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“हिंदी दिवस 14 सितम्बर 2022” को  प्रधानमंत्री मोदी को 2013 से अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी के खिलाफ सतत संघर्ष करने वाले भाषा आंदोलन का खुला ज्ञापन

भारतीय भाषा आंदोलन प्रतिष्ठा में,   
श्री नरेन्द्र मोदी जी                      14   सितम्बर 2022
प्रधानमंत्री
भारतविषय-  अंग्रेजों के जाने के 75 साल बाद भी   भारत में अंग्रेजों की ही भाषा ‘अंग्रेजी व इंडिया ’ का राज बनाये रखने के लिए हिंदी दिवस का पाखण्ड बंद करो
जब 75 साल से भारत मे शिक्षा,रोजगार,न्याय व  राज  भारतीय भाषाओं में नहीं अपितु केवल  आक्रांताओं की भाषा अंग्रेजी में संचालित होता है  तो फिर भारतीयों की आंखों में धूल झोंकने के लिए क्यों बजाया जा रहा है हिंदी दिवस का झूनझूना?(2) ‘शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाने से ही मिलेगी अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति  (3) अंग्रेजी अनिवार्यता मुक्त व भारतीय भाषा  में भारतीय मूल्यों युक्त  राष्ट्रीय  शिक्षा
4)-जब संयुक्त राष्ट्र 6, यूरोपीय संघ-3,स्वीटजरलैण्ड -4, कनाडा-2 भाषाओं में संचालित हो सकता है तो भारत में 3भारतीय भाषाओं में  संचालित करने में परेशानी क्यों, अंग्रेजी की गुलामी क्यों?
(5)अंग्रेजों के जाने के 75 साल बाद भी भारत को अंग्रेजी   -इंडिया की गुलामी से मुक्त करके भारतीय भाषायें लागू  करने  की मांग को लेकर 2013 से सतत् सत्याग्रह कर रहे   भारतीय भाषा आंदोलन का 14 सितम्बर 2022को  प्रधानमंत्री मोदी को खुला  ज्ञापनमान्यवर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी,
जय हिन्द! वंदे मातरम्, मान्यवर,  14 सितंबर, को भारत सरकार सहित भारत सरकार के तमाम विभाग हिंदी दिवस के रूप में मना रहे है। इस अवसर पर देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए 2013 से  सतत् सत्याग्रह कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन 14 सितम्बर को इंटरनेटी माध्यम से  प्रधानमंत्री मोदी जी आपको  खुला ज्ञापन सौंप रहा है।
हिंदी दिवस के नाम पर सरकार  व उसके नौकरशाह जहां आज हिंदी को राजभाषा के रूप में भी गौरवान्वित किये जाने का बखान कर रहे है। परन्तु हकीकत यह है कि   खुद  भारत सरकार विगत 75 साल से पूरे देश को अंग्रेजी का गुलाम बना कर देश की लोकशाही, आजादी व मानवाधिकार को निर्ममता से रौंद रही है वहीं दूसरी तरफ देश की जनता को मूर्ख बनाने के लिए हर साल सितम्बर माह के पहले पखवाडे में हिंदी पखवाडा मनाकर देश का अरबों रूपया बर्बाद करती है। भारत सरकार के नौकरशाह अंग्रेजों के जाने के 75 साल बाद भी भारतीय भाषाओं से कितनी नफरत व धृणा करके अंग्रेजी के कितने अंध भक्त बने हुए है इसको भारत सरकार का सबसे प्रतिष्ठित मंत्रालय ‘ मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा भारतीय भाषा के अध्यक्ष देवसिंह रावत को 26 अगस्त 2019 को FTS No  626748/19 MHRD/PG भेजे पत्र में ही उजागर हो गया था । भारतीय भाषा आंदोलन ने देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर भारतीय भाषाओं को लागू करने की मांग की थी। परन्तु अंग्रेजी गुलामी में डूबे नौकरशाह ने भारतीय भाषाओं में जवाब देने के बजाय अंग्रेजी में ही जवाब देकर जहां देश की लोकशाही का अपमान किया वहीं आजादी के अनाम शहीदों, देश की 138 करोड़ जनता व आपकी राष्ट्र के प्रति समर्पित भावनाओं को रौंदने का काम कोई दूसरा नहीं अपितु भारत सरकार के विभिन्न संस्थानों में आसीन मठाधीश कर रहे है।  आपकी सरकार भी पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तरह राष्ट्रघाती शर्मनाक मौन साधे हुए है। सैकडों ज्ञापन आपके नाम आपके कार्यालय तक पंहुचाये गये परन्तु न तो इस कलंक को मिटाया गया व नहीं प्रधानमंत्री जी आपसे मुलाकात की मांग करने के बाबजूद मुलाकात के लिए ही समय दिया गया।
मान्यवर, आपने 15 अगस्त 2022 को भी स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले के प्राचीर से देश को अपने संबोधन में कहा कि देश में व्याप्त गुलामी के प्रतीकों से मुक्त करना है। भारतीय भाषा आंदोलन को आशा ही नहीं  अपितु पूर्ण विश्वास भी है कि आप भी  देश के माथे पर लगे अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी के कलंक से व्यथित हैं। इससे मुक्ति का अवश्य कार्य करेंगे। आपने इसी माह  शहीद स्मारक के सम्मुख नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण कर राजपथ का नाम लोकशाही के अनरूप कर्तव्यपथ रखा, भारतीय भाषा आंदोलन ने इसका समर्थन किया। परन्तु जैसे ही आपने नई संसद सहित केंद्रीय सचिवालय के नव निर्मित परिसर का सांझा नाम भारतीय भाषा के बजाय फिरंगी भाषा में सेंट्रल विस्टा रखा तो  यह नामाकरण देशभक्त भारतीयों के सम्मान व आशा पर किसी बज्रपात से कम नहीं है। क्या मोदी सरकार को  इस नाम से गुलामी का अहसास नहीं हो रहा है।  लगता है फिरंगी मानसिकता के गुलाम नौेकरशाह की सलाह पर यह नामाकरण किया गया। जिन नौकरशाहों को भारतीय भाषाओं में नाम तक नहीं आता वह देश की भावनाओं  का सम्मान कैसे करेंगे। ऐसे गुलाम नौकरशाहों  से देश की अस्मिता व वर्तमान की रक्षा का दायित्व ही देश ने आपके हाथों में सौंपा है। एक तरफ देश आपके नेतृत्व में  आजादी का अमृत महोत्सव बहुत ही  धूमधाम से राष्ट्रीय स्तर पर मना रहा है। वहीं  देश 75 साल बाद भी अपनी भाषा व अपने नाम से वंचित हो कर उन्हीं अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व  उनके द्वारा थोपे गये नाम इंडिया की गुलामी ढो रहा है। संसार में ऐसा  अभागा  देश कोई दूसरा नहीं है जो अपने हाथों से अपने भूत वर्तमान व भविष्य  को रौंद रहा हो।
