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21 जून को भारतीय भाषा आंदोलन ने राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर दिया धरना व प्रधानमंत्री को दिया ज्ञापन

 

भारत की लोकशाही, स्वाभिमान व मानवाधिकारों को आक्रांताओं की भाषा ‘अंग्रेजी’ व उन्हीं आक्रांताओं द्वारा थोपे गये नाम ‘इंडिया’ की गुलामी से 72 सालों से क्यों रौंद रहे है हुक्मरान ?

21 जून को भारतीय भाषा आंदोलन ने राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर दिया धरना व प्रधानमंत्री को दिया ज्ञापनअंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्ति दिलाने की मांग को लेकर 75 माह से आँदोलनरत है भारतीय भाषा आंदोलन

नई दिल्ली( प्याउ )। भारतीय भाषा आंदोलन ने 21जून को, ‘भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने के के लिये चलाये जा रहे सत्याग्रह के 75 वें माह में प्रवेश करने के दिन राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर धरना देकर देश के हुक्मरानों की कडी भत्र्सना करते हुए प्रधानमंत्री से अविलम्ब देश को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी से मुक्त कराने की मांग की। इस अवसर पर प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा।
प्रधानमंत्री को भेजे गये ज्ञापन में भारतीय भाषा आंदोलन ने प्रधानमंत्री को स्मरण कराया कि 21 जून 2017 को जहां पूरा विश्व आपकी ऐतिहासिक पहल पर भारतीय संस्कृति की आत्मा समझी जाने वाले योग को आत्मसात करके विश्व योग दिवस मना रहा है। आपकी सरपरस्ती में इस साल झारखण्ड की राजधानी रांची में ठीक उसी तरह योग किया गया जिस प्रकार गत वर्ष उतराखण्ड की थोपी गयी राजधानी देहरादून में आपकी सरपरस्ती में योग किया गया। देश में ही नहीं पूरे विश्व में बडे स्तर पर योग किया गया। वहीं दूसरी तरफ भारतीय भाषा आंदोलन संसद की चैखट राष्ट्रीय धरना स्थल जंतर मंतर पर देश को अंग्रेजों के जाने के 72साल बाद भी देश के हुक्मरानों द्वारा बलात अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी व इंडिया नाम की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए ऐतिहासिक आजादी का सत्याग्रह छेड़े हुए है। जिस प्रकार जीवन को स्वस्थ रखने के लिए योग श्रेष्ठ साधन है। उसी प्रकार राष्ट्र कोे विकसित, जीवंत व मजबूत बनाने के लिए राष्ट्र की भाषायें प्राण होती है। इसी लिए राष्ट्र को राष्ट्र की भाषाओं में संचालित करना ही राष्ट्रीय महायोग होता है। आश्चर्य है कि अंग्रेजों के जाने के बाद देश के हुक्मरानों आज 72 साल बाद भी भारतीय भाषाओं को जानबुझ कर जमीदोज करके राष्ट्र को कमजोर व गुलाम बनाये रखने का कृत्य किया। इसके लिए उन्होनेे भारतीय भाषाओं में देश को संचालित करने के बजाय, अंग्रेजों की ही भाषा ‘अंग्रेजी’ व उनके द्वारा थोपे गये नाम ‘इंडिया’ से संचालित करके भारत को रौदने का काम बेशर्मी से देश की सरकारों करके राष्ट्र को कमजोर करने का कृत्य किया। भारत को इस अंग्रेजी व इंडिया के कलंक से मुक्ति किये बिना न तो देश में लोकशाही स्थापित हो सकती है व नहीं देश आजाद ही हो सकता है। फिरंगी गुलामी ढोते हुए विश्व की महाशक्ति व जगतगुरू बनना तो दीवास्वप्न के समान ही है। इसलिए भारत को महाशक्ति व विश्व गुरू बनने के लिए भारतीय भाषाओं को लागू करने वाले राष्ट्रीय महायोग का अमृतपान तो हर हाल में करना ही पडेगा।
जिस प्रकार योग से देश के नागरिकों का जीवन स्वस्थ व आनंदमय होता है। उसी प्रकार अपनी भाषाओं में संचालित होने से समाज के साथ साथ राष्ट्र विकसित, जीवंत व मजबूत होता है।जिस प्रकार योग से व्यक्ति स्वस्थ होता है उसी प्रकार राष्ट्रभाषा योग से राष्ट्र मजबूत और समृद्ध होता है
देश में 72 सालों से व्याप्त अंग्रेजी की गुलामी से मुक्त करने के मार्ग में जो राजनैतिक दल अपने निहित स्वार्थ के लिए हिंदी के नाम पर भारतीय भाषाओं का विरोध करने का जो षडयंत्र चल रहा है उसको विफल करने के लिए सरकार को निम्नलिखित महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए-
(1)-संघ लोकसेवा आयोग सहित देश प्रदेश में रोजगार की सभी परीक्षाओं में से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटाकर केवल भारतीय भाषाओं में ली जाय।
(2) सर्वोच्च व उच्च न्यायालयों में अंग्रेजी के बजाय भारतीय भाषाओं में दिया जाय न्याय।
(3) प्राथमिक से माध्यमिक शिक्षा केवल दो भाषा में प्रदान की जाय। नौनिहालों को शिक्षा, मातृभाषा यानी प्रांतीय भाषा व भारतीय भाषाओं में प्रदान की जाय। देश में अंग्रेजी सहित विदेशी भाषाओं के साथ प्राचीन भारतीय भाषाओं को ऐच्छिक विषय के रूप में
(4) शासन प्रशासन भी केवल भारतीय भाषाओं (अंग्रेजी)में संचालित किया जाय।

