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मिशेल का प्रत्यर्पण, अगस्ता वेस्टलैंड कांड का सच सामने आना जरुरी

 

 

अवधेश कुमार

अगर क्रिश्चियन मिशेल जेम्स का प्रत्यर्पण कुछ दिनों पूर्व हुआ होता तो यह निश्यच ही काफी समय तक मीडिया में चर्चा का विषय रहता। किंतु उसका लाया जाना विधानसभा चुनावों के समय हुआ इसलिए वह सुर्खियों से गायब हो गया। इसका यह मतलब नहीं कि उसका प्रत्यर्पण महत्वपूर्ण नहीं है। रक्षा सौदा दलाली के आरोप में आजादी के बाद के जीप खरीद घोटाला से लेकर अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर कांड तक पहली बार भारत को किसी आरोपी बिचौलिये को पकड़कर लाने में सफलता मिली है। बोफोर्स कांड में ओतावियो क्वात्रोच्चि को न ला पाने की छटपटाहट भारत के उन लोगों में आज भी है जिन्होंने उस पर काम किया था। उनको पता है कि उस सौदे में दलाली ली गई थी। संयोग से बोफोर्स दलाली सामने आने के बाद 10 वर्षो में 11 महीने को छोड़कर या तो कांग्रेस सत्ता में रही या उसके समर्थन की सरकार। बहरहाल, अब चूंकि एक ऐसा व्यक्ति हमारे हाथों है जिस पर आरोप है कि उसने सौदा पक्का कराने के लिए उच्च सैन्य अधिकारियों, नौकरशाहों तथा नेताओं को घूस दिया था तो उम्मीद करनी चाहिए कि सच सामने आएगा। हालांकि हमारे देश का दुर्भाग्य है कि ऐसे हर मामले को राजनीतिक रंग दे दिया जाता है जिसमें राजनेता और कोई सरकार आरोपों में घेरे में होती है। कांग्रेस ने मिशेल के प्रत्यर्पण के साथ जिस तरह प्रतिक्रियायें दीं उसे क्या कहा जा सकता है? हालांकि कांग्रेस के लिए भी यह अच्छा ही है कि सच सामने आ जाएगा। कोई सरकार जानबूझकर गलत मामला बनाए तो अंततः फैसला न्यायालय को ही करना है।

न भूलें कि सब कुछ न्यायालय के आदेश के अनुसार हुआ है। दिल्ली भी मिशेल का एक केन्द्र रहा है। 2012 में अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर में घूस देने का आरोप सामने आने के बाद यहां से निकल भागा था। सीबीआई मामलों के विशेष न्यायालय ने 24 सितंबर, 2015 को उसके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया थां जिसके आधार पर इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया। उसे फरवरी, 2017 में दुबई में गिरफ्तार किया गया। संयुक्त अरब अमीरात से उसके प्रत्यर्पण का कानूनी संघर्ष तथा राजनयिक एवं राजनीतिक प्रयास चल रहा था। जब भारत पहुंचते ही उसके लिए वकील खड़े हो गए तो संयुक्त अरब अमीरात में तो उसके पास कानूनी लड़ाई की पूरी ताकत थी। बावजूद वह कानूनी लड़ाई में पराजित किया जा सका तो इसीलिए कि भारत ने पूरी ताकत लगाई तथा नीचे से शीर्ष न्यायालय में जो आरोपपत्र, गवाहों के बयान, अन्य साक्ष्य एवं दस्तावेज दिए गए वे इतने सशक्त थे कि न्यायाधीश ने माना कि मामले की कानूनी प्रक्रिया के लिए उसकी आवश्यकता है। राजनयिक कोशिशें तो पहले से चल रहीं थीं, अन्यथा हम आसानी से वहां कानूनी लड़ाई भी नहीं लड़ पाते। मामला जीतने के बावजूद उसका प्रत्यर्पण संभव नहीं होता। यह विवरण इसलिए आवश्यक है ताकि देश के सामने साफ हो जाए कि जैसा भारत में वातावरण बना दिया गया है कि उसे तो बस पकड़ लाना था, अब राजनीतिक लाभ पाने का समय है तो ला दिया गया वह सच नहीं है। उसे लाना इतना आसान नहीं था। नरेन्द्र मोदी सरकार आने के बाद इसकी जांच तेज हुई और तबसे एजेंसियां पीछे थी। एक ब्रिटिश नागरिक होने के नाते वह पश्चिम यूरोप के किसी देश में आसानी से जा सकता था।

