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हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले हुड्डा के विद्रोह से हुआ कांग्रेस की आशाओं पर बज्रपात और भाजपा की बल्ले बल्ले

लालों के बर्चस्व वाले हरियाणा में राजनीति के बाजीगर मोदी व शाह के इशारे पर नाच रही हैं कठपुतलियां
देवसिंह रावत

लगता है 2019 में लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से देश में अपना परचम लहराने वाली भाजपा की अक्टूबर 2019 में हरियाणा में होने वाली विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा के विद्रोह से कांग्रेस की सत्तासीन होने की आशाओं पर पानी फेरने ेके साथ हरियाणा में सत्तासीन मनोहर लाल खट्टर की बल्ले बल्ले होने वाली है। इसका एक साफ नजारा 18 अगस्त को विधानसभा चुनाव की देहरी में खडे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने कांग्रेस से विद्रोह की हुंकार रोहतक के मेला मैदान में अपने समर्थकों की विशाल परिवर्तन रैली में भरी। हुड्डा की इस हुंकार से भाजपा को 90 सीटों वाले हरियाणा में  75 सीटों पर जीत हासिल कर पुन्नःसत्तासीन होने की भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति सफल होते नजर आती है।

वहीं दूसरी तरफ ऐसी भी अटकले जोरों पर है कि 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव फतह करने के लिए अमित शाह पूरी ताकत झौंकी है। हरियाणा में कांग्रेस सहित कोई भी विपक्षी सर न उठा सके इसके लिए ठोस रणनीति बनायी गयी। इस रणनीति को अंजाम में पंहुचाने में भाजपा सफल होते दिख रही है। क्योंकि जिस हुड्डा पर कांग्रेस को हरियाणा में सत्तासीन होने का दाव लगा रही थी, उसी हुड्डा पर भाजपा सरकार की सीबीआई व ईडी के ताडबतोड़ ऐसे छापे पडे कि जिससे बचने के लिए हुड्डा के पास कांग्रेस से अलविदा कहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। धारा 370 तो एक बहाना है। असल में भ्रष्टाचार के आरोपों के दलदल में आकंठ फंसे नेताओं को खुद कोे बचाने के लिए भाजपा के अलावा कोई विकल्प नजर नहीं आता। हालांकि भाजपा की सरकार पर कांग्रेस के दूसरे नेता यानी भजन लाल के बेटे कुलदीप विश्नौई पर शिकंजा कसा हुआ है।

ऐसा नहीं कि हुड्डा ही ऐसे पहले नेता है जिसको अपना दल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। बंगाल से लेकर अनैक प्रदेशों में ऐसे ही विवादों में घिरे नेता बचने के लिए भाजपा का दामन थाम चूके है।प्रायः आरोपी नेता जेल जाने के बजाय भाजपा में सम्मलित होना पंसद करते है। जिस प्रकार देश में चारों तरफ भाजपा विरोधी दलों  में दल बदल करा कर अपने दल की मजबूती बढ़ा रहे है। जिस प्रकार से भाजपा सरकार आने के बाद हुड्डा पर अपने शासनकाल के दौरान प्लाट आवंटन आदि घोटालों के आरोपों में चोरतफा घिरे हुए थे। उन पर बढेरा आदि को भी लाभान्वित कराने का आरोप है। उनके भाजपा में जाने या कांग्रेस तोड़ कर नया दल बनाने की अटकले कई महिनों से जोरों पर था। पर यह साकार होते हुए दिखा 18 अगस्त को।

इस रैली में भूपेन्द्र हुड्डा ने कांग्रेस पर  सीधा प्रहार करते हुए कहा कि  मैं 72 साल का हो गया हूं और रिटायर होना चाहता था, लेकिन हरियाणा की हालत देखकर संघर्ष का फैसला किया। मेरे लिए देशहित से ऊपर कुछ नहीं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद हटाने का हमारे (कांग्रेस) कु्छ नेताओं ने विरोध किया, यह सही नहीं था। मैंने देशहित के इस निर्णय का समर्थन किया। उन्होंने कहा, मेरे परिवार की चार पीढियों कांग्रेस से जुड़ी रही है। हमने कांग्रेस के लिए जी जान से मेहनत की, लेकिन अब कांग्रेस पहले वाली नहीं रही। 370 पर कांग्रेस कुछ भटक गई, लेकिन देशभक्ति और स्वाभिमान का मैं किसी से समझौता नहीं करूंगा, इसीलिए मैंने 370 हटाने का समर्थन किया।  उसूलों के लिए टकराना भी जरूरी है, जिंदा हो तो जिंदा दिखना जरूरी है।हालांकि इस रैली में हुड़डा ने प्रदेश भाजपा की खट्टर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि हरियाणा विधानसभा चुनाव खट्टर सरकार के 5 सालों के काम पर ही चुनाव होगा ना कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 कुंद करने के मुद्दे पर। भाजपा का 75 सीटों के नारे को जनता मुहतोड़ जवाब देगी और भाजपा को प्रदेश की सत्ता से बेदखल करेगी।

