेताओं ने अपने आलाकमान की आंखों में धूल झौंक कर यकायक भाजपा गठबंधन की शिंधे सरकार में सम्मलित हो कर सबको हैरान कर दिया।
यही नहीं राकांपा में विद्रोह करने के साथ ही विद्रोही नेता अजित पंवार ने अपने साथ राकांपा के 53 में से 40 से अधिक विधायकों व अनेक सांसदों का समर्थन की हुंकार भरते हुये कहा उन्होने भारत के चुनाव आयोग में राकांपा व उसके चुनाव चिंन्ह पर अपना दावा भी ठोक दिया। जब पंवार ने  अजित पंवार को नेता प्रतिपक्ष से हटाते हुये प्रफुल्ल पटेल आदि नेताओं को राकांपा से बर्खास्त करने का जब ऐलाने करते हुये अपनी तस्वीर लगाने के लिये भी विद्रोहियों को फटकार लगाई। उसके बाद 5 जुलाई को जब विद्रोही व पवार गुट की बैठक हुई। उसके बाद साफ हुआ कि अजित जिन 42 विधाायकों के समर्थन को ऐलान के दावें कर रहे थे, वे उन विधायकों को अपनी बैठक में प्रस्तुत तक नहीं कर पाये। भले ही विधायकों की संख्या की दृष्टि से वे अपने चाचा शरद पंवार पर भारी साबित हुये परन्तु इसके बाबजूद उनकी बैठक में दल बदल की लक्ष्मण रेखा से बचाने वाली संख्या यानि 36 विधायक भी नहीं उपस्थित करा पाये। अजित पंवार की बैठक में केवल 29 विधायक व शरद की बेठक में 17 विधायक उपस्थित हुये। हां पंवार की बैठक में 4 सांसद भी उपस्थित होने से एक प्रकार 82 साल की उम्र में भी पंवार का दमखम देख कर उनके विरोधी भी हैरान रहे। इस वैठक में अजित पंवार ने पंवार से अनुरोध किया कि वे अपनी जिद्द छोड कर हमें आशीर्वाद दें। वहीं पंवार की शिकायत यही थी कि अजित ने उनको अंधेरे में रख कर विद्रोह किया। अपने मन की बात अगर वह पंवार को बताते हो उसका समाधान होता। वहीं अजित चाहते हैं कि पंवार उम्र के इस पडाव में राजनीति में नई पीढी को आगे बढाने का भी अनुरोध किया। जब पंवार ने विद्रोहियों के खिलाफ हुंकार भरते हुये नये ढंग से राकांपा को खडी करने का ऐलान किया। इसके बाद अजित पंवार जो 5 जुलाई की बैठक तक राकांपा के अध्यक्ष पद पर शरद पंवार को ही बता कर उनकी तस्वीर भी प्रमुखता से लगा रहे थे, इस बैठक के बाद अजित ने खुद को राकांपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया। यह एक प्रकार से राकांपा के संविधान का खुला उलंधन किया गया।
इसके बाद 6 जुलाई को शरद पंवार ने राकांपा की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक दिल्ली में अपने आवास में करते हुये चुनाव आयोग के समक्ष विद्रोहियों की शिकायत करते हुये अपना पक्ष रखा।  अब महाराष्ट्र में शिवसेना की तर्ज पर भाजपा राकांपा की भी राजनैतिक ताकत को कूंद करके इसके नाम व चिन्ह से अपने गठबंधन में सम्मलित कराने का सफल दाव चला दिया।
महाराष्ट्र में हुये इस विद्रोह ने गत माह पटना में 15 मुख्य विपक्षी दलों के मोदी विरोधी मोर्चे की एक प्रकार से हवा ही निकल गयी। वहीं भाजपा के केंद्रीय सहित बिहार सहित अन्य प्रांतों के नेता भी देश के अन्य प्रदेशों में भी महाराष्ट्र की तर्ज पर विपक्षी सरकारों को ढहाने की हुंकार भर रहे थे। इससे पूरा विपक्ष आशंकित हो गया।
भारत में जनप्रतिनिधियों में जब सत्तालोलुपता व  धन लोलुपता बढने के कारण रेत की महलों की तरह सरकारेें ढाई गयी। हरियाणा में अक्टूबर 1967 में एक विधायक लाल ने 15 दिन में तीन बार दल बदल किया।
पूरा देश जनादेश का हरण करके किये जा रहे दल बदल व सरकारें बदलने से हैरान था। इस पर गंभीर चिंतन मंथन चल रहा था। देश की जनता चाह रही थी कि इस दल बदल कलंक से देश की लोकशाही की रक्षा की जाय। इस देशव्यापी मांग को महसूस करते हुये 1985 में देश के संविधान में 52वां संशोधन करके दल बदल कानून बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इसके तहत जब तक किसी भी राजनैतिक दल के दो तिहाई सदस्य दल न करें तब तक दल बदल करने वालों की सदस्यता समाप्त मानी जायेगी। इस कानून के तहत जब किसी दल का जनप्रतिनिधी अपने दल की हिृप यानि निर्देश का उलंधन करता है तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जायेगी। परन्तु जब कोई दल अपने निर्देशों का उलंघन करने वाले जनप्रतिनिधी को दल से निकाल देता है तो उसकी सदस्यता समाप्त नहीं अपितु उसे असम्बंध सदस्य घोषित किया जाता है। परन्तु राजनैतिक दलों की अंध सत्तालोलुपतासे  इस दल बदल कानून का भी इस तरह से गला घोंट ही दिया।

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