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फोनिया, बहादुर राम,तेजपाल व पांगती जैसे सुयोग्य नेताओं को दरकिनार कर प्यादों को उत्तराखंड में सत्तासीन करने का दंड भोग रहा है उत्तराखंड

नहीं रहे उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड की पूर्व पर्यटन मंत्री केदार सिंह फोनिया

प्यारा उत्तराखंड डॉट कॉम

ओली जैसे साहसिक पर्यटक स्थल के रूप में विश्व पर्यटन मानचित्र में स्थापित करने वाले 92 वर्षीय उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के पूर्व वरिष्ठ काबीना मंत्री व भाजपा नेता केदार सिंह फोनिया का आज निधन हो गया। 1991 में उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार में पर्यटन मंत्री से लेकर उत्तराखंड राज्य गठन के ड़ेढ दशक तक राजनीति में बदरी केदार विधानसभा क्षेत्र (उत्तराखंड बनने के बाद बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र )का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा नेता केदार सिंह फोनिया के निधन पर उत्तराखंड के राज्यपाल पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल सिंह, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी सहित सभी दलों के नेताओं ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

वे लंबे समय से बीमार थे। पर्यटन के क्षेत्र में उनको महारत हासिल थी। उनकी इसी प्रतिभा से प्रभावित होकर भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने उनको प्रदेश का पर्यटन मंत्री बनाया।जोशीमठ-औली रोपवे भी उन्हीं की देन है। सीमांत जनपद चमोली के बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र सहित बद्री केदार क्षेत्र के दूरस्थ गांवों में सड़कें पहुंचाने का श्रेय भी उन्हें ही जाता है।
6 अक्टूबर 1930 को चीन से लगे सीमांत जनपद चमोली के गमशाली गांव के निवासी माधव सिंह फोनिया के सुपुत्र के रूप में जन्मे केदार सिंह फोनिया ने पर्यटन में स्नातकोत्तर शिक्षा ग्रहण की। उनके शोकाकुल परिवार में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती कमला फोनिया, एक बेटा व तीन बेटी हैं।
उनके अनुभव का लाभ उत्तराखंड में भी उठाने के बजाय यहां पर प्रदेश में आसीन भाजपा व कांग्रेस के आलाकमान ने या तो उत्तराखंड विरोधी नेताओं को सत्तासीन किया या अनुभवहीन व पदलोलुप प्यादों को आसीन करके उत्तराखंड को पतन के गर्त में धकेलने का कृत्य किया।
राजनीति में पहला कदम के रूप में उन्होंने बद्री केदार विधानसभा क्षेत्र से 1969 में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव में उतरे परंतु उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा । फिर 1991 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में बदरी केदार विधानसभा क्षेत्र से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव लड़े और कल्याण सिंह की सरकार में पर्यटन मंत्री रहे। इसी बदरी केदार विधानसभा क्षेत्र से वे वर्ष 1993 और 1996 में विधायक निर्वाचित हुए। दिवंगत फोनिया 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य गठन के बाद अंतरिम सरकार में लोक निर्माण विभाग व पर्यटन मंत्री रहे। वे उत्तराखंड के हितों के प्रति हुए सदैव सजग रहते थे। उनकी प्रशासनिक क्षमता के कारण उनको राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण हाशिये में धकेला गया। जिसका नुकसान उत्तराखंड को उठाना पड़ा। उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलनकारी देव सिंह रावत ने केदार सिंह फोनिया के निधन पर गहरा शोक प्रकट करते हुए कहा कि अगर भाजपा वह कांग्रेस के आका प्रदेश के हितों के प्रति रत्ती भर भी समझ रखते तो वे स्वामी, तिवारी खंडूरी निशंक, बहुगुणा, त्रिवेंद्र,तीरथ व धामी जैसे उत्तराखंड के हक हकूकों की उपेक्षा करने वाले मुख्यमंत्रियों के बजाय केदार सिंह फोनिया, बहादुर नाम टम्टा, तेजपाल सिंह रावत व सुरेंद्र सिंह पांगती जैसे अनुभवी उत्तराखंड हितों के प्रति सजग नेताओं को प्रदेश की सत्ता में आसीन करते तो आज उत्तराखंड की यह दुर्गति व दुर्दशा नहीं होती और उत्तराखंड अपराधियों का अभ्यारण नहीं बनता। उत्तराखंड राज्य गठन के समय अगर जातिवादी मानसिकता के तथाकथित मठाधीशों ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की बहादुर राम टम्टा जी को मुख्यमंत्री बनाने की चाह में अवरोध खड़े नहीं की होते तो आज उत्तराखंड हिमाचल की तरह देश का आदर्श राज्य होता। उल्लेखनीय है कि बहादुर राम टम्टा उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन के उस समय अग्रणी ध्वजवाहक भी रहे, जब राजनीतिक दल उत्तराखंड राज्य की मांग को दलित विरोधी आंदोलन बताने में तुले हुये थे। उस समय बहादुर राम टम्टा रामलीला मैदान से लेकर संसद भवन तक उत्तराखंड समाज का नेतृत्व कर रहे थे । अटल बिहारी वाजपेई, बहादुर राम टम्टा व जगमोहन दोनों की कुशल प्रशासन क्षमता के कायल थे। इसीलिए भाजपा के शासनकाल में जगमोहन को जम्मू कश्मीर की कमान सौंपी गई और अटल जी की हार्दिक की इच्छा थी कि उत्तराखंड की कमान बहादूर राम टम्टा को सौंपी जाय।
परंतु सत्ता लोलुप नेताओं उत्तराखंड के इन समर्पित अनुभवी नेताओं को हाशिये में धकेलने का कार्य किया।

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