उत्तराखंड देश

उतराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किस की बंशी बजवायेंगे मोदी?

 

देव सिंह रावत

हां जैसे ही उत्तराखंड के जनमानस को यह भनक लगी के आनन-फानन में उत्तराखंड के वरिष्ठ भा ज पा विधायक वंशीधर भगत को भाजपा आलाकमान ने दिल्ली बुला रखा है वैसे ही लोगों के मन में प्रश्न उठा कि क्या रामलीला में दशरथ के पाठ का वर्षों से मंचन कर रहे बंशीधर भगत को भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री बनाएगी?

उल्लेखनीय है कि भाजपा शासित इन चार राज्यों में उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी को पहले से ही चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया हुआ था। परंतु भारतीय जनता पार्टी के लिए सबसे जी का जंजाल बना उत्तराखंड जहां भारतीय जनता पार्टी ने मुख्यमंत्री का चेहरा वर्तमान कार्यकारी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को घोषित किया था। परंतु इसे उत्तराखंड का सौभाग्य कहो या पुष्कर सिंह धामी का दुर्भाग्य वहां मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी जी की इस अभूतपूर्व लहर में भी अपनी परंपरागत विधानसभा सीट खटीमा से अपने निकटतम प्रतिद्वंदी कांग्रेसी प्रत्याशी भूवनचंद्र कापड़ी के हाथों 6579 मतों से परास्त हो गए।
हालांकि मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में प्रदेश में धामी के अतिरिक्त 1 दर्जन से अधिक भाजपाई नेताओं का नाम चर्चाओं में हैं।
वर्तमान समय में उत्तराखंड में जिन नेताओं का नाम खबरिया चैनलों इंटरनेट की दुनिया व समाचार जगत मैं चल रहा है उन में मुख्यमंत्री रहते हुए मोदी लहर के बावजूद अपनी विधानसभा सीट न बचा पाने वाले कार्यकारी मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, भी शामिल है जिन के समर्थक बड़ी बेशर्मी से यह तर्क दे रहे हैं कि धामी ने बहुत मेहनत की। वह सभी विजयी विधायकों को जिताने में सफल रहे। इस कारण वह अपनी सीट पर ध्यान नहीं दे पाए। इसलिए भाजपा आलाकमान को चाहिए कि वह धामी की मेहनत को देखते हुए हारी हुई ममता बनर्जी की तरह मुख्यमंत्री के पद पर आसीन करें। इस तर्क को देते हुए धामी के अंध समर्थक भूल जाते हैं कि 2017 में हिमाचल में भी मुख्यमंत्री के दावेदार धूमल चुनाव हार जाने के बाद भाजपा ने उनको नहीं बनाया मुख्यमंत्री। आखिर भारतीय जनता पार्टी किसी पदलोलपु व्यक्ति के लिए लोक मर्यादाओं को क्यों रौंदेगी?
वे भूल जाते हैं कि आखिर रामराज्य व भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाला दल एक व्यक्ति की पदलोलुपता के खातिर भारतीय जनता पार्टी लोकतांत्रिक मर्यादाओं व जनादेश का अपमान क्यों करें?
जहां तक धामी का सवाल है धामी के मासूमियत चेहरे के पीछे छिपे उनकी पदलोलुपता को लोक नजरअंदाज क्यों करते हैं? भाजपा आला नेतृत्व को इस सवाल से भी जूझना पड़ रहा है कि भारी बहुमत के बाद किसी असफल रहे पूर्व मुख्यमंत्री या सांसद को मुख्यमंत्री बनाकर यह संदेश अंकिता को क्यों दें कि सभी जीते हुए विधायक मुख्यमंत्री बनने के काबिल नहीं हैं।

सवाल यह है कि जो मुख्यमंत्री पद लोलुपता के लिए प्रदेश की गैरसैंण राजधानी जेसी जन भावनाओं को साकार करने के बजाए उसको रौंदने वाले कृत्य को शहीदों व जन आकांक्षाओं का सम्मान बताने की निर्लज्जता कर रहा हो, इससे साफ हो जाता है कि वह भी प्रदेश के हितों व सम्मान के साथ तिवारी व खंडूरी की तरह ही खिलवाड़ करेगा। पद मिलते ही धामी जिस प्रकार से सत्ता मद में चूर होकर आंदोलनकारियों की बार-बार लगाई न्यायोचित गुहार को नजरअंदाज कर गए, उससे साफ होता है कि 4 महीने के चुनावी कार्यकाल में भी जो जन भावनाओं को सम्मान नहीं कर पाता हो वह सामान्य कार्यकाल में कभी नहीं करेगा।
मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल अन्य दावेदार हैं पूर्व में असफल मुख्यमंत्री व केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहे रमेश पोखरियाल निशंक, अनुभवहीन व जनता से कटे हुए सांसद रमेश बलूनी, वर्तमान केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट, उत्तराखंड राज्य गठन आंदोलन में संयुक्त संघर्ष समिति के संरक्षक, पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदेश सरकार के पूर्व काबीना मंत्री व वर्तमान विधायक सतपाल महाराज, पूर्व काबीना मंत्री व विधायक डॉक्टर धन सिंह रावत, पूर्व मुख्यमंत्री खंडूड़ी की विधायक बेटी रितु खंडूरी व पूर्व विधानसभा अध्यक्ष व वर्तमान विधायक प्रेम अग्रवाल के बाद अब बंशीधर भगत का नाम भी दिल्ली जाने के बाद मुख्यमंत्री के दावेदारों की पंक्ति में शुमार हो गया है। इसके अतिरिक्त पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत वह तीरथ सिंह रावत का नाम भी चर्चाओं में आ जाता है परंतु इन चर्चाओं में राजधानी गैरसैंण सहित सभी जन आकांक्षाओं को समर्थन देने वाले पाक साफ छवि के ईमानदार जन नेता रहे मोहन सिंह रावत गांववासी का नाम चर्चा में ना होने पर ऐसा ऐसा आभास होता है दिल्ली दरबार में समर्पित वरिष्ठ व साफ छवि के जन नेताओं की कहीं कोई पूछ नहीं है। अगर होती तो भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड राज्य गठन जन आंदोलन के मुख्य सूत्रधार रही स्वर्गीय इंद्रमणि बडोनी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति के संरक्षक सतपाल महाराज जिनका राज्य गठन से लेकर उत्तराखंड की बोली भाषा रेल मार्ग राजधानी गैरसैण से लेकर विकास की सकारात्मक सोच व संघर्ष रहा है। केंद्रीय मंत्री जी से लेकर प्रांतीय मंत्री के साथ संगठन का भी उन्हें व्यापक अनुभव रहा है। केवल गुटबाजी व जातिवादी बदलू लूट नेताओं के विरोध के कारण अब तक देश विदेश व प्रदेश में व्यापक जनाधार वाले सतपाल महाराज की उपेक्षा भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड व देश की लोकशाही के लिए काफी नुकसानदायक रही है

