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स्कूलों को खोलनें के पीछे की ’राजनीति

देव कृष्ण थपलियाल

ये ठीक है कि, जैसे ही कोविड-19 के संकट से उभरनें के संकेत मिलने शुरू हुऐ हैं वैसे ही केंद्र/राज्य सरकार नें अपनी ठप पडीं तमाम गतिविधियों को धीरे-धीरे आगे सरकाना शुरू कर दिया, सरकार का यह कदम ’वैश्विक कोरोंना’ के खिलाफ एक बहुत बडी जंग है, और लोंगों के खोये आत्मविश्वास को जगाने का जनांदोलन भी। इसके लिए सरकार की कोशिशों की प्रश्ंासा की जानीं चाहिए, जो निश्चित रूप से सराहनीय और साहसिक पहल है। इससे लोगों में पसरी उदासीनता व गतिहीनता को दूर करनें में सहयोग होेगा, और देश/राज्य में ठप पडी तमाम आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक गतिविधियों को भी प्राण वायु मिलेगी । आखिरकार कब तक उससे छुप-छपाते, डरते- भागते फिरते रहेंगें ? सरकार को कुछ न कुछ निर्णय लेंना हीं चाहिए था, सो अब जो निर्णय लिए जा रहा हैं उसका सम्मान किया जाना चाहिए, जनता को उसमें की पूर्ण भागीदारी निभानी चाहिए ! महज सरकार को कोसनें भर से बीमारी से निजात नहीं मिलगी ? इसके जनता के स्तर से सक्रिय सहयोग की जरूरत है। तभी जाकर इस घातक महामारी से निजात मिलेगी । अब नागरिकों की जिम्मेदारी है, कि वे सरकार से प्राप्त तमाम सावधानियों का अक्षरसः पालन करें और करवायें ? मास्क पहनना, दो गज की दूरी बनाये रखना व हाथों की स्वच्छता के साथ-साथ लोंगों को भी जागरूक करनें का काम करनें का ध्यान रखना जनमानस की जिम्मेदारी है। बीमारी/महामारी किसी जात-धर्म-लिंग,अथवा आर्थिक हैसियत देखकर नहीं आती है।
राज्य की सर्वाधिक चर्चित तथा आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण चार धाम यात्रा के साथ साथ मुख्य-मुख्य पर्यटक स्थलों को खोलनें का क्रम भी जारी हो गया है। इससे आम लोंगों के साथ-साथ छोटे-बडे कारोबारियों को फौरी तौर पर राहत की उम्मीद है, हालाॅकि चार धाम यात्रा का सीजन अब पीक् पर है, शीतकाल शुरू होंनें से चारों धामों के कपाट बंद होंनें तथा अत्यधिक जाडे के कारण लोंगों का आना-जाना वैसे ही बंद हो जाता है, फिर भी आस्थावान तीर्थयात्रियों को मौका जरूर मिलेगा। इसी तरह सभी छोटे-बडी दुकान कारोबार व बाजारों व यातायात संसाधनों को गति देंनें से राज्य के भीतर अब आर्थिक गतिविधियाॅ बढावा मिलनें से निकट भविष्य में त्यौहारी सीजन से बाजारों रोनक लौटेगी। केंद्र सरकार नें तमाम विरोध के बावजूद देशव्यापी जेईई-नीट् का आयोजन सफलता पूर्ण सम्पन्न किया है, जिसमें लगभग 97 फीसदी उम्म्ीदवारों नें अपनीं उपस्थिति दी थी, इस उपस्थिति को सामान्यकाल से कम नहीं है। राज्य के भीतर भी विरोध की यही स्थिति रही है, तमाम प्रकार की अफवाहों व गलत सूचनाओं के बाद भी राज्य के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में हजारों छात्र-छा़त्राओं नें अपनीं अंतिम वर्ष की परीक्षा भी सफलता पूर्वक दी है। इसमें भी उपस्थिति बढ-चढकर रही, कुछ छूट-पूट कारणों को छोड दिया जाय तो लगभग शत-प्रतिशत परीक्षार्थियों नें इस परीक्षा में अपनीं भागीदार निभाईं।
