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चीन व अमेरिका के बीच होने वाला भीषण युद्ध टला!

चीन के लिए  ढाल बना अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव2020

 
विश्व में मानवता व लोकशाही के लिए खतरा बन चूके  चीन पर कडा अंकुश लगाना जरूरी

 

 देवसिंह रावत
3 नवम्बर 2020 को अमेरिका के नये राष्ट्रपति के चयन के लिए होने वाले  चुनाव पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी हुई है।चीन से युद्ध की आशंका से आशंकित पूरे विश्व की नजरें अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनाव पर लगी है। एक दो माह से चीन की हैवानित से त्रस्त दुनिया को आशा थी कि अमेरिका तुरंत चीन पर अंकुश लगा कर विश्व की रक्षा करेगा। परन्तु विगत 2 माह की गतिविधियों को देख कर विश्व के सामरिक विशेषज्ञों को लग रहा है कि कुछ और महिने  के लिए अमेरिका ने चीन को जीवन दान दे दिया है। ऐसा लग रहा है कि अमेरिका ने चीन को अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव तक चीन को अभयदान दे दिया है। ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति के चुनाव परिणाम के बाद ही अमेरिका चीन से युद्ध करके उस पर अंकुश लगायेगा।सामरिक विशेषज्ञों को  बहुत कम आशा है कि डोनाल्ड ट्रंप चुनाव से पहले चीन को सबक सिखाने वाला बडा कदम उठायेगे। खासकर ईरान से उपजे तनाव के बाद जिस प्रकार से ट्रंप ने ईरान द्वारा उकसाये जाने के बाबजूद ठोस कार्यवाही नहीं की, उसको देखते हुए नहीं लगता हैे कि ट्रंप, विश्व लोकशाही को खतरा बन चूके चीन को तत्काल कठोर कदम उठायेंगे। हाॅ अगर अमेरिका का राष्ट्रपति बुश जैसे होते तो अब तक दुनिया का नक्शे से चीन गायब हो जाता। डोनाल्ड टंªप मूल रूप से व्यवसायी प्रवृति के नेता है। वे ऐसा कदम तत्काल नहीं उठायेगे जिसमें लेशमात्र भी नुकशान की आशंका हो। हाॅ चुनाव के बाद हो सकता वे कुछ कडे कदम उठाये। परन्तु चुनाव से पहले वे ऐसा साहसिक कदम उठाने से बचते रहेंगे। हां इस दौरान अमेरिकी सेना चीन पर हमले की तैयारी को अंतिम रूप देगी। हाॅ इस दौरान चीन ने  अमेरिका को उकसाने वाली कार्यवाही नहीं की तो चुनाव तक अमेरिका व चीन के बीच होने वाला भीषण युद्ध टल जायेगा। इस युद्ध से लोग आशंकित थे कि यह युद्ध कहीं विश्व युद्ध में तब्दील नहो जाये। क्योंकि जिस प्रकार से चीन अपने पडोसी भारत, ताईवान, तिब्बत, वियतनाम, जापान आदि देशों के भू भाग व हितों को न रौंदे। अगर चीन ने यह कृत्य किया तो उसके लिए हिमालयी भूल साबित होगी। ये सभी पडोसी ही नहीं अमेरिका व उसके मित्र राष्ट्र भी कोरोना से इन देशों में हुई भारी तबाही के लिए चीन को गुनाहगार मानते हुए चीन को करारा सबक सिखाना चाह रहे हैं। ऐसे माहौल में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव चीन के लिए एक ढाल साबित होगी। इस दौरान चीन ने अगर अपनी भूल को सुधारने का काम किया तो उसका अस्तित्व बच जायेगा अगर चीन अपने सत्तामद में ऐसा ही चूर रहा तो उसका खमियाजा उसको ऐसा भोगना पडेगा कि चीन इतिहास की किताबों में ही दफन हो जायेगा। चीन के साथ अमेरिका का युद्ध इराक या अफगानिस्तान जैसा सीमित युद्ध नहीं होगा अपितु इससे पूरे विश्व में विश्व युद्धों से अधिक विनाशकारी साबित होगा। इस युद्ध में भाग लेने वालों के अलावा अन्य तटस्थ देशों को भी इसके गंभीर दुष्परिणाम भोगने पडेंगे। इसके साथ यह भी तय है कि चीन के साथ अमेरिका को अपना वजूद बचाने के लिए हर हाल में लडना ही होगा। जिस प्रकार से चीन भारत, ताईवान, वियतनाम व जापान को बार बार नुकसान पंहुचाने का काम कर रहा है और विश्व में अमेरिका के बजूद को जमीदोज करके अपना बर्चस्व स्थापित करने में लगा है उसको देखते हुए चीन का विनाश तय है। पर इसमें अमेरिका जितनी देर करेगा चीन पर अंकुश लगाना उतना ही कठिन होता रहेगा। अगर चीन पर इस बार अंकुश लगाने में अमेरिका चूक गया तो वह अमेरिका के साथ साथ विश्व लोकशाही के लिए सबसे बडा ग्रहण साबित होगा। चीन जिस प्रकार से पाक आदि आतंकी देशों के साथ मिल कर विश्व को जैविक हथियारों से तबाह करने के नापाक षडयंत्र कर रहा है उससे विश्व की रक्षा के लिए चीन पर हर हाल में अंकुश लगाना जरूरी है।