मामले को संक्षेप में समझ लें। 8 फरवरी, 2010 को रक्षा मंत्रालय ने ब्रिटेन की कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड के साथ 12 हेलिकॉप्टरों की खरीद का समझौता किया था। इटली की फिनमैकेनिका कंपनी उसके लिए हेलिकॉप्टर बनाती है। ये हेलिकॉप्टर भारतीय वायुसेना के लिए खरीदे जाने थे, जिनमें से 8 का इस्तेमाल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य वीवीआईपी की उड़ान के लिए किया जाना था.। बाकी के चार हेलिकॉप्टरों में 30 एसपीजी कमांडो के सवार होने की क्षमता थी। कुल सौदा 55.62 करोड़ यानी करीब 3726 करोड़ का था। भारत में तीन हेलिकॉप्टर आ भी गए। किंतु अचानक इटली से यह खबर आई की सौदे में भारतीय अधिकारियों एवं नेताओं का सौदे का करीब 10 प्रतिशत घूस दिया गया है। फिनमेकैनिका कंपनी के पूर्व उपाध्यक्ष जुगेपी ओरसी और अगस्ता वेस्टलैंड के पूर्व सीईओ ब्रूनो स्पाग्नोलिनी के खिलाफ वहां की जांच एजेंसियों ने 2012 में मामला दर्ज किया। 2016 में निचले न्यायालय ने ब्रूनो को चार और ओरसी को साढ़े चार साल की सजा सुनाई। जब इटली में जांच शुरु हो गई तो भारत के पास इसमें कदम उठाने के अलावा कोई चारा ही नहीं था। आनन-फानन में सौदा रद्द हुआ तथा जांच का आदेश दिया गया। हालांकि तब तक 30 प्रतिशत भुगतान हो चुका था। यूपीए सरकार इतनी घबरा गई कि उसने कपंनी को ही काली सूची में डाल दिया, जबकि आजादी के बाद से ही उससे हेलिकॉप्टर लिए जा रहे हैं। भारत में आज 50 प्रतिशत से ज्यादा हेलिकॉप्टर उसी कंपनी के हैं। काली सूची में डालने के बाद उनके कल पूर्जों तक का संकट पैदा हो रहा था। टाटा उसके साथ एक संयुक्त उद्यम लगा रही थी वह भी बीच में रुक गया। तो मोदी सरकार ने विचार-विमर्श के बाद जांच जारी रखा लेकिन कंपनी को काली सूची से हटा दिया।

सीबीआई ने इस मामले में पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी तक को गिरफ्तार किया। यह भी भारत में पहली बार हुआ जब सेना के सर्वोच्च अधिकारी रहे व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई हो। 18 लोगों को आरोपी बनाया गया। 13 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर हो चुका है। आरोप पत्र को पढ़ें तो साफ हो जाएगा कि क्रिश्चियन मिशेल ने घूस की रकम ट्रांसफर करने के लिए दो कंपनियों ग्लोबल सर्विसेज एफजेडई, दुबई और ग्लोबल ट्रेड एंड कॉमर्स सर्विसेज, लंदन का इस्तेमाल किया था। मिशेल भारत के लिए नया नहीं है। उसके पिता भी भारत से जुड़े थे और कई सौदों में उनकी भूमिका थी और उसके बाद मिशेल ने यह काम संभाला। हालांकि उसका कहना है कि वह रक्षा सामग्रियों के विशेषज्ञ के तौर पर अपनी सेवायें देता है तथा उसके एवज में उसे शुल्क मिलता है। ज्यादातर बिचौलिए रक्षा सामग्रियों के जानकार होते हैं। निर्माता कंपनियों के वे परामर्शदाता होते हैं और कुछ देशों में वे काम करते हैं जहां उनका संबंध बनता है तथा वे उनका उत्पादन बिकवाने में सहयोग करते हैं। कहीं आसानी से हो गया और जहां नहीं हुआ तो सौदा पटाने के लिए सब कुछ होता है। जांच मिशेल के अलावा दो और बिचौलियों गुइदो हाश्के और कार्लो गेरेसा के खिलाफ भी चल रहा है। उनके खिलाफ भी इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस जारी हो चुका था।

त्यागी पर आरोप है कि उन्होंने वीवीआईपी हेलिकॉप्टरों की ऑपरेशनल क्षमता की ऊंचाई 6 हजार मीटर रखने के मानक को घटकार 4500 मीटर तथा कैबिन की ऊंचाई 1.8 मीटर कर दिया था। इससे अगस्ता वेस्टलैंड को सौदा मिल सका। त्यागी का कहना है कि यह फैसला वायुसेना, एसपीजी सहित दूसरे विभागों ने संयुक्त रुप से लिया तथा उनके काल में सौदा हुआ भी नहीं। यह संभव नहीं है कि केवल अधिकारियों के स्तर पर फैसला हो गया हो। इटली के निचले न्यायालय ने जो फैसला दिया उसमें 15 पृष्ठ भारत सरकार, कांग्रेस के नेताओं और रक्षा मंत्रालय पर केन्द्रित है जिसमे तीखी टिप्पणियां हैं। उसमें कुछ कांग्रेस के नेताओं के नाम हैं। सिग्नोरा गांधी का नाम दो बार आया है जिनके बारे में कहा है कि सौदे में उनकी बड़ी भूमिका थी। सीबीआई को हाथ से लिखा हुआ दस्तावेज मिला जिसमें संकेत नाम हैं। मसलन, पीओल जिसें हम पोलिटिशयन कह सकते हैं। बीयूआर, जिसे ब्यूरोक्रेसी कह सकते हैं। इसी तरह एपी, ओएफ….जैसे नाम हैं। इटली के निचले न्यायालय ने अहमद पटेल, ऑस्कर फर्नांडिस, सोनिया गांधी सबका खुला नाम लिखा है। यदि मिशेल से सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय नेताओं के नाम कहलवाने में सफलता पा ले तो राजनीतिक विस्फोट की स्थिति पैदा होगी। देश सच जानना चाहता है। उसके साथ जो दोषी हैं उनको सजा मिले तथा जो नही हैं उनका नाम बेवजह न घसीटा जाए यह भी आम चाहत है। तर्क दिया जा रहा है कि 8 जनवरी 2018, को इटली की अपील्स कोर्ट ने जुगेपी ओरसी और ब्रूनो स्पाग्नोलिनी को जब बरी कर दिया तो मामले में कुछ है ही नहीं। वहां की न्यायालय ने सिर्फ इतना कहा है कि इनके खिलाफ कोई सबूत नहीं पाये गये। उसके आधार पर मामला बंद करने का कोई कारण नहीं है। कई कारणों से वहां ऐसा हुआ होगा।

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