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अमेरिका द्वारा चोतरफा घेराबंदी किये जाने के कारण रूस की तरह हमला करने का साहस नहीं जुटा पाने से हुई चीन की जगहंसाई

अब  युद्ध से तबाही  होने की आशंका से ताइवान पर हमला करने से डर रहा है गुर्राने वाला चीन

देव सिंह रावत

रूस द्वारा अमेरिका व उसके दो दर्जन से अधिक नाटो देशों के सुरक्षा कवच युक्त अपने पडोसी यूक्रेन पर जिस बहादूरी से हमला किया । उससे जहां पूरे विश्व ने रूस की ताकत का लोहा माना वहीं इसी हमले से प्रेरणा लेकर चीन ने भी अपने पडोसी देश ताइवान पर हमला कर उसे चीन में मिलाने का अपना वर्षों पुराने सपने को साकार करने का मन बना लिया। उसने  अपनी सामरिक शक्ति का गलत आंकलन करते हुए ताइवान पर कब्जा करने के लिए ताइवान की चोतरफा घेराबंदी करके अमेरिका सहित विश्व पर गुर्राना चीन के लिए एक प्रकार से आत्मघाती साबित हुआ। जैसे ही चीन ने ताइवान को छह तरफ से घेराबंदी कर कब्जा करने की हुंकार भरी। वेसे ही ताइवान का सुरक्षा कवच बने विश्व की महाशक्ति अमेरिका ने चीन के खिलाफ ऐसी घेराबंदी की कि खुद चीन को अब रूस की तरह अपने पडोसी देश ताइवान पर हमला करने का साहस नहीं जुटा पा रहा है।
यह देख कर पूरी दुनिया में चीन की जग हंसाई हो रही है।
चीन की तमाम दादागिरी इस माह खुद उसके लिए आत्मघाती साबित हो गयी। चीन को अपनी सामरिक ताकत पर बहुत ही घमंड था। वह न केवल अपनी इस ताकत के बल पर भारत, कोरिया, जापान, इंडोनेशिया, ताइवान, फिलीपीन्स, वियतनाम सहित अपने एक दर्जन पडोसियों को न केवल धमकाता रहता था अपितु वह उनके भू भाग पर निरंतर अतिक्रमण करता रहता था।
सालों से ताइवान पर कब्जा करने के लिए अमेरिका सहित पूरे विश्व को गीदड़ धमकी देना अब खुद चीन के लिए जी का जंजाल बन गया है। चीन अब अमेरिका द्वारा चीन की चोतरफा घेराबंदी किये जाने के कारण चीन को अपनी भूल व स्थिति का अहसास हो गया है। वहीं चीन इस आशंका से भी भयभीत है कि  अमेरिका ने जहां पूरे विश्व समुदाय व बाजार से उसे न केवल अलग थलग कर देगा अपितु चीन को घुटनो के बल बिठा कर असहाय व लाचार बना देगा।
उल्लेखनीय है कि इसी माह चीन की तमाम धमकियों को गीदड़ धमकी साबित करते हुए अमेरिकियों संसद की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी ने ताइवान का दौरा किया। अमेरिका व उसके मित्रों की चीन की घेराबंदी करने की जबरदस्त रणनीति को देख कर चीन केवल ताइवान की घेराबंदी ही कर पाया। वह उस पर हमला करने का साहस नहीं जुटा पाया। अमेरिका द्वारा चीन की जबरदस्त घेराबंदी हवाई नहीं अपितु बहुत ही मजबूती से की गयी। चीन के हमले से बचाने के लिए जहां अमेरिका ने अपने तमाम सामरिक घेराबंदी की। अपने तमाम विध्वंशक परमाणु युद्ध पोतों, बेडों व चीन से सटे अपने सामरिक अड्डों से चीन की तरफ अपनी जल व वायु सेना को तैयार कर दिया। वहीं चीन के पडोसी देश  जापान के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास किया। इसके साथ दक्षिण कोरिया के साथ अमेरिका का संयुक्त युद्धाभ्यास जहां चीन के हिमायती उतर कोरिया पर अंकुश लगाने वाला साबित हुआ। वहीं चीन को भी साफ संदेश दे दिया कि चीन की ताइवान पर किसी प्रकार हमला करना उसके लिए बर्बादी का सबक ही साबित होगा। यही नहीं चीन का सबसे ताकतवर पडोसी देश भारत के साथ भी अमेरिका चीनी सीमा के समीप ही संयुक्त युद्धाभ्यास करने वाला है। इंडोनेशिया, फिलीस्पींस, वियतनाम, मलेशिया ही नहीं आस्ट्रेलिया आदि में भी चीन को घेरने के लिए अमेरिका युद्धाभ्यास कर रहा है। यही नहीं अमेरिका के सहयोगी नाटो देश ब्रिटेन, जर्मन, कनाडा आदि देश भी चीन के खिलाफ अमेरिका के साथ होने वाले संभावित युद्ध में अपनी सहभागिता निभाने के लिए संयुक्त युद्धाभ्यास में उतर चूके है।