मुख्यमंत्री की दौड़ में के लिए भारतीय जनता पार्टी व कांग्रेस में जनता व विधायकों की पहली पसंद व सक्षम प्रतिभाओं के बजाए दिल्ली दरबार के आला नेताओं के स्वार्थों के प्रतीक प्यादों कोअब तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन किए जाने के कारण जहां उत्तराखंड बदहाली के कगार पर है वहीं मुख्यमंत्री बनने की ललक यहां नवनिर्वाचित विधायकों में भी बलवती हो गई है। इसीलिए मुख्यमंत्री बनने के लालसा लिए दिल्ली दरबार की परिक्रमा करने वाले नवनिर्वाचित विधायकों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है।

आज उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश सहित 5राज्यों के चुनाव में चार राज्यों में फिर से सत्तारूढ़ हुई भारतीय जनता पार्टी की अपार सफलता के बाद देश के आम जनमानस के दिलो-दिमाग में यही प्रश्न रह रह कर उठ रहा है की उत्तराखंड में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर किसकी बंसी बजवायेंगे भाजपा के आलाकमान मोदी ?
आल्हा नेतृत्व को गत विधानसभा की तरह उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों की पंक्ति को बढ़ाने की भूल पर भी गंभीरता से विचार करना होगा। बार बार मुख्यमंत्री बदलने से न केवल भारतीय जनता पार्टी की पूरी देश में जग हंसाई हुई अपितु केंद्रीय नेतृत्व के प्रदेश के हित में निर्णय लेने की क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह लग गया। इन तमाम बातों को ध्यान में रखते हुए भारतीय जनता पार्टी के आला नेतृत्व को समझ लेना चाहिए कि प्रदेश का जनादेश राज्य गठन की जन आकांक्षाओं को साकार करने के लिए जनता द्वारा उन उन पर विश्वास करके दिया गया है ऐसे में अयोग्य प्यादों को मुख्यमंत्री के पद पर थोप कर न तो उत्तराखंड का ही भला होगा और ना भारतीय जनता पार्टी का। इस सीमांत राज्य में अक्षम वह पदलोलुपु शासक देकर इस राज्य को पलायन की राष्ट्रीय से प्रदेश के हुक्मरानों ने तमाशा कर दिया है। हिमाचल की तरह यह राज्य भी खुशहाल व समृद्ध व पलायन रहित बन सकता था। परंतु दिशाहीन प्यादों को आसीन करने की दिल्ली दरबार के आला नेताओं की प्रवृत्ति ने उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं पर पानी फेर दिया है ।वहीं गैरसैण राजधानी न बनने के कारण पर्वतीय जनपदों से शिक्षा, चिकित्सा, शासन और रोजगार भी देहरादून सहित चंद मैदानी जनपदों में सिमट कर रह गया है। इससे इन श्रीमान जनपदों में हुए पलायन से चीन से लगा यह राज्य देश के लिए खतरे का संकेत दे रहा है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने राजनाथ सिंह को उत्तराखंड व अमित शाह को उत्तर प्रदेश केंद्रीय पर्यवेक्षक के रुप में भेज कर विधान मंडल की बैठक में नए नेता के चयन की जिम्मेदारी  सौंपी है। समझा जाता है कि 18 मार्च को होली के समापन के एक-दो दिन के अंदर ही यह तस्वीर साफ हो जाएगी कि कौन बनेगा उत्तराखंड का नया मुख्यमंत्री। परंतु जातिवाद व क्षेत्रवाद से बेहाल हुई प्रदेश की जनता को आशा है कि मोदी जी इस बार जातिवाद और क्षेत्रवाद के नाम पर मोहरों को मुख्यमंत्री की पद पर आसीन करने की हवाई नेताओं की तिकड़म में ना आकर अनुभवी, योग्य व जनाधार वाले नेता को मुख्यमंत्री पद पर आसीन करके उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी डबल इंजन की सरकार से विकास की गंगा बहाएंगे।

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