उत्तराखंड

तिवारी के बाद त्रिवेंद्र के भी मगरमच्छी आंसुओं के सैलाब मेें डूबी उत्तराखंड की जनाकांक्षाये

त्रिवेंद्र रावत के तीन साल के कार्यकाल बनाम गैरसैण आन्दोलनकारी लक्ष्मी थपलियाल का आयुष्मान कार्ड व चिन्हित आंदोलनकारियों का चयनित न कराके अपमानित करना

देवसिंह रावत
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार ने 3 साल का कार्यकाल पूरा किया। इस 3 साल के कार्यकाल पूरा करने को एक महान उपलब्धि बताते हुए भारतीय जनता पार्टी वह त्रिवेंद्र सरकार के अन्य समर्थक बड़ा जश्न मनाने की जो तैयारी कर रहे थे उस पर विश्वव्यापी को कोरोना विषाणु का ग्रहण लग चुका है इसके बावजूद उनके समर्थक गाय बताएं उनके 3 साल के कार्यकाल को महान उपलब्धि बताते हुए ढोल पीट रहे हैं ।

इसी ढपोर शंख की आवाज इंटरनेटी माध्यमों मेरे कानों तक भी पंहुची।  आज 18 मार्च के तड़के मेरी उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण अभियान के वरिष्ठ आंदोलनकारी लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल से बात हुई ।थपलियाल जी बात से बेहद आहत हैं कि सरकार ने राजधानी गैरसैण बनाने के बजाय राजधानी गैरसैण की मांग को लेकर सरकार के नाक के नीचे 540 दिनों से यानी 17 सितम्बर 2017 से  देहरादून के परेड़ मैदान में चल रहे  धरना सहित सभी अन्य आंदोलनकारियों को भी पुलिसिया दमन से खदेड़ दिया । इस प्रकरण से लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल को गहरा आघात लगा ।वे हृदयाघात बीमारी से पहले भी पीड़ित थे। इस सदमें के  कारण उनको अपना उपचार करने के लिए चिकित्सालय में भर्ती होना पड़ा। इसकी खबर प्रदेश के कई समाचार पत्रों में भी आई । उनकी कुशलक्षेम पूछने के लिए ही सुबह जब फोन किया, तो लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल ने कहा कि मुझे भी ठीक वैसे ही आंसू आए थे जैसे मुख्यमंत्री को गैरसैंण स्थित विधानसभा भवन में आये थे। जिस  समय पुलिस प्रशासन देहरादून के परेड़ मैदान स्थित धरनों को तोड़ रही थी , उस समय श्री थपलियाल को भी वेसे ही आंसू आये जैसे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाते समय उत्तराखंड की विधानसभा में आंसू बहा रहे थे ।इस पर मैंने कहा लक्ष्मी प्रसाद जी मुख्यमंत्री के यह आँसू असली नहीं अपितु तिवारी की तरह ही घडियाली आंसू थे। ये आंसू दिल से नहीं है अपितु उत्तराखंड के तिवारी जैसे पाखंडी नेताओं की तरह ही घड़ियाली आंसू थे। पर लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल कह रहे थे कि मुख्यमंत्री भी भावनाओं में बहे। मैंने उन्हें कहा अगर भावनाओं में बहते तो त्रिवेंद्र रावत गैरसैण को राजधानी बनाते। भले ही मुख्यमंत्री उत्तराखंड राज्य गठन की जन आकांक्षाओं व राज्य आंदोलनकारियों के संघर्ष तथा शहीदों की शहादत की दुहाई देकर घड़ियाली आंसू बहा रहे थे।  अगर वे 1ः भी ईमानदार होते गैरसैण को तत्काल प्रदेश की राजधानी घोषित करते। परंतु वह भी उत्तराखंड के तिवारी जैसे नेताओं की तरह घड़ियाली आंसू बहा कर जनता की आंखों में धूल झोंक रहे थे ।जन आकांक्षाओं को रौंद रहे थे ।देश की सुरक्षा व प्रदेश के चैमुखी विकास से खिलवाड़ कर रहे थे ।