उल्लेखनीय है कि 3 नवम्बर 2020 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में  अमेरिकी मतदाता इस दिन 538 इलेक्ट्रोलर कालेजेज का चुनाव करेंगे। जिस दल के पास भी 270 इलेक्ट्रोलर होंगे उसके प्रत्याशी ही आगामी 4 साल के संसार के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा।  4 मार्च 1789 से स्थापित दुनिया के सबसे मजबूत लोकशाही के 59 वां राष्ट्रपति चुनाव में चुने हुए इलेक्ट्रोलर कालेजेज 14 दिसम्बर को  राष्ट्रपति चुनावों का चयन करेंगे।अमेरिका में आम  मतदाता, राजनैतिक दल के लिए अपना पंजीकरण करा कर अपने प्रतिनिधी यानी इलेक्ट्रोलर कालेजेज का चयन करते हैं। ये विजयी इलेटोलर कालेजेज अपनी पार्टी के राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति के उम्मीदवारों का चुनाव करते हैं। यानी अमेरिका में अप्रत्यक्ष रूप से मतदाता राष्ट्रपति का चयन करते है। भारत में जहां सभी कार्यकारी शक्तियां प्रधानमंत्री के पास होती है,वेसे ही अमेरिका में देश की तमाम शक्तियां राष्ट्रपति के पास होती है। भारत में जहां एक व्यक्ति प्रधानमंत्री के पद पर अनंत काल तक बना रह सकता है। परन्तु अमेरिका में केवल दो बार ही देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के पद पर आसीन रह सकता है।
अमेरिका का राष्ट्रपति कौन बन सकता है उसके बारे में अमेरिकी संविधान के आर्टिकल 2 के सेक्शन 1 में तीन योग्यता रखने वाला व्यक्ति ही राष्ट्रपति बनने के लिए योग्य माना जा सकता। 1. चुनाव लड़ने वाला व्यक्ति पैदाइशी अमेरिकी होना चाहिए।  2. उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए 3. चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति कम से कम 14 बरस तक अमेरिका में रहा होना चाहिए।
अमेरिकी चुनावी व्यवस्था में प्रत्येक मतदाता को चुनाव से पहले कुछ समय के लिए एक पार्टी के लिए रजिस्टर करना पड़ता है तभी वह इस तरह के प्राइमरी चुनाव में भाग ले सकता है।

राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के लिए प्रत्याशी को अपने दल में एक संख्या समर्थन की जरूरत होती है । दल के अंदर राष्ट्रपति पद के अन्य दावेदारों में से राष्ट्रपति के लिए दलीय प्रत्याशी बनने के लिए हर राज्य में होने वाले प्राइमरी या काकसस चुनाव में सबसे अधिक डेलिगेट्स का समर्थन हासिल करना होगा, अंत में इन्हीं डेलिगेट्स की संख्या के आधार पर नेशनल कन्वेंशन की ओर बढ़ा जाता है। अपने अपने दलों में कुल प्रतिनिधियों के आधे से अधिक समर्थन अर्जित करने वाला दावेदार ही अपने दल का प्रत्याशी बनता है।

