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भारत रूस की अटूट मित्रता से आक्रोशित अमेरिका ने भारत को सबक सिखाने के लिए चला फिर कश्मीर दाव !

रामचरितमानस में बताया गया क्या होते हैं सच्चे मित्र के लक्षण

 

देव सिंह रावत

 

विश्व में अपना एक छत्र राज बनाए रखने के लिए अमेरिका ने अपने मित्र संगठन नाटो के सहयोग से अपने घोर विरोधी रूस को फंसाने के लिए जो यूक्रेनी जाल बुना हुआ है उसको भेद कर रूस के बच निकलने से अमेरिका और उसके मित्र नाटो देश बुरी तरह से बौखलाये हुए हैं।
अब वे दुनिया के अन्य देशों को रूस से व्यापार बंद कर दूरी बनाने के लिए साम दाम दंड भेद करके धमकियां देने पर उतारू हो गये है।
इसी क्रम में जब अमेरिका, तमाम तिकड़म करके भी भारत व रूस की मित्रता खंडित नहीं कर पाये तो अमेरिका ने अपना असली शकुनी चेहरा दिखाते हुए फिर कश्मीरी दाव चलाकर भारत को कमजोर करने व पाकिस्तान से संबंध जोड़ने की गुप्त चाल चल दी।

अमेरिका के इस दोहरे चरित्र को अमेरिका के अघोषित कश्मीर दाव से पूरी तरह से बेनकाब हो गया। अमेरिका कि इस दाव को भांपते हुए भारत ने अमेरिकी सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर के पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के दौरे की निंदा करते हुए कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है।
भारत की तीव्र विरोध के बाद अमेरिका का रुख साफ करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन के प्रतिनिधि डेरेक चोलेट ने कहा, कि “यह गैरआधिकारिक यात्रा है और यह अमेरिकी सरकार की तरफ से किसी नीतिगत बदलाव की ओर इशारा नहीं करती है।
भले ही अमेरिका राष्ट्रपति जो वाइडन की डेमोक्रेटिक पार्टी की मिनेसोटा से सांसद उमर की इस यात्रा से अपना पल्ला झाड़ दिया हो ।परंतु यह जगजाहिर है कि अमेरिकी इसी प्रकार की दोहरी नीतियों से विश्व में अपना शिकंजा कसता है।
भारत कटर विरोधी अमेरिकी सांसद इल्हान उमर, सोमाली-अमेरिकी महिला हैं, वह 20 अप्रैल से चार दिवसीय पाकिस्तान दौरे पर गई। इसमें वो पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान से मिली उल्लेखनीय है कि इमरान खान ने अपनी सरकार की बर्खास्तगी पर अमेरिका पर सीधा निशाना साधा था। अमेरिकी सांसद ने इमरान के आरोपों को नकारते हुए साफ शब्दों में कहा कि अमेरिका किसी भी देश में इस प्रकार की कार्रवाई करने में विश्वास नहीं रखता। अमेरिकी सांसद ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शरीफ से भी मुलाकात की। मुलाकात के दौरान अमेरिकी सांसद ने जहां प्रमुखता से कश्मीर का मामला उठाया ।वहीं इसके बाद वह पाक अधिकृत कश्मीर की यात्रा पर गई। वहां से वापसी के बाद अमेरिकी सांसद ने कहा, “कश्मीर को अमेरिका से अधिक ध्यान मिलना चाहिए।”
अमेरिकी सांसद की पाक अधिकृत कश्मीर की यात्रा पर तीव्र प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहां कि हमने उनकी भारतीय संघ राज्य क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के एक इलाके में यात्रा की खबरों को देखा है, जो अभी पाकिस्तान के अवैध कब्जे में हैं।

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि अगर कोई ऐसी राजनीतिज्ञ अपनी संकीर्ण मानसिकता को प्रदर्शित करती हैं, तब यह उनका काम है। उनकी इस यात्रा से हमारी क्षेत्रीय अखंडता एवं सम्प्रभुता का उल्लंघन होता है, तब हम समझते हैं कि यह यात्रा निंदनीय है।

