देश

प्रधानमंत्री कार्यालय के महत्वपूर्ण पत्र को मात्र 8.3 किमी दूरी तय करने पर लगे 2 महीने से अधिक दिन

कोरोना महामारी में हुई तालाबंदी के कारण
भारतीय भाषा आंदोलन द्वारा 13 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री से 73 सालों से देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने के लिए दिये गये ज्ञापन का प्रत्युतर में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा 18 मार्च 2020 को प्रेषित पत्र 23 मई 2020 को प्राप्त हुआ।

नई दिल्ली (प्याउ)। कोरोना महामारी से पूरे विश्व की व्यवस्था कैसे थम सी गयी है भारत में इसका नजारा इससे भी लगाया जा सकता कि भारतीय प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा 18 मार्च 2020 को मात्र 8.3 किमी दूरी के लिए प्रेषित  महत्वपूर्ण डाक 23 मई यानी 2 महिने से अधिक समय पर पंहुची। हुआ यों कि  13 मार्च 2020 को भारतीय भाषा आं्रदोलन  ने प्रधानमंत्री कार्यालय में  जो ज्ञापन सौंपा था उस ज्ञापन का जो जवाबी पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय ने   PMOPG/D/2020/0081313 दिनांक 18 मार्च 2020 को अनंत कुमार अनुभाग अधिकारी अनंत कुमार द्वारा हक्षारित पत्र प्रेषित किया, वह कोरोना महामारी के प्रकोप से हुए देशव्यापी तालाबंदी के कारण प्रधानमंत्री कार्यालय से भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के कार्यालय शकरपुर दिल्ली में ही 8.3 किमी दूरी तय करने में 2 महिने से अधिक लग गये। प्रधानमंत्री कार्यालय का यह महत्वपूर्ण पत्र दो माह बाद 23 मई 2020 को दिल्ली शकरपुर में प्राप्त हुआ।
13 मार्च 2020 को  भारतीय भाषा आंदोलन ने अपने ऐतिहासिक आंदोलन के तहत ही भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में संसद की चैखट जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा कर देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए ज्ञापन सौंपां उसमें दो टूक शब्दों में लिखा था कि 73 साल से कोरोना विषाणु से कहीं अधिक घातक ‘अंग्रेजी भाषा व इंडिया नाम की गुलामी रूपि गंभीर महामारी से पीडित भारत को  युद्धस्तर पर मुक्त करे सरकार । भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, रामजी शुक्ला,  वेदानंद, अशोक ओझा व राजीव काला द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन के जवाब में प्रधानमंत्री कार्यालय ने उपरोक्त पत्र प्रेषित किया। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा लिखित व इंटरनेट पर डाले जवाब से साफ होता है कि देश के प्रधानमंत्री मोदी भी देश की सबसे बड़ी समस्या के प्रति पूर्ववर्ती सरकारों की तरह कमजोर दृष्टिकोण रखते है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त करने के लिए 21 अप्रैल 2013 से संसद की चैेखट जंतर मंतर राष्ट्रीय धरना स्थल से सतत  2019 तक अखण्ड धरना जारी रखा। भारत की सबसे बडी इस समस्या का तुरंत समाधान करने के अपने दायित्व का निर्वहन करने के बजाया भारत सरकार के शासन प्रशासन ने हरित प्राधिकरण की आड़ में लोकशाही को शर्मसार करने वाला कृत्य करके संसद की चैखट जंतर मंतर से भारतीय भाषा आंदोलन सहित देश के कोने कोने से जनहित व राष्ट्रहित की विभिन्न मांगों को लेकर चल रहे धरनों पुलिसिया दमन से न्यायालय व आंदोलनकारियों की आंखों में धूल झौंकने का कृत्य किया कि अब धरना रामलीला मैदान में जारी होगा। परन्तु रामलीला मैदान जा कर स्थानीय पुलिस प्रशासन ने जानकारी दी कि अभी तक सरकार ने रामलीला मैदान को धरने के लिए कोई विधिवत जानकारी नहीं दी। इसके बाद आंदोलनकारियों ने आईटीओ के समीप शहीद पार्क  में  जारी रहा। उसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को सीधे निर्देष दिया कि राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर व वोट क्लब में धरना स्थल के रूप में स्वीकृत है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी जंतर मंतर पर धरना जारी करने की इजाजत न दी जाने की शिकायत भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री से इंटरनेटी संवाद मंचो से किया। तब जंतर मंतर पर इजाजत दी गयी। परन्तु कुछ ही समय बाद दिल्ली पुलिस ने सतत धरने की इजाजत न देने पर भारतीय भाषा आंदोलन ने राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पदयात्रा करके हर कार्यदिवस पर ज्ञापन देने का महा आंदोलन शुरू कर दिया। यह आंदोलन भी 18 तक जारी रहा। उसके बाद कोरोना महामारी को दंश को देखते हुए कोरोना के प्रभाव काल तक सतत इंटरनेट के माध्यम फेसबुक से प्रधानमंत्री कार्यालय व टवीटर में नरेन्द्रमोदी के द्वारा प्रश्न पूछा जाता कि आज भी क्यों है भारत 73 साल से अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम ।

