देश

भारत से अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी, देश में बलात थोपी गयी‘अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी’से भारत को मुक्त करने के लिए संविधान संशोधन करे मोदी जी!


भारतीय भाषा आंदोलन द्वारा भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी ’से मुक्ति के लिए चलाये गये ऐतिहासिक सत्याग्रह के 80वें माह में प्रवेश करने पर 21 नवम्बर को जंतर मंतर पर धरना देकर दिया ज्ञापन

नई दिल्ली(प्याउ)।  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी’ से  मुक्त करने के लिए संविधान संशोधन करने की पुरजोर मांग की। भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी ’से मुक्ति के लिए भारतीय भाषा आंदोलन द्वारा चलाये गये ऐतिहासिक सत्याग्रह के 80वें माह में प्रवेश करने पर संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान 21 नवम्बर 2019को जंतर मंतर पर धरना देकर दिया प्रधानमंत्री मोदी को इस आशय का ज्ञापन दिया।

प्रधानमंत्री को दिये ज्ञापन में कहा गया कि  80 माह से ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने की मांग को लेकर देश की आजादी के लिए ऐतिहासिक सत्याग्रह कर रहे भारतीय भाषा आंदोलन, 21 नवम्बर 2019 को भी इसी मांग का समाधान न करने वाले हुक्मरानों को धिक्कारने के लिए राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर धरना देते हुए राष्ट्र की असहनीय वेदना इस ज्ञापन के माध्यम से प्रकट कर रहे हैं। भारतीय भाषा आंदोलन आहत ही नहीं अपितु आक्रोशित है कि देश के पदलोलुपु हुक्मरानों ने अंग्रेजों के जाने के बाद देश का पूरा तंत्र भारतीय भाषाओं में संचालित करने के बजाय बेशर्मी से अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी थोप कर 73सालों से भारत की आजादी,लोकशाही,संस्कृति, मानवाधिकार व स्वाभिमान को रौदकर देश को उन्हीं अंग्रेजों का गुलाम बना रखा है, जिनसे 1947 में देश के सपूतों ने असंख्य बलिदान देकर भारत को आजाद कराया था।भारतीय भाषा आंदोलन सहित पूरा देश इससे आहत होकर  प्रधानमंत्री सहित संसद व न्यायपालिका सहित पूरी व्यवस्था के मठाधीशों से दो  टूक शब्दों में एक यज्ञ प्रश्न पूछ रहा हैं कि जब रूस,चीन,जापान,फ्रांस,जर्मन,कोरिया व इजराइल सहित विश्व के सभी देश अपने नाम व अपनी भाषाओं में शिक्षा,रोजगार,न्याय,शासन संचालित करके विश्व में अपना परचम लहरा रहे हैं तो अंग्रेजों के जाने के 73 साल बाद भी भारत क्यों बना हुआ है  अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम ?
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन ने देश से अंग्रेजी व इंडिया का कलंक मिटाने के लिए 21 अप्रेल 2013 से राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर का शुभारंभ किया। इस आंदोलन की मांग को मानने के अपने देश के प्रति पहले दायित्व निर्वहन करने के बजाय देश की सरकारों के अलोकतांत्रिक दमन कर भारतीय भाषा आंदोलन को रौंदने का कृत्य किया। पर सरकार के दमनकारी कृत्यों को नजरांदाज करके भारतीय भाषा आंदोलन ने जंतर मंतर, रामलीला मैदान, शहीद पार्क, संसद मार्ग व जंतर मंतर पर अपना आंदोलन जारी रखा। जब सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के स्पष्ट आदेश के बाबजूद जंतर मंतर पर सतत आंदोलन नहीं करने दिया तो भारतीय भाषा आंदोलन ने संसद की चैखट से प्रधानमंत्री कार्यालय तक हर कार्यदिवस में पदयात्रा करके ज्ञापन देने का ऐतिहासिक आंदोलन शुरू किया, जो आज भी जारी है।