इसी बीच थपलियाल जी ने कहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय से मुझे बुलावा आ रहा है। इस पर मैंने लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल को कहा कि आप मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र के पास जाओ । तो उन्होंने कहा कि वहां से मुख्यमंत्री कार्यालय से मुझे कई बार बुलावा आ चुका है और स्वामी दर्शन भारती भी मुझे मुख्यमंत्री के पास ले जाने की बात कर रहा है। इस पर मैंने उन्हें कहा कि आप तुरंत मुख्यमंत्री के पास जाइए और उन्हीं से राजधानी गैरसैंण बनाने के साथ अपनी व्यथा भी प्रकट करें । इस पर लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल ने कहा कि मुख्यमंत्री कार्यालय वह स्वामी दर्शन भारती ने उन्हें कई बार मुख्यमंत्री के पास चलने के लिए कहा ।  गैरसैंण राजधानी के मामले में श्री लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल के अनुसार मुख्यमंत्री उनका स्वागत करना चाहता है । लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल कह रहे हैं कि जब आप आएंगे तब साथ चलेंगे ।मैंने  लक्ष्मी प्रसाद से कहा आप मुख्यमंत्री के पास जाओ और उनसे निवेदन करो कि राजधानी गैरसैण बनाओ उसके साथ अपने आयुष्मान कार्ड के बारे में जरूर बताओ कि आप की सरकार व प्रधानमंत्री की इस बहुमुखी योजना को जनहितों को नजरांदाज करने वाले अधिकारी ग्रहण लगा है । जबकि  सभी दस्तावेज होने के बाबजूद लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल जैसे राज्य के लिए समर्पित आंदोलनकारी का कार्ड नहीं बनेगा तो आम जनमानस को कितनी परेशानी इस छोटे से काम के लिए उठानी पड़ रही होगी।  मुझे आशा है कि लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल, मुख्यमंत्री से अवगत कराएंगे।मुख्यमंत्री अवश्य लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल परेशानी को दूर करेंगे। लक्ष्मी थपलियाल की इस स्थिति से  गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान से जुडे रघुवीर बिष्ट, मनोज ध्यानी ,मदन भण्डारी  व बलवंत सिंह नेगी जी सहित सभी आंदोलनकारी काफी चिंतित है।  
सारी स्थितियां देख कर मैने लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल जी को कहा कि आप मुख्यमंत्री के बुलावे को स्वीकार कर उनके पास अवश्य जाये और मुख्यमंत्री से भी यह कहिए कि आप गैरसैंण राजधानी को तुरंत बना दीजिए महीनों से राजधानी गैरसैण अभियान के बैनर तले संघर्षरत हैं ं। इसी संघर्ष में उनको हृदयाघात भी हो चुका है उनको उपचार के लिए लाखों रुपए का खर्च भी आया है आर्थिक परेशानी के बावजूद वह अपना संघर्ष को जारी रखे हुए हैं और राजधानी गैरसैण का परचम अपने साथियों के साथ निरंतर लहरा रहे हैं ।अभी जैसे ही मुख्यमंत्री ने गैरसैंण राजधानी घोषणा के बजाय ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान किया तो आंदोलनकारियों ने कहा कि यह अधूरा कदम है । मुख्यमंत्री राजधानी गैरसैण बनाए । इसके बाद जैसे ही उत्तराखंड सरकार शासन प्रशासन ने परेड ग्राउंड से धरना धारियों को हटाने का काम किया, तो लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल बहुत भावुक हो गए और इससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया । जिससे उन्हें उपचार के लिए अस्पताल का द्वार मजबूरी में खटकाना पड़ा और इससे उन्हें काफी आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है ।