मान्यवर उपरोक्त कदमों से कोई भी दल व व्यक्ति भारतीय भाषाओं का विरोध नहीं कर पायेगा। उदाहरण के लिए तमिलनाडू में न्याय व रोजगार जब तमिल में मिलेगा तो विरोध कोई भी दल नहीं कर पायेगा। जो करेगा उसको राष्ट्रद्रोह के तहत फांसी की सजा दी जाय। यहां पर विरोध केवल भारत की शिक्षा, रोजगार,न्याय व शासन के मठों पर काबिज अंग्रेजी के माफिया9 करते है, उन पर अंकुश लगाये बिना देश में लोकशाही स्थापित नहीं हो सकेगी।
सरकार को इस षडयंत्र को तोड़ने के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता की फांस रोजगार, न्याय व शिक्षा से हटा देनी चाहिए।
मान्यवर आपको विदित ही होगा कि 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजो से मुक्ति के बाबजूद भी देश के गुलाम मानसिकता के हुक्मरानों ने बेशर्मी से विगत 72 सालों से देश की लोकशाही, सम्मान व मानवाधिकारों को जमीदोज करके देश को अंग्रेजी व इंडिया का गुलाम बनाया हुआ है। दूसरी तरफ पूरे विश्व के चीन, रूस, जर्मन, फ्रांस, जापान, टर्की, इस््रााइल सहित सभी स्वतंत्र व स्वाभिमानी देश अपने देश की भाषा में अपनी व्यवस्था संचालित करके विकास का परचम पूरे विश्व में फंेहरा रहे हैं।परन्तु भारत में अंग्रेजों के जाने के 71 साल बाद भी बेशर्मी से भाषा में ही न केवल राजकाज व न्याय व्यवस्था संचालित की जा रही है अपितु शिक्षा(चिकित्सा, यांत्रिकी, सामान्य)ही नहीं! रोजगार व सहित पूरी व्यवस्था अंग्रेजी को ही पद प्रतिष्ठा व सम्मान का प्रतीक बना कर भारत व भारतीय संस्कृति को अंग्रेजियत के प्रतीक इंडिया का गुलाम बनाया जा रहा है।भारतीय भाषा आंदोलन इसी गुलामी के कलंको से माॅ भारती को मुक्त महाशक्ति व विश्व गुरू बनाने के लिए 21 अप्रैल 2013 से सतत् सत्याग्रह कर रहे हैं। परन्तु दुर्भाग्य यह है कि देश की सरकारों ने अपनी राष्ट्रघाती भूल पर तुरंत सुधार करने का काम करने के बजाय देशभक्त आंदोलनकारियों का अलोकतांत्रिक दमन किया गया व आंदोलन को उजाडने का कृत्य किया गया। भारतीय भाषा आंदोलन का मानना है किसी भी स्वतंत्र देश की भाषाओं को रौंदकर विदेशी भाषा में बलात शिक्षा, रोजगार, न्याय व शासन देना किसी देशद्रोह से कम नहीं है। आपकी सरकार भारत को अंग्रेजी व इंडिया की गुलामी की कलंक से मुक्त करेंगे।
भाषा आंदोलन में सम्मलित होने वालों में भारतीय भाषा आंदोलन के अध्यक्ष देवसिंह रावत, सुनील कुमार सिंह, रामजी शुक्ला, खुशहाल सिंह बिष्ट अनिल कुमार पन्त, मनु कुमार, वरिष्ठ समाजसेवी कांग्रेसी नेता धीरेन्द्र प्रताप व हरिपाल रावत, संरक्षक वीरेन्द्र नाथ वाजपेयी,रालोद के मनमोहन शाह,भाजपा नेता नरेश मानव, गोपाल झा ,लक्ष्मण आर्य,व मोहन जोशी, आप नेता पंकज पेनूली व प्रताप थलवाल,राजद के जोगिंदर रोहिल्ला, उक्रांद नेता ब्रह्मानंद डालाकोटी, मजदूर नेता हरिराम तिवारी, समाजसेविका करुणा भट्ट, आशा भराड़ा, वरिष्ठ पत्रकार कुशाल जीना,संजय कुमार सिंह, पत्रकार संजय सिंह ,पदम सिंह बिष्ट, आजाद तोमर, बृजेश कुमार वर्मा ,दर्शन सिंह रावत, नारायण सिंह गुसाईं पारसनाथ , सूर्यपाल सिंह, सुखदेव पाल सिंह , पत्रकार कामनी झा , ओम तत्सत बाबा, मेजर ठाकुर, सुश्री प्रजापति, मोहित कुमार व मृत्युंजय, आदि प्रमुख थे।

 

 

 

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