प्रधानमंत्री को दिये हर ज्ञापन में प्रधानमंत्री से अंग्रेजी की गुलामी से मुक्ति करने के लिए ‘शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाने व भारतीय भाषायुक्त  राष्ट्रीय  शिक्षा नीति लागू की जाय। देश में थोपी अंग्रेजी की गुलामी पर सवालिया निशान उठाते हुए स्मरण दिलाया कि -जब संयुक्त राष्ट्र 6, यूरोपीय संघ-3,स्वीटजरलैण्ड -4, कनाडा-2 भाषाओं में संचालित हो सकता है तो भारत में 3भाषाओं में  संचालित करने में परेशानी क्यों, अंग्रेजी की गुलामी क्यों? भारतीय भाषा आंदोलन की प्रमुख मांगे (1) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय(2) अंग्रेजी अनिवार्यता मुक्त व भारतीय भाषाओं में भारतीय मूल्यों युक्त सरकार द्वारा पूरे राष्ट्र में एक समान निशुक्ल शिक्षा प्रदान की जाय (3)संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाएं अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में ली जाय। (4) शासन प्रशासन भी भारतीय भाषाओं में संचालित किया जाय। (5) देश के  नाम पर लगे इंडिया के कलंक से मुक्ति दिला कर देश का नाम केवल भारत (इंडिया नहीं) ही रखा जाय।(5) राष्ट्रीय धरनास्थल जंतर मंतर पर सतत्(प्रातः11 बजे से सांय 4 बजे तक) धरना प्रदर्शन की इजाजत दी जाय।
 भारतीय भाषा आंदोलन का ऐतिहासिक आंदोलन  का विवरण-
(क) -21 अप्रैल 2013 से इसी मांग को लेकर जंतर मंतर पर अखण्ड धरना (खद्ध30 अक्टूबर 2018 हरित अधिकरण(ग्रीन ट्रिव्यनलª) की आड़ में सरकार ने जंतर मंतर पर चल रहे इस ऐतिहासिक  धरने सहित अन्य आंदोलनों को रौदने व प्रतिबंद्ध लगाने का अलोकतांत्रिक कृत्य किया।
(ख) – पुलिस प्रशासन द्वारा न्यायालय व आंदोलनकारियों को गलत गुमराह किया कि आंदोलन स्थल रामलीला मैदान बनाया गया। जबकि वहां कोई स्थान नियत नहीं किया गया। आंदोलनकारियों ने रामलीला मैदान में धरना देने की कोशिश की तो वहां पर कोई स्थान तय नहीं किया गया। उसके बाद आंदोलनकारी महिनों तक शहीदी पार्क पर आंदोलनरत रहे परन्तु पुलिस ने वहां पर भी परेशान किया।
(ग) 28 नवम्बर 2018 से जंतर मंतर पर भारतीय भाषा आंदोलन का धरना प्रारम्भ (सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जंतर मंतर व वोट क्लब पर आंदोलन करने की इजाजत जारी करने के बाद) पर एक पखवाडे बाद ही दिल्ली पुलिस के विशेष प्रकोष्ठ के अधिकारी द्वारा उत्पीड़न किये जाने के बाद धरना स्थगित ।
(घ)  28 दिसम्बर 2018 से 18 मार्च 2019 तक हर कार्यदिवस पर सर्दी, वर्षा व गर्मी के साथ पुलिसिया दमन को दरकिनारे करके हर कार्य दिवस पर राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक  पदयात्रा व ज्ञापन सौंपने का ऐतिहासिक आजादी का आंदोलन  किया।18 मार्च को चुनाव आचार संहिता लगने पर नयी सरकार के गठन तक आंदोलन  जारी पर पदयात्रा स्थगित।
(ड़) 30 मई 2019 को नयी सरकार के गठन के बाद 1 जून 2019 से पुन्न जंतर मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक पद यात्रा कर ज्ञापन आंदोलन जारी  
21 नवम्बर को  भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत के नेतृत्व में जंतर मंतर पर आयोजित धरने में सभी वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि ष्अंग्रेजी व इंडिया की गुलामीष्से मुक्ति पाये बिना न तो भारत में न तो लोकशाही व गणतंत्र स्थापित हो सकता है व नहीं हो सकता है चहुंमुखी विकास।इसके लिए भारत सरकार को तुरंत संविधान में संशोधन कर देश में भारतीय भाषाओं में शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन संचालित करने की गुहार लगायी।

धरने में सम्मलित होने वालों में भारतीय भाषा आन्दोलन के अध्यक्ष देव सिंह रावत,सुनील कुमारसिंह(कोषाध्यक्ष) रामजी शुक्ला(धरना प्रभारी), वरिष्ट कांग्रेसी नेता धीरेन्द्र प्रताप, कारू मांझी,वेदानंद, अनिल पंत,उमेद बुटोला,श्याम प्रसाद खंतवाल, गम्भीर सिंह नेगी,दलीप सिंह तूफान,रघुनाथ सिंह रावत,मनमोहन शाह, कमल पांडेय, प्रेमा धोनी,सुनीता चौधरी,पत्रकार रघुबीर सिंह ,अभिराज शर्मा,मन्नू कुमार,कमल किशोर नौटियाल,संजय सिंह,मुरार कंडारी, किसान नेता भूपेन्दर रावत, प्रकाश भंडारी व पत्रकारयोगेश भट्ट आदि सम्मलित हुए।

About the author

pyarauttarakhand5