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चीनी विषाणु कोरोना महामारी मेें बहुत याद आए काला बाबा

कुछ ही सप्ताह में कोरोना इतिहास के पन्नों में काल के प्रवाह से दफन हो जायेगा। 

धूनी,धूप व धूल में रमे रह कर जगत कल्याण में समर्पित रहकर खंडहरों के वासी थे लौंग इलायची का प्रसाद देने वाले रहस्यमय शक्तियों के स्वामी काला बाबा।

देवसिंह रावत

विगत दो माह से पूरा विश्व कोरोना महामारी से न केवल त्रस्त है अपितु भयाक्रांत होकर अपने अपने घरों में दुबका हुआ है। संसार के 210 देशों में करीब 2लाख 7 हजार से अधिक लोग दम तोड़ चूके है। करीब 30 लाख इस महामारी से पीड़ित है। अमेरिका में ही करीब दस साल लोग पीड़ित हैं और 55 हजार से अधिक लोग मारे गये। इटली में 26 हजार, स्पेन में 23 हजार, फ्रांस में 22 हजार,ब्रिटेन में 20 हजार व भारत में 800 से अधिक लोग दम तोड़ चूके हैं। चीन द्वारा अपने देश में कोरोना महामारी से मारे गये लोगों की संख्या जो संख्या 4633 बतायी जा रही है उस पर देश का जनमानस विश्वास ही नहीं हो रहा हैे।
ज्ञान विज्ञान का दम भर के प्रकृति को ठेंगा दिखाने वाला मानव विश्व हैरान-परेशान होकर अपने अस्तित्व के लिए ही आशंकित हो रखा है।
दुनियाभर को जोड़ने की दम भरने वाली सड़क वायु व जल परिवहन सेवाएं ठप पढ़ी हुई है। दुनिया की तमाम कल कारखाने बंद पड़े हुए हैं विश्व को अपनी सामरिक ताकत से रौंदेने वाली तमाम महा शक्तियां असहाय होकर त्राहिमाम त्राहिमाम कह रही हैं।
पूरी दुनिया को लूट कर अपने को भंडार भरने वाले धन पशु,बड़े-बड़े राजा महाराजा, ज्ञानी ध्यानी लुटेरे माफिया, चिकित्सक न्यायविद इस महामारी में खुद को दीन हीन समझ कर भयाक्रांत है।
दीन दुखियों की करुण पुकार को नजरअंदाज करके रंगरेलियां मनाने वाला नीरो समाज भी आजकल अपने को कुकर्मों व जाहिलवृति से दूर है।
संसार के कसाई खाने,मयखाने व धूर्त घर आदि सब बंद है। राजनीतिक,धार्मिक,सामाजिक जलसे सब बंद है।
इस बीमारी में विश्व की चिकित्सा पद्धति सहित सभी सरकारों ने हाथ खड़े किए । कोरोना से त्रस्त दुनिया में कहा जा रहा है कि  शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से इस बीमारी के विषाणु से बचा जा सकता है ।एक दूसरे से दूरी बना कर इससे बचा जा सकता है। लोग परंपरागत भारतीय मसालों का प्रयोग करने लगे। भारतीय परंपरा( विदेशी परंपरा के अनुसार हाथ मिलाना है या गले मिलने के बजाय) दूर से नमस्ते /नमस्कार को आत्मसात करने लगे।
इस महामारी से भयाक्रांत चीन ने भी जताने के बजाय भारतीय परंपरा के अनुसार मृतक व्यक्ति का अंतिम संस्कार दाह संस्कार विधि से ही किया जाने लगा।
ऐसे समय में मुझे काला बाबा बरबस याद आए। काला बाबा के यहां जो भी प्राणी मिलने जाता था, बाबा उसे लौंग इलायची का प्रसाद अवश्य देते थे।