क्योंकि कई महिनों से सरकारी कार्यालयों में दर दर भटकने के बाबजूद उनका आयुष्मान कार्ड नहीं बन पाया । जबकि उनके पास मतदाता कार्ड व आधार कार्ड होने के बाबजूद सरकारी विभाग उनका आयुष्मान कार्ड नहीं बना रहा है।  इससे लक्ष्मी प्रसाद काफी परेशान हैं आयुष्मान कार्ड न होने व आर्थिक रूप से कमजोर होने के कारण उनका इलाज नहीं हो पा रहा है। उनका पूरा परिवार परेशान है। श्री थपलियाल के अनुसार पिछली बार इंद्रेश अस्पताल ने उनकी व वरिष्ठ समाजसेवियों की गुहार को नजरांदाज करके उनके इलाज का भारी बिल का भुुगतान करने के लिए मजबूर किया। जिसका भुगतान उनके मित्रों के सहयोग व उनके परिवार ने कर्ज लेकर चूकाया। अब दूबारा अस्वस्थ होने के कारण आयुष्मान कार्ड न होने के कारण एक बार फिर परेशानी के बादल उनके व उनके परिवार के उपर मंडरा रहा है। मैं साक्षी रहा हॅू जब देहरादून में राजधानी गैरसैंण के लिए आंदोलन चलाने के मेरे बार बार के आग्रह के बाद मेरे साथी रघुवीर बिष्ट व लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल ने पूर्व सैनिक संगठनों के अग्रणी ध्वजवाहक रहे प्रकाश थपलियाल आदि राज्य गठन के लिए समर्पित साथियों के साथ 17 सितम्बर 2017 को देहरादून के परेड़ ग्राउंड में राजधानी गैरसैंण निर्माण अभियान के बैनर तले सतत् धरने का शंखनाद किया। इस धरने के प्रारम्भ से पहले कई बार देहरादून के तमाम आंदोलनकारियों व राज्य के लिए समर्पित साथियों की कई दौर की बैठक देहरादून में अग्रणी समाजसेवी व हिल डेवलपमेंट मिशन के प्रमुख रघुवीर सिंह बिष्ट के कार्यालय में इस संकल्प के साथ हुई कि राजधानी गैरसैंण के संकल्प के नेतृत्व में यह आंदोलन साकार होने तक जारी रखा जायेगा। डेढ़ साल से अधिक हुए इस संघर्ष में अन्य साथियों के साथ लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल ने पूरी तरह अपने आप को समर्पित कर दिया। उनके इस समर्पण को देख कर उनका नोजवान बेटा सचिन थपलियाल (जो उतराखण्ड के सबसे बडे महाविद्यालय डीएवी के पूर्व महासचिव रहे ) आंदोलन में अपने तमाम छात्र साथियों के साथ राजधानी गैरसैंण आंदोलन में समर्पित हो गये।
गैरसैंण के लिए देहरादून में चल रहे आंदोलन को गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान के संरक्षकों की सरपरस्ती में लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल ने इस संघर्ष की ध्वजा को मनोज ध्यानी व मदन भण्डारी सहित दर्जनों समर्पित साथियों के साथ तमाम विपरित परस्थिति में भी सरकार द्वारा परेड़ ग्राउंड से धरना उखाडने के दिन जारी रखा। अब इस धरने को आंदोलनकारी साथी मनोज ध्यानी व मदन भण्डारी आदि साथी शहीद स्मारक देहरादून में जारी रखे हुए है।  राज्य गठन के ऐतिहासिक सफल आंदोलन के प्रतीक दिल्ली में राष्ट्रीय धरना स्थल  जंतर मंतर पर छह साल के सतत संघर्ष में भी लक्ष्मी थपलियाल जी जब भी समय मिलता व आवाहन किया जाता  वे अपनी भागीदारी निभाते रहे।