उल्लेखनीय है कि विश्व में अपना एकाधिकार बनाये रखने के लिए अमेरिका और उसके मित्र नाटो देशों ने पूर्व सोवियत परिवार की सदस्य और रूस के पड़ोसी देश यूक्रेन को नाटो में सम्मलित कराने व सुरक्षा करने का झांसा देकर रूस के खिलाफ खड़ा किया। रूस द्वारा यूक्रेन को बार-बार रूस विरोधी संगठन नाटो में सम्मलित ना होने के आग्रह किया। जिसे अमेरिका के झांसे में आकर ठुकराते हुए यूक्रेन की तबाही के लिए जिम्मेदार यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस को यूक्रेन पर हमला करने के लिए ललकारा। अमेरिका और उसके मित्र नाटो राष्ट्रों ने जेलेंस्की को यह झांसा दिया था कि अगर रूस यूक्रेन पर हमला करेगा तो अमेरिका व नाटो, उसका मुंह तोड़ जवाब देंगे। परंतु जब आज से 2 महीने पहले यानी 60 दिन पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने रूस की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए मजबूर होकर यूक्रेन पर हमला किया , तो अमेरिका व उसके नाटो संगठन ने रूस के हमले का बचाव करने के बजाए यूक्रेन को तबाही की गर्त में धकेल कर तमाशबीन बन गए। परंतु जैसे ही यूक्रेन के राष्ट्रपति को अपनी भूल स्वीकार होते हुए अपने देश के हजारों लोगों की बर्बादी वह लाखों के विस्थापन के बाद पश्चाताप होकर रूस के साथ वार्ता के लिए मन ही भी बनाते हैं जो अमेरिका और उसके मित्र नाटो देश जेलेंस्की को फिर झूठा आश्वासन व सहायता देकर युद्ध को निरंतर बढ़ा रहे हैं इससे यूक्रेन बुरी तरह से तबाह हो चुका है उसके 5000000 से अधिक लोग यूरोपीय देशों में शरणार्थियों का जीवन व्यतीत कर रहे हैं तथा हजारों लोग मारे जा चुके हैं। इस तबाही को रोकने के लिए रूस से वार्ता करने के बजाएं अमेरिका व नाटो के मोह में यूक्रेन की तबाही के लिए जिम्मेदार यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेंस्की युद्ध जारी रखे हुए हैं।
जबकि रूस हमले से पहले और हमले के बीच में भी निरंतर यही मांग यूक्रेन से करता रहा कि वह नाटो की सदस्यता का मोह छोड़कर तटस्थ देश बनने की शर्त माने तो रूस हमला बंद कर देगा। परंतु इतनी सी बात 2 महीने रूस से निरंतर पिटने के बावजूद यूक्रेन इज राष्ट्रपति जेलेंस्की को समझ में क्यों नहीं आई यहीं से पूरा विश्व स्तब्ध है। जेलेंस्की की इस अक्षम्य सनक रूपी अपराध का दंड जहां करोड़ों यूक्रेनी दर दर की ठोकर खा कर चुका रहे हैं। वहीं पूरा विश्व गैस तेल आदि उत्पादों पर लगाए प्रतिबंध के कारण महंगाई से जूझ रहे हैं। वहीं विश्व परमाणु युद्ध की आशंका से भी सहमा हुआ है। इतनी बर्बादी के 2 माह बाद अब संयुक्त राष्ट्र संघ को रूस से बातचीत करने की सुध आई। आज तक भी संयुक्त राष्ट्र संघ न तो यूक्रेन के आत्मघाती राष्ट्रपति जेलेंस्की को नाटो का मोह त्याग ने की सीधी सी बात समझा पाया। नहीं अमेरिका और नाटो देशों को वह इस लड़ाई को न बढ़ाने से बात तक कर पाया। इसके साथ संयुक्त राष्ट्र संघ को चाहिए था कि वह नाटो व उसके आका अमेरिका को विश्व में तनाव बढ़ाने वाली अपने संगठन को बंद करने की सलाह तक दे पाया।

भारत और रूस की प्रगाढ़ मित्रता को देखकर अमेरिका और उसके मित्र नाटो राष्ट्रों ने इसे तोड़ने के लिए भारत को रिझाने व दबाव डालने के कई तिकड़म किये।इसी महीने भारत-अमेरिका के बीच शीर्ष नेतृत्व स्तर पर 2+2 वार्ता हुई। इसमें भारत-अमेरिका आभासी शिखर सम्मेलन भी हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, अमेरिका के रक्षा मंत्री लॉयड जे. ऑस्टिन, विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने भाग लिया। इस दौरान यूक्रेन सहित देश-दुनिया से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई। इसमें भी अमेरिका भारत व रूम में दरार डालने के अपने मिशन में सफल नहीं रहा।
इसी सप्ताह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन भारत दौरे पर आये। भारत के दौरे पर आने से चंद दिनों पहले उन्होंने रूस और यूक्रेन की भीषण लड़ाई के बीच यूक्रेन की राजधानी कीव में जाकर यूक्रेन में राष्ट्रपति जेलेंस्की से मिलकर उनका हौसला बढ़ाया और ब्रिटेन का पूरा समर्थन देने का ऐलान किया। हालांकि भारत यात्रा पर उन्होंने यूक्रेन रूस युद्ध पर भारत पर कोई दबाव बनाने का प्रत्यक्ष कार्य या संवाद नहीं किया परंतु कूटनीतिक दृष्टि से उनकी यात्रा इसी लक्ष्य को लेकर की गई ।