किन्तु अब राज्य से सभी शैक्षिणिक संस्थानों को खोंलनें को लेकर जिस तरह की राजनीति सामनें आ रही है, वह दुःखद हैं। सरकार की ’अनिर्णय’ की स्थिति और परेशान करनें वाली है । ’कोरोना वाइरस’ की घातक स्थिति को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, किन्तु इससे डर कर भी चुप बैठना उचित नहीं है ? अतः सरकार और लोंगों को साफ मन से बीच के रास्ते की तलाश करनीं चाहिए, इस रास्ते के लिए किसी प्रकार की राजनीति से उपर उठकर विचार करना होगा ! सरकार अपनें स्तर से जिले के डीएम से रिर्पोट लेंनें की बात कर रही है, ? उधर सरकार ये भी मन बना रही है कि शिक्षा संस्थानों में छात्रों की उपस्थिति स्वैच्छिक हो अथवा विद्यालय/महाविद्यालय में जिसकी इच्छा हो, आये नहीं है तो न आये ? दूसरी तरफ सरकार ये भी तर्क दे रही है कि जो विद्यार्थी विद्यालय आनें में असमर्थ है, अध्यापक उसे आॅन-लाइन शिक्षा से पढाये/उसकी समस्या का समाधान करे ? उपरी तौर से दोंनों तर्क बहुत शानदार प्रतीत होते हैं, परन्तु व्यवहारिक धरातल पर दोंनों बातें बेमानीं है ?
पहली बात ये की आॅन-लाइन एजुकेशन के मोर्चे पर सरकार के लाख दावे के बावजूद छात्रों को उसके लाभ की बात संदेहास्पद है। पहाडी इलाकों में बीजली की आॅख-मिचैली से कौंन वाकिफ नहीं है, नेटवर्क प्राब्लंब के बारे में बहुत कुछ लिखा-पढा-देखा और सूना गया है, सामान्यतौर अपनें सगे-समंन्धियों की कुशल-क्षेम जाननें के लिए भी लोंगों को घरों के बाहर खेत-खलिहानों में यहाॅ तक की रात के समय भी दूर टीले धार पर जाकर बात करनीं पढती हैं। घर में दो से अधिक से बच्चे हों तो मोबाइल को लेकर महाभारत होंनी आम बात है, माता-पिता दोंनों के पास अगर स्मार्ट फोंन है तो भी घर की सूचना का आदान प्रदान हो सकता है। लेकिन गरीब अभिवाहकों के बच्चे तो इससे भी महरूम रहेंगें ? शिक्षक भी आमतौर पर आॅन लाइन एजुकेशन के नाम पर लकीर पीटनें का काम कर रहें हैं। किसी भी शिक्षक के लिए उसका मुल्याॅकन करना टेढी खीर है ? काफी शिक्षकों नें इस संमंध में केवल सरकार के आदेशों का ’पालन’ किया, सप्ताह में एक दिन इंटरनैट से ’पीडीएफ’ डाउनलोड कर उसे अपनीं क्लास के बच्चों भेजनें मात्र से उनका काम निपट गया ?
स्वैच्छिक उपस्थिति के कारण शिक्षकों पर अतिरिक्त दबाव पढेगा ? जिसे वो या तो अनमनें भाव से पढाऐंगें अथवा टाल देंगे ? एक बार जब वह विद्यालय/संस्थान में कक्षा लेंनें के बाद घर में बैठे बच्चों के लिए आॅन लाॅइन क्लास लेंनें की बात को गुरूजी नहीं पचा पायेंगें ? इसका विरोध शिक्षक पहले ही कर चुके हैं।
दोंनो अभिवाहकों की जाॅब की स्थिति में, उनके खुद के बच्चांे का पढाई से दूर होंना स्वाभाविक हैं, आजकल प्रायः दोंनों लोगों का जाॅब में होंना आम बात है, और वक्त की जरूरत भी है, ऐसे अभिवाहकों को अपनें बच्चों के लिए समय निकालना और अपनें मोबाइल सेट उनको देंना कितना व्यवहारिक व न्यायोचित लगता है ? खासकर कोरोना काल में माॅ-बाप पहले बच्चों के लिए कमानें की पहले सोचेंगें फिर उनके पढाई बारे में सोचेंगें ? माॅ-पिता के शिक्षक होंनें की स्थिति में मामला और गंभीर है, दिनभर स्कूल/कालेज में पढानें बाद वे अपनें बच्चों को कितना समय दे पायेंगें ?
इसीलिए सभी शैक्षिणिक संस्थानों को अविलम्ब खोला जाना चाहिए, सरकार और पैरेंण्टस् को थोडा हिम्मत और धैर्य के साथ इस चुनौती का मुकाबला करना ही चाहिए, या फिर उस वक्त का इंतजार करें जब यह महामारी पृथ्वी से ही समाप्त हो ही जाय, जो संभव नहीं हैं, अभी अतीत गवाह है उपरोक्त वर्णीत सभी परिक्षाऐं और गतिविधियाॅ निर्वाध ढंग से संचालित हो रही हैं। कोरोना के ठीक होंनें वालों की संख्या भी गति पकड रही है।
कोंरोना को लेकर लोगों की जागरूकता के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग की निगरानी बहुत जरूरी है, इसका सही समाधान दोंनों के तालमेल से संभव है। पहाडों में मेडिकल सुविधाओ का वैसे ही टोटा है, इसलिए ऐसे वक्त में सरकार स्कूल-काॅलेजो बंद रखनें के बजाय, जागरूकता अभियान के साथ-साथ सरकार स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती पर ध्यान दे ?

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