लौंग इलायची को शारीरिक, मानसिक और सांसारिक सभी समस्याओं के समाधान प्रसाद बता कर देते थे। पीने के लिए अजवाइन, नींबू, काला नमक का पानी पीने को देते। धूर्तो व मक्कारों को वह हर हाल में सबक सिखाते थे। वे केवल सरल हृदय के लोगों को पसंद करते है। गलती से कोई धूर्त व गलत लोग उनके पास आ जाते थे तो वे उनको तीखा बोल कर उसको भगा देते थे।
काला बाबा प्रायः कहते थे कि
काल भी किसी को डंडा लेकर मारने नहीं जाता, कारण बनाता है
मैं तो काला बाबा हॅू बिना मेरी इजाजत के हवा पानी सहित कोई मेरे पास फटक भी नहीं सकता।
काला बाबा के बारे में 1992 के आस पास की कादम्बनी तंत्र विशेषांक के लेख के द्वारा हुआ ‘कामनाओं की पूर्ति व रोगों की मुक्ति प्रदाता आग में घिरा काला बाबा । उस समय मै भाषा आंदोलन से जुडा था, लेख के अनुसार दिल्ली के कनाट प्लेस में इंदिरा गांधी द्वारा स्थापित बाल सहयोग नामक संस्था के खंडरों में वे निवास करते थे। जब मैं वहां पंहुचा तो पता चला कि लेख के बाद सैकडों लोग उनकी खोज में वहां आये तो बाबा अपने कानपुर के गोविंद पुर स्थित नाले के पास वाले आश्रम में चले गये। उसके कई वर्षो बाद मुझे यकायक उतराखण्ड आंदोलन के लिए  चल रहे हमारे प्रचण्ड धरना स्थल जंतर मंतर पर वरिष्ठ समाजवादी नेता  प्रताप सिंह बिष्ट के साथ मिले। उसके बाद वर्षो तक बाबा के साथ में ऐसे जुड गया जैसे हम कभी पहले अंजान नहीं। काला बाबा सुबह का भोजन तब खाते थे जब मैं वहां पंहुच जाता था। मैं किशन गंज दिल्ली से पैदल ही कनाट प्लेस पंहुचता। बाबा को नमन करता । कभी देर हो जाती तो बाबा कहते थे देवी….
तुम्हे गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली।
बस हो गया अब मिलना ना तुम खाली व हम खाली।
बाबा के बारे में बताया जाता कि वे बिना मौसम की वर्षा, आंधी, तूफान ला सकते। हो रही वर्षा व आंधी को रोक देते। रेल गाड़ी को रोक देते। सरकारें बनाते व गिराते। धूर्त को दण्ड देने व बनाने बिगाडने के खेल के रहस्यमय खिलाडी थे।
वे तपती लू में धूनी सेकते रहते। धूप, धूल व धूनी उनके वस्त्र से थे। प्रायः एक अंगोछा छोड कर निर्वस्त्र ही रहते थे।
कई महिनों तक काला बाबा के साथ रहा। वर्षो तक उनका स्नेह व आशीर्वाद लगातार मुझे मिलता रहा। वे सदा अपने पास आने वालों को जनहित व न्यायार्थ कार्य करने की बात कह कर अंध विश्वास रूपि पाखण्ड से दूर रहने की सलाह देते है। वे किसी प्रकार के ताबीज, अंगूठी, माला इत्यादि पहनने पर भी लानत देते रहते। वे कटरपंथ के घोर विरोधी रहे। उनके देह छोड़ने के समाचार मिलते ही मैं, उनके सबसे करीबी शिष्ट डा जयप्रकाश(तत्कालीन संसद भवन के मुख्य चिकित्सक) के साथ उनके गांव इलाहाबाद (यमुना पार कोरांव तहसील) गया। उनकी समाधी को नमन किया। आज भी प्रेस क्लब में उनके सबसे करीबी डा शुक्ला (बाल सहयोग के तत्कालीन सचिव) मिलते हैं तो काला बाबा की बरबस याद आती है। बाबा व उनके करीबी जानकारों के अनुसार गांधी, सुभाष,नेहरू, इंदिरा,अटल, मुरारजी के करीबी रहे काला बाबा का आशीर्वाद हेमवती नंदन बहुगुणा, जगजीवन राम, नरसिंहा राव,काशी