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माननीय राष्ट्रपति को भेजे गये उपसभापति राज्यसभा हरिवंश जी के इस पत्र को प्रतेक देशवासियों को पढ़ना चाहिएः प्रधानमंत्री मोदी

(किसान कल्याणार्थ विधेयकों पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में विपक्षी सांसदों ने 20 सितम्बर को जो अमर्यादित हंगामा  किया, उससे व्यथित होकर उपसभापति राज्यसभा हरिवंश ने राष्ट्रपति को एक मार्मिक पत्र 22 सितंबर 2020 को प्रेषित किया। उस पत्र को पढ़ कर प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट ने यह आवाहन किया। प्रस्तुत है हरिवंश जी का राष्ट्रपति को लिखा पत्र)

हरिवंश
उप सभापति, राज्यसभा                                                                                                  दिनांक 22 सितंबर 2020

                                          माननीय राष्ट्रपति जी,
                                          भारत सरकार
                                         नई दिल्ली

आदरणीय महामहिम जी,

कल दिनांक 20 सितंबर को राज्यसभा में जो कुछ हुआ, उससे पिछले दो दिनो से गहरी आत्मपीड़ा, आत्मतनाव और मानसिक वेदना में हूूॅं। मैं पूरी रात सो नहीं पाया।

जेपी के गांव में पैदा हुआ। सिर्फ पैदा नहीं हुआ। उनके परिवार और हम गाव वालों के बीच पीढ़ियों का रिश्ता रहा। गांधी का बचपन से गहरा असर पड़ा। गांधी, जेपी, लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे लोगों के सार्वजनिक जीवन ने मुझे हमेशा प्रेरित किया। जय प्रकाश आंदोलन और इन महान विभूतियों की परंपरा में जीवन में सार्वजनिक आचरण अपनाया। मेरे सामने 20 सितंम्बर को उच्च सदन में जो दृश्य हुआ, उससे सदन, आसन की मर्यादा को अकल्पनीय क्षति पहुंची है।

