तकनीक देश

भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग में बड़े बदलाव लाने की योजना

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के वर्तमान और पूर्व सचिवों ने  “विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के पचास स्वर्णिम वर्ष”के उपलक्ष्य में डीएसटीकी योजनाओं की रूप रेखा पर चर्चा की

02 सितम्बर 2020
नई दिल्ली  से पसूकाभास

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के पचास वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में “डीएसटी के पचास स्वर्णिम वर्ष” विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में विभाग के पूर्व और वर्तमान दोनों सचिवों ने विभाग द्वारा अब तक हासिल की गई महत्वपूर्ण उप​लब्धियों तथा भविष्य के रोडमैपपर चर्चा की।

“डीएसटी के पूर्व सचिव और वर्तमान में केन्द्र सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के विजयराघवन ने पैनल चर्चा में कहा“देश के हर क्षेत्र में डीएसटी का गहरा और व्यापक प्रभाव रहा है। जिससे यह सही मायने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से भारत में बड़ा परिवर्तन लाने वाली एजेंसी के रूप में है।

भारत के लिए विज्ञान के क्षेत्र में काफी तरक्की कर चुके देशों के समकक्ष खड़ा होने के लिए अपनी बौ​द्धिक क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए। इसे हमारे जीडीपी के अनुपात में होना चाहिए। प्रौद्योगिकी के विभिन्न विषयों को देखते हुए, भारत को यह भी देखना होगा कि क्या मौलिकता के लिए कोई जगह है जो इन क्षेत्रों में निवेश के मामले में हमारी साख बना सकती है।”

डीएसटी सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा कि डीएसटी की स्थापना भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार के क्षेत्र में एक बड़ी घटना रही लिए। यह भारत में एसएंडटी के बहुत व्यापक हितधारक आधार से जुड़ा है जिसकी पहुंच  स्कूली छात्रों से लेकर पीएचडी कर रहे युवा वैज्ञानिकों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों तक है।

उन्होंने डीएसटी द्वारा कुछ बड़ी संस्थाएं बनाए जाने के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि- स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देने के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) तथा कई वैज्ञानिकों को सशक्त बनाने में अहम भूमिका अदा करने वाले प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी) का गठन इनमें शामिल है। उन्होंने कहा कि विभाग की ओर से पिछले पांच दशक में जो बुनियाद रखी गई है और जो मानव संसाधन तैयार किया गया है उन्हें तेजी के साथ किस तरह से सक्रिय किया जा सकता है यह कोविड महामारी के दौरान देखा गया है।

2006-2014 दौरान डीएसटी के सचिव रहे प्रोफेसर टी रामासामी ने कहा कि डीएसटी ने भारतीय विज्ञान प्रणाली के लिए प्राणवायु या ऑक्सीजन की भूमिका निभाई है। ऐसे में डीएसटी को देश के विज्ञान और प्रौद्योगिकी की नयी नीति का लाभ उठाते हुए वंचित और और हाशिये पर जी रहे लोगों तक अपनी पहुंच बनानी चाहिए।

डीएसटी के (1995-2006) के दौरान सचिव रहे प्रोफेसर वीएस राममूर्ति ने अपनी यादों को साझा करते हुए कहा “किसी भी शैक्षणिक संस्थान के बाहर  टेक्नोलॉजी बिजनेस इन्क्यूबेटर की स्थापना करने की शुरुआत हमने ही की थी और अब इस वर्ष 100 और ऐसे इनक्यूबेटर सीएसटी द्वारा स्थापित किए जाएंगे। यह एक ऐसा पैमाना है जिसमें हम आगे बढ़ना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा “हमें अपनी आबादी के अनुरूप पर्याप्त संख्या में शोधकर्ताओं और प्रौद्योगिकीविदों की आवश्यकता है। कोविड महामारी ने हमें दिखाया है कि हमारी तकनीकी ताकत जरुरत के समय किस तरह से जींवत होकर काम आती है। यही वह ताकत है जो हमें आगे ले जाएगी।”

डीएसटी के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रमों की श्रृंखला के हिस्से के तौर पर आज की परिचर्चा वर्चुअल माध्यम से राष्ट्रीय विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी आयोग-सीएसटी द्वारा आयोजित की गई थी जो भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग तथा विज्ञान प्रसार का एक प्रभाग है।

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