राम, शीला दीक्षित, हरीश रावत, सतपाल महाराज, भजन लाल, पूर्वोतर के एक मुख्यमंत्री,उदित राज, बहादूर राम टम्टा,उप्र के एक दिन के मुख्यमंत्री सहित दर्जनों नेताओं को रहा। हाॅ बाबा के कुछ चर्चित करीबी में हरियाणा जिंद के निर्दलीय विधायक रेलू राम रहे। जिनको उनके आशीर्वाद व अभिशाप दोनों के लिए जाना जाता रहा। दिल्ली में एनडीएमसी के पूर्व प्रमुख इंतियाज खाॅ व चंद्रा स्वामी भी उनके दंश का शिकार रहे। बाबा के रहस्यमय किस्सों की अनगिनत कहानियां है। इनका स्मरण आज होता तो बरबस ही आंखों में उनकी तस्वीर क्रोध जाती। आजादी के इस समर्पित सैनानी को दुख रहा कि देश के नेताओं ने अपने निहित स्वार्थो के लिए देश को बर्बाद कर दिया। वे अंग्रेजों से अधिक जालिम देश के नेताओं को बताते थे। नरसिंहा राव के खिलाफ जब भी में बोलता था वे कहते देवी वह कितना बडा विद्यान है। कई भाषाओं का ज्ञाता हैे। वह कहते थे मेरे होते हुए कोई नरसिंह राव को जेल नहीं भेज सकता। वे इस बात से भी दुखी थे कि राव अपनी हनक सोनिया गांधी को दिखाने के लिए नरोरा सम्मेलन कर रहे थे जिसे बाबा ने आंधी तूफान से स्थगित करा दिया था। बाबरी मस्जिद को ढाहने सहित कई किस्से बाबा मुझे सुनाते थे। बाबा को एक ही शिकायत रहती कि देवी तुम मुझे बहुत बाद में मिले पहले मिले होते तो हम कुछ करते। उतराखण्ड राज्य गठन आंदोलन की सफलता का आशीर्वाद देते हुए मुझे कहते देवी तू भी मेरी तरह पछतायेगा। हम भी आजादी आजादी के लिए संघर्ष किया। अब देश को लूटेरे लूट रहे है। वेसे ही उतराखण्ड को भी राजनैतिक लूटेरे ही लूटते रहेगे।
जब कभी बाबा के पास बडे बडे चिकित्सक अपने बीमार बच्चों को लेकर आते थे तो बाबा लौंग इलायची देते थे और एक सिगरेट फूक कर उसके सर पर हाथ रख कर दूर कर देते थे। आज काला बाबा होते तो वह मुझे एक ही बात कहते देवी ये सब कोरोना से डर गये। ये ले लौंग इलायची।मेरा नाम ही काफी है ‘काला बाबा’ अपना सर्वस्व जनकल्याण व धूर्तों को दण्ड देने के लिए समर्पित करने वाले काला बाबा को देख कर सहज ही मन श्रद्धा से उनके चरणों में झूक जाता था। आज में देखता हॅू जिन लोगों को रत्ती भर भी इलम नहीं है, वे शान व शौकत से रहते है। परन्तु काला बाबा जिनके चरणों में अरब पति व राजनेता रात दिन लेटे रहते थे। उनको अपनी दौलत समर्पित करने के लिए लालायित रहते थे। परन्तु बाबा बहुत ही स्वाभिमानी की तरह तपती धूप, वर्षा व कंपकपाती सर्दी में हंसते हंसते खंडर में ही अपनी धूनी रमाये रहते थे।  हर परस्थितियों में देश व जनता के हित में सहज बन कर समर्पित रहना यह काला बाबा की अदभूत कला थी। आज इस महामारी से त्रस्त दुनिया को मुक्ति करने की आश लेकर मैं स्वतंत्रता सैनानी, एक दिव्य पुरूष व महामानव की पावन स्मृति को सादर नमन कर रहा हॅू। आशा है कुछ ही सप्ताह में कोरोना इतिहास के पन्नों में काल के प्रवाह से दफन हो जायेगा।

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