3 नवंबर 2020 को होने वाले राष्ट्रपति के आम चुनाव के बाद निकले परिणाम को   अमेरिकी कांग्रेस  5 जनवरी, 2021 को प्रमाणित करेगी ।  नव निर्वाचित राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति 20 जनवरी 2021 को नए सत्र को शुभारंभ कर अपना कार्यकाल प्रारंम्भ करेंगे।
2020 संयुक्त राज्यह चुनाव चीन द्वारा प्रसारित वैश्विक महामारी  कोरोना व चीन के सम्राज्यवादी प्रवृति से पीड़ित दुनिया में मानवता व लोकशाही की रक्षा के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।  आतंक के दंश से पीड़ित विश्व के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।  भारत में बहुदलीय लोकशाही है वहीं अमेरिका में प्रायःदो दलीय लोकशाही है।  रिपब्लिकन पार्टी ने वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अपना प्रत्याशी पुन्नः बनाया हैं। वहीं डेमोक्रेटिक दल ने जो बिडन को अपना प्रत्याशी बना कर चुनावीं दंगल में उतारा है।   भारत में लोकसभा व विधानसभाओं के होने वाले चुनाव प्रायः 5 वर्षीय कार्यकाल के लिए होते हैं। वहीं अमेरिका में यह चुनाव  चार साल के कार्यकाल के लिए होता है। अमेरिका में  पिछली बार राष्ट्रपति का चुनाव  नवम्बर 8, 2016 को सम्पन्न हुआ था। इस चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने डेमोक्रैटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को हराया। इस चुनाव के लिए सत्तारूढ़ रिपब्लिकन पार्टी ने राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रप के साथ उपराष्ट्रपति पद के लिए माईक पेंस तथा डेमोक्रेटिक पार्टी ने राष्ट्रपति पद के लिए जो बाइडेन  व उपराष्ट्रपति के लिए अफ्रिका मूल के पिता व भारतीय मूल की माता की संतान, महिला ओबामा के नाम से विख्यात कमला  हैरिस की जोड़ी को चुनावी दंगल में उतारा है। उप राष्ट्रपति की डेमोक्रेटिक प्रत्याशी  कमला हैरिस का जन्म 20 अक्टूबर 1964 को कैलिफोर्निया के ओकलैंड में हुआ था। उनकी मां श्यामला गोपालन भारत के तमिलनाडु से अमेरिका आई थीं और उनके पिता डोनाल्ड जे हैरिस जमैका से अमेरिका आए थे। परन्तु विरोधी उनके जन्मस्थान के बारे में बार बार विवाद खडा कर रहे हैं।उल्लेखनीय है कि कमला हेरिस ने इस चुनावी दंगल में े राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के रूप में  मार्टिन लूथर किंग जूनियर की 90वीं जयंती के मौके पर उतरी थी। परन्तु दलीय समर्थन में वह जो से पिछ़ड गयी। इस कारण उसे उप राष्ट्रपति के पद पर चुनाव लड़ना पड रहा है।

32.82करोड़ से अधिक जनसंख्या के साथ, संयुक्त राज्य कुल क्षेत्रफल के अनुसार विश्व का तीसरा सबसे बड़ा (और भूमि क्षेत्रफल के अनुसार, चैथा सबसे बड़ा) देश हैं। 32.82करोड़ से अधिक जनसंख्या के साथ यह चीन और भारत के बाद जनसंख्या के अनुसार तीसरा सबसे बड़ा देश हैं। यह विश्व के सबसे संजातीय आधार पर विविध और बहुसांस्कृतिक राष्ट्रों में से एक हैं, जिसका मुख्य कारण अन्य कई देशों से बड़े पैमाने पर आप्रवासन रहा हैं। अमेरिका की राजधानी वॉशिंगटन, डी॰ सी॰ हैं, और सबसे बड़ा शहर न्यूयॉर्क हैं। अन्य प्रमुख महानगरीय क्षेत्रों में लॉस एंजेलिस, शिकागो, डैलस, सैन फ्रांसिस्को, बोस्टन, फिलाडेल्फिया, ह्युस्टन, अटलांटा, और मियामी शामिल हैं। इस देश का भूगोल, जलवायु और वन्यजीवन बेहद विविध हैं।