वास्तव में अगर त्रिवेंद्र रावत को उत्तराखंड से लगाव होता या अपनी पार्टी के साथ मोदी जी के नाम की जरा भी चिंता रहती तो वह तत्काल उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण घोषित करते। प्रदेश को देव तुल्य प्रदेश का सम्मान और बढ़ाने के बजाय जिस प्रकार से त्रिवेंद्र रावत ने घर-घर शराब पहुंचाने का मिशन आगे बढ़ाकर उत्तराखंड को शराब का गटर बनाने को तुले है। उनका यह कृत्य उनको ही पूरी तरह से बेनकाब करता है। त्रिवेंद्र रावत का सौभाग्य है कि वे  प्रदेश के अभूतपूर्व बहुमत के पहले मुख्यमंत्री है। उनका यह भी गुण है कि वह अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह विधायकों व मंत्रियों के दबाव में नहीं है। उनको आलाकमान का अंध समर्थन प्राप्त है ।वह चाहते तो उत्तराखंड के परमार बनकर राजधानी गैरसैण घोषित करके प्रदेश कोई चैमुखी विकास करके प्रदेश को देश के श्रेष्ठ राज्यों में शुमार करते ,पर यह महत्वपूर्ण अवसर भी निहित स्वार्थ और दुराग्रह से ग्रसित होकर गंवा गए ।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत की एक ही उपलब्धी रही कि प्रदेश के सत्तासीन मुख्यमंत्रियों की सूची में एक ओर नाम जुडाने में सफल रहे। वे उतराखण्ड के हक हकूकों पर अपने पूर्व मुख्यमंत्रियों की तरह ही बज्रपात करने के अलावा कुछ नया नहीं कर पाये। मुख्यमंत्री रहने के नाम पर उत्तराखंड में स्वामी, भगत व तिवारी से लेकर खंडूरी,निशंक, बहुगुणा, हरीश रावत व त्रिवेंद्र जैसे कई मुख्यमंत्री रहे ।परंतु कार्य के उत्तराखंड के हित में आज एक भी मुख्यमंत्री परमार की तरह नहीं रहा। इसी एक मुख्यमंत्री के लिए 20 सालों से तरस रहा है उत्तराखंड । जिस प्रकार से तिवारी ने घड़ियाली आंसू बहा के उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं को रौंदा था, उसी प्रकार त्रिवेंद्र रावत ने भी घड़ियाली आंसू बहा कर न केवल उत्तराखंड की जन आकांक्षाओं को रौंदा अपितु राज्य आंदोलनकारियों, जिन की दुहाई देकर वह विधानसभा में आंसू बहा रहे थे उन्हीं आंदोलनकारियों के प्रतीक दिल्ली में चयनित आंदोलनकारियों को भी चिन्हित न करने का कृत्य अगर किसी सरकार ने किया तो वह त्रिवेंद्र सरकार ने ही किया। कई बार त्रिवेन्द्र रावत के इस हुए कार्य को अपनी मंजूरी देने की मांग राज्य आंदोलनकारी त्रिवेन्द्र रावत से कर चूके। यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी पूर्व वित्तमंत्री स्व प्रकाश पंत की उपस्थिति में दिल्ली के चिन्हित आंदोलनकारियों को चयनित व सूचिबद्ध करने के लिए एक घण्टा लम्बी विशेष भेंटवार्ता हुई। इस पर त्रिवेन्द्र रावत ने पूर्व मुख्यमंत्री के समक्ष आंदोलनकारियों को यह कार्य करने का वचन दिया परन्तु तीन साल बितने के बाबजूद मुख्यमंत्री अपने शासन से इस कार्य को करने का आदेश देने के बजाय इसको रोके बेठे हुए है। उतराखण्ड में राजधानी गैरसैंण बनाने, मुजफरनगर काण्ड-94 के गुनाहगारों को सजा देने, जनसंख्या पर आधारित विधानसभा परिसीमन को रद्द करने, भूकानून लागू करने आदि जनांकांक्षाओं को साकार करने के बजाय प्रदेश के अब तक के मुख्यमंत्री अपनी अक्षमताओं व पदलोलुपता के कारण  शराब, भ्रष्टाचारियों, घुसपेटियों व अपराधियों का अभ्यारण सा बना गये।

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