14 सितम्बर को हिंदी दिवस इसलिए मनाया जाता है कि क्योंकि इसी तारीख को 1949 में  हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था।  संविधान में विभिन्य नियम कानून के अलावा नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का मुद्दा अहम था। काफी विचार-विमर्श के बाद हिन्दी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की आधिकारिक भाषा चुना गया। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को अंग्रेजी के साथ राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया था। बाद में जवाहरलाल नेहरू सरकार ने इस ऐतिहासिक दिन के महत्व को देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। पहला आधिकारिक हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया।अंग्रेजी का सम्राज्य भारत में बना रहे इसके लिए अंग्रेजों ने इस देश से अंग्रेजी को हटाने से रोकने के लिए तमिलनाडू सहित कई राज्यों में प्रायोजित विरोध करा कर  आजादी के बाद हिन्दी को देश की राजभाषा घोषित नहीं करने दिया। इसी षडयंत्र के तहत अंग्रेजी को 15 साल तक के लिए देश में अंग्रेजी को राजकाज की भाषा बनाये रखा। ऐसा कहा गया कि तब तक केन्द्र सरकार हिंदी का व्यापक प्रचार प्रसार कर देश की राज भाघा के रूप में स्थापित कर दी। इसके साथ अंग्रेजी को बनाये रखने के लिए ऐसा अवरोधक हिंदी को रोकने के लिए बनाया गया कि जब ये पूरे देश में आम सहमति से स्वीकृति हो जाएगी तब इसे राजभाषा घोषित किया जा सकता है। इसी फांस के कारण अंग्रेजी की गुलामी बेशर्मी से बनी हुई है।  इसी लिए देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के लिए  भारतीय भाषा आंदोलन  विगत 2013 से आजादी की जंग छेड़ हुए है।  संविधान के अनुच्छेद 351 के तहत हिन्दी को अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों के रूप में विकसित औ प्रचारित करने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की है। प्रधानमंत्री जी आपसे हमें आशा है कि आप देश को अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त कर रूस,चीन,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी स्वाभिमानी देशों की तरह अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरायेंगे। अंग्रेजी व इंडिया की गुलामीष्से मुक्ति पाये बिना न तो भारत में न तो लोकशाही व गणतंत्र स्थापित हो सकता है व नहीं हो सकता है चहुंमुखी विकास।  भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए विगत 21 अप्रेल 2013 से सत्याग्रह कर रहा हैं। परन्तु देश की सरकार के कान में जूं तक नहीं रैंग रहा है। देश की इस प्रथम मांग को तत्काल स्वीकार करने के बजाय देश की सरकार, पुलिस प्रशासन से सत्याग्रहियों का दमन कर आंदोलन को कूचलने का अलोकतांत्रिक कृत्य कर रही है। इसके बाबजूद भारतीय भाषा आंदोलन के सत्याग्रही संसद की चौखट (जंतर मंतर/रामलीला मंदिर/शहीद पार्क/संसद मार्ग पर धरना और जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा) पर सतत् शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहा है।  इस अलौकतांत्रिक रवैये के खिलाफ ही भारतीय भाषा आंदोलन अपने आंदोलन को जारी रखते हुए 18 मार्च 2020तक पदयात्रा व ज्ञापन दिया। 
-28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2020 तक जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर प्रत्येक कार्य दिवस पर प्रधानमंत्री कार्यालय में दिया ज्ञापन।  
-19 मार्च 2020 से कोरोना दंश से मुक्ति तक प्रतिदिन प्रधानमंत्री मोदी से देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने का खुला आवाहन कर रही है। हैरानी की बात यह है कि  विश्व के चीन, रूस, जर्मन, फ्रांस, जापान, टर्की, इस््रााइल सहित सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देश अपने देश की भाषा में अपनी व्यवस्था संचालित करके विकास का परचम पूरे विश्व में फेहरा रहे हैं।परन्तु भारत भारत व भारतीय संस्कृति को अंग्रेजियत के प्रतीक इंडिया का गुलाम बनाया जा रहा है। भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है किसी भी स्वतंत्र देश की भाषाओं को रौंदकर विदेशी भाषा में बलात शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है। आशा है आपकी सरकार भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करेंगे।     
                                  देवसिंह रावत     
                                      (अध्यक्ष )                           
                             भारतीय भाषा आंदोलन

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