अमेरिका के संयुक्त राज्य एक अत्यधिक विकसित देश है, नाममात्र, सकल घरेलू उत्पाद के माध्यम से दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और क्रय-शक्ति समता के अनुसार दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। हालांकि इसकी आबादी दुनिया के कुल का केवल 4.3ः है, अमेरिका में दुनिया में कुल संपत्ति का लगभग 40ः हिस्सा है। औसत मजदूरी, मानव विकास, प्रति व्यक्ति जीडीपी, और प्रति व्यक्ति उत्पादकता सहित कई सामाजिक आर्थिक प्रदर्शन के मामलें में अमेरिका के संयुक्त राज्य सबसे ऊपर है। हालांकि यू.एस. को औद्योगिक अर्थव्यवस्था के लिये जाना जाता है, आज उसका सेवाओं और ज्ञान अर्थव्यवस्था में प्रभुत्व हासिल है, वहीं विनिर्माण के क्षेत्र मे यह दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा स्थान है। वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक चैथाई और वैश्विक सैन्य खर्च के एक तिहाई के साथ, अमेरिका के संयुक्त राज्य दुनिया की अग्रणी आर्थिक और सैन्य शक्ति है। अमेरिका के संयुक्त राज्य, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रमुख राजनीतिक और आर्थिक शक्ति है, और वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी नवाचारों में अग्रणी है।
अमेरिका में मुख्य रूप से रोमन कैथलिक और प्रॉटेस्टेंट 2 मतों के ईसाई धार्मिक रहते हैं। रोमन कैथलिक लोगों की संख्या में पहले की तुलना में काफी कमी आई है। 2009 में यह संख्या 51प्रतिशत तक थी जो अब घटकर 20प्रतिशत  तक रह गई है। दूसरी तरफ रिसर्च सर्वे के अनुसार 43प्रतिशत  व्यस्कों ने खुद को प्रॉटेस्टेंट धर्म माननेवाला बताया। भले ही अमेरिका खुद को धर्म निरपेक्ष व लोकशाही का विश्व में सबसे बडा आदर्श ध्वजवाहक बताता है। परन्तु हकीकत यह है कि अमेरिका में रंगभेद बहुत गहरा है। रंगभेद भले ही सरकारी तौर पर दशकों पहले जमीदोज करने की हुंकार भरता हो पर सच्चाई जग जाहिर है। इन दिनों भी रंगभेद के विवाद व हिंसा की भट्टी में अमेरिका जल रहा है। यह हिंसा इतनी व्यापक है कि अगर किसी अन्य देश में होती तो अब तक उस देश को पूरा विश्व कटघरे में खडा किये होता।अमेरिका के सभी 50 राज्यों में से 32 राज्यों की ही  भाषा अंग्रेजीं है। अन्य राज्यों की अन्य स्थानीय भाषायें है।
अमेरिका में 78.2 प्रतिशत लोग अंग्रेजी भाषी है। वहीं 13.4 प्रतिशत स्पेनिश, 3.7 प्रतिशत इंडो यूरोपीयन व 3.3 प्रतिशत एशियन व पेसिफिक भाषी है।
इस देश की जनसंख्या का 70.6प्रतिशत ईसाई, 1.7 यहुदी, .7प्रतिशत बौध व 1 प्रतिशत हिंदू है। अमेरिका में 33 लाख मुस्लिम व 57 लाख यहुदी मतावलम्बी रहते है।
अमेरिका की 73 फीसदी आबादी गोरे यूरोपीय मूल के लोगों की है, जबकि 15 फीसदी लातिनी लोग व 13 फीसदी अफ्रीकी मूल के अश्वेत हैं। अमेरिका में एशियन मूल के लोगों 5.4प्रतिशत है।  भारतीय मूल के आप्रवासी कुल आबादी का एक फीसदी(लगभग 32 लाख) हैं, जो वहां प्रशासनिक कामकाज और आर्थिक गतिविधियों में अपनी अहम भूमिका निभाते हुए अमेरिका की मुख्य धारा का हिस्सा बने हुए हैं। अमेरिका में मुस्लिम आबादी भी करीब एक प्रतिशत के करीब है।
इस चुनाव में भले ही डोनाल्ड ट्रंप की स्थिति बेहतर नजर आ रही है। इसके बाबजूद वे अमेरिका  में भारी संख्या में  होने वाले डाक मतदान से आशंकित है।इसी लिए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप  ने डाक से वोट के जरिए धोखाधड़ी और गलत परिणाम आने की आशंका के चलते चुनाव स्थगित करने का सुझाव दिया था। अपनी इसी आशंका को प्रकट करते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्वीट करते हुए कहा कि वैश्विक पोस्टल वोटिंग से 2020 का चुनाव इतिहास का सबसे ज्यादा गलत और धोखाधड़ी वाला होगा। यह अमेरिका के लिए बहुत शर्मनाक होगा। ट्रंप ने लोगों के सुरक्षित और उचित तरीके से मतदान करने में सक्षम हो जाने के बाद चुनाव आयोजित कराने का सुझाव दिया था। टंªप के इस बयान पर उनके प्रतिद्धंदी सहित अन्य लोगों ने चुनाव टालने का हथकंड़ा बता कर निंदा की तो
ट्रंप ने व्हाइट हाउस में एक प्रेस कांफ्रेंस स्पष्ट करना पडा कि वे 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में देरी नहीं चाहते हैं।