यूरोपीय संघ से बाहर हुए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की यात्रा की 2 दिन बाद ही यूरोपीय कमीशन की अध्यक्ष उर्सला वॉन डर लेन भी 24 और 25 अप्रैल
की दो दिवसीय भारत की आधिकारिक यात्रा पर पधारी। भारत की राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री सहित वरिष्ठ नेताओं से भी मिलेगी।
यह सुखद है कि अमेरिका और उसके मित्र नाटो देशों की इन सब तिकड़मों व दबाव के बावजूद जिस मजबूती से प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने भारत रूस संबंधों पर अपना पक्ष मजबूती से रखा उसकी पूरे विश्व में सराहना हो रही है। खासकर अमेरिका व पश्चिमी देशों की तमाम आरोपों का भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह व विदेश मंत्री जयशंकर ने जिस मजबूती से भारतीय पक्ष को रखा उससे अमेरिका व उसके साथी पूरी तरह से बेनकाब हो गए। इसी की अपेक्षा भारत से की जाती रही। विगत 7 दशकों से जिस प्रकार से सोवियत संघ यानी रूस ने भारत की विकास और सुरक्षा में खुला समर्थन व सहयोग दिया उसी भारत का भी दायित्व बनता है क्यों और विपत्ति काल में सत मार्ग पर चल रही मित्र की रक्षा करें उसका साथ दें। कई अवसरवादी वह भारतीय संस्कृति की विरोधी भारतीय तथाकथित प्रबुद्ध जन व नेता यूक्रेन और रूस के युद्ध में अमेरिका का साथ देने कि भारत सरकार को बिना मांगे सलाह दे रहे हैं। वह भूल जाते हैं कि रूस ने हमेशा भारत को पाकिस्तानी मोह में बंधे अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों के दंश से बचाया। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी कश्मीर सहित अनेक मामलों में भारत के खिलाफ अमेरिका और उसके मित्र राष्ट्रों की प्रस्ताव पर वीटो किया। भारत के विपत्ति काल में सदा मजबूती से चट्टान बनकर सहयोगी बनने वाले रूस जैसे परम मित्र को विपत्ति में छोड़कर अपने स्वार्थ के लिए अमेरिका जैसे देश का साथ देना भारतीय संस्कृति का गला घौंटना ही है ।

वैसे भी यह पहली बार नहीं है कि अमेरिका और उसके मित्र नाटो देशों की शह पर कश्मीर मुद्दे को अमेरिका हवा दे रहा है। आज तक कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका ने पाकिस्तान के कंधे में बंदूक रखकर यह मामला विवा दस्त बनाया। अफगानिस्तान मामले में परिस्थितियों के बदलाव व चीन के उभार के बाद जब अमेरिका को लगा कि भारत उसके लिए चीन पर अंकुश रखने के लिए एक सहायक बन सकता है, तो तब उसने कश्मीर मामले को ठंडे बस्ते में डाला व पाकिस्तान से भी दूरियां बना ली। नहीं तो कश्मीर मामलों का केंद्र अमेरिका व उसके नाटो मित्र नाटो देश ही रहे। इन देशों से ही कश्मीर व पंजाब आदि भारत विरोधी अलगाववादी आंदोलन संचालित होते रहे। इसका सबसे बड़ा जीता जाता उदाहरण मुंबई आतंकी हमला है। जिसमें अमेरिका के बड़े खुफिया एजेंट जो पाकिस्तान को भी आतंकी गतिविधियों के लिए संचालित करते थे। वह डेसमेंड हेडली को अमेरिका ने भारत को सौंपने की बजाए अपने पास ही संरक्षित रखा है ।भारत की किसी भी सरकार को आज दिन तक इस आतंकी अधिकारी को मांगने की हिम्मत अमेरिका से नहीं आई।

अनादि काल से भारतीय संस्कृति, मित्रता धर्म के पालन की सीख देता है । एक सच्चे मित्र की पहचान क्या होती है उसे ही गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में भगवान राम के शब्दों में ही बखान करते हैं कि:-

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी।
तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना।
मित्रक दुख रज मेरु समाना।।
जिन्ह के असि मति सहज न आई।
ते सठ कत हठि करत मिताई।।
कुपथ निवारि सुपंथ चलावा।
गुन प्रकटै अवगुनहि दुरावा।।

देत-लेत मन संक न धरई।
बल अनुमान सदा हित करई।।
आगे कह मृदु वचन बनाई।
पाछे अनहित मन कुटिलाई।।
जाकर चित अहि गति सम भाई।।
अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई।।

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