सदन के माननीय सदस्यों द्वारा लोकतंत्र के नाम पर हिंसक व्यवहार हुआ। आसन पर बैठे व्यक्ति को भयभीत करने की कोशिश हुई। उच्च सदन की हर मर्यादा और व्यवस्था की धज्जियां उड़ायी गयी। सदन में माननीय सदस्यों ने नियम पुस्तिका फाड़ी। मेरे ऊपर फैंका सदन के जिस ऐतिहासिक टेबल पर बैठकर सदन के अधिकारी, सदन की महान परंपराओं को शुरू से आगे बढ़ाने में मूक नायक की भूमिका अदा करते रहे है, उनकी टेबल पर चढ़कर सदन के महत्वपूर्ण कागजात -दस्तावेजों को पलटने ,फेंकने व फाड़ने की घटनाएं हुई। नीचे से कागज को रोल बनाकर आसन पर फेंके गये। नितांत आक्रामक व्यवहार, भद्दे और असंसदीय नारे लगाये गये। हृदय और मानस को बेचैन करने वाला लोकतंत्र के चीरहरण का दृश्य पूरी रात मेरे मस्तिष्क  में छाया रहा। सो नहीं सका। स्वभावतः अंतर्मुखी हॅू। मुझे साहित्य, संवेदना और मूल्यों ने गढ़ा है।
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    सर मुझसे गलतियां हो सकती है। पर मुझमें इतना नैतिक साहस है कि सार्वजनिक जीवन में खुले रूप से स्वीकार करूं। जीवन में किसी के प्रति कटु शब्द शायद ही कभी इस्तेमाल किया हो। क्योंकि मुझे महाभारत का यक्ष प्रश्न का एक अंश हमेशा याद रहता है। यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा, जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि हम रोज कंधों पर शव लेकर श्मशान जाते हैं, पर हम कभी नहीं सोचते हैं कि अंततःजीवन की यही नियति है। मेरे जैसे मामूली गांव और सामान्य पृष्ठभूमि से निकले इंसान, आयेंगे और जायेंगे। समय और काल के संदर्भ में उनकी न कोई स्मृति होगी, न गणना। पर लोकतंत्र का यह मंदिर‘सदन’ हमेशा समाज और देश के लिए प्रेरणास्रोत रहेगा। अंधेरे से रोशनी दिखाने वाला लाइट हाउस बनकर संस्थाएं ही देश और समाज  की नियति तय करती हैं। इसलिए राज्यसभा और राज्यसभा का उप सभापति का पद ज्यादा महत्वपूर्ण और गरिमामय है। मैं नहीं, इस तरह मैं मानता हॅू कि मेरा निजी कोई महत्व नहीं है। पर इस पर का है। मैने जीवन में गांधी के साधन और साध्य से हमेश ा प्रेरणा पायी है।
    बिहार की जिस भूमि से मेरा रिश्ता है, वहीं गणतंत्र का पहला स्वरूप विकसित हुआ। वैशाली का गणतंत्र। चंपारण के संघर्ष ने गांधी को महात्मा गांधी बनाया। भारत की नयी नियति लिखने की शुरूआत वहीं से हुई। जेपी की संपूर्ण क्रांति ने देश को दिशा दी। उसी धरती के लाल कर्पूरी ठाकुर के सामाजिक न्याय का रास्ता, सदियों से वंचित और पिछडे़ लोगों के जीवन में नयी रोशनी लेकर आया। उस धरती, माहौल, संस्कार और परिवेश से निकले मेरे जैसे गांव के मामूली इंसान की कोई पृष्ठभूमि नहीं है। हमारी परवरिश किसी अंग्रेजी स्कूल में नहीं हुई। खुले मैदान में पेड़ के नीचे लगने वाले पाठशाला से संस्कार का प्रस्फुटन हुआ। न पांचसितारा जीवन संस्कृति, न राजनीतिक दाव पेच से रिश्ता रहा। पर कल की घटनाओं से लगा कि जिस गंगा और सरयू के बीच बसे गांव के उदात संस्कारों, संयमित और शालीन व्यवहार के बीच पला, बढ़ा, गांधी, लोहिया, जेपी, कर्पूरी ठाकुर, चंद्रशेखर जैसे लोगों के विचारों ने मुझे मूल्य और संस्कार दिये। उनकी ही हत्या मेरे सामने कल उच्च सदन में हुई।
    भगवान बुद्ध मेरे जीवन के प्रेरणास्रोत रहे है। विहार की धरती पर ही आत्मज्ञान पाने वाले बुद्धने कहा था-आत्मदीपो भव
    मुझे लगा कि उच्च सदन के मर्यादित पीठ पर मेरे साथ जो अपमानजनक व्यवहार हुआ, उसके लिए मुझे एक दिन का उपवास करना चाहिए। शायद मेरे इस उपवास से सदन में इस तरह के आचरण करने वाले माननीय सदस्यों के अंदर आत्मशुद्धि का भाव जागृत हो।
    
    यह उपवास इसी भावना से प्रेरित है। बिहार की धरती पर पैदा हुए राष्ट्रकवि दिनकर, दो बार राज्यसभा के सदस्य रहे। कल 23 सितम्बर को उनकी जन्म तिथि है। आज 22 सितंबर सुबह से कल 23 सितंबर सुबह तक, इस अवसर पर चैबीस घंटे का उपवास मै कर रहा हॅूं।
काम काज  की गति न रूके, इसलिए उपवास के दौरान भी राज्यसभा के कामकाज में नियमित व सामान्य रूप से भाग लूंगा।
    पिछले सोमवार (14 सितंबर) को दोबारा मुझे उपसभापति का दायित्व दिया गया, तो मैने कहा था-इस सदन में पक्ष व विपक्ष में एक से एक वरिष्ठ  जिम्मेदार, प्रखर वक्ता एवं जानकार लोग मौजूद है। हम सब लोग उनके योगदान को समय-समय पर देखते हैं। मेरा मानना है कि वर्तमान में हमारा सदन प्रतिभावान एवं कमिटेड सदस्यों से भरा है। इस सदन में आदर्श सदन बनने की पूरी क्षमताएं है। जब-जब बहसें हुई, हमने देखा है।
पर महज एक सप्ताह में मेरा ऐसा कटु अनुभव होगा, आहत करने वाला कल्पना नहीं की थी।
    
 दिनकर की कविता से अपनी भावना को विराम दे रहा हॅूं।

 वैशाली! इतिहास-पृष्ठ पर अंकन अंगारों का,
    वैशाली! अतीत गहवर में गुंजन तलवारों का।
    वैशाली! जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता,
    जिसे ढूॅंढता देश आज उस प्रजातंत्र की माता।
    रूको, एक क्षण पथिक! यहां मिट्टी को शीश नवाओ,
    राजसिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ।
    
अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए,
आदर के साथ
सादर
हस्ताक्षर
 हरिवंश

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