हालांकि डाक द्वारा मतदान के बारे में अमेरिका के राष्ट्रपति की आशंका निर्मूल नहीं है। सन्2016 और 2018 में हुए चुनाव में 25प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मतपत्रों को राष्ट्रव्यापी मेल करने के साथ किया। आज जब कोरोना महामारी की चपेट में अमेरिका बुरी तरह से पीडित है तो ऐसे में मतदान केंद्रो में मतदान करने जाने के बजाय मतदाता डाक द्वारा मतदान करना सुरक्षित समझ रहे है।ऐसे में आशंका है कि 60 से 80 प्रतिशत मतदान डाक द्वारा किये जा सकते है।
इन डाक मतदान को संभालने के लिए अतिरिक्त धन व कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। इससे अमेरिका में होने वाला चुनाव काफी रोचक होगा।
अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप ने ऐलान किया कि उनका पूरा चुनाव ही अमेरिका को पुन्न श्रेष्ठ बनाने के लिए ही समर्पित होगा। अपने विरोधियों पर करारा प्रहार करते हुए ट्रंप ने कहा कि उन्होने  अपने कार्यकाल के  शुरुआती 100 दिनों में इतना काम कर दिया जितना कि बिडेन अपने 40 साल के राजनीतिक करियर में नहीं कर पाए।
अमेरिका को कमजोर करने में चीन किस कदर लगा है इसका नजारा हाल के महिनों में अमेरिका में हुए नस्लीय दंगो की भीषणता से उजागर हो गया है। जिस प्रकार ये दंगे व प्रदर्शन विश्व व्यापी हुए उससे साफ हो गया कि इसके पीछे कोई मजबूत ताकत है। अमेरिका को इस मानसिक रोग से उबरना होगा। चुनावी जंग के बाद विश्व को बचाने के लिए अमेरिका को चीन से जो बडी भीषण जंग लड़नी होगी,उसके पदचाप सुन कर भी सामरिक विशेषज्ञ आशंकित है। क्योंकि चीन कितनी हैवानियत पर उतर सकता है इसकी कल्पना करना सहज नहीं है। जिस षडयंत्र के तहत चीन ने पूरे विश्व को कोरोना जैविक विषाणु की मार से तबाह कर दिया है। उससे बचते हुए चीन पर भीषण अंकुश लगाना मानवता की रक्षा के लिए आज की सबसे बडी जरूरत है।

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