उत्तराखंड देश

उत्तराखंडियों के खाली पात्र कब भरेंगे प्रधानमंत्री मोदी जी व मुख्यमंत्री धामी जी?

 

*मुख्यमंत्री धामी ने देहरादून में किया अक्षय पात्र एकीकृत रसोई का उद्घाटन*

 

*प्रधानमंत्री पोषण कार्यक्रम के तहत बच्चों को पहुंचाया जायेगा मध्याह्न भोजन*

देव सिंह रावत

मैं अभी दिल्ली में स्थित महाराष्ट्र सदन में महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के सम्मान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के डॉक्टर रौतेला की संस्था विश्व हरेला महोत्सव परिवार द्वारा आयोजित कार्यक्रम से लौट कर वापस अपने कार्यालय में आया तो मुझे उत्तराखंड सूचना केंद्र द्वारा भेजी गई अक्षय पात्र व दी हंस फाउंडेशन तथा शिक्षा विभाग के सहयोग से विद्यालय छात्र छात्राओं को दोपहर के खाने की खबर पढ़कर यह लिखने के लिए विवश हुआ कि प्रधानमंत्री जी व मुख्यमंत्री जी राज्य गठन होने के 22 साल बाद भी उत्तराखंड युवाओं का पात्र खाली क्यों है? आखिर उत्तराखंड सरकार की विकास की तमाम दावों के बावजूद पर्वतीय क्षेत्र के उत्तराखंडियों की झोली अभी तक खाली क्यों है?
राज्य गठन करने के लिए दशकों तक तमाम दमनों को सहने वाले पर्वतीय क्षेत्र के उत्तराखंडियों को शिक्षा, चिकित्सा रोजगार इत्यादि से वंचित क्यों होना पड़ा?
सरकार राज्य गठन के बाद भी पर्वतीय क्षेत्रों के तमाम चिकित्सालय में चिकित्सक, विद्यालयों में अध्यापक, युवाओं को रोजगार देने के अपने दायित्व का निर्वहन करना तो रहा दूर, जिला मुख्यालयों तक के चिकित्सालय आज बिना चिकित्सकों, चिकित्सा उपकरणों व तकनीशियनों की नियुक्ति तक नहीं कर पाई।
इसका मुख्य कारण प्रदेश सरकार के हुक्मरानों द्वारा जन भावनाओं का आदर करके राजधानी गैरसैण न बनाकर देहरादून में कुंडली मारकर बैठना है।
प्रदेश की इस दुर्दशा पर अपनी गहरी पीड़ा जताते हुए हरेला महोत्सव में सम्मलित  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित अधिवक्ता भट्ट ने भी इस पर गहरी निराशा प्रकट की कि प्रदेश के चहुंमुखी विकास के प्रतीक राजधानी गैरसैंण के प्रति सरकारें बहुत ही गैर जिम्मेदारना कार्य कर रही है। प्रदेश के हुक्मरानों में इतना नैतिक बल भी नहीं है कि प्रदेश की मुख्य बदहाली की मुख्य कारक राजधानी गैरसैण न बनाना है, उस के पक्ष में एक शब्द भी बोले। प्रदेश की नौकरशाही के साथ जनप्रतिनिधि भी इतने दिशाहीन हो गए कि उन्हें उत्तराखंड की इस दुर्दशा पर एक शब्द बोलना भी गंवारा नहीं। उत्तराखंड की इस दुर्दशा के लिए प्रदेश के हुक्मरानों के साथ राजनीतिक दल और समाज के तथाकथित  संगठन हैं जो समाज के नाम पर विशाल कार्यक्रम तो करते हैं ,पर उन कार्यक्रमों में प्रदेश की प्रमुख समस्याओं के प्रति न तो समाज को जागृत करते हैं नहीं हुक्मरानों का ध्यान आकृष्ट करते हैं। केवल नेताओं को माल्यार्पण, स्तुतिगान करने से या सांस्कृतिक कार्यक्रम करने मात्र से ही प्रदेश भला नहीं होने वाला। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ समाज को जनहित के प्रति जागरूक करना भी सभी सामाजिक संगठनों का प्रथम दायित्व होता है। परंतु अधिकांश संगठन इस दायित्व का निर्वहन करने में असफल रहते हैं।
उत्तराखंड सूचना केंद्र द्वारा प्रेषित खबर के अनुसार आज देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सुद्धोवाला देहरादून में अक्षय पात्र, फाउण्डेशन, द हंस फाउण्डेशन तथा शिक्षा विभाग के सहयोग से 63वें केन्द्रीयकृत मिड-डे-मील किचन का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने विभिन्न स्कूलों के बच्चों को मिड-डे-मील पहुचांने के लिए वाहनों को हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने स्कूल के बच्चों के साथ बैठकर भोजन किया। बच्चों ने इस दौरान अपनी जिज्ञासाओं को पूरी करने के लिए मुख्यमंत्री से सवाल पूछे। मुख्यमंत्री ने बच्चों की सभी जिज्ञासाओं को पूरा किया। केन्द्रीयकृत किचन के शुभारंभ के अवसर पर मुख्यमंत्री ने एक छोटी बच्ची को गोद में लेकर दुलार किया।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार, अक्षय पात्र फाउण्डेशन एवं हंस फाउण्डेशन के सामुहिक प्रयासों से बच्चों को उच्च गुणवत्तायुक्त एवं पौष्ठिक भोजन की शुरूआत हुई है। अभी इस मिड-डे-मील की शुरूआत 120 स्कूलों के 15 हजार से अधिक बच्चों के लिए की गई है। आने वाले समय में इसे 500 से अधिक स्कूलों के 35 हजार से अधिक बच्चों के लिए केन्द्रीयकृत किचन के माध्यम से भोजन की व्यवस्था की जायेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि बच्चे देश का भविष्य हैं। बच्चों का जीवन स्वस्थ हो और उन्हें उचित पोषण मिले इसके लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि हंस फाउण्डेशन द्वारा स्वास्थ्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया जा रहा है। कोरोना काल में प्रदेश में जरूरतमंदों को हर संभव मदद हंस फाउण्डेशन द्वारा दी गई, जिसके लिए मुख्यमंत्री ने हंस फाउण्डेशन के प्रणेता श्री भोले जी महाराज एवं मंगला जी माता का आभार व्यक्त किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि अक्षयपात्र फाउण्डेशन ने भी देवभूमि में सेवा भाव के कार्यों का शुभारम्भ किया है, जिसके लिए उन्होंने अक्षयपात्र फाउण्डेशन के पदाधिकारियों का आभार व्यक्त किया।

शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने कहा कि अक्षय पात्र, फाउण्डेशन, द हंस फाउण्डेशन तथा शिक्षा विभाग के सहयोग से जो केन्द्रीयकृत किचन का शुभारम्भ किया गया है। प्रधानमंत्री पोषण कार्यक्रम के तहत स्कूली बच्चों को स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन परोसा जायेगा। राज्य में पांच लाख से अधिक बच्चों को सरकार द्वारा मध्यान भोजना उपलब्ध कराया जाता है। डॉ0 रावत ने कहा कि हंस फाउंडेशन एवं अक्षय पात्र फाउंडेशन के संयुक्त प्रयासों से आज राज्य में दूसरी एकीकृत रसोई की शुरूआत की गई है, इससे पहले गदरपुर में एकीकृत रसोई का संचालन शुरू कर दिया गया है। राज्य सरकार एक से लेकर बाहरवीं कक्षा तक के बच्चों को निःशुल्क किताब, बस्ता, उपलब्ध करा रही है। इसके साथ ही स्कूलों में हर प्रकार की व्यवस्था कर रही है ताकि बच्चों को पठन-पाठन में कोई परेशानी न हो। डॉ0 रावत ने बताया कि एक माह में 22 लाख बच्चों को निःशुल्क दवा उपलब्ध की गई। स्कूल खुलने पर बच्चों का निःशुल्क स्वास्थ्य परीक्षण किया जायेगा साथ ही उन्हें मुफ्त दवा भी दी जायेगी।

कार्यक्रम हंस फाउण्डेशन की संस्थापक भोले जी महाराज, माता मंगला जी, अक्षय पात्र फाउंडेशन के वाइस चेयरमैन चंचलापति दास, विधायक एवं पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पाण्डे, विधायक श सहदेव पुण्डीर, मुन्ना सिंह चौहान, सचिव आर. मीनाक्षी सुदंरम, शिक्षा महानिदेशक वंशीधर तिवारी एवं शिक्षा विभाग के अधिकारी उपस्थित थे।

इस दोनों कार्यक्रमों को एकजुट कर इस खबर में एक धागे में पिरोने का मेरा मुख्य उद्देश्य यही है कि माननीय प्रधानमंत्री जी व माननीय मुख्यमंत्री जी आप लोगों ने उत्तराखंड के नाम पर जीतना विकास किया वह सब मैदानी क्षेत्रों तक सीमित रहा। एक विधानसभा भवन गैरसैंण में बनाया गया है। उस सैकड़ों करोड़ रुपए से बनी उस रमणीक भवन में भी विधानसभा संचालित करने में प्रदेश के हुक्मरानों को काला पानी सा नजर आता है। रही बात अक्षय पात्र से बनने वाला यह दोपहर का भोजन भी पर्वतीय क्षेत्र के विद्यार्थियों को शायद ही मिल पाएगा। आखिर उत्तराखंडी पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की झोली भरने में सरकारों का मन हाथ क्यों छोटा पड़ जाता है?
आखिर उत्तराखंडी कब तक छले जाएंगे? अपने हक की मांगने का साहस कब जुटाएंगे?

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