भारतीय भाषा आंदोलन के संघर्ष पर एक नजर
21 अप्रैल 2013 से इसी मांग को लेकर जंतर मंतर पर 30 अक्टूबर 2018 तक अखण्ड धरना (30 अक्टूबर 2018 हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनलª) की आड़ में सरकार ने जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक  धरने सहित अन्य आंदोलनों को रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया।
(ख) – पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय व आंदोलनकारियों को गलत गुमराह किया कि आंदोलन स्थल रामलीला मैदान बनाया गया। जबकि वहां कोई स्थान नियत नहीं किया गया। आंदोलनकारियों ने रामलीला मैदान में धरना देने की कोशिश की तो वहां पर कोई स्थान तय नहीं किया गया। उसके बाद आंदोलनकारी महिनों तक शहीदी पार्क पर आंदोलनरत रहे परन्तु पुलिस ने वहां पर भी परेशान किया।
(ग) 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन का धरना प्रारम्भ (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंतर मंतर व वोट क्लब पर आंदोलन करने की इजाजत जारी करने के बाद) पर एक पखवाडे बाद ही दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी द्वारा उत्पीड़न किये जाने के बाद धरना स्थगित ।
(घ)  28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक  पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन  किया।18 मार्च को चुनाव आचार संहिता लगने पर नयी सरकार के गठन तक आंदोलन  जारी पर पदयात्रा स्थगित।
(ड़) 30 मई 2019 को नयी सरकार के गठन के बाद 1 जून 2019 से पुन्न जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पद यात्रा कर ज्ञापन आंदोलन 18 मार्च 2020 तक जारी रखा। जारी
 19 मार्च 2020 से कोरोना महामारी के देशव्यापी संक्रमण को देखते हुए भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रतिदिन प्रधानमंत्री कार्यालय तक ज्ञापन देने का ऐतिहासिक आंदोलन का स्वरूप बदलते हुए कोरोना के प्रभाव तक प्रतिदिन इंटरनेट के माध्यम फेसबुक/टवीटर द्वारा प्रधानमंत्री मोदी व प्रधानमंत्री कार्यालय तक देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी  से मुक्त करने तथा भारतीय भाषाओं को देश में लागू करने की मांग की गयी।
(च)अंग्रेजी व इंडिया की गुलामीष्से मुक्ति पाये बिना न तो भारत में न तो लोकशाही व गणतंत्र स्थापित हो सकता है व नहीं हो सकता है चहुंमुखी विकास

भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री से सीधा एक ही सवाल करते रहे कि अंग्रेजों के जाने के 73 साल से भारत में भारतीय भाषाओं से पूरी व्यवस्था संचालित करने के बाद देश के हुक्मरान 73 सालों से उन्हीं अंग्रेजों की भाषा ‘अंग्रेजी’ व उनके द्वारा थोपे गये इंडिया नाम का बेशर्मी से गुलाम क्यों बनाये हुए है, वह भी उनक अंग्रेजों की जिन्होने भारत को 200 साल तक गुलाम बनाया, जिन्होने लाखों भारतीय सपूतों को कत्लेआम किया और अमानवीय अत्याचार किया। यही नहीं इन अंग्रेजों ने सोने की चिडिया समझी जाने वाले भारत को निर्ममता से लूटने का जघन्य कृत्य किया। जबकि पूरे विश्व के सभी विकसित व विकासशील देश ही नहीं अपितु गरीब देश में अपने देश की व्यवस्था का संचालन अपने देश की भाषाओं में ही संचालित करते है। परन्तु भारत में अंग्रेजी की गुलामी थोपे आजाद होने के 73 साल से बेशर्मी में जारी रखी हुई है। इसे देश की लोकशाही, आजादी, मानवाधिकारों व स्वाभिमान को रौंदने वाला आत्मघाती कृत्य मानते हुए भारतीय भाषा आंदोलन संसद की चैखट पर ऐतिहासिक आंदोलन वर्षो से छेडे हुए है।

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