भले ही हुड्डा  ने कांग्रेस से अलग होने का साफ ऐलान नहीं किया परन्तु जिस प्रकार से हुड्डा ने साफ कहा कि आज खुद को अतीत से मुक्त करता हूं। मुझे नेताओं व रैली में मौजूद लोगों द्वारा कोई भी फैसला लेने का जो अधिकार दिया है उसके लिए मैं एक कमेटी का गठन करुंगा। कमेटी की सलाह पर इस बारे में कोई भी फैसला लूंगा। यहीं नहीं हुड्डा की इस रैली में कहीं भी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी या कांग्रेस का एक भी झण्डा, बैनर व पोस्टर तक नहीं लगे थे। यह सब काफी थे कांग्रेस व उसके आलाकमान को संदेश देने के लिए कि हुड्डा ने कांग्रेस से बगावत कर दी हे।
भले ही कुछ कांग्रेसियों को अभी भी विश्वास है कि हुड्डा कांग्रेस से विद्रोह नहीं करेगे। कांग्रेस आलाकामानए हरियाणा की कमान भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को सौंप कर उनकी नाराजगी दूर कर उनको मना लेगी। वेसे हुड्डा की नाराजगी हरियाणा प्रदेश के वर्तमान अध्यक्ष  अशोक तंवर से उनका 36 का आंकडा जग जाहिर है।  हुड़्डा इस बात से भी नाराज है कि जब 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में हरियाणा में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर के नेतृत्व में कांग्रेस प्रदेश की सभी दस सीटें हार गयी तो उसके बाद उनके विरोध के बाबजूद भी कांग्रेस प्रमुख अशोक तंवर को प्रदेश की कमान सौंपे हुए है। जबकि हुड्डा की ऐसी इच्छा रही कि जिस प्रकार से पंजाब में कांग्रेस आला नेतृत्व ने अमरेन्द्र सिंह को विधानसभा चुनाव से पहले जिम्मेदारी सौंपी थी, उसी प्रकार की ताकत व आशीर्वाद हुड्डा हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले खुद के चाहते हैं। जिसको साकार होता न देख कर हुड्डा ने विधानसभा चुनाव से पहले यह हुंकार भरी। ऐसा नहीं है कि कभी लालों के बर्चस्व के लिए देश में विख्यात रहा हरियाणा में कांग्रेस हुड्डा के अलावा नेताओं की कमी हो। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के अलावा राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, कुलदीप विश्नोई, किरण चैधरी व कुमारी शैलजा आदि प्रमुख है। परन्तु जिस प्रकार से हरियाणा में लम्बे समय तक भूपेन्द्र हुड्डा के मुख्यमंत्री रहे उससे हरियाणा की राजनीति में मजबूत जाट तबके पर उनका प्रभाव अन्य नेताओं से कहीं अधिक है। परन्तु भाजपा ने जिस प्रकार से चैटाला परिवार की आपसी जंग व कांग्रेस के जाट नेतृत्व का लाभ उठाते हुए जाट इतर अन्य विरादरियों को अपने पीछे लामबद करने के साथ कांग्रेस के बडे जाट नेताओं को भी अपने पाले में लाकर कांग्रेस को पटकनी देकर हरियाणा में गैरजाट मुख्यमंत्री के रूप में भाजपा में भी गुमनाम रहने वाले मनोहर लाल खट्टर की ताजपोशी की। वंशीलाल, देवीलाल व भजन लाल के रूप में लम्बे समय तक हरियाणा में जाटों का बर्चस्व बनाने में सफल रहे। जिससे हरियाणा की राजनीति, नौकरशाही सहित पूरे व्यवस्था में जाट समाज का बर्चस्व रहा। जिससे अन्य समाज के लोगों में वैचेनी फैलने लगी। इसी बैचेनी को भुनाने में भाजपा सफल रही। अब हुड्डा का कांग्रेस छोड़ने का ऐलान केवल ओपचारिक मात्र रह गया। इसकी पटकथा तो पहले ही लिखी जा चूकी थी। इससे साफ हो गया कि भाजपा हरियाणा में ही नहीं अपितु देश के हर राज्य ऐसा ही उलट पुलट करके अपना परचम लहरायेगी।

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