अब चीन को ताइवान पर हमला करना अपने विनाश को सीधा निमंत्रण देना सा लगने लगा है। रूस द्वारा यूक्रेन पर किये गये हमले से पूरे विश्व में अमेरिका व नाटो संगठन एक प्रकार से जगहंसाई का पात्र बना। उससे रूस, अमेरिका के आगे मजबूत बन कर उभरा। वहीं अमेरिका व नाटो की हैसियत कमजोर हुई। अमेरिका को इसका अहसास है। चीन ने रूस की तर्ज पर ताइवान पर हमला करने का जो अभियान चलाया वह अमेरिका के लिए एक प्रकार वरदान साबित हुआ। चीन का यह कदम अमेरिका की विश्व के समक्ष अपने वजूद की रक्षा करने का एक अवसर साबित हुआ। चीन की यह भूल आत्मघाती साबित हुई।
इस संकट की घड़ी में चीन को इस बात का एहसास हो गया होगा कि उसने अगर अपने पड़ोसी देशों से मित्रता रखी होती तो उसको आज यह दिन नहीं देखने पड़ते। अपनी गीदड़ धमकियों से चीन ने न केवल अपने पड़ोसियों की जमीनों पर कब्जा किया ।अपितु उनको हर कदम पर परेशान करने का ही कार्य किया किया। इसका परिणाम है कि विश्व का सर्वे सर्वा बना अमेरिका ने चीन को अलग-थलग करने में कोई परेशानी महसूस नहीं हुई नहीं चीन को विश्व में रूस, इरान, उतर कोरिया आदि दो चार देशों को छोड़कर कोई समर्थन में दे रहा है। अमेरिका ने चीन की उभरती ताकत को कुंद करने के लिए अपने पास रखे गये ताइवान ब्रह्मास्त्र से चीन पर अंकुश लगाने का काम शुरू कर दिया है।
अब चीन के पास केवल दो ही रास्ते है या तो सीधा अमेरिका से युद्ध छेड़ कर अपने सर्वनाश का आमंत्रण खुद ही दे या समय की नजाकत समझकर मुंह तमाशबीन बनकर अपने वजूद की रक्षा करें। चीन द्वारा ताइवान पर हमला करते ही अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्र चीन पर चैतरफा हमला करेंगे। हालांकि चीन को आशा है कि इस युद्ध में रूस व उत्तर कोरिया जैसे देश उसका साथ देंगे परंतु जिस पाकिस्तान पर वह विश्वास करता था वह पाकिस्तान अमेरिका से मिल चुका है।
देखना यह है कि चीन अमेरिका के इस जाल से बचने में सफल होता है या ताइवान के कारण अपने वजूद को खुद ही मिटाने का कारण बनता है। हालांकि सामरिक विशेषज्ञों का मानना है चीन इस समय संसार की किसी भी महाशक्ति के साथ युद्ध करने में सक्षम है और जो युद्ध होगा वह पूरे विश्व के लिए बेहद खौफनाक साबित होगा। चीन की तमाम तैयारियां विश्व को चैंका भी सकती है। यह युद्ध तय करेगा विश्व के नये समीकरणों का। क्या यूक्रेन के साथ युद्ध में घिरा रूस अपने सहयोगी चीन का साथ देगा या अपना अलग राह बनाएगा? पर यह तय माना जा रहा है कि कोरोना महामारी की बात जिस प्रकार से अमेरिका, नाटो मित्र देशों के साथ भारत में महाविनाश हुआ, उसके लिए तमाम देश चीन को ही जिम्मेदार मानते हैं और इसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए चीन अमेरिका युद्ध से बेहतर अन्य कोई अवसर इनके पास नहीं होगा। अगर चीन पर इस समय अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले समय में चीन अमेरिका के वर्चस्व को रौंदकर विश्व में सिरमौर बन जाएगा।

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